कहानी (फ़िल्म)
कहानी | |
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चित्र:Kahaani first look.jpg फ़िल्म का पोस्टर | |
निर्देशक | सुजॉय घोष |
निर्माता |
सुजॉय घोष कुशल कांतिलाल गड़ा |
पटकथा | सुजॉय घोष |
कहानी |
सुजॉय घोष अद्वैता काला |
अभिनेता |
विद्या बालन परमब्रत चटर्जी नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी इंद्रनील सेनगुप्ता शाश्वत चटर्जी |
संगीतकार |
संगीत: विशाल-शेखर पार्श्व संगीत: क्लिंटन सेरेजो |
छायाकार | सेतु |
संपादक | नम्रता राव |
स्टूडियो | बाउंडस्क्रिप्ट मोशन पिक्चर्स |
वितरक |
वायकॉम १८ मोशन पिक्चर्स पेन इण्डिया लिमिटेड |
प्रदर्शन साँचा:nowrap |
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समय सीमा | १२२ मिनट[१] |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
लागत | ८ करोड़ रुपये[२] |
कुल कारोबार | १.०४ अरब रुपये[३] |
कहानी २०१२ की एक भारतीय हिंदी रहस्य-थ्रिलर फ़िल्म है, जो सुजॉय घोष द्वारा निर्देशित, सह-लिखित और सह-निर्मित है। फ़िल्म में विद्या बालन ने विद्या बागची नामक एक गर्भवती महिला की भूमिका निभाई है, जो दुर्गा पूजा के त्योहार के दौरान कोलकाता में अपने लापता पति की तलाश करती है, और इस काम में सत्यकि "राणा" सिन्हा (परमब्रत चटर्जी) और ए खान (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) उसकी सहायता प्रदान करते हैं।
मात्र ८ करोड़ रुपये के मामूली बजट पर निर्मित कहानी की परिकल्पना घोष ने की थी, जिन्होंने अद्वैता काला के साथ फिल्म का सह-लेखन भी किया। फ़िल्म के निर्माण-दल ने कोलकाता की सड़कों पर फिल्मांकन के दौरान आम जनता के ध्यानाकर्षण से बचने के लिए गुरिल्ला-फिल्म निर्माण तकनीक का प्रयोग किया। फिल्म कोलकाता नगर के चतुराईपूर्ण चित्रण और कई स्थानीय निर्माण-दल के सदस्यों और कलाकारों के उपयोग के लिए विख्यात है। कहानी पुरुष-प्रधान भारतीय समाज में नारीवाद और मातृत्व के विषयों की पड़ताल करती है। इसके अतिरिक्त यह सत्यजित राय की कई फ़िल्मों जैसे कि चारुलता (१९६४), अरण्येर दिनरात्रि (१९७०) और जॉय बाबा फेलुनाथ (१९७९) की ओर भी अनेकों संकेत करती है।
काहानी को ९ मार्च २०१२ को विश्व भर में जारी किया गया था। समीक्षकों ने फ़िल्म की पटकथा, इसके छायांकन और प्रमुख कलाकारों के अभिनय की प्रशंसा की। सकारत्मक समीक्षाओं और शब्द-प्रचार के कारण फिल्म ने ५० दिनों में विश्व भर में १.०४ अरब रुपये की कमाई की। फिल्म को कई पुरस्कार प्राप्त हुए, जिनमें तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और पांच फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं; बाद वाले में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (घोष) और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (विद्या) के पुरस्कार भी थे। कहानी २: दुर्गा रानी सिंह नामक एक उत्तरकृति २ दिसंबर २०१६ को रिलीज़ हुई।
कथानक
कोलकाता मेट्रो के एक डिब्बे में विषैली गैस का हमला होने से यात्रियों में हड़कंप मच जाता है। दो वर्ष बाद एक गर्भवती सॉफ्टवेयर इंजीनियर विद्या बागची अपने लापता पति अर्णव बागची की तलाश में दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान लंदन से कोलकाता पहुंचती है। एक पुलिस अधिकारी, सत्यकि "राणा" सिन्हा विद्या की सहायता करने की पेशकश करता है। यद्यपि विद्या का दावा है कि अर्णव नेशनल डेटा सेंटर (एनडीसी) के एक असाइनमेंट पर कोलकाता गए थे, आरम्भिक जांच में पता चलता है कि एनडीसी द्वारा इस तरह के किसी व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया गया था।
एनडीसी की मानव संसाधन प्रमुख एग्नेस डी'मेलो विद्या को बताती हैं कि उनके द्वारा दिया गया उनके पति का हुलिया एनडीसी के पूर्व कर्मचारी मिलन दामजी से मिलता है, जिनकी फाइल संभवत: एनडीसी के पुराने कार्यालय में रखी गई है। इससे पहले कि एग्नेस विद्या की कोई अन्य सहायता कर सके, एक जीवन बीमा एजेंट के रूप में कार्यरत हत्यारा बॉब बिस्वास उनकी हत्या कर देता है। विद्या और राणा एनडीसी कार्यालय में घुसते हैं और बॉब के साथ एक मुठभेड़ से बचते हुए दामजी की फाइल ले लेते हैं, जो वहां उसी जानकारी की खोज में आया होता है। इस बीच, दामजी की खोज के ये प्रयास दिल्ली में इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के दो अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करते हैं - प्रमुख भास्करन के और उनके डिप्टी ए खान। खान कोलकाता आता है और खुलासा करता है कि दामजी रोग आईबी एजेंट था, और वह ही विषैली गैस के हमले के लिए उत्तरदायी है। खान की चेतावनियों के बावजूद विद्या अपनी खोज जारी रखती है, यह मानते हुए कि दामजी जैसा होने के कारण ही अर्णव किंचित किसी परेशानी में फंस गया होगा।
दामजी की फाइल में दर्ज पता विद्या और राणा को एक जीर्ण-शीर्ण फ्लैट में ले आता है। पड़ोस के एक चाय स्टाल पर कार्यरत एक लड़का उन्हें एनडीसी अधिकारी आर श्रीधर के बारे में बताता है, जो कि दामजी के फ्लैट में अक्सर आते थे। बॉब विद्या को मारने का प्रयास करता है, लेकिन विफल रहता है। विद्या बचकर भाग निकलती है और उसका पीछा करने के दौरान बिस्वास एक ट्रक के नीचे आ जाता है। बॉब के मोबाइल फोन की जांच विद्या और राणा को एक आईपी पते पर ले जाती है, जहां से विद्या जो मारने के निर्देश भेजे जा रहा थे। उस आईपी पते को सत्यापित करने के लिए वे श्रीधर के कार्यालय में घुस जाते हैं, लेकिन श्रीधर को इस बात का पता चल जाता है और वह अपने कार्यालय में लौट आता है। आगामी हाथापाई के दौरान विद्या गलती से श्रीधर की गोली मारकर हत्या कर देती है, जिससे खान परेशान हो जाता है, क्योंकि वह उसे जीवित पकड़ना चाहता था।