क्षेम चंद 'सुमन'
आचार्य क्षेम चन्द 'सुमन' (16 सितम्बर, 1916 -- 23 अक्तूबर, 1993) हिन्दी साहित्यकार एवं पत्रकार थे। उन्हें १९८४ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है- 'दिवंगत हिन्दी साहित्यसेवी कोश' का दो भागों में प्रकाशन। इस असाधारण ग्रन्थ को तैयार करने के लिये सुमन जी ने सम्पूर्ण भारत के गाँव-गाँव, नगर-नगर को दो बार लगभग पैदल ही नाप दिया।[१] बनारसीदास चतुर्वेदी का लक्ष्य यदि स्वतन्त्रता सेनानियों और शहीदों के बलिदानों को उजागर करना तथा उनके आश्रितों की सहायता करना और करवाना था तो 'सुमन' जी का लक्ष्य लेखकों की मदद करना था।[२]
जीवन परिचय
आचार्य क्षेमचन्द्र सुमन का जन्म 16 सितम्बर, 1916 ई. को उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद (अब गाजियाबाद जिला) की हापुड़ तहसील के बाबूगढ़ नामक ग्राम में हुआ था। बाबूगढ़ भारत की चार विशेष घुड़सवार फौजों की छावनियों में से एक रहा है। ये छावनियाँ ‘रिमाउण्ड डिपो' कहलाती थीं। इनमें बाबूगढ़ (इण्डिया) के पते से ही पत्राचार होता था। उनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव के विद्यालय में ही हुई। १९२८ में आप दर्शनानन्द सरस्वती की चरण-छाया में पोषित शिक्षा केन्द्र गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रविष्ट हुए। बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के कारण सन् 1932 ई. में आप सर्वप्रथम महाविद्यालय के छोटे ब्रह्मचारियों की आर्य किशोर सभा के मंत्री बन गए। इतना ही नहीं, उसी वर्ष आपने आर्य किशोर सभा के हस्तलिखित मासिक मुखपत्र ‘किशोर मित्र' के ‘दीपमालिका अंक' का सम्पादन भी किया था।
सन् 1936 ई. में आपकी गुरुकुलीय शिक्षा पूर्ण हो गयी। उसी समय शीतलप्रसाद ‘विद्यार्थी' ने शान्ति प्रेस, सहारनपुर से ‘आर्य' नामक एक सामाजिक-क्रान्तिकारी सचित्र साप्ताहिक पत्र निकालने का विचार सुमन जी के समक्ष प्रस्तुत किया। सुमन जी ने उनके अनुरोध पर, उस पत्र का एक वर्ष तक सुचारु रूपेण सम्पादन किया।
मई, सन् 1938 में सुमन जी का विवाह हो गया। जनवरी, 1939 में ‘आर्य सन्देश' के सम्पादकीय विभाग में आगरा चले गए। यह पत्र आर्थिक कठिनाइयों के कारण केवल दो मास तक ही चल कर बन्द हो गया। फलतः मार्च, 1939 से आप ‘आर्य मित्र' में चले गए। अक्तूबर, 1939 ई. में अमेठी राज्य के राजकुमार रणजयसिंह ने अपने खर्चे पर आपको ‘मनस्वी' मासिक का सम्पादन करने के विषय में विचार-विमर्श करने के लिए बुलाया और चालीस रुपये मासिक पर नियुक्ति की सूचना दी। सुमन जी वहाँ चले तो गए परन्तु वहाँ का वातावरण और क्रियाकलाप उन्हें रास नहीं आए और गर्मियों में राजकुमार के विजगापट्टम की समुद्र-यात्रा पर जाने के बाद उनकी अनुपस्थिति में तार द्वारा अपने त्याग-पत्र की सूचना देकर मण्डी धनोरा (मुरादाबाद) से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘शिक्षा सुधा' में पहुँच गए। दिसम्बर, 1940 में आपने वहाँ से भी त्यागपत्र दे दिया। अक्तूबर, 1941 में आप हिन्दी-भवन, लाहौर में साहित्यिक सहायक होकर चले गए। वहाँ पर आपकी भेंट प्रसिद्ध नाटककार और कवि उदय शंकर भट्ट और हरिकृष्ण ‘प्रेमी' से हुई, जिनकी प्रेरणा से आप सम्पादन-कार्य के साथ-साथ लेखन-कार्य की ओर भी प्रवृत्त हो गए। उन दिनों हिन्दी की रत्न, भूषण, प्रभाकर आदि परीक्षाओं की सहायक पुस्तकें तैयार करने का श्रेय सुमन जी ने ही प्राप्त किया था।
लाहौर में रहते हुए सुमन जी 'हिन्दी मिलाप' में उसके सम्पादक श्री लेखराज के साथ काम करने लगे। सन् 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन में सुमन जी का निवास क्रांतिकारी नेताओं और कार्यकर्ताओं की शरण-स्थली बन गया। उन क्रान्तिकारियों में पत्रकार, अध्यापक, राजनीतिक और छात्र-छात्राएँ शामिल थे। पुलिस को इस बात का सुराग मिल गया और एक दिन वह आया कि पुलिस ने उनके घर को चारों ओर से घेर लिया। तलाशी में आचार्य दीपंकर पुलिस के हाथ लगे। क्योंकि वे विकलांग थे, इसीलिए पुलिस को उन्हें पहचानने में देर नहीं लगी। इसी कारण सुमन जी भी पुलिस की आँखों में खटकने लगे और कुछ दिनों बाद उन्हें भी नजरबन्द कर लिया गया। इस प्रकार जून, 1945 तक स्वतन्त्रता-सेनानी के रूप में सक्रिय भाग लेने के उपरान्त जुलाई, 1945 ई. में आप दिल्ली आकर जम गए।
मार्च, 1956 में आपके जीवन में ऐसा मोड़ आया कि आप ‘साहित्य अकादमी' नई दिल्ली की सेवाओं से जुड़ गए। यहाँ पर लगभग 24 वर्ष प्रकाशन एवं कार्यक्रम अधिकारी के पद पर कार्य करने के उपरान्त अक्तूबर, 1979 से आपने दस खण्डों में प्रकाश्य ‘दिवंगत हिन्दी-सेवी' नामक आकर-ग्रन्थ के प्रणयन द्वारा हिन्दी के संवर्धन तथा विकास का वास्तविक इतिहास प्रस्तुत करने का जो महत्त्वपूर्ण अभियान प्रारम्भ किया, वह वास्तव में आपकी साहित्यिक साधना की चरम परिणति है। यदि आपने इस योजना की परिकल्पना न की होती, तो अतीत के अन्धकार में विलुप्त होते जा रहे हिन्दी के हजारों लेखकों, मनीषियों, सेवकों और साधकों के बारे में हम अनभिज्ञ ही बने रहते। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के अभी तक दो खण्ड ही प्रकाशित हुए थे कि उन्हें श्वास-रोग ने दबोच लिया और लगभग 10 वर्ष की लम्बी बीमारी के बाद 23 अक्तूबर, 1993 को आप स्वयं भी दिवंगत हिन्दी-सेवियों की सूची में सम्मिलित हो गए।
कृतियाँ
मौलिक कृतियाँ
- काव्य
मल्लिका (1943), बन्दी के गान (1945), कारा (1946), और अंजलि (2010)।
- समीक्षा
हिन्दी साहित्य : नये प्रयोग (1949), साहित्य-सोपान (1950), साहित्य-विवेचन (1952), हिन्दी साहित्य और उसकी प्रगति (1958), साहित्य विवेचन के सिद्धान्त (1958), आधुनिक हिन्दी साहित्य (1960), हिन्दी साहित्य को आर्यसमाज की देन (1970), साठोत्तरी हिन्दी कविता (1971), मेरठ जनपद की साहित्यिक चेतना (1977), शोध और सन्दर्भ (1985), चिन्तन और चर्चा (1986), नई पीढ़ी के कवि, कृतियाँ और कला (दोनों अप्रकाशित)।
- इतिहास
हमारा संघर्ष (1946), कांग्रेस का संक्षिप्त इतिहास (1947), आजादी की कहानी (1949), हम स्वाधीन हुए (1987), अगस्त क्रान्ति (1996)।
- जीवनी
नेताजी सुभाष (1946), नये भारत के निर्माता (1948), जीवन-ज्योति (1962), अमरदीप (1968), यशस्वी पत्रकार (1986), भारत के कर्णधार (1996)।
- संस्मरण
रेखाएँ और संस्मरण (1975), जाने-अनजाने (1989), चमकते जीवन महकते संस्मरण (1990), मेरे प्रिय मेरे आराध्य (1993)।
- निबन्ध
प्रभाकर निबन्धावली (1948), सुमन-सौरभ (1950), कुछ अपनी कुछ पराई, प्रारंभिक लेख (दोनों अप्रकाशित)।
- संदर्भ ग्रंथ
दिवंगत हिन्दी-सेवी (10 खण्डों में प्रकाश्य) - प्रथम खण्ड (1981), द्वितीय खण्ड (1983)।
- बाल-साहित्य
ये भी बोलते हैं (1981), खिलौने वाला (1984), इतना तो सीखो ही (1993)।
सम्पादित एवं संकलित रचनाएँ
- काव्य
लाल किले की ओर (1946), गांधी भजनमाला (1948), हिन्दी के लोकप्रिय कवि - नीरज (1960), हिन्दी के लोकप्रिय कवि - रामावतार त्यागी (1961), हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ प्रेमगीत (1961), आधुनिक हिन्दी कवयित्रियों के प्रेमगीत (1962), चीन को चुनौती (1962), सरल काव्य संग्रह (1964), हिन्दी कवयित्रियों के पे्रमगीत (1965), नारी तेरे रूप अनेक (1966), वन्दना के स्वर (1975)।
- भाषा-परिचय
उर्दू और उसका साहित्य (1952), तमिल और उसका साहित्य (1952), तेलुगू और उसका साहित्य (1953), मराठी और उसका साहित्य (1953), मालवी और उसका साहित्य (1953), बंगला और उसका साहित्य (1953), अवधी और उसका साहित्य (1954), भोजपुरी और उसका साहित्य (1954), संस्कृत और उसका साहित्य (1955), गुजराती और उसका साहित्य (1956), प्राकृत और उसका साहित्य (1956)।
- कहानी-गल्प
माधुरी (1948), मनोरंजक कहानियाँ (1950), पारिवारिक कहानियाँ (1951)।
- एकांकी
नीर-क्षीर (1949), एकांकी संगम (1958)।
- निबन्ध
राष्ट्रभाषा हिन्दी (1948), गद्य सरोवर (1951), निबन्ध भारती (1957), सरल गद्य (1962)।
- जीवनी-संस्मरण
जैसा हमने देखा (1950), पं. पद्मासिंह शर्मा (1951), साहित्यिकों के संस्मरण (1952), जीवन-स्मृतियाँ (1952), नेताओं की कहानी उनकी जुबानी (1952), बापू और हरिजन (1953), भारतीय आत्माएँ (1975)।
- अभिनन्दन-ग्रंथ
डॉ॰ एन. चन्द्रशेखरन नायर अभिनन्दन ग्रंथ (1979), निष्काम-साधक (1984), समर्पित यायावर : राजेन्द्र शर्मा (1985)।
- स्मृति-ग्रंथ
आत्मशिल्पी कमलेश (1976), अणुव्रती तापस : गोपीनाथ अमन (1988), चाँदकरण शारदा जन्म-शती-ग्रंथ (1988)।
- स्मारिकाएँ
भारतीय साहित्य : आदान-प्रदान (1970), स्वामी दयानन्द और आर्यसमाज (1973), राजभाषा हिन्दी : प्रगति और प्रयोग (1975), राजभाषा हिन्दी : प्रगति के बढ़ते चरण (1976)।
- सम्पादन-सहयोग
प्रेरक साधक (बनारसीदास चतुर्वेदी अभिनन्दन-ग्रंथ), बाबू वृंदावन दास अभिनन्दन ग्रंथ, स्वामी रामानन्द शास्त्री अभिनन्दन ग्रंथ, हिन्दी पत्रकारिता : विविध आयाम, मेरठ जनपद : एक सर्वेक्षण, समर्पण और साधना, जानकी देवी बजाज अभिनन्दन ग्रंथ, महाकवि शंकर अभिनन्दन ग्रंथ तथा हीरालाल दीक्षित अभिनन्दन ग्रंथ।
- पत्र-पत्रिकाएँ
आलोचना (त्रैमासिक), मनस्वी (मासिक), शिक्षा-सुधा (मासिक), आर्य (साप्ताहिक), आर्य सन्देश तथा आर्यमित्र (साप्ताहिक), हिन्दी-मिलाप (दैनिक) आदि।
- भूमिका-लेखन
सुमन जी ने अपनी साहित्यिक यात्रा में अन्य साहित्यकारों द्वारा विभिन्न विधाओं में लिखित लगभग सौ पुस्तकों की भूमिकाएँ लिखी हैं। इनके अतिरिक्त स्वयं लिखित कतिपय पुस्तकों की भूमिकाएँ भी उल्लेखनीय हैं।
सन्दर्भ
- ↑ याद आते हैं..(पृष्ट ४२) स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (गूगल पुस्तक; लेखक-राजशेखर व्यास)
- ↑ स्मृतियों की धरोहर (हिन्दीसेवी क्षेमचन्द्र 'सुमन' , पृष्ट ४३) स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (गूगल पुस्तक ; लेखक- डॉ सुधेश)
बाहरी कड़ियाँ
- चमकते जीवन महकते संस्मरण (आचार्य क्षेमचन्द्र 'सुमन']
- आचार्य क्षेमचन्द्र सुमनसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] (इन्द्र सेंगर)