स्त्री जननांग

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स्त्री प्रजनन तंत्र का योजनामूलक चित्र
स्त्री प्रजनन तंत्र का त्रिविम् (3D) चित्र

मानवों में प्रजनन हेतु जननांग होते हैं, जो स्त्रियों और पुरुषों में भिन्न होते हैं। स्त्री के जननांगो में सबसे पहले बाल होते है जिसे प्यूबिक बाल कहा जाता है। ये बाल स्त्री जननागं को चारों ओर से घेरे रहते है। ऊपर की तरफ एक अंग जो उल्टे वी के आकार की होती है उसे भगनासा और भगशेफ कहते है। यह भाग काफी संवेदनशील होता है। क्लाइटोरिस के नीचे एक छोटा सा छेद होता है जोकि मूत्रद्वार होता है।

मूत्रद्वार के नीचे एक बड़ा छिद्र होता है जिसको जनन छिद्र कहते है। इसी के रास्ते प्रत्येक महीने महिलाओं को मासिक स्राव (माहवारी) होती है। इसी रास्ते के द्वारा ही बच्चे का जन्म भी होता है। इसकी दीवारे लचीली होती है जो बच्चे के जन्म समय फैल जाती है। इसके नीचे थोड़ी सी दूरी पर एक छिद्र होता है जिसे मलद्वार या मल निकास द्वार कहते है।

गर्भाशय

गर्भाशय 7.5 सेमी लम्बी, 5 सेमी चौड़ी तथा इसकी दीवार 2.5 सेमी मोटी होती है। इसका वजन लगभग 35 ग्राम तथा इसकी आकृति नाशपाती के आकार के जैसी होती है। जिसका चौड़ा भाग ऊपर फंडस तथा पतला भाग नीचे इस्थमस कहलाता है। महिलाओं में यह मूत्र की थैली और मलाशय के बीच में होती है तथा गर्भाशय का झुकाव आगे की ओर होने पर उसे एन्टीवर्टेड कहते है अथवा पीछे की तरफ होने पर रीट्रोवर्टेड कहते है। गर्भाशय के झुकाव से बच्चे के जन्म पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

गर्भाशय का ऊपरी चौड़ा भाग बाडी तथा निचला भाग तंग भाग गर्दन या इस्थमस कहलाता है। इस्थमस नीचे योनि में जाकर खुलता है। इस क्षेत्र को औस कहते है। यह 1.5 से 2.5 सेमी बड़ा तथा ठोस मांसपेशियों से बना होता है।

गर्भावस्था के विकास गर्भाशय का आकार बढ़कर स्त्री की पसलियों तक पहुंच जाता है। साथ ही गर्भाशय की दीवारे पतली हो जाती है।

गर्भाशय की मांसपेशिया

महिलाओं के गर्भाशय की मांसपेशियों को प्रकृति ने एक अद्भुत क्षमता प्रदान की है। इसका वितरण दो प्रकार से है। पहले वितरन के अनुसार लम्बी मांसपेशियां और दूसरे को घुमावदार मांसपेशियां कहते है। गर्भावस्था में गर्भाशय का विस्तरण तथा बच्चे के जन्म के समय लम्बी मांसपेशियां प्रमुख रूप से कार्य करती है। घुमावदार मांसपेशियां बच्चे के जन्म के बाद गर्भाशय को संकुचित तथा रक्त के बहाव को रोकने में प्रमुख भूमिका निभाती है।

डिम्बग्रंथि

महिलाओं में गर्भाशय के दोनों ओर डिम्बग्रंथियां होती है। यह देखने में बादाम के आकार की लगभग 3.5 सेमी लम्बी और 2 सेमी चौड़ी होती है। इसके ऊपर ही डिम्बनलिकाओं कि तंत्रिकाएं होती है जो अंडों को अपनी ओर आकर्षित करती है। डिम्बग्रंथियों का रंग गुलाबी होता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ ये हल्के सफेद रंग की हो जाती है। वृद्वावस्था में यह सिकुड़कर छोटी हो जाती है। इनका प्रमुख कार्य अंडे बनाना तथा उत्तेजित द्रव और हार्मोन्स बनाना होता है। डिम्बग्रंथियों के मुख्य हार्मोन्स ईस्ट्रोजन और प्रोजैस्ट्रोन है। माहवारी (मासिक-धर्म) स्थापीत होने के पूर्व इसका कोई काम नहीं होता है। परन्तु माहवारी के बाद इसमें प्रत्येक महीने डिम्ब बनते और छोड़े जाते है, जो शुक्राणुओं के साथ मिलकर गर्भधारण करते है।

डिम्बवाहिनियां

डिम्बवाहिनियां या गर्भनली गर्भाशय के ऊपरी भाग के दोनों ओर से निकलती है तथा दोनों तरफ कूल्हे की हडिड्यों तक जाती है। इनकी लम्बाई लगभग 10 सेमी और मोटाई लगभग आधा सेमी तक लम्बी होती है। दोनों ओर इसका आकार एक कीप की तरह का होता है। इस कीप का अंतिम छोर लम्बी-लम्बी अंगुलियों की तरफ होता है जिसको तंत्रिकाएं कहते है। इनका प्रमुख कार्य डिम्बग्रंथियों से निकले अंडे को घेरकर उसे वाहिनियों में भेजना होता है। यह नलियां मांसपेशियों से बनी, तथा इनके अंदर की दीवार एक झिल्ली की बनी होती है जिसको म्यूकस झिल्ली कहते है।

डिम्बग्रंथियों से पकड़े अंडे, वाहिनियों के आगे के भाग में जाकर रूकते है। जहां ये पुरूष के शुक्राणु के साथ मिलकर एक नये जीवन का निर्माण होता है। स्त्री जनन अंग में इस संरचना को जाइगोट कहते है। जाइगोट के चारों तरफ एक खास परत उत्पन्न होती है।

शुक्राणुओं की यात्रा

गर्भाशय में शुक्राणुओं की यात्रा लगभग 23 सेमी लम्बी होती है। पुरूष के शुक्राणु लगभग चार सौ करोंड़ की मात्रा में स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश करते है। पुरूषों के वीर्य में टेस्टीकुलर, प्रोस्टेटिक और सेमीनल वेसाइकिल नाम के तीन द्रव पाये जाते है।

पुरूषों के वीर्य में पाया जाने वाला सेमीनल वेसाइकिल द्रव ही पुरूष के शुक्राणुओं को जीवित रहने में सहायता करता है। पुरूष का वीर्य लगभग 15 मिनट में पानी में परिवर्तन हो जाता है। योनि का वातावरण अम्ल (एसिडिक) के समान होता है। इस वातावरण में पुरूष के शुक्राणु जीवित नहीं रह पाते है और धीरे-धीरे नष्ट होने लगते है। पुरूष के कुछ शुक्राणु”सरवायकल कैनाल” में प्रवेश कर जाते है। सरवायकल कैनाल का वातावरण खारा (एल्कालिन) होता है। लगभग 8 से 10 प्रतिशत शुक्राणु इस वातावरण से होते हुए नलों को पार करके आखिरी किनारे पर आकर अंडे से मिलते है। इस प्रक्रिया में लगभग 1500 से 2000 शुक्राणु ही नलों के किनारे तक पहुंच पाते है।

शुक्राणु और अण्डाणु का मिलन

पुरूष के केवल एक शुक्राणु से ही जीवन की रचना हो सकती है। पुरूष को शिक्राणुओं के तीन भाग होते है। 1. सिर 2. गर्दन 3. दुम। पुरूषों के शुक्राणु दुम की सहारे सेमिनल वेसाईकल द्रव में तैरते हुए स्त्री के अंडाणु तक पहुंचते है। स्त्री के अण्डाणु से मिलने के बाद शुक्राणुओं का सिर स्त्री के अंडे की झिल्ली को फाड़कर उसमें प्रवेश कर जाता है तथा शुक्राणुओं का गर्दन और दुम बाहर रह जाता है। जब स्त्री-पुरूषों के अण्डाणु और शुक्राणु आपस में मिलते है तो जाइगोट का जन्म होता है। स्त्री और पुरूष के गुणों के कण आपस में मिलने के बाद बढ़ने लगता है। ये बढ़ते-बढ़ते 2 से 4, 8, 16, 32 कोश बनाते है। यह कोश इसी तरह 265 दिन तक बढ़ने के बाद एक बच्चे का आकार लेते है।

मासिक स्राव

स्त्री को जिस दिन से माहवारी आना प्रारम्भ होता है। उस दिन से वे इसकी गिनती का कार्य दूसरे लोगों पर छोड़ देते है। स्त्रियों में माहवारी पारिवारिक वातावरण, देश, मौसम आदि पर निर्भर करती है। हमारे देश के गर्म तथा तरगर्म इलाकों में लड़कियों में मासिक धर्म (माहवारी) 10 वर्ष से 12 वर्ष की उम्र में ही शुरू हो जाती है। तथा ठंडे देशों, प्रदेशों में यह मासिक धर्म 14 या 15 साल की उम्र में आती है।

स्त्रियों में अंडेदानी में 10-14 वर्ष की उम्र से ही उत्तेजित द्रव ‘हार्मोन्स’ निकलना प्रारम्भ हो जाते हैं। इस हार्मोन्स को इस्ट्रोजन हार्मोन्स कहते है। इस हार्मोन्स के निकलने के कारण स्त्रियों के स्तनों के आकार बढ़ने लगता है। तथा धीरे-धीरे इनका विकास होता रहता है। 18 वर्ष की आयु तक लड़कियों का शरीर पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है। इसके बाद स्त्रियों के शरीर में चर्बी का जमाव, शरीर का गठीला होना, बालों का विकसित होना, गर्भाशय में बच्चेदानी का पनपना और बढ़ना, जननांगों का विकास, नलियों का बढ़ना तथा प्रत्येक महीने के बाद माहवारी का आना प्रमुख पहचान बन जाती है। स्त्रियों में प्रारम्भ में माहवारी अनियमित रहती है। माहवारी के नियमित होने में कई महीने का समय लग सकता है। परन्तु माहवारी के नियमित रूप से होने के लिए किसी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। धीरे-धीरे स्त्रियों में माहवारी स्वतः ही नियमित रूप से होने लगती है।

हड्डियों की बनावट

महिलाओं के शरीर की हडिड्यों की रचना प्रकृति ने विशेष रूप से की है जिससे महिलाएं बच्चे का आसानीपूर्वक जन्म दे सकती है। स्त्रियों के कूल्हे की हड्डी पुरूष के कूल्हे की हड्डी की तुलना में अधिक स्थान रखती है। स्त्रियों की कूल्हे की हडिड्यों का आकार सेब की तरह का तथा पुरूषों के कूल्हे हडिड्यां दिल के आकार की होती है। कूल्हे की हडिड्यां मुख्य रूप से तीन प्रकार की हडिड्यों से बना होता है। पीछे की तरफ की हड्डी को सेक्रम, दोनों तरफ की हडिड्यों को ईलियास तथा सामने की ओर हड्डी को प्युबिस कहते है। सेक्रम के नीचे पूंछ के आकार की नुकीली हड्डी होती है जिसको कोसिक्स कहते है। कूल्हे की हडिड्यों का प्रमुख कार्य कूल्हे की मांसपेशियों, अंगों तथा बच्चे को जन्म के लिए पर्याप्त जगह देना होता है। जब स्त्रियां प्रसव के समय बच्चे को जन्म देती है। उस समय अधिक स्थान देने के लिए प्रत्येक जोड़ कुछ खुलता और ढीला होता है ताकि स्त्रियों बच्चे को आसानी से जन्म दे सके।

बच्चे के जन्म का रास्ता पीछे की ओर चौड़ा तथा आगे की ओर छोटा होता है। प्रसव होने के समय बच्चा कूल्हे की हडिड्यों में पहले सीधा नीचे की ओर आता है। फिर 90 अंश के कोण पर घूमने के बाद बच्चे का जन्म होता है।

बच्चे के जन्म का रास्ता

बच्चे के जन्म का रास्ता कूल्हे की हडिड्यों के ऊपर की सतह से नीचे की सतह तक होता है। यह मार्ग पीछे की ओर चौड़ा तथा आगे की तरफ छोटा होता है। बच्चे को पैदा होने के लिए कूल्हे की हडिड्यों में पहले सीधा नीचे की ओर उतरना पड़ता है। फिर 90 अंश के कोण पर घूमने के बाद बच्चे का जन्म होता है। महिलाओं में प्रकृति ने यह कोण प्रदान कर बच्चे के जन्म में आसानी की है नहीं तो बच्चा जन्म लेते ही सीधे नीचे की ओर गिर सकता है। बच्चे के जन्म के रास्ते की मांसपेशियां सामने की ओर अधिक मजबूत होती है। ये मांसपेशियां बच्चे के जन्म में सहायता होती है तथा पीछे और नीचे की मांसपेशियां सामने की मांसपेशियों के तुलना में कमजोर होती है।

कूल्हे के नीचे का भाग

कूल्हे के नीचे का हिस्सा मांसपेशियों और तंतुओं से मिलकर बना होता है। कूल्हे का निचला भाग सैक्रम हड्डी से प्यूबिक सिम्फाईसिस तक होता है। इसमें मल द्वारा, मूत्र द्वार व जनन द्वार जाकर खुलते है। यह पेट के सभी अंगों को नियंत्रण में रखता है तथा खांसी और छींक आने पर मांसपेशियां पेट के अंगों को नीचे की ओर आने से रोकती है। महिलाओं में कब्ज होने के समय मलद्वार को यहीं मांसपेशियां रोकती है। इन मांसपेशियों को लिवेटर एनाई कहते है। महिलाओं के योनि की मांसपेशियां बच्चे के समय एक विशेष प्रकार का रूप धारण कर लेती है। मांसपेशियों की तंतुएं एक-दूसरे से मिलकर एक सरल रास्ता बनाती है जिससे जन्म के समय बच्चे को अधिक स्थान सरलतापूर्वक मिल जाता है।

बच्चे के जन्म के समय बच्चे के सिर की हडिड्यों की विशेष भूमिका होती है। सिर की हडिड्यां के बीच में थोड़ा सा स्थान होता है। बच्चे के जन्म के समय सिर की हडिड्यां एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाती है जिससे बच्चे का जन्म सरलता और आसानी से हो जाता है। बच्चे के जन्म का रास्ता लगभग 10 सेंटीमीटर चौड़ा होता है जबकि बच्चे का सिर मात्र 9.5 सेंटीमीटर का होता है। इस कारण प्रसव आसानी से हो जाता है। यदि बच्चे के सिर और बच्चे का आकार अधिक हो या कूल्हे का आकार छोटा हो तो ऐसी अवस्था में बच्चे के जन्म के लिए आपरेशन करना पड़ सकता है।

मूलाधार

महिलाओं के दोनों टांगों के बीच के त्रिकोण भाग को मूलाधार या पैरानियम भी कहते है। पैरानियम बाडी मलद्वार के आगे तथा जननद्वार के पीछे होती है। इसमें कूल्हे के निचले भग की सभी मांसपेशियां आपस में मिलती है। यह प्रत्येक व्यक्तियों में अलग-अलग होती है। किसी में यह कमजोर और किसी में यह अधिक शक्तिशाली होती है। इस प्रकार से पैरानियम जननद्वार के पीछे तथा नीचे की दीवार को सहारा दिये रहती है। संभोग क्रिया के समय पैरानियम जननद्वार को पीछे की ओर से साधे रहती है। बढ़ती आयु के साथ-साथ यह कमजोर हो जाती है। कूल्हे के चरों ओर की मांसपेशियों के यहां एकत्र होने के कारण यहां का रोग या पस चारों ओर फैल सकता है। बच्चे के जन्म के पहले जननद्वार को यहीं से काटकर चौड़ा बनाया जाता है। ताकि बच्चे के जन्म के समय अधिक से अधिक स्थान प्राप्त हो सके तथा बच्चे के जन्म के लिए अधिक चीड़-फाड़ न करना पड़े। प्रसव के बाद टांके इन्हीं मांसपेशियों में लगाये जाते है जिसको ऐपिजियोटोमी कहते है।

क्लाईटोरस

"CLITORIS" क्लिटोरिस महिलाओं के जननांग का एक हिस्सा होता है। इसे "फ़ीमेल पेनिस" भी कहा जाता है। महिलाओं में ऑर्गेज्‍म/चरम सुख तक ले जाने में जननांग के और इस हिस्से का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसे "G-Spot" जी-स्पॉट के नाम से भी जानते है। इसे "फ़ीमेल पेनिस" इस लिए कहा जाता है क्यों की पुरुषों के पेनिस संरचना भी लगभग ऐसे ही होती है। उत्तेजना के दौरान जैसे पुरुषों के जननांग में बदलाव आते है ठीक वैसे ही क्लिटोरिस में भी बदलाव आता है। पुरुषों के पेनिस से अपेक्षाकरित काफी छोटा होने के वजह से हमारा ध्यान इस तरफ आकृष्ट नहीं होता है।

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