अमर ज्योति पत्रिका
अमर ज्योति पत्रिका एक आध्यात्मिक, सामाजिक व पारिवारिक मासिक हिन्दी पत्रिका है, जिसका प्रकाशन व संचालन बिश्नोई[१] सभा, हिसार (हरियाणा) द्वारा किया जाता है। इस पत्रिका का इतिवृत्त व उद्देश्य इस प्रकार है:-
गुरु जम्भेश्वर जी ने सम्वत् 1542 में बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी। गुरु जम्भेश्वर जी ने अपने उपदेशों द्वारा समराथल पर विराजमान रहते हुए या भ्रमण करते हुए अपने नये पंथ का प्रचार-प्रसार किया था। उनके समय में ही जमों (जागरण) तथा सत्संग द्वारा धर्म प्रचार होने लग गया था।
आधुनिक युग में किसी भी विचारधारा अथवा धार्मिक सिद्धान्तों के प्रचार एवं प्रसार के लिए मुद्रण व प्रकाशन को मुख्य आधार माना गया है। उत्तर प्रदेश के बिश्नोई समाज में वहां की स्थितियों के कारण आधुनिक शिक्षा बहुत फैली। अतः वहां के शिक्षित बन्धुओं ने इस तत्त्व को समझते हुए 'बिश्नोई समाचार'', 'बिश्नोई मित्र' व 'बिश्नोई' नामक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया परन्तु ये पत्रिकाएं अधिक समय तक नहीं चल सकी।
''अमर ज्योति'' पत्रिका का प्रकाशन एक साधारण घटना के परिणामस्वरूप हुआ। वर्ष 1949 ई0 में फाग वाले दिन आदमपुर मण्डी के किसी दुकानदार द्वारा भेजे गये पत्र के आधार पर एक मिथ्या घटना का ''राष्ट्र दूत'' (साप्ताहिक हिन्दी) हिसार में प्रकाशन हुआ। डा0 रामगोपाल जी (आदमपुर), जो उन दिनों दिल्ली में विद्यार्थी थे, उन्होंने वह समाचार पढ़कर श्री मनीराम बिश्नोई, एडवोकेट को पत्र भेजा कि हमें इस प्रकार की मिथ्या घटनाओं को अपनी ही पत्रिका द्वारा खण्डन करना चाहिए। पत्रिका प्रकाशन पर विचार करने के लिए उन्होंने दिनांक 16.4.1949 को एक बैठक बुलाने के लिए लिखा जिसमें पत्रिका प्रकाशन में रुचि रखने वाले सभी बिश्नोई बन्धुओं को बुलाया गया। दिनांक 16.4.1949 को हुई बैठक में चौ॰ श्रीराम जी जाणी (प्रधान), चौ॰ सोहनलाल जी जौहर (उप-प्रधान), डाॅ0 रामगोपाल जी, चौ॰ रामजस जी पूनिया (लान्धड़ी), चौ॰ पोकरराम जी गोदारा (बड़ोपल), मुन्शी बोगाराम जी जाणी (धान्सू), श्री मनीराम बिश्नोई एडवोकेट, चौ॰ लेखराम जी कालीराणा (आदमपुर), सूबेदार प्रेमनारायण जी पूनिया (मंगाली), नायब सूबेदार सोहनलाल जी गोदारा (लान्धड़ी), चौ॰ रामप्रताप जी जौहर (सीसवाल), चौ॰ मनीराम जी गोदारा (बड़ोपल), मा. हनुमान जी कालीराणा (काजलहेड़ी), का0 सहीराम जी जौहर (नवजीवन प्रिन्टिंग प्रैस, हिसार) तथा मुन्शी रामरख जी जाणी (मन्त्री) उपस्थित हुए। इस बैठक में पत्रिका प्रकाशन हेतु मौटे तौर पर विचार-विमर्श हुआ।
साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि {बिश्नोई समाचार} (नगिना) के प्रकाशक एवं प्रबन्धक बाबू टेकचन्द जी थापन तथा नगिना (यू0 पी0) के अन्य बन्धुओं से सम्पर्क किया जाये और उस पत्रिका को पुनः चालू कराया जाये अन्यथा बिश्नोई सभा, हिसार से निवेदन किया जाये कि सभा अपनी ओर से एक मासिक पत्रिका प्रकाशित करें। ''अडिग जोत समराथले'' से प्रेरणा प्राप्त करते हुए डा0 रामगोपाल जी ने इस पत्रिका का नामकरण ''अमर ज्योति'' किया। तदोपरान्त श्री मनीराम बिश्नोई, एडवोकेट तथा चौ॰ रामप्रताप जी जौहर 28 सितम्बर 1949 को नगीना गये और वहां के बिश्नोई बन्धुओं से ''बिश्नोई समाचार'' के पुनः प्रकाशन के बारे में विचार-विमर्श किया। परन्तु वे लोग इसके लिए तैयार नहीं हुए। अतः सरकार से पत्रिका प्रकाशन की आज्ञा प्राप्त करने हेतु मुन्शी रामरख जी (मन्त्री बिश्नोई सभा, हिसार) ने दिनांक 13.10.1949 को डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हिसार को आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जिस पर राज्य सरकार से दिनांक 5.12.1949 को मंजूरी मिल गई।
8 जनवरी, 1950 बिश्नोई समाज तथा अमर ज्योति पत्रिका के इतिहास में एक युगान्तरकारी दिन था जिस दिन कि बिश्नोई सभा हिसार की आम बैठक जो कि चौधरी श्रीराम जाणी की अध्यक्षता में हुई, बैठक में यह निर्णय लिया गया कि बिश्नोई समाज की धार्मिक एवं सामाजिक निष्क्रियता को दूर किया जाये ताकि समाज रूढि़वादिता का परित्याग करके वर्तमान युग के साथ चल सके। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु तथा समाज को प्रगति पथ पर आरूढ़ करने के लिये ''अमर ज्योति'' (मासिक हिन्दी पत्रिका) को प्रकाशित करने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया। बिश्नोई सभा, हिसार के संविधान में उल्लेखित सभा के उद्देश्यों में उद्देश्य संख्या 3 (सी) में पत्रिका प्रकाशन भी सभा का एक उद्देश्य है। सभा का यह निर्णय इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भी था। दिनांक 16.4.1949 की अनुपालना में श्री मनीराम बिश्नोई, एडवोकेट ने एक आवेदन पत्र सभा की अनौपचारिक बैठक के निर्णय की बैठक आरम्भ होने से पूर्व प्रस्तुत किया। जिसमें लिखा था कि राज्य सरकार से पत्रिका प्रकाशन की आज्ञा प्राप्त हो गई है। अतः सभा इस विषय पर आज अवश्य विचार करके निर्णय ले।
सभा द्वारा पत्रिका प्रकाशन का निर्णय लिये जाने के साथ ही एक उप-समिति का गठन किया गया जो पत्रिका की विस्तृत योजना, उद्देश्य, नियमावली तय करे। इस उप-समिति में चौ॰ रामप्रताप जी जौहर (सीसवाल), का0 सहीराम जौहर (नवजीवन प्रैस), सूबेदार प्रेमनारायण जी पूनिया (मंगाली), डा0 रामगोपाल जी (आदमपुर) सदस्यगण तथा श्री मनीराम बिश्नोई, एडवोकेट इसके सदस्य-संयोजक थे। तत्पश्चात् उन सभी बन्धुओं की जो इस पत्रिका प्रकाशन में रूचि रखते थे, बैठक 29.1.1950 के लिए निमन्त्रण भेजे। इस बैठक में तमाम रूपरेखा तैयार की गई। इस बैठक में जिला हिसार से बाहर के केवल तीन बन्धुगण पधारे थे जिनमें से एक मास्टर लाधुराम जी गोदारा, अबोहर अपने दो वर्षीय बालक को लेकर जनवरी मास की कड़ाके की सर्दी में रात्रि सफर करके हिसार पहुंचे तथा रात्रि में ही वापसी सफर किया। ऐसे त्यागी एवं कट्टर सहयोगियों की निष्काम सेवा भाव ही के कारण यह पत्रिका इतना लम्बा सफर तय कर पाई है। चौधरी श्रीराम जी जाणी, तत्कालीन प्रधान, बिश्नोई सभा हिसार तथा अन्य साथियों के आग्रह पर इस पत्रिका के संचालन का तमाम कार्य श्री मनीराम बिश्नोई, एडवोकेट ने स्वीकार किया। पत्रिका का पहला अंक जून, 1950 में प्रकाशित हुआ। कामरेड़ सहीराम जी जौहर (नवजीवन प्रैस) इस पत्रिका के प्रथम चार वर्षों तक संस्थापक सम्पादक रहे।
इन प्रारम्भिक चार वर्षों में देश भर के बिश्नोई बन्धुओं का पूरा-पूरा सहयोग प्राप्त हुआ। पत्रिका के ग्राहकों के नाम व पते भेजने तथा शुल्क भिजवाने वाले सहयोगियों में बाबू लेखराम सिंह वकील (बिजनौर), चौ॰ हरीराम डेलू (राजावाली), श्री रामनारायण बिश्नोई (भाटापारा म.प्र.), मा. लाधुराम गोदारा (अबोहर), श्री जी.एस. बिश्नोई (जबलपुर), श्री हजारी लाल बिश्नोई (बलोदा बाजार, म.प्र.), श्री रामनारायण बिश्नोई, पूर्व मन्त्री राजस्थान सरकार, बाबू टेकचन्द थापन (नगीना), चौधरी सहीराम जी धारणिया (सक्ताखेड़ा) पूर्व विधायक, श्री नाथुलाल बिश्नोई (सिंगोली, म.प्र.), चौधरी जयदेव सिंह एडवोकेट (मेरठ), श्री दुर्गाप्रसाद बिश्नोई (गाडरवाड़ा, म.प्र.), चौ॰ सोहनलाल कांग्रेसी (हरिपुरा), चौ॰ बगड़ावत सिंह माल (पिरथला), श्री मुकेश बागडि़या (दुतारांवाली), मास्टर बृजलाल गायणा (रासीसर, राजस्थान) रहे। पत्रिका में प्रकाशनार्थ रचनायें एवं सामाजिक समाचार भेजने तथा पत्रिका के ग्राहकों से शुल्क भिजवाने वाले अन्य सहयोगियों में श्री सतीश चन्द्र बिश्नोई (कांठ), श्री छेदीलाल गुप्ता (कानपुर), श्री कामेश कुंवर सिंह बिश्नोई (देहरादून), मास्टर जगन्नाथ गेदर (नीमगांव, म.प्र.), मास्टर मौहम्मद यूनुस कुरैशी,निबाज (जिला-पाली,राजस्थान), मास्टर छेदी लाल बिश्नोई (कांठ), कुमारी शशि लता थापन (नगीना), कुमारी स्नेहलता बिश्नोई (मेरठ), श्री टी.सी. बिश्नोई (मेरठ), श्री दिनेश सिंह 'दिनकर' (देहरादून), श्री युगल किशोर गुप्ता (सिलहारा, कानपुर), श्री हजारी लाल जाखड़ (सुखचैन) का विशेष सहयोग रहा।
जब पत्रिका प्रकाशन की तैयारी चल रही थी तब सभी भावुक थे तथा समझते थे कि जिस किसी के पास पत्रिका का अंक पहुंचेगा तो वह मनिआर्डर द्वारा या अन्य साधन से इसका शुल्क पत्रिका कार्यालय में अवश्य भेज देगा। चूंकि पत्रिका समाज की ओर से प्रचार के उद्देश्य से प्रकाशित की जा रही थी, अतः इसमें लाभ कमाने की भावना ही उत्पन्न नहीं हुई जिससे इसका वार्षिक शुल्क तीन रुपये वास्तविक खर्चा को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया गया। पहले वर्ष का अन्त होने पर उसके आय-व्यय का ब्यौरा सभा की बैठक दिनांक 10.6.1951 में प्रस्तुत किया गया तथा आगे वर्ष 1951-52 के प्रकाशन हेतु स्वीकृति ली गई। इसी प्रकार दूसरे वर्ष के अन्त होने पर आय-व्यय का ब्यौरा सभा की बैठक दिनांक 24.6.1952 में प्रस्तुत करके वर्ष 1952-53 के लिए स्वीकृति ली गई तथा तीसरे वर्ष के अन्त में आय-व्यय का बयौरा सभा की बैठक में दिनांक 14.6.53 में प्रस्तुत करके वर्ष 1953-54 के लिए स्वीकृति ली गई। चैथे वर्ष के अन्त में आय-व्यय का ब्यौरा सभा की बैठक दिनांक 30.5.54 में पेश किया गया। चूंकि पत्रिका का शुल्क प्रतिवर्ष बकाया रहता रहा, इससे बकाया राशि बहुत बढ़ गई जो सभा को सहन करनी पड़ रही थी। इस बीच जिला हिसार में फसली वर्ष 1951-52 तथा 1952-53 में प्रायः सूखा पड़ा जिससे सभा को चन्दा की वसूली बहुत थोड़ी हुई। अतः पत्रिका को आगे वर्ष 1954-55 में प्रकाशित किये जाने की अनुमति दिया जाना रोककर, इसकी आर्थिक दशा पर विचार करने के लिए एक उप-समिति बनाई गई जिसमें चैधरी श्रीराम जी जाणी (प्रधान), चौ॰ पतराम जी सींवर (कोषाध्यक्ष), चौ॰ मनीराम जी गोदारा (बड़ोपल), सूबेदार प्रेमनारायण जी पूनिया (मंगाली) तथा श्री मनीराम बिश्नोई, एडवोकेट शामिल थे। इस दिन श्री मनीराम बिश्नोई, एडवोकेट ने पत्रिका के संचालन कार्य से मुक्त किये जाने की प्रार्थना चौधरी श्रीराम जी से की जो स्वीकृत कर ली गई।
पत्रिका प्रकाशन के पश्चात् इसे कई अवरोधों, बाधाओं और कठिनाईयां से गुजरना पड़ा। चूंकि पत्रिका बहुत घाटे में चल रही थी, अतः इसकी आर्थिक दशा पर विचार करने हेतु गठित की गई उप-समिति की बैठक दिनांक 15.6.1954 को हुई जिसमें उप-समिति के सदस्यों के अलावा अन्य बिश्नोई जन तथा सभा के मन्त्री मुन्शी रामरख जी जाणी भी उपस्थित हुए। अन्त में फैसला हुआ कि पत्रिका का प्रकाशन सभा के खर्चे पर नहीं होगा, यानि पत्रिका प्रकाशन बन्द किया जाना तय हुआ। इस पर मुन्शी रामरख जी जाणी (मन्त्री) की आत्मा को आघात पहुंचा जिसे वह सहन न कर सके। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि पत्रिका को बन्द न किया जाये तथा भविष्य में इसका तमाम घाटा-नफा वह स्वयं अपने पास से बर्दाश्त करने को तैयार हैं। तालियों की गूंज में उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। यदि मुन्शी रामरख जी यह प्रस्ताव न रखते तो यह पत्रिका समाज की पूर्व प्रकाशित अन्य पत्रिकाओं की भांति केवल चार वर्ष ही पूरे कर पाती। इसके आज तक के प्रकाशन का श्रेय मुन्शी रामरख जी जाणी को जाता है। पूरा समाज उनका आभारी है।
मुन्शी रामरख जी जाणी केवल उर्दू में मिडल पास थे। हिन्दी तथा अंग्रेजी में वह केवल अपने हस्ताक्षर ही कर पाते थे। कभी बच्चों से, कभी बड़े विद्यार्थियों से तो कभी अपने अन्य परिचित बन्धुओं से सहयोग लेकर वे पत्रिका को लगातार प्रकाशित करते रहे।
बिश्नोई सभा, हिसार की बैठक दिनांक 9.11.1967 में चौधरी रामरख जी भादू (धांगड़) के प्रधानताकाल में हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि ''अमर ज्योति'' पत्रिका जनवरी 1968 से बिश्नोई सभा, हिसार की देख-रेख में प्रकाशित की जाया करेगी तथा तमाम खर्चा सभा के जिम्मे होगा। इस तरह साढ़े तेरह वर्षों बाद यह पत्रिका पुन सभा के अन्तर्गत प्रकाशित होने लगी। पत्रिका का प्रकाशन वर्ष जून से मई तक हुआ करता था, परन्तु मुन्शी रामरख जी ने जून 1955 से दिसम्बर 1955 तक एक साल मानकर आगे एक जनवरी से दिसम्बर तक का साल अंग्रेजी वर्ष कैलेण्डर के अनुसार कर दिया।
पत्रिका के आरम्भ से लेकर अब तक पत्रिका का शुल्क इस प्रकार रहा है:-[२]
- जून, 1950 से दिसम्बर, 1968 तक 3/- रुपये
- जनवरी, 1969 से अगस्त, 1979 तक 5/- रुपये
- सितम्बर, 1979 से जनवरी, 1983 तक 10/- रुपये
- फरवरी, 1983 से जनवरी, 1984 तक 12/- रुपये
- फरवरी, 1984 से अगस्त, 1989 तक 15/- रुपये
- सितम्बर, 1989 से फरवरी, 1993 तक 20/- रुपये
- मार्च, 1993 से सितम्बर, 1995 तक 25/- रुपये
- अक्तूबर, 1995 से दिसम्बर, 1998 तक 30/- रुपये
- जनवरी, 1999 से सितम्बर, 1999 तक 50/- रुपये
- अक्टूबर, 1999 से सितम्बर, 2002 तक 30/- रुपये
- अक्टूबर, 2002 से मार्च 2008 तक 40/- रुपये
- अप्रैल, 2008 से 50/- रुपये
मुख्यतः इस पत्रिका के उद्देश्य है - समाज सुधार, शिक्षा प्रसार करना, गुरू जम्भेश्वर जी द्वारा बताए गये धर्म नियमों तथा उनकी शब्दवाणी का प्रचार किया जाये ताकि दुःख में भटकते हुए मानव को शान्ति तथा सुख प्राप्त हो सके तथा बिश्नोई समाज को संगठित किया जाये। इस पत्रिका ने समाज में एकता लाने तथा समाज के सभी वर्गों को एक मंच पर इकट्ठा करने तथा पारस्परिक मेल-मिलाप बढ़ाने की दिशा में ऐसा अभूतपूर्व कार्य किया है जो शायद सौ सालों तक भी इसके बिना होना असम्भव था। बालकों, नवयुवकों एवं महिलाओं में धर्म के प्रति आस्था उत्पन्न करना इस पत्रिका का सराहनीय कार्य रहा है। इस पत्रिका का अपरोक्ष उद्देश्य यह भी रहा है कि इसके माध्यम से समाज में अच्छे पाठक तथा लेखक बनें। पत्रिका ने सभी को हमेशा इस दिशा में प्रोत्साहित किया है।
पत्रिका ने अलग-अलग बहुत दूर-2 बसे हुए भाईयों को निकट खड़ा कर दिया है। क्योंकि भारत के हर कोने में यह पहुंचती है और स्वजनों तक सन्देश पहुंचाती है। एक उदाहरण से इसका स्पष्टीकरण किया जा रहा है। सितम्बर, 1952 की बात है; नगीना निवासी डा0 प्रेमचन्द थापन उन दिनों कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर (जयपुर) में रीडर थे। वह अपनी धर्मपत्नी सहित जोबनेर से जयपुर रेल द्वारा जा रहे थे। जोबनेर स्टेशन से रेलगाड़ी के जिस डिब्बे में वे सवार हुए वहां चौधरी पूनमचन्द जी बिश्नोई जोधपुर (पूर्व मन्त्री, पूर्व स्पीकर विधान सभा, राजस्थान) पहले से विराजमान थे। उस क्षेत्र में शहरी पहनावा पहने हुए दम्पति को ''अमर ज्योति'' पत्रिका हाथ में थामें हुए देखकर चौधरी साहब को आश्चर्य हुआ तथा परिचय जानने के इच्छुक हुए। इस प्रकार यह पत्रिका दोनों में मेल-मिलाप तथा घनिष्ठता स्थापित करने का साधन बन गई। इस तरह यह पत्रिका एक मध्यस्थ के रूप में आपसी सम्बन्धों को मजबूत बनाती है। साथ ही यह पत्रिका प्रत्येक वर्ग (विशेषकर युवा वर्ग) के लिए अपने विचार अभिव्यक्त करने का सुन्दर माध्यम है और वस्तुतः हम देखते हैं कि हमारे युवाजन इस पत्रिका के माध्यम से अपने उद्गार बड़े उत्कृष्ट ढंग से प्रकट करके गुरु जम्भेश्वर जी तथा बिश्नोई पन्थ के प्रति अपनी अटूट निष्ठा का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
इस प्रकार धर्म प्रचार, समाज सुधार, शिक्षा प्रसार आदि उद्देश्यों को संजोये हुए यह पत्रिका जून, 1950 से अब तक निरन्तर गतिमान है।[३]। तथा सामाजिक चेतना की प्रतीक बनी हुई है।