कादेश का युद्ध

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कादेश का युद्ध
रामेसेस के सीरिया के दूसरे अभियान का भाग
Ramses II at Kadesh.jpg
रामेसेस द्वितीय अपने रथ पर कादेशके युद्ध में (अबू सिम्बल मंदिर का चित्र .)
तिथि १२७४ ईसापूर्व
स्थान कादेश नगर
परिणाम कोई भी पक्ष नहीं जीता
योद्धा
मिस्र साम्राज्य हित्तिते साम्राज्य
सेनानायक
रामेसेस द्वितीय
मुवाताल्ली द्वितीय
शक्ति/क्षमता
20,000 योद्धा
  • 16,000 पद सैनिक
  • 2,000 रथ[१]
    • 4,000 योद्धा
करीब 23,000–50,000 योद्धा
  • करीब 15,000[२]–40,000 पद सैनिक[३]
    (not engaged)
  • करीब 2,500–3,700 रथ[३]
    • करीब 9,000–11,100 योद्धा[४]
मृत्यु एवं हानि
ज्ञात नहीं ज्ञात नहीं

कादेश का युद्ध (Battel of Kadesh) रामेसेस द्वितीय के नेतृत्व में मिस्र साम्राज्य और मुवाताल्ली द्वितीय के नेतृत्व में हित्तिते साम्राज्य के बीच कादेश नाम के नगर में हुआ था। यह युद्ध १२७४ ईसापूर्व में हुआ था और यह इतिहास का पहला युद्ध है जिसका लिखित प्रमाण है साथ ही युद्ध में रणनीति का भी उल्लेख है।[५] यह इतिहास का एेसा युद्ध है जिसमे कई रथों का उपयोग हुआ था, लगभग ५००० से ६००० रथ। यह युद्ध दोनों देशों के बीच शांति समझौते के साथ ख़त्म हुआ।[६]

युद्ध का कारण

प्राचीन मिस्र में कई वर्षॆं तक विदेशी हिक्सोस लोगों ने राज किया पर धीरे धीरे मिस्र के मूल राजाओं की शक्ति बढ़ी और उन्होंने ह्य्क्सोस के राज को हटा दिया और साम्राज्यवाद की नीति अपनाकर अपने पडौसी राज्यों को जीतना शुरू कर दिया।

मिस्र के १८ वें वंश के राजाओं ने सबसे पहले इस नीति को अपनाया और सबसे पहला मिस्र साम्राज्य खड़ा किया, १८ वें वंश के राजा थुतमोस तृतीय अपनी दिग्विजिय के कारण काफी प्रसिद्ध हुए। पर बाद में १८ वें वंश के राजा अखेनातेन के काल में मिस्र साम्राज्य डगमगाने लगा और उसने अपने कई प्रान्त खो दिए, अखेनातेन ने प्राचीन मिस्र के पारंपरिक धर्म को त्याग कर अतेन नाम के ईश्वर की पूजा करने लगा और इसे राष्ट्रीय धर्म घोषित कर दिया था जिस कारण मिस्र में अराजकता फ़ैल गई थी। अखेनातेन के बाद उसके पुत्र तुथंखमुन ने और उसके उत्तराधिकारियों ने मिस्र के खोये हुए गौरव को वापस लाने का काफी प्रयास किया पर वे नाकाम रहे।

होरेम्हेब जो १८ वें वंश का आखिरी राजा था उसकी कोई संतान नहीं थी इसीलिए उसने अपने अमात्य रामेसेस प्रथम को अपना उत्तराधिकारी बनाया और रामेसेस प्रथम ने १९ वें वंश की नीव रखी। रामेसेस प्रथम और उसके पुत्र सेती प्रथम ने भी १८ वें वंश की तरह साम्राज्यवाद की नीति अपनाई और मिस्र के खोये गौरव को लाने का प्रयास किया। कर्नाक मंदिर के लेखोंं के अनुसार सेती प्रथम ने कन्नन और सीरिया पर विजय पाई थी। वही मिस्र के उत्तर में इराक से लेकर तुर्क तक फैला हित्तिते साम्राज्य भी साम्राज्य विस्तार कर रहा था। सिरिया तब १८ वें वंश के अधीन था पर वो हित्तिते साम्राज्य के अधीन चला गया था। मिस्र साम्राज्य के खोये हुए प्रांत को जितने के लिए रामेसेस ने कादेश पर हमला किया जो कि सिरिया का एक नगर था।[७] रामेसेस के पिता सेती प्रथम ने अपने काल में कादेश पर विजय पाई थी, पर सेती प्रथम के शासन काल के अंतिम समय में कादेश दुबारा हित्तिते साम्राज्य के अधीन हो गया। यह भी युद्ध का कारण था।

कादेश अभियान

१२७९ ईसा पूर्व में अपने चरम पर मिस्र साम्राज्य (हरा) रामेसेस के अधीन, हित्तिते साम्राज्य (हर) की सीमा तक

रामेसेस ने अपने शासन काल के ५वें वर्ष में दक्षिण से कादेशपर हमला किया। वहीं हित्तिते राजा मुवाताल्ली ने अपने पडौसी राज्य के साथ मिलकर मिस्र की सेना के विरुद्ध एक संघ बना लिया था। मुवाताल्ली ने अपनी सेना कादेश में जमा कर ली और अपने गुप्तचर रामेसेस के पास भेजे, उन गुप्तचरों ने रामेसेस को झूठ कहा की वे कदेश्से दूर है।

सेना

सन १२७४ ईसापूर्व में रामेसेस अपनी सेना के साथ अपनी राजधानी पी रामेसेस से कादेश की तरफ बड़ा, उसकी सेना अमुन, रा, सेत और पिताह नाम की चार टुकडियो में विभाजित थी, एक और छोटी टुकड़ी थी नारिन नाम की जिसका अधिक उल्लेख नहीं है। मिस्र वासियों के अलावा रामेसेस की सेना में कानन, सीरिया, नूबिया आदि देशों के लोग भी थे। रामेसेस कई रथो का निर्माण कराया, इतना की इतिहासकार सिर्फ अंदाज़ा लगा सकते हैं।[८]

मुवाताल्ली की सेना के बारे में रामेसेस लिखवाता है कि मुवाताल्ली अपने १९ पड़ोसी राज्यों की सेना बुलवाई थी रामेसेस के विरुद्ध।

युद्ध

मिस्र सैनिक द्वारा हत्ती गुप्तचरों की पिटाई

रामेसेस अपने लेख में लिखवाता है कि वह अपनी सेना के साथ कादेश की तरफ बड़ा, रामेसेस अमुन टुकड़ी में था। वह सबसे पहले कादेश की पहाडियों पर पहोचा, फिर ओरोंतेस नदी पार कर वह कादेश नगर पहोचा। अमुन टुकड़ी रामेसेस के पीछे थी, रा टुकड़ी पास ही के कज्बे में थी, पिताह टुकड़ी दक्षिण के एक कज्बे में थी और सेत टुकड़ी सड़क रास्ते आ रही थी।

जब रामेसेस कादेश से ११ किलोमीटर दूर था तब उसे कुछ बंजारे मिले जो असल में मुवाताल्ली के गुप्तचर थे, उन्होंने रामेसेस को झूठ बताया की मुवाताल्ली फैरो (रामेसेस) से डर गया है और हत्ती सेना यहाँ आने से डर रही है, हत्ती सेना अलेप्पो की भूमि में है जो यहाँ से २०० किलोमीटर दूर है। पर बाद में जब उन बंजारों की पिटाई की गयी तो उन्होंने सच कबूला और बताया की मुवाताल्ली की सेना पास ही में है।[९]

पूरी हत्ती सेना ने एक साथ मिस्र की सेना पर हमला बोल दिया। रामेसेस ने अपनी सेना को टुकडियो में बाट दिया था और वे एक दुसरे से काफी दूर थी, हत्ती सेना ने सबसे पहले रा टुकड़ी पर हमला किया और उसे लघभग नष्ट कर दिया, बचे हुए योद्धा किसी कदर अमुन टुकड़ी तक पहोचे। रामेसेस ने पिताह और सेत टुकड़ी को सन्देश भेजा पर तब तक हत्ती सेना अमुन टुकड़ी तक पहोच चुकी थी। हत्ती रथो ने अमुन टुकड़ी की सुरक्षा दीवार तोड़ डाली और उन्हें मारना शुरू कर दिया। रामेसेस अपने लेख में लिखवाता है कि उसे हत्ती सेना ने घेर लिया था, उसके पास कोई अंगरक्षक या कोई योद्धा न था। फिर रामेसेस ने मोर्चा संभाला और कई सेसैनिक को मार गिराया, फिर कई अमुन और रा टुकड़ी के बचे हुए योद्धा अपने राजा को बचाने आ गए। हत्ती सेना के कई योद्धा मिस्र के शिविरों को लुटने के लिए चले गए, और जो बचे थे उनसे रामेसेस और बचे हुए मिस्र के योद्धा लड़ रहे थे। रथ और धनुष के सहारे मिस्र सैनिक ने काफी हत्ती सेसैनिक को हरा दिया। रामेसेस को अच्छा अवसर मिला और उसने बेफिक्र हत्ती सेना पर हमला कर दिया जो लूटपाट कर रही थी, रामेसेस ने हत्ती सैनिक को ओरोंतेस नदी के पार खदेड़ दिया।

हत्ती सेना के खदेड़े जाने के बाद भी मुवाताल्ली ने दुबारा एक बड़ी सेना भेजी, उस सेना में कई रथ, पैदल सैनिक थे जो नगर की दीवार के भीतर थे। हत्ती सेना दुबारा मिस्र के शिविर तक पहोची पर अचानक से नारिन टुकड़ी ने हमला बोल दिया, हत्ती सेना चकित हो गई थी। तब तक रामेसेस ने अपनी पूरी सेना जमा कर ली और हत्ती सेना पर हमला बोल दिया।[१०]

अब हत्ती सेना घिर चुकी थी और लगभग तबाह हो चुकी थी, बचे हुए हत्ती सैनिक कादेश तक किसी तरह पहोच गए।[११] अगले दिन दुबारा युद्ध शुरू हुआ, रामेसेस लिखवाता है कि मुवाताल्ली ने उसे युद्धविराम संधि के लिए बुलवाया था, पर हित्तिते लेख में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। मिस्र सैनिक कादेश की दीवारों को गिराने में नाकाम रहे और मुवाताल्ली भी मिस्र सैनिको को खदेड़ने में नाकाम रहा जबकि लग रहा था की जीत उसके पक्ष में है। दोनों पक्षों को काफी हानी हुई और आखिर युद्ध बिना किसी नतीजे के ख़त्म हो गया।[१०]

इन्हेँ भी देखेँ

अबू सिम्बल मन्दिर

सन्दर्भ

  1. M. Healy, Qadesh 1300 BC: Clash of the warrior kings, 39
  2. Richard Holmes, [[Battlefield "Decisive Conflicts in History" ]], 2006
  3. M. Healy, Qadesh 1300 BC: Clash of the warrior kings, 22
  4. M. Healy, Qadesh 1300 BC: Clash of the warrior kings, 21
  5. Kitchen, K. A., "Ramesside Inscriptions", volume 2, Blackwell Publishing Limited, 1996, pp. 16–17.
  6. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  7. Bryce, Trevor, The Kingdom of the Hittites, Oxford University Press, new edition 2005, ISBN 0-19-927908-Xm p.233
  8. Goedicke, Hans (December 1966). "Considerations on the Battle of Kadesh". The Journal of Egyptian Archaeology 52: 71–80 [78]. doi:10.2307/3855821
  9. Joyce Tyldesley, Ramesses II: Egypt's Greatest Pharaoh, Penguin Books, 2000. pp.70–71
  10. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  11. Ancient Discoveries: Egyptian Warfare. History Channel Program: Ancient Discoveries: Egyptian Warfare with panel of three experts. Event occurs at 12:00 EDST, 2008-05-14. Archived from the original on April 16, 2008. Retrieved 2008-05-15. "Egyptian monuments and great works of art still astound us today. We will reveal another surprising aspect of Egyptian life--their weapons of war, and their great might on the battlefield. A common perception of the Egyptians is of a cultured civilization, yet there is fascinating evidence which reveals they were also a war faring people, who developed advanced weapon making techniques. Some of these techniques would be used for the very first time in history and some of the battles they fought were on a truly massive scale."