आजाद हिन्द फौज के कोष का विवाद

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ऐसा कहा जा रहा है कि सुभाष चन्द्र बोस कि अन्तिम ज्ञात यात्रा और विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद नेताजी के साथ जो मूल्यवान वस्तुएँ मिलीं थी, उसका आजाद हिन्द के लोगों ने दुरुपयोग किया। आजाद हिंद फौज के कोष को उस समय सात लाख डॉलर के बराबर आंका गया था। आजाद हिंद फौज के कोष के गबन के बारे में सबसे पहले अनुज धर ने सन् 2012 में छपी 'इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप' नामक अपनी पुस्तक में विस्तार से लिखा था।

वर्ष २०१६ में सार्वजिनक किए गए नेता जी से जुड़े दस्तावेजों से इस बात की पुष्टि हुई है कि आजाद हिंद फौज का खजाना चुराया गया था। सन् 1951 से 1955 के दौरान भारत और जापान के बीच हुई बातचीत से यह भी पता चलता है कि भारत की तत्कालीन नेहरू सरकार को इस कोष के गबन के बारे में पता था। नैशनल आर्काइव की गोपनीय फाइलों से पता चलता है कि सरकारी अधिकारियों को नेता जी के दो पूर्व सहयोगियों पर शक था। उनमें से एक सहयोगी को सम्मान दिया गया और नेहरू की पंचवर्षीय योजना कार्यक्रम का प्रचार सलाहकार बनाया गया।

21 मई, 1951 को तोक्यो मिशन के मुख्य अधिकारी के. के. चित्तूर ने राष्ट्रमंडल मामलों के सचिव बी. एन. भट्टाचार्य को सुभाष चंद्र बोस के दो सहयोगियों- प्रॉपेगैंडा मिनिस्टर एस. ए. अय्यर और तोक्यो में आजाद हिंद फौज के मुख्याधिकारी मुंगा रामामूर्ति के बारे में संदेह जाहिर करते हुए लिखा था-

जैसा कि आपको अवश्य पता होगा, इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के फंड के दुरुपयोग को लेकर रामामूर्ति के विरुद्ध गंभीर आरोप हैं। इसमें स्वर्गीय सुभाष चंद्र बोस की निजी संपत्ति भी शामिल है, जिसमें बड़ी मात्रा में हीरे, आभूषण, सोना और अन्य मूल्यवान वस्तुएँ हैं। यह सही हो या गलत, लेकिन अय्यर का नाम भी इन आरोपों से जोड़ा जा रहा है।

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