कूचा राज्य

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तीसरी सदी में तारिम द्रोणी, जिसमें कूचा राज्य (Kuqa) देखा जा सकता है
कूचा से मिला एक बोधिसत्व
५वीं से ८वीं शताब्दी काल की कूचा से मिली तुषारी भाषा में लिखी एक लकड़ी की तख़्ती - यह लिपी भारतीय लिपियों पर आधारित थी

कूचा (Kucha या Kuqa) या कूचे या कूचार या (संस्कृत में) कूचीन मध्य एशिया की तारिम द्रोणी में तकलामकान रेगिस्तान के उत्तरी छोर पर और मुज़ात नदी से दक्षिण में स्थित एक प्राचीन राज्य का नाम था जो ९वीं शताब्दी ईसवी तक चला। यह तुषारी लोगों का राज्य था जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और हिन्द-यूरोपी भाषा-परिवार की तुषारी भाषाएँ बोलते थे। कूचा रेशम मार्ग की एक शाखा पर स्थित था जहाँ से इसपर भारत, सोग़्दा, बैक्ट्रिया, चीन, ईरान व अन्य क्षेत्रों का बहुत प्रभाव पड़ा। आगे चलकर यह क्षेत्र तुर्की-मूल की उईग़ुर ख़ागानत के क़ब्ज़े में आ गया और कूचा राज्य नष्ट हो गया।[१]

कुमारजीव

प्रसिद्ध भारतीय बौद्ध भिक्षु और संस्कृत विद्वान कुमारजीव (३४४-४१३ ई) कूचा में पैदा हुए थे। उनके पिता भारतीय कश्मीरी ब्राह्मण थे और उनकी माता एक कूचाई राजकुमारी थी।[२][३]

इतिहास

हान ग्रंथ नामक चीनी इतिहास-संकलन में कूचा को 'पश्चिमी क्षेत्रों के छत्तीस राज्यों' का सबसे बड़ा राज्य बताया गया है। इसकी आबादी ८१,३१७ थी, जिनमें से २१,०७६ युद्ध-योग्य पुरुष थे।[४] मध्यकाल के शुरु में जब यहाँ तंग राजवंश का प्रभाव रहा तो यह 'आन्शी की चार छावनियों' में से एक था, जहाँ हिन्द-यूरोपी इलाक़ों पर चीनी नियंत्रण फैलाने के लिये चीनी फ़ौज तैनात की गई थी।[५] जब यहाँ तिब्बती प्रभाव बढ़ता था तो कूचा अर्ध-स्वतंत्र रूप से अपने मामले चलाता था। ८४० के बाद उईग़ुर ख़ागानत ने इस राज्य का अंत कर दिया।[६]

उईग़ुर क़ब्ज़े से पहले एक लम्बे अरसे तक कूचा तारिम द्रोणी का सबसे बड़ी आबादी वाला नख़लिस्तान (ओएसिस) था। यह रेशम मार्ग पर स्थित होने से कई इलाक़ों से जुड़ा हुआ था। भारत जाने वाला चीनी बौद्ध-धर्मयात्री ह्वेन त्सांग ६३० ईसवी के दशक में कूचा से गुज़रा और उसने इस शहर का बखान लिखा:[७]

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कूचा में संगीत की एक विषेश शैली विअकसित हुई जो 'कूचीयाई संगीत' के नामे से रेशम मार्ग द्वारा अन्य स्थानों पर फैल गई। किज़िल गुफाओं की तस्वीरों में और ह्वेन त्सांग की लिखाईयों में कूचीयाई नाच और संगीत के वर्णन मिलते हैं।

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तंग राजवंश के काल में कूचियाई संगीत चीन में बहुत लोकप्रिय हुआ, जिसमें उनका तार वाला वाद्य नुमाया था और आगे चलकर चीनी संगीत में प्रयोग होने वाला पीपा नामक वाद्य बना। चीन से यह जापान भी पहुँच गया जहाँ कुछ बदलावों के साथ यह संगीत शैली 'गागाकू' के नाम से जापानी राजदरबारों में प्रचलित हो गई।[८]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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  1. Beckwith, Christopher I. Empires of the Silk Road: A History of Central Eurasia from the Bronze Age to the Present. Princeton University Press, Princeton 2009.
  2. Path of the Buddha: Buddhism Interpreted by Buddhists, Kenneth W. Morgan, pp. 196, Kessinger Publishing, 2006, ISBN 9781425484651, ... Kumarajiva was born in Kucha of an Indian father and a mother who was a royal princess ...
  3. Teachings of the Buddha, Rulu, pp. 215, AuthorHouse, 2012, ISBN 9781468509038, ... His father, Kumarayana, was from a noble family in India, who went to Kucha (in present-day Aksu Prefecture, Xinjiang, China) and married the king's sister, Princess Jiva. From their union, Kumarajiva was born ...
  4. Hulsewé and Loewe (1979), p. 163, and note 506.
  5. Beckwith 1987, p. 198.
  6. Beckwith 2009, p. 157 ff.
  7. Daniel C. Waugh. "Kucha and the Kizil Caves" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।. Silk Road Seattle. University of Washington.
  8. Laurence E. R. Picken and Noel J. Nickson (2000). Music from the Tang court. Cambridge University Press. ISBN 978-0-521-78084-1.