सेठ गोविंद दास
सेठ गोविंद दास | |
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पद बहाल १९५१ – १९७४ | |
पूर्वा धिकारी | सुशील कुमार पटेरिया |
उत्तरा धिकारी | शरद यादव |
जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
राष्ट्रीयता | भारत |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
जीवन संगी | गोदावरी बाई |
बच्चे | २ बेटे जगमोहनदास व मनमोहनदास तथा २ बेटियां रत्नाकुमारी व पद्मा |
शैक्षिक सम्बद्धता | रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर |
पेशा | राजनेता, लेखक |
जालस्थल | http://www.gokuldas.com/sg/ |
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As of २६ जून, २०१६ Source: [[[:साँचा:cite web]]] |
सेठ गोविन्ददास (1896 – 1974) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सांसद तथा हिन्दी के साहित्यकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी के वे प्रबल समर्थक थे। सेठ गोविन्ददास हिन्दी के अनन्य साधक, भारतीय संस्कृति में अटल विश्वास रखने वाले, कला-मर्मज्ञ एवं विपुल मात्रा में साहित्य-रचना करने वाले, हिन्दी के उत्कृष्ट नाट्यकार ही नहीं थे, अपितु सार्वजनिक जीवन में अत्यंत् स्वच्छ, नीति-व्यवहार में सुलझे हुए, सेवाभावी राजनीतिज्ञ भी थे।
सन् १९४७ से १९७४ तक वे जबलपुर से सांसद रहे। वे महात्मा गांधी के निकट सहयोगी थे। उनको दमोह में आठ माह का कारावास झेलना पड़ा था जहाँ उन्होने चार नाटक लिखे- "प्रकाश" (सामाजिक), "कर्तव्य" (पौराणिक), "नवरस" (दार्शनिक) तथा "स्पर्धा" (एकांकी)।
परिचय
सेठ गोविन्द दास का जन्म संवत 1953 (सन् 1896) को विजयादशमी के दिन जबलपुर के प्रसिद्ध माहेश्वरी व्यापारिक परिवार में राजा गोकुलदास के यहाँ हुआ था। राज परिवार में पले-बढ़े सेठजी की शिक्षा-दीक्षा भी उच्च कोटि की हुई। अंग्रेजी भाषा, साहित्य और संस्कृति ही नहीं, स्केटिंग, नृत्य, घुड़सवारी का जादू भी इन पर चढ़ा।
तभी गांधीजी के असहयोग आंदोलन का तरुण गोविन्ददास पर गहरा प्रभाव पड़ा और वैभवशाली जीवन का परित्याग कर वे दीन-दुखियों के साथ सेवकों के दल में शामिल हो गए तथा दर-दर की ख़ाक छानी, जेल गए, जुर्माना भुगता और सरकार से बगावत के कारण पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार भी गंवाया।
उपन्यास
सेठजी पर देवकीनंदन खत्री के तिलस्मी उपन्यासों 'चन्द्रकांता संतति' की तर्ज पर उन्होंने 'चंपावती', 'कृष्ण लता' और 'सोमलता' नामक उपन्यास लिखे, वह भी मात्र सोलह वर्ष की किशोरावस्था में।
साहित्य में दूसरा प्रभाव सेठजी पर शेक्सपीयर का पड़ा। शेक्सपीयर के 'रोमियो-जूलियट', 'एज़ यू लाइक इट', 'पेटेव्कीज प्रिंस ऑफ टायर' और 'विंटर्स टेल' नामक प्रसिद्ध नाटकों के आधार पर सेठजी ने 'सुरेन्द्र-सुंदरी', 'कृष्ण कामिनी', 'होनहार' और 'व्यर्थ संदेह' नामक उपन्यासों की रचना की। इस तरह सेठजी की साहित्य-रचना का प्रारम्भ उपन्यास से हुआ। इसी समय उनकी रुचि कविता में बढ़ी। अपने उपन्यासों में तो जगह-जगह उन्होंने काव्य का प्रयोग किया ही, 'वाणासुर-पराभव' नामक काव्य की भी रचना की।
नाटक
सन् 1917 में सेठजी का पहला नाटक 'विश्व प्रेम' छपा। उसका मंचन भी हुआ। प्रसिद्ध विदेशी नाटककार इब्सन से प्रेरणा लेकर आपने अपने लेखन में आमूल-चूल परिवर्तन कर डाला। उन्होंने नई तकनीक का प्रयोग करते हुए प्रतीक शैली में नाटक लिखे। 'विकास' उनका स्वप्न नाटक है। 'नवरस' उनका नाट्य-रुपक है। हिन्दी में मोनो ड्रामा पहले-पहल सेठजी ने ही लिखे।
हिन्दी भाषा की हित-चिन्ता में तन-मन-धन से संलग्न सेठ गोविंददास हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अत्यन्त सफल सभापति सिद्ध हुए। हिन्दी के प्रश्न पर सेठजी ने कांग्रेस की नीति से हटकर संसद में दृढ़ता से हिन्दी का पक्ष लिया। वह हिन्दी के प्रबल पक्षधर और भारतीय संस्कृति के संवाहक थे।
बाहरी कड़ियाँ
- हिंदी दिवसः हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के बड़े पैरोकार- सेठ गोविंद दास
- अंग्रेजी के खिलाफ़ जब बोले सेठ गोविन्ददास
- कुलीनता (शेठ गोविन्ददास स्वारा रचित तीन अंकों का नाटक)साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] (भारतीय अंकीय पुस्तकालय)
- हिन्दी हित संरक्षक सेठ गोविन्ददास (संजीव 'सलिल')
- Seth Govind Das
- The Commercial Kingdom of Raja Gokuldas Colonial Administration and Social Developments in Middle India: The Central Provinces, 1986-1921. Ph. D. 1980 dissertation by Philip McEldowney
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