बर्लिन समिति

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चित्र:Mahendra Pratap and the German Mission.jpg
महेंद्र प्रताप (मध्य में), काबुल, 1915 मिशन के दौरान।

बर्लिन समिति (1915 के बाद से भारतीय स्वतंत्रता समिति  ; जर्मन: दास इंडिस्की अनभांगिग्केट्स्कोमी), 1914 में जर्मनी में भारतीय छात्रों और देश में रहने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में गठित एक संगठन था। समिति का उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देना था। प्रारंभ में इसे बर्लिन-भारतीय समिति कहा जाता था, संगठन का नाम बदलकर 1915 में भारतीय स्वतंत्रता समिति रखा गया, और हिंदु-जर्मन षडयंत्र का एक अभिन्न हिस्सा बन गया था। समिति के प्रसिद्ध सदस्यों में वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय (उर्फ चट्टो), चेम्पाकरमन पिल्लई और अबिनाश भट्टाचार्य शामिल थे।

पृष्ठभूमि

कई भारतीयों, विशेष रूप से श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1905 में इंग्लैंड में इण्डिया हाउस का गठन किया था। यह संगठन, दादाभाई नौरोजी, लाला लाजपत राय, मैडम भिकाजी कामा और इन जैसे अन्य भारतीय दिग्गजों के समर्थन के साथ भारतीय छात्रों को छात्रवृत्ति की पेशकश, राष्ट्रवादी कार्य का पदोन्नत, और उपनिवेश विरोधी राय और विचारों के लिए एक प्रमुख मंच था। कृष्णा वर्मा द्वारा प्रकाशित द इंडियन सोसियोलोजिस्ट, एक प्रशिध्द औपनिवेशिक विरोधी पत्रिका थी। इंडिया हाउस से जुड़े प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादियों में दामोदर सावरकर, वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय (उर्फ चट्टो) और हर दयाल शामिल थे।

ब्रिटिश सरकार ने अपने काम की प्रकृति और द इंडियन सोसियोलोजिस्ट के उत्तेजित स्वर के कारण इंडिया हाउस पर नजर रखना चालु कर दिया, जिसमें कई बार ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों की हत्या का करने का सुझाव दिया जाता था। 1909 में, इंडिया हाउस के साथ निकटता से जुड़े मदनलाल ढींगरा ने भारत के विदेश सचिव के राजनीतिक एडीसी विलियम हट कर्ज़न वाइली की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या के बाद, इंडिया हाउस को तेजी से दबा दिया गया और कृष्ण वर्मा समेत इसके कई प्रमुख नेताओं को यूरोप भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। कुछ, वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय सहित, जर्मनी चले गए, जबकि कई नेता पेरिस चले गए।[१]

पहला विश्वयुद्ध

बर्लिन समिति

हिंदु-जर्मन षडयंत्र

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काबुल अभियान

भारतीय स्वतंत्रता समिति का अंत

सन्दर्भ

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