उपेन्द्र कुशवाहा

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उपेन्द्र कुशवाहा[१]
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उपेन्द्र कुशवाहा भारत की सोलहवीं लोकसभा में सांसद हैं। 2014 के चुनावों में इन्होंने बिहार की काराकाट सीट से राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की ओर से भाग लिया।[२][३]

राजनीतिक जीवन

उपेन्द्र कुशवाहा

आरंभ में उपेन्द्र कुशवाहा जनता दल (यूनाइटेड) के सदस्य थे। नवंबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में कुशवाहा अपने ही चुनाव क्षेत्र से हार गए और वो भी तब, जब जेडी(यू) और भाजपा की भारी जीत हुई.. इसके बाद कुशवाहा ने जनता दल (यूनाइटेड) का साथ छोड़कर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का हाथ थाम लिया। कुशवाहा ने कोइरी जाति का समर्थन जुटाना शुरू किया. उस वक़्त कोइरी और कुर्मी समाज जेडी (यू) का मुख्य वोटबैंक था. आधिकारिक तौर पर किसी भी जाति की ठीक-ठीक जनसंख्या बताना तो मुश्किल है, लेकिन बिहार की राजनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि बिहार में कुर्मी 2-3 फ़ीसदी हैं, जबकि कोइरी 10-11फ़ीसदी है।31 अक्टूबर 2009 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के मौके पर नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को जेडी (यू) में लौट आने का न्यौता दिया। [४]

2 फ़रवरी 2010 को शोषित समाज दल के दिवंगत और समाजवादी नेता बाबू जगदेव प्रसाद की जयंती के मौक़े पर नीतीश और कुशवाहा ने सार्वजनिक तौर पर पिछड़ी जातियों के समर्थन की घोषणा की. उसी साल नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेज दिया. इसके बाद राजनीतिक रूप से सशक्त कुशवाहा ने जेडी (यू) के भीतर अपनी ताक़त दिखाना शुरू किया. वो एक बार फिर 2013 में तीन मार्च को जदयू से अलग हो गए और रालोसपा नाम की अलग पार्टी बना ली.रालोसपा शुरू में भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी थी[५] पर 2015 विधानसभा चुनाव के बाद जदयू के राजग में दोबारा शामिल होने पर उसे राजग छोड़ना पड़ा।[६][७]

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी पार्टी में विभाजन

जून 2018 में, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने अरुण कुमार के धड़े के साथ औपचारिक रूप से राष्ट्रीय जनता पार्टी (सेकुलर) का गठन किया। उसी वर्ष, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन छोड़ दिया। पार्टी ने जनता दल (यूनाइटेड) पर निशाना साधते हुए आगामी आम चुनाव के लिए सीट बंटवारे की व्यवस्था पर गठबंधन के साथ एक तर्क दिया था, जिसने गठबंधन को फिर से जोड़ दिया। इसके कारण पार्टी के सभी तीन राज्य विधायकों से बगावत हो गई, जिन्होंने घोषणा की कि उन्होंने असली पार्टी का प्रतिनिधित्व किया, आपत्ति जताई कि उनका गठबंधन में बने रहने का इरादा है। विधायक उस समय बिहार के मंत्रिपरिषद में सुधांशु शेखर को शामिल करने का प्रयास कर रहे थे, जिसका नेतृत्व नीतीश कुमार कर रहे थे। शेखर बिहार में राज्य पार्टी के विधायकों में से एक थे।हालाँकि 20 दिसंबर 2018 को, उपेंद्र कुशवाहा ने घोषणा की कि पार्टी विपक्ष संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल हो गई थी। इससे पहले 2017 में, नागमणि के नेतृत्व वाले समरस समाज पार्टी का राष्ट्रीय लोक समता पार्टी में विलय कर दिया गया था। नागमणि को बाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बना दिया गया। फरवरी 2019 में, उन्हें कथित "पार्टी विरोधी" गतिविधियों के लिए पद से बर्खास्त कर दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने पार्टी से इस आधार पर इस्तीफा दे दिया कि उपेंद्र कुशवाहा कथित तौर पर आगामी चुनाव के लिए पार्टी के टिकट बेच रहे थे। 2021 जनवरी में बिहार मंत्रिमंडल विस्तार में उपेेेन्द्र कुशवाहा को विलयोपरांत मंत्रिमंडल में शामिल करने का बहुत प्रयास किया गया , चूंकि उन्होंने शाहाबाद क्षेत्र में जदयू को काफी नुकसान पहुंचाया था , परंतु भाजपा-जदयू मे विरोधाभाष कि आशंका के मद्देनजर उन्होंने अपनी पार्टी रालोसपा का विलय टाल दिया , तथा अपने लिए दरवाजा खुला रखा। उनकी नजर भविष्य की राजनीति पर टिकी है।

   उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी रालोसपा का विलय जदयू में कर दिया है और अब वे जदयू के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं । और, पार्टी में अपना आधार और लोगों में अपना विश्वास मजबूत करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं ।वे साफ और स्वच्छ छवि के राजनेता है ।साथ ही, वे सुशिक्षित और प्रखर वक्ता भी हैं । बिहार की जनता उनमें नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी की छवि देख रही है ।

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बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite web
  2. साँचा:cite web
  3. oneindia.comसाँचा:cite web
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