अब्दुल हाफ़िज़ मोहम्मद बरकतउल्ला
मोहम्मद बरकतुल्ला (7 जुलाई 1854 ई - 20 सितम्बर 1927) भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के बड़े नेता, क्रांतिकारी और ग़दर पार्टी के नेता थे।
बरकातुल्ला का जन्म 7 जुलाई 1854 को मध्य प्रदेश के भोपाल में हुआ था। अमरीका, योरप, जर्मनी, अफगानिस्तान, जापान और मलाया में भारतियों बीच उन्होंने अँगरेज़ साम्राजयवाद के विरुद्ध बगावत की चिंगारी भरी और विश्व के बड़े नेताओं से हिंदुस्तान में आज़ादी की लड़ाई के लिए मदद मांगी। भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रमुख समाचार पत्रों में अग्निमय भाषण और क्रांतिकारी लेखन के साथ। वह भारत को स्वतंत्र देखने के लिए जीवित नहीं रहे। 1988 में, भोपाल विश्वविद्यालय का नाम बदलकर बरकतुल्ला विश्वविद्यालय रखा गया था।
परिचय
मौलाना बरकतुल्ला ने भोपाल के सुलेमानिया स्कूल से अरबी, फ़ारसी की माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। मौलाना ने यहाँ से हाई स्कूल तक की अंग्रेज़ी शिक्षा भी हासिल की। शिक्षा के दौरान ही उसे उच्च शिक्षित अनुभवी मौलवियों, विद्वानों को मिलने और उनके विचारों को जानने का मौका मिला। शिक्षा ख़त्म करने के बाद वह उसी स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए ।
यही काम करते हुए वह शेख़ जमालुद्दीन अफ़्ग़ानी से काफ़ी प्रभावित हुए। शेख़ साहब सारी दुनिया के मुसलमानों में एकता और भाईचारों के लिए दुनिया का दौरा कर रहे थे। मौलवी बरकतुल्ला के माँ-बाप की इस दौरान मौत हो गई। अकेली बहन का विवाह हो चुका था। अब मौलाना ख़ानदान में एकदम अकेले रह गए। उस ने भोपाल छोड़ दिया और बंबई गए। वह पहले खंडाला और फिर बंबई में ट्यूशन पढ़ाने से अपनी अंग्रेज़ी की पढ़ाई भी जारी रखी। 4 साल में अंग्रेज़ी की उच्च शिक्षा हासिल कर ली थी और 1887 में वह आगे वाली पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए।
आज़ाद हिन्दुस्तानी हकूमत
1915 में तुर्की और जर्मन की सहायता से अफ़ग़ानिस्तान में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चल रही ग़दर लहर में भाग लेने के वास्ते मौलाना बरकतउल्ला अमेरिका से काबुल, अफ़ग़ानिस्तान में पहुँचे। 1915 में उन्होंने मौलाना उबैदुल्ला सिंधी और राजा महेन्द्र प्रताप सिंह से मिल कर प्रवास में भारत की पहली निर्वासित (आरज़ी) सरकार का एलान कर दिया। राजा महेन्द्र प्रताप सिंह इस के पहले राष्ट्रपति थे और मौलाना बरकतुल्ला इस के पहले प्रधान मंत्री।
काबुल में स्थापित इस सरकार का मक़सद उत्तर से हमला कर भारत से अंग्रेज़ों को भगाना था मगर प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया और इसलिए प्लान कामयाब न हुआ. मगर ग़दर पार्टी की जलाई चिंगारी ने ही इतने क्रांतिकारी पूरी दुनिया में पैदा किये कि आगे राष्ट्रीय आंदोलन में मलाया से ले कर कनाडा तक हर जगह निर्वासित भारतीय में देशभक्ति की भावना जाग गयी।