सोमेश्वर प्रथम

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(सोमेश्वर १ से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

सोमेश्वर प्रथम (आहवमल्ल) प्रसिद्ध |चालुक्यराज जयसिंह द्वितीय जगदेकमल्ल का पुत्र जो 1042 ई. में सिंहासन पर बैठा।

पिता का समृद्ध राज्य प्राप्त कर उसने दिग्विजय करने का निश्चय किया। चोल और परमार दोनों उसके शत्रु थे। पहले वह परमारों की ओर बढ़ा। राजा भोज धारा और मांडू छोड़ उज्जैन भागा और सोमेश्वर दोनों नगरों को लूटता उज्जैन जा चढ़ा। उज्जैन की भी वही गति हुई, यद्यपि भोज सेना तैयार कर फिर लौटा और उसने खोए हुए प्रांत लौटा लिए। कुछ दिनों बाद जब अह्निलवाड के भीम और कलचुरी लक्ष्मीकर्ण से संघर्ष के बीच भोज मर गया तब उसके उत्तराधिकारी जयसिंह ने सोमेश्वर से सहायता मांगी। सोमेश्वर ने उसे मालवा की गद्दी पर बैठा दिया और स्वयं चोलों से जा भिड़ा। 1052 ई. में कृष्णा और पंचगंगा के संगम पर कोप्पम के प्रसिद्ध युद्ध में चोलों को परास्त किया। बिल्हण के 'विक्रमांकदेवचरित' के अनुसार तो सोमेश्वर एक बार चोल शक्ति के केंद्र रांची तक जा पहुँचा। सोमेश्वर ने दक्षिण और निकट के राजकुलों से सफल लोहा लेकर अब अपना रूख उत्तर की ओर किया। मध्यभारत में चंदेलों और कछवाहों को रौदता वह गंगा जमुना के द्वाब की ओर बढ़ा और कन्नौजराज ने डरकर कंदराओं में शरण ली। उसकी शक्ति इस प्रकार बढ़ती देख लक्ष्मीकर्ण कलचुरी ने उसकी राह रोकी, पर उसे हारकर मैदान छोड़ना पड़ा। इसी बीच सोमेश्वर के बेटे विक्रमादित्य ने मिथिला, मगध, अंग, बंग और गौड़ को रौंद डाला। तब कहीं कामरूप (आसाम) पहुँचने पर वहाँ के राजा रत्नपाल ने चालुक्यों की बाग रोकी और सोमेश्वर कोशल की राह घर लौटा। हैदराबाद में कल्याणी नाम का नगर उसी का बसाया हुआ प्राचीन कल्याण है जिसे उसने अपनी राजधानी बनाया था। 1068 ई. में बीमार पड़ने पर जब सोमेश्वर ने अपने बचने की आशा न देखी तब वह तुंगभद्रा में स्वेच्छा से डूबकर मर गया।