गोवा इंक्विज़िशन

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गोवा में पुर्तगाली इंक्विज़िशन का पवित्र कार्यालय
Inquisição de Goa
गोवा इंक्विज़िशन
राज्य-चिह्न या लोगो
गोवा में पुर्तगाली इंक्विज़िशन की मुहर
प्रकार
सदन प्रकार पुर्तगाली इंक्विज़िशन का भाग
इतिहास
स्थापित 1560
भंग 1820
विधान सभा सत्र भवन
पुर्तगाली भारत

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गोवा इंक्विज़िशन (पुर्तगाली: Inquisição de Goa, अंग्रेज़ी: Goa Inquisition) औपनिवेशिक काल के पुर्तगाली भारत में पुर्तगाली इंक्विज़िशन का ही विस्तार थी। यह पुर्तगाली साम्राज्य के भारतीय क्षेत्रों में रोमन कैथोलिक धर्म में जबरन धर्मपरिवर्तन कराने और कैथोलिक रूढ़िवाद को बनाए रखने के लिए स्थापित की गई थी।[१][२] इस संस्था के तहत औपनिवेशिक युग की पुर्तगाली सरकार और पुर्तगाली भारत में जेसुइट पादरियों ने हिंदुओं, मुस्लिमों, बेने इजरायल, परिवर्तित ईसाइयों और नसरानियों को सताया और उनका दमन किया। इसे 1560 में स्थापित किया गया था, 1774-78 अवधि में इसपर कुछ हद तक अंकुश लगाया गया और अंत में 1820 में समाप्त कर दिया गया।[३][४] इंक्विज़िशन ने उन लोगों को प्रताड़ित किया जो कैथोलिक धर्म में नए-नए परिवर्तित तो हो गए थे, किंतु जेसुइट पादरियों को उनपर संदेह था कि कहीं ये धर्मांतरण के बाद भी चोरी-छिपे अपने पुराने धर्म का पालन तो नहीं कर रहे। मुख्य रूप से, सताए गए लोगों पर छद्म-हिंदू धर्म (छिपकर हिंदू धर्म का पालन करना) का आरोप लगाया गया था। [५][६][७] कुछ दर्जन आरोपित मूल निवासियों को कई वर्षों तक कैद में रखा गया, सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे गए, या, आपराधिक आरोप पर आश्रित मौत की सजा सुना दी गई, जो कि अक्सर अपराधी को काठ पर बाँधकर जलाकर दी जाती थी। [८][९] कैथोलिक ईसाई मिशनरियों को गोवा में जो भी किताब संस्कृत, अरबी, मराठी, या कोंकणी में लिखी गई मिलती, उसे वे जला दिया करते थे। साथ ही उन्होंने प्रोटेस्टेंट ईसाई पुस्तकों पर भी डच या अंग्रेजी व्यापारी जहाजों से गोवा में प्रवेश करने पर रोक लगा दी थी।[१०]

गोवा में इंक्विज़िशन की स्थापना का अनुरोध जेसुइट मिशनरी फ्रांसिस जेवियर ने अपने मुख्यालय मलक्का से 16 मई 1546 को पुर्तगाल के राजा जॉन तृतीय को लिखे एक पत्र में किया था । [८][११][१२] 1561 में इंक्विज़िशन की शुरुआत और 1774 में इसके अस्थायी उन्मूलन के बीच, कम से कम 16,202 व्यक्तियों को इसके द्वारा ट्रायल के लिए लाया गया था। 1820 में जब इंक्विज़िशन को समाप्त किया गया, तो गोवा इंक्विज़िशन के लगभग सभी रिकॉर्ड पुर्तगालियों द्वारा जला दिए गए।[६] इस कारण ट्रायल पर रखे गए लोगों की सटीक संख्या और उनके द्वारा निर्धारित दंडों को जानना असंभव है। [५] जो कुछ रिकॉर्ड बचे हैं, वे बताते हैं कि कम से कम 57 को उनके धार्मिक अपराध के लिए मार दिया गया था, और अन्य 64 को काठ पर बाँधकर इसलिए जलाया गया था क्योंकि सजा सुनाए जाने से पहले ही जेल में उनकी मृत्यु हो गई थी। [१३][१४]

फ्रांसीसी चिकित्सक चार्ल्स डेलन, जो स्वयं इंक्विज़िशन के शिकार थे, कई रिकॉर्ड छोड़कर गए। उनके अलावा भी अन्य लोग बताते हैं कि छिपकर हिंदू धर्म का पालन करने के दोषी पाए गए लोगों में से लगभग 70% को मौत की सजा दी गई। कई कैदियों भूखा मार डाला गया, और आम तौर पर इंक्विज़िशन के दौरान भारतीय लोगों के ख़िलाफ़ नस्लीय भेदभाव प्रचलित था।[२][१५]

गोवा इंक्विज़िशन का मुख्यालय।

पुर्तगाली आगमन और गोवा पर अधिकार

गोवा की स्थापना और निर्माण प्राचीन हिंदू राज्यों द्वारा किया गया था और यह कदंब वंश की राजधानी हुआ करता था। 13 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, अलाउद्दीन खिलजी की ओर से मलिक काफूर ने गोवा पर हमला किया, और लूटकर अपना कब्ज़ा जमा लिया।[१६] 14 वीं शताब्दी में, विजयनगर के शासकों ने विजय प्राप्त की और उस पर कब्जा कर लिया।[१७] यह 15 वीं शताब्दी में बहमनी सल्तनत का हिस्सा बन गया, उसके बाद बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह के शासन में था जब वास्को द गामा 1498 में भारत के कोझीकोड (कालीकट) पहुंचा।

वास्को द गामा की वापसी के बाद, पुर्तगाल ने भारत में एक कॉलोनी (उपनिवेश) स्थापित करने के लिए एक सशस्त्र बेड़ा भेजा। 1510 में, पुर्तगाली एडमिरल अफोंसो डी अल्बुकर्क (लगभग 1453-1515) ने गोवा में अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं, जिसमें पुर्तगाली अंततः जीत गए। [१७] गोवा के शासक आदिल शाह से कब्जा करने के उनके प्रयास में विजयनगर साम्राज्य के क्षेत्रीय एजेंट तिमय्या ने पुर्तगालियों की सहायता की थी।[१८] तिमय्याके विचारों इसलिए पुर्तगाली इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे बुतपरस्त कहने के बजाय "होली स्पिरिट का एक मेसेंजर" (पवित्र आत्मा का दूत) होने की उपाधि दी। [१९] [२०] गोवा भारत में पुर्तगाली औपनिवेशिक संपत्ति और एशिया के अन्य हिस्सों में गतिविधियों का केंद्र बन गया। यह अब पुर्तगालियों के लिए प्रमुख और आकर्षक व्यापारिक केंद्र बन गया था, जिसके ज़रिए वे पूर्व में स्थित विजयनगर साम्राज्य और बीजापुर सल्तनत के साथ व्यापार कर सकते थे। बीजापुर सल्तनत और पुर्तगाली सेनाओं के बीच दशकों तक युद्ध चलता रहा।

भारत में इंक्विज़िशन का प्रवेश

फ्रांसिस ज़ेवियर ने पुर्तगाल से मई 1546 में गोवा इंक्विज़िशन शुरू करने का अनुरोध किया। इस सुझाव को 1560 में लागू किया गया, जेवियर की मृत्यु के आठ साल बाद।[८]

डेलेओ डी मेंडोंसा (Délio de Mendonça) बताते हैं कि 16 वीं से 17 वीं शताब्दी तक मिशनरियों के बचे हुए रिकॉर्ड, यह साबित करते हैं कि वे बेहद रूढ़िवादी थे और जेंटायल्स (या gentiles, जिस शब्द से वे यहूदियों, हिंदुओं और मुसलमानों को संदर्भित करते थे) के प्रति उनका नज़रिया भेदभावपूर्ण और पूर्वाग्रह से ग्रस्त होता था। [२१] गोवा और कोचीन ( कोच्चि ) दोनों में पुर्तगाली नियमित रूप से अपनी सैन्य शक्ति और युद्ध में संलग्न थे। उनकी हिंसा के कारण शासक वर्ग, व्यापारी और किसान उनसे घृणा करते थे। पुर्तगाली मिशनरी मानते थे कि भारत के नागरिक या तो उनके दुश्मन हैं, और जो नहीं है, वे अंधविश्वासी, कमजोर और लालची हैं। उनके रिकॉर्ड बताते हैं कि मिशनरियों द्वारा पेश किए गए आर्थिक लाभ जैसे कि नौकरी या कपड़ों के उपहार के लिए भारतीय ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए। बपतिस्मा लेने के बाद, इन नए परिवर्तित ईसाइयों ने क्रिप्टो-यहूदियों (जो पहले पुर्तगाल में जबरन ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे) के समान गुप्त रूप से अपने पुराने धर्म का अभ्यास करना जारी रखा। जेसुइट मिशनरियों ने इसे कैथोलिक ईसाई विश्वास की शुद्धता के लिए खतरा माना और क्रिप्टो-हिंदुओं, क्रिप्टो-मुस्लिमों और क्रिप्टो-यहूदियों को दंडित करने के लिए इंक्विज़िशन स्थापित करने के लिए पुर्तगाल के राजा पर दबाव डाला, जिससे विधर्म समाप्त हो जाए। फ्रांसिस ज़ेवियर ने राजा को चिट्ठी में गोवा में इंक्विज़िशन शुरू करने के लिए कहा, जिसके लिए ज़ेवियर की मौत के आठ साल बाद 1560 में राजा ने अनुकूल प्रतिक्रिया दी।[८]

गोवा इंक्विज़िशन ने 1545 और 1563 के बीच दिए गए ट्रेंट की काउन्सिल के निर्देशों को गोवा और पुर्तगाल के अन्य भारतीय उपनिवेशों में अनुकूलित किया। इसमें स्थानीय रीति-रिवाजों पर हमला करना, ईसाई धर्मान्तरितों की संख्या बढ़ाने के लिए सक्रिय अभियोग (proselytization) लगाना, कैथोलिक ईसाइयों के दुश्मनों से लड़ना, हेरेटिकल (heretical, अर्थात् ईसाई धर्म से हटकर, या विधर्मी) व्यवहार को उखाड़ फेंकना और कैथोलिक धर्म की पवित्रता बनाए रखना शामिल था।[२२] पुर्तगालियों ने जाति व्यवस्था को स्वीकार कर लिया, जिससे स्थानीय समाज के अभिजात्य वर्ग आकर्षित हुआ, मेंडोंसा ने कहा, क्योंकि सोलहवीं शताब्दी के यूरोपीय लोगों के पास उनकी स्वयं की संपत्ति प्रणाली (estate system) थी और यह माना जाता था कि सामाजिक विभाजन और वंशानुगत रॉयल्टी ईश्वर द्वारा स्थापित थी। समस्या त्योहारों, समन्वित धार्मिक प्रथाओं और अन्य पारंपरिक रीति-रिवाजों से थी, जिन्हें हेरेसी माना गया। इसलिए उन्होंने मूल निवासियों की आस्था का सफ़ाया करने के लिए इंक्विज़िशन स्थापित की।

भारत में इंक्विज़िशन का आरम्भ

इंक्विज़िशन का लक्ष्य लोगों को धार्मिक "अपराधों" के लिए दंडित करना था। गोवा से पहले ये पुर्तगाल और स्पेन में भी था। गोवा में इसके शुरू होने से पहले से भी, वहाँ पुर्तगालियों द्वारा धार्मिक उत्पीड़न चलता आ रहा था। 30 जून 1541 को एक पुर्तगाली आदेश आया था, जिसके तहत हिंदू मंदिरों को तबाह करके उनकी संपत्ति ज़ब्त करके कैथोलिक मिशनरियों को हस्तांतरित कर दी जाए।[२३]

1560 में गोवा में इंक्विज़िशन कार्यालय को अधिकृत करने से पहले, राजा जोआओ III (Joao III) ने 8 मार्च, 1546 को एक आदेश जारी किया, जिसमें हिंदू धर्म को निषिद्ध करने, हिंदू मंदिरों को नष्ट करने, हिंदू पर्वों के सार्वजनिक उत्सव पर रोक लगाने, हिंदू पुजारियों को निष्कासित करने और कोई भी हिंदू चित्र या मूर्ति बनाने वालों को गंभीर रूप से दंडित करने का आदेश दिया गया [२४] यह आदेश भारत के उन सभी क्षेत्रों के लिए था, जो पुर्तगाली क़ब्ज़े में आते थे।[२४] इन क्षेत्रों में मुस्लिम मस्जिदों पर सन 1550 से पहले एक विशेष धार्मिक कर लगाया गया था। अभिलेखों से पता चलता है कि पुर्तगालियों द्वारा 1539 में "विधर्मी उक्तियों" (ऐसी कोई बात कह देना जो ईसाई धर्म के ख़िलाफ़ हो) के धार्मिक अपराध के लिए एक नव-परिवर्तित ईसाई को मार डाला गया था। एक यहूदी converso (या ईसाई धर्मांतरित जेरोनिमो डायस) को गैरोटिंग की सज़ा के लिए नामित किया गया था। उसे जल्दी 1543 के रूप में हेरेसी और वापस यहूदी बनने के "अपराध" में के चलते पुर्तगालियों ने काठ पर जला दिया था। ये सभी घटनाएँ इंक्विज़िशन से पहले की हैं। [२५]

इंक्विज़िशन कार्यालय की शुरुआत

पुर्तगाल के कार्डिनल हेनरिक ने पहले इंक्विज़िटर (inquisitor) के रूप में अलेक्सो डिआज फलसाओं (Aleixo Díaz Falcão) को भेजा।[२६] उसने पहले ट्रिब्यूनल की स्थापना की, जो कि (हेनरी लेया के मुताबिक़) पुर्तगाली औपनिवेशिक साम्राज्य के उत्पीड़न का सबसे निर्दय वाहक बना। कार्यालय सुल्तान आदिल शाह के पूर्व महल में बसाया गया था।[२७]

इंक्विज़िटर का पहला कृत्य हिंदू आस्था के अनुसार खुले तौर पर अंतिम संस्कार करने पर प्रतिबंध लगाना था। इंक्विज़िशन द्वारा लगाए गए अन्य प्रतिबंधों में शामिल हैं: [२८]

  • हिंदुओं के किसी भी सार्वजनिक कार्यालय में पद ग्रहण करने पर पाबंदी लगाई दी गई, अब केवल एक ईसाई ही इस तरह के पद पर नियुक्त हो सकता था।[२९][३०]
  • हिंदुओं के किसी भी ईसाई धर्म से सम्बंधित भक्ति वस्तुओं या प्रतीकों का उत्पादन करने पर पाबंदी लगाई गई।
  • वे हिंदू बच्चे जिनके पिता की मृत्यु हो गई थी, उन्हें अब ईसाई धर्म परिवर्तन के लिए जेसुइट्स को सौंपने का प्रावधान लागू किया गया। यह पुर्तगाल से 1559 के एक शाही आदेश के तहत शुरू हुआ, इसके बाद कथित रूप से अनाथ हिंदू बच्चों को सोसाइटी ऑफ जीसस द्वारा जब्त कर लिया जाता और उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया।[३१] यह कानून उन बच्चों पर भी लागू किया गया था जब उनकी माँ उस समय जीवित थी, और कुछ मामलों में तो तब भी जब उनके पिता जीवित हों। हिंदू बच्चे को जब्त करने पर पैतृक संपत्ति भी जब्त कर ली जाती थी। कुछ मामलों में, जैसा कि लॉरेन बेंटन बताते हैं, पुर्तगाली अधिकारियों ने "अनाथों की वापसी" के लिए पैसा वसूलना शुरू कर दिया था।[३२]
  • वे हिंदू महिलाएं जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गईं, वे अपने माता-पिता की सभी संपत्ति को प्राप्त कर सकती थीं;
  • सभी ग्राम सभाओं में हिंदू लिपिकों को हटाकर ईसाईयों को नियुक्त दिया गया;
  • क्रिश्चियन गांवकार गाँव बिना किसी हिन्दू गांवकार की उपस्थिति में गाँव-सम्बंधी निर्णय ले सकते थे, किंतु हिन्दू गांवकार तब तक कोई गाँव निर्णय नहीं ले सकते थे जब तक कि सभी ईसाई गांवकार वहाँ मौजूद न हों; गोवा के जो गाँव ईसाई-बहुल थे, वहाँ हिंदुओं के गाँव की सभाओं में जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी। [३३]
  • किसी भी कार्यवाही पर पहले हस्ताक्षर ईसाई सदस्यों को करना होता था, हिंदुओं को बाद में; [३४]
  • कानूनी कार्यवाही में, हिंदू गवाह के रूप में अस्वीकार्य थे, केवल ईसाई गवाहों के बयान स्वीकार्य थे।
  • पुर्तगाली गोवा में हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था, और हिंदुओं को नए मंदिर बनाने या पुराने मंदिरों की मरम्मत करने से मना किया गया था। जेसुइट्स ने एक मंदिर विध्वंस दल का गठन किया था, जिसने 16 वीं शताब्दी से पूर्व बने मंदिरों को ध्वस्त कर दिया था। जिसमें 1569 में एक शाही फ़रमान आया था, जिसमें यह आदेश था कि भारत में पुर्तगाली उपनिवेशों में सभी हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करके जला दिया जाये (desfeitos e queimados);
  • हिंदू पुजारियों के पुर्तगाली गोवा में हिंदू शादियों में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी गई।

1560 से 1774 तक, कुल 16,172 व्यक्तियों पर इंक्विज़िशन ने मुक़द्दमा चलाया।[३५] हालांकि इसमें विभिन्न राष्ट्रीयताओं के व्यक्ति भी शामिल थे, किंतु अधिकतर (लगभग तीन चौथाई) मूल निवासी भारतीय थे, और इनमें कैथोलिक और गैर-ईसाइयों की संख्या लगभग बराबर थी। इनमें से कुछ को सीमा पार करने और वहां की जमीन पर खेती करने के लिए गिरफ़्तार किया गया था।[३६]

लॉरेन बेंटन के अनुसार, 1561 और 1623 के बीच, गोवा के अधिग्रहण में 3,800 मामले आए। यह एक बड़ी संख्या थी क्योंकि 1580 के दशक में गोवा की कुल जनसंख्या ही लगभग 60,000 थी, जिसमें से अनुमानित हिंदू आबादी के साथ लगभग एक-तिहाई या 20,000 थी। [३७]

कार्यान्वयन और परिणाम

गोवा इंक्विज़िशन का ऑटो-दा-फे (Auto-da-fé) जुलूस। [३८] यह विधर्मियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित और दंडित करने के लिए एक वार्षिक कार्यक्रम होता था। चित्र में मुख्य इंक्विज़िटर, डोमिनिकन फ़्रायर, पुर्तगाली सैनिकों और काठ पर जलकर सज़ा-ए-मौत पाने वाले धार्मिक अपराधी देखे जा सकते हैं।

फ्रांसिस जेवियर (Francis Xavier) ने मई 1546 में पुर्तगाली राजा को गोवा के इंक्विज़िशन के लिए मूल अनुरोध भेजा था।[८][३९] जेवियर के अनुरोध से तीन साल पहले, पुर्तगाल के भारतीय उपनिवेशों में अधिग्रहण शुरू करने की अपील विकर जनरल मिगुएल वाज़ (Vicar General Miguel Vaz) द्वारा भेजी गई थी। [४०] इंडो-पुर्तगाली इतिहासकार टोटोनियो आर डी सूजा के अनुसार, मूल अनुरोधों के निशाने पर "मूर" (मुस्लिम), नए ईसाई और हिंदू थे, और इसने गोवा को कैथोलिक पुर्तगालियों द्वारा संचालित उत्पीड़न नरक बना डाला।[४१]

1567 में जेसुइट्स और चर्च के गोवा के प्रांतीय काउंसिल की मांगों के तहत पुर्तगाली औपनिवेशिक प्रशासन ने हिंदू-विरोधी कानूनों को लागू किया। इसके पीछे दो मक़सद थे, पहला- हर उस चीज़ पर अंकुश लगाना था, जो कैथोलिकों को विधर्मी आचरण लगती थी, और दूसरा ईसाई धर्म के लिए धर्मांतरण को प्रोत्साहित करना। नए कानून के मुताबिक़ ईसाई अब हिन्दुओं को काम पर नहीं रख सकते थे, और हिंदुओं की सार्वजनिक पूजा को गैरकानूनी क़रार दिया गया।[४२][३४] हिन्दुओं को ज़बरन ईसाई धर्म के सिद्धांत या और धर्म की आलोचना सुनने के लिए समय-समय पर चर्चों में इकट्ठा होने के लिए मजबूर किया जाता था।[४३] संस्कृत, मराठी और कोंकणी हिंदू पुस्तकों को इंक्विज़िशन द्वारा जला दिया गया था।[४४] इसने हिंदू पुजारियों को हिंदू शादियों के लिए गोवा में प्रवेश करने पर भी रोक लगा दी। नियम तोड़ने पर गैर-कैथोलिकों को जुर्माना, सार्वजनिक दंड, मोज़ाम्बिक में निर्वासन, कारावास, निष्पादन, ऑटो-दा-फ़े पर पुर्तगाली ईसाई अभियोजन पक्ष के आदेशों के तहत काठ पर जला देने जैसे दंडों का प्रावधान था।[८][४५][४६] गिरफ्तारी करने में मनमानी चलती थी, आयुक्त के ख़िलाफ़ गवाही देने वालों का नाम गुप्त रखा जाता था, आयुक्त की संपत्ति तुरंत ज़ब्त कर ली जाती, गुनाह क़बूलने के लिए उन्हें तरह-तरह से तड़पाया जाता और यातनाएं दी जाती थीं, और क़बूलनामा वापस लेने को बेईमानी क़रार दिया जाता, झूठा स्वीकारोक्ति की पुनरावृत्ति को बेईमान चरित्र का सबूत माना गया था, और जारी प्रक्रिया के बारे में चुप्पी की शपथ लेना आवश्यक थी- यदि वे अपने अनुभवों के बारे में किसी से बात करते तो उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया जाता।[४७][४८]

इंक्विज़िशन की यातनाओं के कारण पहले हिंदुओं[३७] और बाद में ईसाइयों और मुसलमानों को बड़ी संख्या में गोवा से भागकर ऐसे गोवा से आसपास के उन क्षेत्रों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा जो जेसुइट्स और पुर्तगाली भारत के नियंत्रण में नहीं थे।[३४][४९] अपने मंदिरों के विध्वंस के चलते हिंदू अपने पुराने मंदिरों के खंडहरों से मूर्तियों को निकालकर और पुर्तगाली नियंत्रित क्षेत्रों की सीमाओं के बाहर नए मंदिरों का निर्माण करके उन्हें वहाँ पुनर्स्थापित करते। गोवा की आज़ादी के बाद, कुछ मामलों में जहां पुर्तगालियों ने नष्ट किए गए मंदिरों के स्थान पर चर्चों का निर्माण किया था, हिंदुओं ने वार्षिक जुलूस शुरू किए, जहाँ वे अपने देवी-देवताओं को ले जाते, और अपने नए मंदिरों को उस स्थान से जोड़कर देखते जहां अब चर्च खड़े हैं। [५०]

कोंकणी भाषा का दमन

शुरुआत में पुर्तगाली पादरियों ने कोंकणी भाषा का गहन अध्ययन किया और उसे लोगों का धर्मांतरण करने के लिए एक संचार माध्यम के रूप में इसका प्रयोग किया। इसके विपरीत, इंक्विज़िशन के दौरान उन्होंने नए ईसाइयों को ग़ैर-कैथोलिंक लोगों से अलग रखने का हरसंभव प्रयास कर नस्लभेद का एक नया नमूना पेश किया।[५१] 17 वीं शताब्दी के अंत में और इससे पहले 18 वीं शताब्दी में मराठों के गोवा पर आक्रमण करने के प्रयासों के समय कोंकणी का दमन किया गया। मराठों के बढ़ते पराक्रम को पुर्तगालियों ने अपने गोवा के नियंत्रण और भारत में व्यापार के रखरखाव के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में देखा।[५१] मराठा खतरे के कारण, पुर्तगाली अधिकारियों ने गोवा में कोंकणी को दबाने के लिए एक दमनकारी कार्यक्रम शुरू करने का फैसला किया।[५१] पुर्तगाली का ज़बरन उपयोग लागू किया गया, और कोंकणी केवल सीमांत लोगों की भाषा बनकर रह गई।[५२]

फ्रांसिस्कन (Franciscan) पादरियों के आग्रह पर, पुर्तगाली वायसराय ने 27 जून 1684 को कोंकणी के उपयोग को रोक दिया और यह निर्णय लिया कि तीन साल के भीतर, सामान्य रूप से स्थानीय लोग केवल पुर्तगाली भाषा बोलेंगे। अब उन्हें पुर्तगाली क्षेत्रों में किए गए अपने सभी संपर्कों और अनुबंधों में इसका उपयोग करने की आवश्यकता थी। उल्लंघन के लिए दंड कारावास रखा गया। राजा द्वारा 17 मार्च 1687 को इस डिक्री की पुष्टि की गई।[५१] 1731 में पुर्तगाली सम्राट को इंक्विज़िटर एंटोनियो अमरल कोटिन्हो के पत्र के अनुसार, ये कठोर उपाय सफल नहीं हुए।[५३]

उत्तर के पुर्तगाली प्रांत (जिसमें बसीन, चाउल और साल्सेट शामिल थे) पर मराठों की जीत के बाद, पुर्तगालियों ने कोंकणी पर नए सिरे से हमला किया।[५१] 21 नवंबर 1745 को, आर्कबिशप लोरेंको डे सांता मारिया ने यह निर्णय लिया कि पादरी बनने के आवेदकों को पुर्तगाली भाषा में और बोलने की क्षमता का ज्ञान होना चाहिए; इसने केवल आवेदकों पर ही लागू नहीं किया, बल्कि उनके करीबी संबंधों के लिए भी, और इसकी सरकारी कर्मचारियों द्वारा कठोर परीक्षाओं से पुष्टि की जाती थी।[५१] इसके अलावा, सभी बामोन (Bamonn, कैथोलिंक ब्राह्मण) और चारड्डो (Chardo, कैथोलिंक क्षत्रिय) को छह महीने के भीतर पुर्तगाली सीखने की आवश्यकता थी, जिसमें विफल रहे कि उन्हें शादी के अधिकार से वंचित कर दिया जाता।[५१] 1812 में, आर्चबिशप ने बच्चों को स्कूलों में कोंकणी बोलने से प्रतिबंधित कर दिया और 1847 में, यह मदरसों तक बढ़ा दिया गया था। 1869 में, कोंकणी को स्कूलों में पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया था।[५१]

परिणामस्वरूप, गोवा के लोग कोंकणी में साहित्य विकसित नहीं कर पाए, और न ही यह भाषा आबादी को एकजुट कर सकी, क्योंकि इसे लिखने के लिए कई लिपियों (रोमन, देवनागरी और कन्नड़) का उपयोग किया गया था। [५२] कोंकणी lingua de criados (नौकरों की भाषा) बन गई,[५४] जबकि हिंदू और कैथोलिक कुलीन क्रमशः मराठी और पुर्तगाली भाषी बन गए।

1961 में, जब गोवा का भारत में विलय हुआ, तबसे कोंकणी भाषा वह गोंद बन गई है जो सभी जाति, धर्म और वर्ग के गोवावासियों को जोड़कर रखता है- वे इसे स्नेह से कोंकणी माई (माँ कोंकणी) कहकर पुकारते हैं।[५२]

भारत में भाषा को पूर्ण मान्यता 1987 में मिली, जब भारत सरकार ने कोंकणी को गोवा की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी। [५५]

18 वीं शताब्दी का एक फ्रांसीसी स्केच, जिसमें एक व्यक्ति दिखा रहा है जिसने गोवा इंक्विज़िशन द्वारा काठ पर जलाकर मार दिए जाने की सज़ा सुनाई गई है। इसके बाएँ हाथ में काठ है, और क़मीज़ पर सज़ा लिखी हुई है। यह स्केच चार्ल्स डेलन के उत्पीड़न से प्रेरित था। [५६]

इंक्विज़िशन पर कुछ विचार

Goa est malheureusement célèbre par son inquisition, également contraire à l'humanité et au commerce. Les moines portugais firent accroire que le peuple adorait le diable, et ce sont eux qui l'ont servi.

« दुर्भाग्यवश गोवा अपनी इंक्विज़िशन के लिए कुख्यात है, जो मानवता और वाणिज्य- दोनों के विरुद्ध है। पुर्तगाली मिशनरियों ने हमें यह विश्वास दिलाया कि वहाँ लोग शैतान की पूजा करते हैं, जबकि असलियत में तो वे स्वयं शैतान के सेवक निकले। »

  • इतिहासकार अल्फ्रेडो डी मेलो ने गोवा की इंक्विज़िशन का कुछ इस रूप में वर्णन किया, [५९]

दकियानूसी, पैशाचिक, लंपट, भ्रष्ट धार्मिक आदेश जो बुतपरस्ती (यानी हिंदू धर्म) को नष्ट करने और मसीह के वास्तविक धर्म को पेश करने के उद्देश्य से गोवा में लगाए गए थे।

इन्हें भी देखें

टिप्पणियाँ

a ^ The Papal bull proclaimed the Apostolic Constitution on 21 July 1542.[६०][६१]
b ^ In his 1731 letter to King João V, the Inquisitor António Amaral Coutinho states:[६२]

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सन्दर्भ

  1. The Goan Inquisition by the Portuguese: A forgotten holocaust of Hindus and Jews
  2. इस तक ऊपर जायें: स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  5. इस तक ऊपर जायें: ANTÓNIO JOSÉ SARAIVA (1985), Salomon, H. P. and Sassoon, I. S. D. (Translators, 2001), The Marrano Factory. The Portuguese Inquisition and Its New Christians, 1536–1765 (Brill Academic, 2001), pp. 345–353.
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  13. ANTÓNIO JOSÉ SARAIVA (1985), Salomon, H. P. and Sassoon, I. S. D. (Translators, 2001), The Marrano Factory. The Portuguese Inquisition and Its New Christians, 1536–1765 (Brill Academic), pp. 107, 345-351
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  27. Hunter, William W, The Imperial Gazetteer of India, Trubner & Co, 1886
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  36. History of Christians in Coastal Karnataka, 1500–1763 A.D., Pius Fidelis Pinto, Samanvaya, 1999, p. 134
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  38. Bethencourt, Francisco (1992). "The Auto da Fe: Ritual and Imagery". Journal of the Warburg and Courtauld Institutes. The Warburg Institute. 55: 155–168. doi:10.2307/751421. JSTOR 751421.
  39. He was later declared a saint in Catholic Christianity and his remains were interred with a reverential display in Basilica of Bom Jesus, the Goan church.
  40. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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  42. Sakshena, R.N, Goa: Into the Mainstream (Abhinav Publications, 2003), p. 24
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  46. Priolkar, Anant Kakba; Dellon, Gabriel; Buchanan, Claudius; (1961), The Goa Inquisition: being a quatercentenary commemoration study of the Inquisition in India, Bombay University Press, pp. 114-149
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  49. Shirodhkar, P. P., Socio-Cultural life in Goa during the 16th century, p. 123
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  53. Priolkar, Anant Kakba; Dellon, Gabriel; Buchanan, Claudius; (1961), The Goa Inquisition: being a quatercentenary commemoration study of the inquisition in India, Bombay University Press, p. 177
  54. Routledge, Paul (22 July 2000), "Consuming Goa, Tourist Site as Dispencible space", Economic and Political Weekly, 35, p. 264
  55. "Goa battles to preserve its identity" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Times of India, 16 May 2010
  56. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  57. Oeuvres completes de Voltaire – Volume 4, Page 786
  58. Oeuvres complètes de Voltaire, Volume 5, Part 2, Page 1066
  59. Memoirs of Goa by Alfredo DeMello
  60. Bullarum diplomatum et privilegiorum santorum romanorum pontificum स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Augustae Taurinorum : Seb. Franco et Henrico Dalmazzo editoribus
  61. साँचा:cite book
  62. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Rivara नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।