बाबू जगदेव प्रसाद
बाबू जगदेव प्रसाद ( 2 फरवरी 1922 - 5 सितम्बर 1974) भारत के बिहार प्रान्त में जन्मे के एक क्रन्तिकारी राजनेता थे। इन्हें 'बिहार लेनिन' के नाम से जाना जाता है जिन्होने एक अच्छे समाज को गढने में जी जान लगा दिया।[१]
जीवन परिचय
जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को जहानाबाद के समीप कुर्था प्रखण्ड के कुरहारी ग्राम में कोइरी('दांगी') समुदाय के परिवार परिवार में हुआ था। इनके पिता प्रयाग नारायण पास के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे तथा माता रासकली अनपढ़ थीं। अपने पिता के मार्गदर्शन में बालक जगदेव ने मिडिल की परीक्षा पास की। हाईस्कूल के लिए जहानाबाद चले गए। निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा होने के कारण जगदेव जी की प्रवृत्ति शुरू से ही संघर्षशील तथा जुझारू रही तथा बचपन से ही विद्रोही स्वाभाव' के थे।[२][३]
60 एवं 70 के दशक में पूरे भारत भर में ऐतिहासिक परिवर्तन हुए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जहां हमने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए तो वहीं राष्ट्रीय स्तर पर हरित क्रांति को अपने देश में पंजाब हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सफलतापूर्वक लागू किए तो वही बिहार की परिपेक्ष में अगर बात करें तो कई तरह के क्रांतिकारी बदलाव सामने आते हैं 1970 आते-आते भिखारी ठाकुर समाज में सांस्कृतिक बदलाव ला चुके थे तमाम तरह की कुरीतियां को मिटाने के लिए उन्होंने अपने नाटक गीत संगीत के माध्यम से लोगों में जागरूकता लाने का काम किया तो वही सामंतियों के खिलाफ जगदेव प्रसाद और जगदीश मास्टर समेत तमाम लोगों ने बिगुल फूंका था। बिहार में बहुत बड़े बदलाव 1970 के आसपास देखा जा सकता है जमींदारी प्रथा के तहत जो गरीब वंचित तबका था उसे प्रताड़ित करने की जो परंपरा थी उसके विरुद्ध जगदेव बाबू , जगदीश मास्टर, रामेश्वर यादव ,रामनरेश राम, विनोद मिश्रा,नागभूषण पटनायक समेत लोगों ने जबरदस्त जन संघर्ष किया , आज भी जब भी किसी वंचित तबके के लिए आवाज उठाने की बात होती है बिना जगदेव प्रसाद के नाम लिए बातों को पूरा नहीं किया जा सकता।[४][५]
राजनीति
जब वे शिक्षा हेतु घर से बाहर रह रहे थे, उनके पिता अस्वस्थ रहने लगे। जगदेव जी की माँ धार्मिक स्वाभाव की थी। जगदेव जी ने तमाम घरेलू झंझावतों के बीच उच्च शिक्षा ग्रहण किया। पटना विश्वविद्यालय से स्नातक तथा परास्नातक उत्तीर्ण किया। वही उनका परिचय चन्द्रदेव प्रसाद वर्मा से हुआ। चंद्रदेव ने जगदेव बाबू को विभिन्न विचारको को पढने, जानने-सुनने के लिए प्रेरित किया। अब जगदेव जी ने सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया और राजनीति की तरफ प्रेरित हुए। इसी बीच वे शोसलिस्ट पार्टी से जुड़ गए और पार्टी के मुखपत्र 'जनता' का संपादन भी किया। एक संजीदा पत्रकार की हैसियत से उन्होंने दलित-पिछड़ों-शोषितों की समस्याओं के बारे में खूब लिखा तथा उनके समाधान के बारे में अपनी कलम चलायी। 1955 में हैदराबाद जाकर अंग्रेजी साप्ताहिक 'सिटिजेन' तथा हिन्दी साप्ताहिक 'उदय' का संपादन आरभ किया। प्रकाशक से भी मन-मुटाव हुआ लेकिन जगदेव बाबू ने अपने सिद्धान्तों से कभी समझौता नहीं किया। संपादक पद से त्यागपत्र देकर पटना वापस लौट आये और समाजवादियों के साथ आन्दोलन शुरू किया।[६]
बिहार में उस समय समाजवादी आन्दोलन की बयार थी, लेकिन जे.पी. तथा लोहिया के बीच सद्धान्तिक मतभेद था। जब जे. पी. ने राम मनोहर लोहिया का साथ छोड़ दिया तब बिहार में जगदेव बाबू ने लोहिया का साथ दिया। उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया और समाजवादी विचारधारा का देशीकरण करके इसको घर-घर पहुंचा दिया।
जगदेव बाबू ने 1967 के विधानसभा चुनाव में संसोपा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी), 1966 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी का एकीकरण हुआ था) के उम्मीदवार के रूप में कुर्था में जोरदार जीत दर्ज की। उनके अथक प्रयासों से स्वतंत्र बिहार के इतिहास में पहली बार 'संविद सरकार ' बनी तथा महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाया गया। [७] जगदेव बाबू तथा कर्पूरी ठाकुर की सूझ-बूझ से पहली गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ, लेकिन पार्टी की नीतियों तथा विचारधारा के मसले लोहिया से अनबन हुयी और 'कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला' की स्थिति देखकर संसोपा छोड़कर 25 अगस्त 1967 को 'शोषित दल' नाम से नयी पार्टी बनाई। उस समय अपने भाषण में उन्होने कहा था-
जिस लड़ाई की बुनियाद आज मै डाल रहा हूँ, वह लम्बी और कठिन होगी। चूंकि मै एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूँ इसलिए इसमें आने-जाने वालों की कमी नहीं रहेगी परन्तु इसकी धारा रुकेगी नहीं। इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जायेगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जायेगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे। जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी।"
-जगदेव प्रसाद
जगदेव बाबू एक महान राजनीतिक दूरदर्शी थे, वे हमेशा शोषित समाज की भलाई के बारे में सोचा और इसके लिए उन्होंने पार्टी तथा विचारधारा किसी को महत्त्व नहीं दिया। मार्च 1970 में जगदेव बाबू के दल के समर्थन से दरोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री बने।[८]
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बिहार में राजनीति का प्रजातंत्रीकरण को स्थाई रूप देने के लिए उन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक क्रान्ति की आवश्यकता महसूस किया। वे रामस्वरूप वर्मा द्वारा स्थापित 'अर्जक संघ' (स्थापना 1 जून, 1968) में शामिल हुए। 7 अगस्त 1972 को शोषित दल तथा रामस्वरूप वर्मा जी की पार्टी 'समाज दल' का एकीकरण हुआ और 'शोषित समाज दल' नमक नयी पार्टी का गठन किया गया। एक दार्शनिक तथा एक क्रांतिकारी के संगम से पार्टी में नयी उर्जा का संचार हुआ। जगदेव बाबू पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में जगह-जगह तूफानी दौरा आरम्भ किया। वे नए-नए तथा जनवादी नारे गढ़ने में निपुण थे. सभाओं में जगदेव बाबू के भाषण बहुत ही प्रभावशाली होते थे, जहानाबाद की सभा में उन्होंने कहा था-
- दस का शासन नब्बे पर, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा.
- सौ में नब्बे शोषित है, नब्बे भाग हमारा है।
- धन-धरती और राजपाट में, नब्बे भाग हमारा है॥
-जगदेव प्रसाद
मानववाद की क्या पहचान- ब्रह्मण भंगी एक सामान, पुनर्जन्म और भाग्यवाद- इनसे जन्मा ब्राह्मणवाद।
-जगदेव प्रसाद
इसी समय बिहार में कांग्रेस की तानाशाही सरकार के खिलाफ जे.पी. के नेतृत्व में विशाल छात्र आन्दोलन शुरू हुआ और राजनीति की एक नयी दिशा-दशा का सूत्रपात हुआ। मई 1974 को 6 सूत्री मांगो को लेकर पूरे बिहार में जन सभाएं की तथा सरकार पर भी दबाव डाला गया लेकिन भ्रष्ट प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, जिससे 5 सितम्बर 1974 से राज्य-व्यापी सत्याग्रह शुरू करने की योजना बनी।[१०]
मृत्यु
'5 सितम्बर 1974' को जगदेव बाबू हजारों की संख्या में 'शोषित समाज' का नेतृत्व करते हुए अपने दल का काला झंडा लेकर आगे बढ़ने लगे। कुर्था में तैनात डी.एस.पी. ने सत्याग्रहियों को रोका तो जगदेव बाबू ने इसका प्रतिवाद किया और विरोधियों के पूर्वनियोजित जाल में फंस गए। सत्याग्रहियों पर पुलिस ने अचानक हमला बोल दिया। जगदेव बाबू चट्टान की तरह जमें रहे और और अपना क्रांतिकारी भाषण जरी रखा, निर्दयी पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी। गोली सीधे उनके गर्दन में जा लगी, वे गिर पड़े। पुलिस घायलावस्था में उन्हें पुलिस स्टेशन ले गयी। पानी-पानी चिल्लाते हुए जगदेव जी ने थाने में ही अंतिम सांसे ली।[११][१२]
लोकप्रिय संस्कृति में
बिहार में विभिन्न स्थानों का नाम बाबू जगदेव प्रसाद के नाम पर रखा गया है। उनकी याद में कई प्रतिमाओं का भी अनावरण किया गया है।