होन्या केंगले
नाईक होन्या भागोजी केंगले भारत के महाराष्ट्र मे एक स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे जिन्होने महाराष्ट्र में अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे। केंगले का जन्म पुणे जिले मे आम्बेगांव तालुका के जम्भोरी गांव के एक किसान कोली परिवार मे हुआ। केंगले को बोम्बे का रोबिन हुड के नाम से जाना जाता था और ब्रिटिश सरकार ने केंगले के सर पर १००० रुपए का इनाम रखा हुआ था ज़िंदा या मुर्दा।[१][२]
नाईक होन्या भागोजी केंगले | |
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विकल्पीय नाम: | रॉबिन हुड ऑफ बोम्बे |
जन्म - स्थान: | जम्भोरी, अम्वेगांव तालुका, पुणे, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु - तिथि: | जुलाई १८७६ |
आंदोलन: | भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन |
प्रमुख संगठन: | वंडकरी |
स्मरणीय पारितिषिक: | १००० रुपए जिंदा या मुर्दा |
धर्म: | हिन्दू कोली |
प्रभाव | राघोजी भांगरे |
ब्रिटिश राजपत्रों के अनुसार केंगले काफी प्रचलित व्यक्ति था और उसने कई बार सरकारी खजाने को लुटकर ग़रीब लोगों मे बांटा था जिसके चलते ब्रिटिश अफसर उसे (रोबिन हुड ऑफ बोम्बे) बोलते थे तथा सरकार ने केंगले को डकैत घोषित कर दिया।[१][३]
क्रांतिकारी गतिविधियों
सन् १८७३ मे एक होन्या केंगले ने एक क्रांतिकारी समूह बनाया जिसे वंडकरी बुलाया जाता था और अंग्रेजों और उनके चमचों के खिलाफ जंग का एलान कर दिया। सबसे पहले केंगले ने साहूकारों के खिलाफ मोर्चा खोला क्योंकि साहूकार अंग्रेजों का साथ दे रहे थे और लोगों को पैसा उधार देकर उनकी जमीनों को हड़पने की कोशिश मे लगे हुए थे। केंगले ने लगातार पुणे, नाशिक, अहमदनगर और ठाणे के साहुकारों पर हमला किया और लुटे हुए माल को गरीब जनता मे बांटा दिया।[४][५][६]
साहुकारों ने अंग्रेजों का साथ नही छोड़ा और इसी तरह अंग्रेजों की सेना के बल पर अपना धंधा चलाए रखा जिसके चलते केंगले ने साहुकारों की नाक और कान काट दिए एवं घर जला दिए जिसके कारण गांव खाली हो गए। केंगले के हाथ लगा सारा माल गरीबों मे बांट दिया गया और ब्रिटिश सरकार ने केंगले को डकैत घोषित कर दिया और १००० रुपए का इनाम जिंदा या मुर्दा रखा।
डकैत घोषित होने के पश्चात ही केंगले ने ब्रिटिश सरकार के सरकारी खजाने को लुट कर स्थानीय लोगों मे बांट दिए जिसके चलते केंगले स्थानीय बोलचाल में काफी प्रचलित हुआ। ब्रिटिश सरकार ने जगह-जगह केंगले के पोस्टर छपवाए और केंगले के साथीयों पर भी इनाम रख दिया। केंगले के साथी की महत्वता के हिसाब से २०० से लेकर ६०० तक का इनाम देने का वादा किया लेकिन किसी ने भी केंगले और उसके साथीयों की कोई जानकारी नही दी। ६०० रुपए सिर्फ केंगले के मुख्य साथी दादू दतिया के लिए थी और अन्य के लिए २००- ३०० थी।[७]
१८७४ मे ब्रिटिश सरकार ने केंगले को पकड़ने के लिए कर्नल स्कोट, मिस्टर डब्लू एफ सिनक्लेयर के नेतृत्व मे अंग्रेजी सेना भेजी लेकिन सरकार कुछ भी नही कर पाई। १८७६ मे मेजर एच डेनियल के नेतृत्व मे केंगले और सेना के बीच संघर्ष हुआ जिसमे केंगले को बंदी बना कर कचहरी में पेश किया गया और देशद्रोह का इल्ज़ाम लगाकर केंगले और उसके कुछ साथीयों को फांसी पर लटका दिया गया।[८][९][६]
संदर्भ
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