सुलतानपुर जिला

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(सुल्तानपुर ज़िला से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
सुलतानपुर ज़िला
Sultanpur district
India Uttar Pradesh districts 2012 Sultanpur.svg

उत्तर प्रदेश में सुलतानपुर ज़िले की अवस्थिति
राज्य उत्तर प्रदेश
साँचा:flag/core
प्रभाग अयोध्या
मुख्यालय सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश
क्षेत्रफल साँचा:convert
जनसंख्या 3,797,117 (2011)
जनघनत्व साँचा:convert
साक्षरता 71.14
लिंगानुपात 1000:922
तहसीलें लंभुआ, कादीपुर, सुलतानपुर, जयसिंहपुर, बल्दीराय (नव सृजित)
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र सुलतानपुर, अमेठी (आंशिक)
विधानसभा सीटें 5
राजमार्ग 56
आधिकारिक जालस्थल

उत्तर प्रदेश भारत देश का सर्वाधिक जिलों वाला राज्य है, जिसमें कुल 75 जिले हैं। आदिगंगा गोमती नदी के तट पर बसा सुलतानपुर इसी राज्य का एक प्रमुख जिला है। सुलतानपुर जिले की स्थानीय बोलचाल की भाषा अवधी और सम्पर्क भाषा खड़ी बोली है।

इतिहास

[१] सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश राज्य का एक ऐसा भाग है जहां अंग्रेजी शासन से पहले उदार नवाबों का राज था। पौराणिक मान्यतानुसार आज का सुलतानपुर जिला पूर्व में गोमती नदी के तट पर मर्यादा पुरुषोत्तम "भगवान श्री राम" के पुत्र कुश द्वारा बसाया गया कुशभवनपुर नाम का नगर था। खिलजी वंश के सुल्तान ने भारशिवो के राजा नंदकुवर भर जो कि एक महान प्रतापी राजा थे, को खिलजी वंश के सुल्तानों ने वैश्य-राजपूतों के साथ मिल कर छल पूर्वक पराजित किया और खिलजी वंश के सुल्तान ने वैश्य राजपूतों को 'भाले सुल्तान' की उपाधि प्रदान की इसी भाले सुल्तान की उपाधि के नाम पर इस नगर को सुलतानपुर के नाम से बसाया गया। यहां की भौगोलिक उपयुक्तता और स्थिति को देखते हुए अवध के नवाब सफदरजंग ने इसे अवध की राजधानी बनाने का प्रयास किया था, जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली।

स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास

स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सुलतानपुर का अहम स्थान रहा है। 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ०९ जून १८५७ को सुलतानपुर के तत्कालीन डिप्टी-कमिश्नर की हत्या कर इसे स्वतंत्र करा लिया गया था। संग्राम को दबाने के लिए जब अंग्रेजी सेना ने कदम बढ़ाया तो चाँदा के कोइरीपुर में अंग्रेजों से जमकर युद्ध हुआ था। चाँदा, गभड़िया नाले के पुल, अमहट और कादू नाले पर हुआ ऐतिहासिक युद्ध उत्तर प्रदेश की फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश नामक किताब में दर्ज तो है लेकिन आज तक उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की याद में कुछ भी नहीं किया गया। न स्तंभ बने न शौर्य-लेख के शिलापट। यहां की रियासतों में मेहंदी हसन, नानेमऊ कोट, राजा दियरा एवं कुड़वार जैसी रियासतों का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है।

भूगोल

सुल्तानपुर जनपद 25अंश59 मिनट से 26 अंश 40 मिनट उत्तरी अक्षांश एवं 81 अंश 32 मिनट से 82 अंश 41 मिनट पूर्वी देशांतर के मध्य ऊपर एवं मध्यवर्ती गंगा के मैदान के मध्यवर्ती भाग में स्थित है। सजनपद सुलतानपुर की उत्तरी सीमा पर अयोध्या एवं अम्बेडकर नगर, उत्तर पश्चिम में बाराबंकी, पूरब में जौनपुरआजमगढ़, पश्चिम में अमेठी व दक्षिण में प्रतापगढ़ जिले स्थित हैं। जनपद में बहने वाली "आदि गंगा" गोमती नदी प्राकृतिक दृष्टि से जनपद को लगभग दो बराबर भागों में बांटती है। गोमती नदी उत्तर पश्चिम के समीप इस जिले में प्रवेश करती है और टेढ़ी-मेढ़ी बहती हुई दक्षिण पूर्व द्वारिका के निकट जौनपुर में प्रवेश करती है। इसके अतिरिक्त यहाँ गभड़िया नाला, मझुई नाला, जमुरया नाला, तथा भट गांव ककरहवा, सोभा, महोना आदि झीले हैं।

मड़हा नदी -

यह नदी जनपद के उत्तर-पश्चिम कोने पर भीटी विकासखण्ड के उत्तरी किनारे से प्रवेश करती है तथा न्याय पंचायत मूसेपुर गिरेण्ट गांव के उत्तरी सीमा पर बिसुई नदी से मिलती है, जिसे श्रवण क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। वर्षा के दिनों में कभी-कभी बाढ़ आ जाती है जिससे किनारे के शस्य क्षति ग्रस्त हो जाते हैं। इस नदी का उद्म स्थल बाराबंकी जिले के भिटौली गांव के एक झील से हुई है।

बिसुई नदी -

यह सुलतानपुर जनपद के अजोर गांव के एक बड़े ताल से निकल कर अध्ययन क्षेत्र में भीटी न्याय पंचायत भीटी गांव के उत्तरी-पश्चिमी भाग से प्रवेश करती है। आगे चलकर कटेहरी विकासखण्ड में मड़हा नदी से मिल जाती है।

टोंस नदी -

यह जनपद अम्बेडकरनगर के मध्य से प्रवाहित होती है। इसमें अनेक छोटी-छोटी मौसमी नदियां तथा नाले आकर मिलते हैं। वर्षा ऋतु में यह नदी अधिक विस्तृत हो जाती है। इसे प्राचीनकाल में तमसा नाम से जाना जाता था। जलालपुर, नगपुर, नसोपुर तथा बल्दीपुर अधिवासों के निकट इस नदी में वर्षभर नौका चलती है।

मझोई नदी -

यह नदी जनपद की दक्षिणी सीमा निर्धारित करती है। सुलतानपुर जनपद के किनावन के समीप एक झील से निकलकर अम्बेडकरनगर जनपद के भीटी विकास खण्ड के रामपुर गिरेण्ट तथा बेला गांव के दक्षिणी सीमा को स्पर्श करती हुई अध्ययन क्षेत्र की दक्षिणी सीमा के समान्तर प्रवाहित होती है। इस नदी को पार करने के लिए चन्दौली, पटना हरवंशपुर, महरूआ, दोस्तपुर तथा सुरहुरपुर में स्थायी सेतु है।

झील एवं तालाब -

जनपद का उत्तरी एवं उत्तरी पूर्वी क्षेत्र वर्षा ऋतु में जलमग्न हो जाता है। इस क्षेत्र में अनेकों झील एवं ताल पाये जाते हैं। प्रमुख रूप से कटेहरी विकासखण्ड के खेमापुर न्याय पंचायत की डरबन एवं हाथपाकड़ झील है। ये झीलें आपस में मिलकर लगभग 600 एकड़ क्षेत्र को प्रभावित करती है। जनपद में अनेक छोटे-छोटे ताल एवं झीलें हैं जिनमें सीताघाट, कोशी तथा कछुआ विशेष उल्लेखनीय हैं। इसके अलांवा अध्ययन क्षेत्र में तालाबों की संख्या लगभग 3678 है। इसमें छोटे-छोटे मौसमी ताल भी सम्मिलित हैं।

घाघरा नदी -

यह जनपद की प्रमुख नदी है जो अध्ययन क्षेत्र में सरयू नदी के नाम से जानी जाती है। अम्बेडकरनगर जनपद की उत्तरी सीमा पर पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा की तरफ प्रवाहित होती है। यह एक सतत् वाहिनी नदी है जिसमें जल की गहराई कभी भी 7 फिट से कम नहीं होती है। वर्षा ऋतु में जल की अधिकता के कारण इसके अपवाह क्षेत्र की चौड़ाई काफी बढ़ जाती है, जिससे समीपवर्ती क्षेत्रों में जल भराव एवं बाढ़ की अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। पूरे वर्ष भर इस नदी में नौका तथा स्टीमर द्वारा परिवहन का कार्य सम्पन्न होता है।

मिट्टयाँः- सुलतानपुर जनपद  गंगा-यमुना के समतल मैदानी भाग में स्थित है। इस जनपद में मटियार मिट्टी पायी जाती है जिसमें जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है। यहाँ मुख्य रूप से क्ले, दोमट, भूरी तथा मटियार मिट्टयाँ पायी जाती हैं। भौतिक अध्ययन करने पर इस जनपद की मिट्टयों को निम्नलिखित छः भागों में विभाजित किया जाता है -

1. हल्की भूरी बलुई क्ले दोमट मिट्टी।

2. हल्की भूरी क्ले दोमट मिट्टी।

3. भूरी हल्की बलुई मिट्टी।

4. हल्की भूरी छोटे कण वाली बलुई दोमट मिट्टी।

5. सफद भूरी बलुई क्ले दोमट मिट्टी।

6. भूरी छोटे कण वाली बलुई दोमट मिट्टी।

सुलतानपुर जनपद की मिट्टियाँ कृषकीय अर्थव्यवस्था व जनसंख्या संकेन्द्रण का मूल आधार है। वनस्पति धरातल प्राचीन काल से किये जाने वाले कृषि कार्य, मुलायम मिट्टी संरचना तथा जल प्रवाह प्रणाली व जलवायु आदि कारणों से यहाँ भूक्षरण हो रहा है। गोमती नदी तथा अध्ययन क्षेत्र में पाये जाने वाले विभिन्न नालों के कारण प्रायः अधिकांश भू-भाग भूक्षरण से प्रभावित है।विश्लेषण से ज्ञात होता है कि भूअपरदन तथा भूमिक्षरण रोकन का सरकारी कार्य चल रहा है जिसके अन्तर्गत वृक्षारोपण, बन्धों का निर्माण, बीहड़ भूमि का समतलीकरणऔर कृषि योग्य बंजर भूमि सुधार कार्यक्रम सम्पादित किये जा रहें हैं। जनपद की भूमि मुख्य रूप से मटियार है।सुलतानपुर जनपद की मिट्टी में मुख्यतः चार तत्व यथा- बलुई लोयस, लोयस, सिल्ट क्ले लोयस तथा क्ले लोयस पाया जाता है। सुलतानपुर जनपद की मिट्टी में सर्वाधिक बलुई लोयस विकासखण्ड शुकुलबाजार में 37.08 प्रतिशत एवं सबसे कम विकासखण्ड भदैया में 4.09 प्रतिशत है। जबकि सात विकासखण्डों यथा- जामों, अमेठी, भेटुआ, गौरीगंज, संग्रामपुर, शाहगढ़ एवं अखण्डनगर में बलुई लोयस तत्व का अभाव पाया जाता है,।जनपद में सर्वाधिक लोयस तत्व विकासखण्ड जामो में 79.69 प्रतिशत एवं सबसे कम गौरीगंज विकासखण्ड में 18.32 प्रतिशत है। जबकि शेष विकासखण्डों में 79.69-18.32 प्रतिशत के मध्य लोयस तत्व पाया जाता है।जनपद में सर्वाधिक सिल्ट क्ले लोयस तत्व विकासखण्ड लम्भुआ में 33.45 प्रतिशत एवं सबसे कम 2.34 प्रतिशत जामों विकासखण्ड में पाया जाता है। शेष बारह विकासखण्डों में इसका अभाव पाया जाता है।क्ले लोयस का सर्वाधिक मात्रा दोस्तपुर विकासखण्ड में 72.88 प्रतिशत तथा सबसे कम कादीपुर विकासखण्ड में 10.61 प्रतिशत पाया जाता है। जबकि छः विकासखण्डों यथा- मुसाफिरखाना, शुकुलबाजार, जगदीशपुर, भादर, भेटुआ एवं कुड़वार में क्ले लोयस तत्व का अभाव पाया जाता है।सुलतानपुर एक कृषि प्रधान जनपद है, जहां कि 88.30 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है। कृषि अनेक जीवनयापन का प्रमुख साधन है। अनुकूल भौगोलिक दशाओं, समतल भूमि, उपजाऊ मिट्टी, उत्तम जलवायु, जल संसाधन की उपलब्धता तथा जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण कृषि कार्य व्यापक पैमाने पर होता है।

प्राकृतिक वनस्पतिः- प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव-जन्तु प्राकृतिक भू-दृश्य के प्रधान अंग है। किसी भी क्षेत्र के प्राकृतिक वनस्पति वहाँ की जलवायु का यथार्थ प्रतिनिधित्व करती हैं। सुलतानपुर जनपद की प्राकृतिक वनस्पति मानसूनी प्रकार की हैं जिसमें पतझड़ वाले वृक्ष, कटीली झांड़ियाँ अधिक पायी जाती हैं।आदिकाल से जनपद का मुख्य भाग सघन ढाख, कटीली झाड़ियों आदि वृक्षों से आच्छादित था जो मुगलकाल में एक सुरक्षित महत्वपूर्ण व अवरोध की स्थित में था। बहुत दिनों तक यह एक बहुत बड़ें सघन पेटी के रूप में अमेठी से रामनगर तक विस्तृत था। तीव्र जनसंख्या वुद्धि, कृषि भूमि प्रसार, औद्योगिकीकरण तथा यातायात के साधनों के विकास आदि के कारण वनों का सफाया किया गया।वर्तमान में यत्र-तत्र ही वनक्षेत्र देखने को मिलते हैं। सर्वाधिक ढाख, शीशम, नीम, बेल, पीपल, बरगद, गूलर, महुआ, जामुन, सागौन, अर्जुन आदि के वृक्ष हैं। सुलतानपुर जनपद में 2065 हे0 भूमि पर वनों का विस्तार है जो सम्पूर्ण क्षेत्र का मात्र 0.45 प्रतिशत है। स्पष्ट है कि प्राकृतिक वनस्पति की दृष्टि से जनपद सुलतानपुर दयनीय स्थिति में है।

प्रशासनिक दृष्टि से जनपद सुलतानपुर पाँच तहसील- लम्भुआ, कादीपुर, सुलतानपुर, जयसिंहपुर और बल्दीराय व 14 विकास खंड- अखंड नगर, दोस्तपुर, करौंदी कला, कादीपुर, मोतिगरपुर, जयसिंहपुर, कुरेभार, प्रतापपुर कमैचा, लंभुआ, भदैया, दूबेपुर, धनपतगंज, कुड़वार व बल्दीराय है।

यातायात और परिवहन

सुलतानपुर सड़क और रेल मार्ग द्वारा लखनऊ, कानपुर, अमेठी, मुसाफिरखाना, जगदीशपुर, प्रयागराज, जौनपुर, वाराणसी (भूतपूर्व बनारस), प्रतापगढ़, बाराबंकी, फैजाबाद, अंबेडकर नगर और उत्तर भारत के अन्य शहरों से भली-भाँति जुड़ा हुआ है।

हवाई मार्ग

सुलतानपुर, हवाई मार्ग के माध्यम से भी विधिवत तरीके से पहुंँचा जा सकता है। लखनऊ एवं वाराणसी विमान पत्तन यहां से लगभग ३ घंटे की दूरी पर हैं।

रेल मार्ग

सुलतानपुर से रेल मार्ग द्वारा दिल्ली, लखनऊ, मुम्बई, अजमेर,अहमदाबाद, आगरा, कोलकाता, पटना, वाराणसी, जौनपुर, प्रयागराज, अयोध्या, प्रतापगढ़, मुसाफिरखाना और जगदीशपुर आदि शहरों में रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।

सड़क मार्ग

विकासखण्डवार कुल रोड की लम्बाई किलोमीतर में

1. वाल्दी राय 296

2. धनपतगंज 281

3. कुरेभार 331

4. जयसिंहपुर 318

5. कुरवर 309

6. दुबेपुर 274

7. भादैया 309

8. दोस्तपुर 260

9. अखंड नगर 255

10. लम्भुआ 269

11.पीपी क़मैचा 258

12. कादीपुर 239

13. मोतिगरपुर 271

14. करौदीकलां 195

योग ग्रामीण 3865

योग नगरीय 106

योग जनपद 3971

सुलतानपुर सड़क मार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, प्रयागराज, प्रतापगढ़, जौनपुर, फैजाबाद, बाराबंकी, अंबेडकर नगर, रायबरेली, अमेठी, गौरीगंज और अन्य जगहों से सुलतानपुर आसानी से पहुँचा जा सकता है।

विभिन्न शहरों से दूरी

औद्योगिक क्षेत्र

  • जगदीशपुर:- यह क्षेत्र सुलतानपुर शहर से लगभग ६० किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग सं. ५६ पर स्थित है। निहालगढ़, लखनऊ-वाराणसी मार्ग पर निकटतम रेलवे स्टेशन] है। निहालगढ़ तहसील मुसाफिरखाना से लगभग २७ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ "भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड" BHEL नामक एक बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यह एक प्रमुख उर्वरक उत्पादक क्षेत्र है। यह स्थान अपने तेल-शोधक कारखाने के लिए भी प्रसिद्ध है।
  • हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, कोरवा, अमेठी:- यह "सुलतानपुर शहर" से ३० कि.मी. की दूरी पर रायबरेली-सुलतानपुर रोड पर स्थित है।

प्रमुख स्थान

  • सुंदर लाल मेमोरियल हॉल:- "सुंदर लाल मेमोरियल हॉल" "सुलतानपुर शहर" के क्राइस्ट चर्च के दक्षिणी दिशा की ओर स्थित है। इसका निर्माण महारानी विक्टोरिया की याद में उनकी पहली जयन्ती पर करवाया गया था। वर्तमान समय में इसे विक्टोरिया मंजिल के नाम से जाना जाता है। लेकिन अब इस जगह पर "म्युनीसिपल बोर्ड" का कार्यालय है।
  • सीताकुंड:- यह "सुलतानपुर शहर" में गोमती नदी के तट पर स्थित है। चैत रामनवमी, माघ अमावस्या, गंगा दशहराकार्तिक पूर्णिमा को अत्यधिक संख्या में इस स्थान पर लोग गोमती नदी में स्नान करने आते हैं। उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार वनवास जाते समय भगवती सीता ने भगवान श्री राम के साथ यहाँ स्नान किया था। प्रत्येक रविवार को सीताकुंड के घाट पर आदि गंगा गोमती की भव्य आरती का भी आयोजन किया जाता है।
  • विजेथुवा महावीरन:- सुलतानपुर स्थित विजेथुवा महावीरन भगवान हनुमान को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। माना जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ पर पवनपुत्र भगवान हनुमान ने दशानन रावण के मामा "कालनेमी" नामक दानव का वध किया था। लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए जब हनुमान संजीवनी बूटी लेने के लिए गए थे, तो रावण द्वारा भेजे गए कालनेमी दानव ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया था। उस समय हनुमान जी ने कालनेमी दानव का वध इसी स्थान पर किया था। यही से कुछ दूरी पर उमरपुर गाँव में भगवान शिव मंदिर है।
  • धोपाप:- सुलतानपुर जिले में स्थित धोपाप यहां के प्रमुख स्थलों में से एक है, इसे "धोपाप धाम" के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां पर भगवान श्रीराम ने लंकेश्वर रावण का वध करने के पश्चात महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार स्नान किया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि जो भी व्यक्ति दशहरे के दिन यहां स्नान करता है, उसके सभी पाप गोमती नदी में धुल जाते हैं। यहां एक विशाल मंदिर भी है। काफी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा के लिए आते हैं।
  • [२]लोहरामऊ मां भवानी मन्दिर:- सुलतानपुर में नवरात्र पर शायद ही कोई मन्दिर हो जहां देवी मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ न उमड़ती हो लेकिन इस जनपद के "लोहरामऊ" में स्थित मां दुर्गा भवानी मंदिर में नवरात्र के समय सूबे के विभिन्न इलाकों से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। नगर से लगभग ७ कि.मी. दूर लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग-५६ पर स्थित लोहरामऊ में सैकड़ों वर्षों से स्थापित मां दुर्गा का यह मन्दिर केवल आस-पास के जिलों में ही नही सूबे के कई अन्य जिलों में भी खासा मशहूर है। खास बात ये है कि यहां आ कर लोग न केवल अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं बल्कि "जनेऊ" और "मुंडन" जैसे संस्कार भी पूरे करते हैं। मान्यता तो यहां तक है कि इस धाम पर शीश झुकाए बगैर "विंध्याचल धाम" का दर्शन पूरा नही माना जाता। सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर में नारियल और फूल मालाओं समेत पूड़ी, कड़ाही और चूड़ियां चढ़ाने की भी परम्परा रही है। वैसे तो सावन के महीने में यहां दस दिनों तक जबरदस्त मेला लगता है लेकिन नवरात्र में यहां का नजारा कुछ अलग ही रहता है। मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित राजेन्द्र प्रसाद मिश्र बताते हैं कि यहां मां दुर्गा भवानी स्वयं साक्षत प्रकट हुई थीं। देवी मां के तीन रूपों का भी यहां दर्शन होता है। मां दुर्गा के दर्शन करने और अपनी मुरादें पूरी करने के लिए सूबे के तमाम जिलों से पूरे नवरात्र भर श्रद्धालुओं का यहां तांता लगा रहता है। महिलाओं में इसका विशेष महत्व है, उनकी हर छोटी से छोटी मनोकामना यहां पूरी होती है। श्रद्धालु यहां नारियल और फूल मालाओं के साथ पूड़ी, कड़ाही और चूड़ियां चढाते हैं। इतना ही नही लोग यहां मुंडन, जनेऊ और वैवाहिक रस्मो-रिवाज समेत तमाम अन्य धार्मिक संस्कार भी पूरे करते हैं। इस ऐतिहासिक धाम की एक खास महत्ता यह है कि मिर्जापुर में स्थित "विंध्याचल धाम" का दर्शन तभी पूरा माना जाता है जब भक्त यहां का दर्शन कर लेते हैं। यही वजह है कि विंध्याचल जाने और लौटने वाले लोग यहां का दर्शन करना नही भूलते। नवरात्र के अंतिम दिन इस मंदिर पर खासी भीड़ जुटती है। पूरा दिन यहां यज्ञ और हवन होते रहते हैं। यहां आ कर लोग तमाम कर्मकांड कर अपने तन-मन में छुपे रोग, शोक, भय, आशंका और मनो-विकार दूर कर अपने को धन्य मानते हैं।
  • गढ़ा (केशिपुत्र कलाम):- पश्चिमोत्तर दिशा में सुलतानपुर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर के फासले पर बौद्धकालीन दस गणराज्यों में से एक केशिपुत्र के भग्नावशेष आज भी गढ़ा गांव में मौजूद हैं। यहां भगवान बुद्ध ने छह माह तक प्रवास किया था और यहां के शासक कलाम वंशीय क्षत्रियों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। इन खंडहरों में आज भी बुद्ध के संदेश गूंज रहे हैं। ये हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के साक्षी हैं। भगवान बुद्ध के समय में जब बुद्धवाद शिखर पर था तो केशिपुत्र उत्तर भारत के दस बौद्ध गणराज्यों में से एक था। यहां कलामवंशीय क्षत्रियों का शासन था। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अभिलेख, बौद्ध सूत्र व स्थानीय परम्पराएं इसकी पुष्टि करते हैं। तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक केशिपुत्र समृद्धिशाली नगर था। बौद्धग्रंथ "अंगुत्तर निकाय" व "कलाम सुत पिटक" के अनुसार भगवान बुद्ध ने यहां छह माह तक प्रवास कर कलामवंशीय क्षत्रियों को उपदेश दिया था। आज ये स्थल वर्तमान कुड़वार के गढ़ा गांव में आठ किलोमीटर के क्षेत्र में खंडहर के रूप में विद्यमान है। सन् 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में केंद्रीय सांस्कृतिक सचिव पुपुल जयकर के निर्देश पर गढ़ा के नाम से विख्यात इस खंडहर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अधिग्रहीत कर लिया। खनन में बौद्धकाल की मूर्तियां, बर्तन आदि प्राप्त हुए जिससे स्थल की ऐतिहासिकता की पुष्टि हुई।
  • पारिजात वृक्ष:- सुलतानपुर शहर में गोमती नदी के तट पर उद्योग विभाग के परिसर में यह विशाल वृक्ष उपस्थित है। सुलतानपुर शहर में गोमती नदी के तट पर उद्योग विभाग के परिसर में उपस्थित विशाल "पारिजात वृक्ष" प्रदेश में अकेला ऐसा वृक्ष है जहाँ लोग पूरी आस्था से मन्नते मांगते हैं और उनकी मनोकामनायें पूरी भी होती हैं। युवा-वर्ग अपने प्रेम को पाने और शादी-शुदा महिलाएँ अपने सुहाग के लिए मन्नते मांगती हैं। श्रद्धा का ये मेला प्रत्येक शुक्रवार और सोमवार को लगता है जहां लोग पूरी श्रद्धा से इस वृक्ष को नमन कर अपनी मनोकामनाये मांगते हैं। सुल्तानुपर के इस पारिजात वृक्ष का सही आंकलन कोई नहीं कर पाया है। जिले के बुज़ुर्ग इस वृक्ष को हजारों साल पुराना बताते हैं।
  • कोटव:- यह एक धार्मिक स्थल है। कोटव को कोटव धाम के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर में भगवान शिव की सफेद संगमरमर से बनी खूबसूरत प्रतिमा स्थित है। यहां मंदिर के समीप पर ही एक खूबसूरत सरोवर स्थित है। प्रत्येक वर्ष अक्टूबर और अप्रैल माह में यहां मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान काफी संख्या में भक्त इस सरोवर में स्नान करने के लिए आते हैं।
  • कोइरीपुर:- यहां पर श्री हनुमान जी, भगवान शिव शंकर तथा प्रभु श्री राम और माता सीता के अनेकों मंदिर हैं। इन मंदिरों का निर्माण स्थानीय लोगों ने मिलकर करवाया था। पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में काफी संख्या में लोग सम्मिलित होते हैं।
  • सतथिन शरीफ:- प्रत्येक वर्ष यहां दस दिन के उर्स का आयोजन किया जाता है। शाह अब्दुल लातिफ और उनके समकालीन बाबा मदारी शाह उस समय के प्रसिद्ध फकीर थे। यहां गोमती नदी के तट पर शाह अब्दुल लातिफ की समाधि स्थित है।
  • गोरीशंकर धाम:- चाँदा के शाहपुर जंगल के बीच गोमती नदी के तट पर अवस्थित मनोरम शिव मन्दिर है, इस मंदिर की मान्यता यह है कि यह अत्यंत प्राचीन मंदिर है। वैसे तो यहाँ हर सोमवार को मेला लगता है जहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है, पर प्रतिवर्ष "महाशिवरात्रि" को यहाँ बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है जहाँ पर आस पास के जिले के लोग भी आते हैं, मान्यता है कि जो भी श्रद्धा से यहां आकर कुछ भी मांगता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। वर्तमान में इस स्थान का सुन्दरीकरण करके अब इसे पर्यटनस्थल भी घोषित कर दिया गया है। यहाँ बच्चों के लिए पार्क बनाकर उसमे विभिन्न प्रकार के झूले भी स्थापित किये गए हैं।
  • बिलवाई:- बिलवाई सुलतानपुर जिले के पश्चिमी छोर पर स्थित एक कस्बा है। यहाँ भगवान शिव का भव्य मन्दिर है। पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम वन जा रहे थे, तो इसी स्थान पर बेल के जंगल में उन्होंने भगवान शिव जी का शिवलिंग स्थापित कर पूजा अर्चना की थी, आज भी यहाँ महाशिवरात्रि के अवसर पर 3 दिन का भव्य मेला लगता है, और खरमास के समय 1 महीने तक लोग यहां भगवान शिव के दर्शन को आते हैं।
  • करिया बझना:- यह प्रसिद्ध स्थान जिला मुख्यालय सुलतानपुर से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो कि कूरेभार विकास खंड के अंतर्गत आता है। यहाँ करिया बाबा का एवं पवनपुत्र हनुमान जी का प्रसिद्ध मन्दिर है। सुलतानपुर के इस प्रसिद्ध स्थान पर दूर दूर से लोग अपने बच्चों का मुण्डन संस्कार कराने आते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी मुराद लोग माँगते हैं करिया बाबा उसे अवश्य पूरी करते हैं। श्रद्धालु यहाँ हलुवा पूरी का प्रसाद भी चढ़ाते हैं। करिया बाबा का प्रति वर्ष 6 भव्य मेले भी लगते हैं। 3 मेला जुलाई महीने में और 3 मेला दिसम्बर महीने में लगता है।

ऐतिहासिक दुर्गापूजा महोत्सव

यूँ तो 'दुर्गापूजा' का आयोजन पूरे देश में होता है लेकिन सुलतानपुर जिले की दुर्गापूजा का अपना एक अलग ही नाम और पहचान है। कोलकाता के बाद अगर दुर्गापूजा की कहीं धूम है तो वह है सुलतानपुर। खास बात यह कि जहाँ पूरे भारत में मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन दशमी को हो जाता है वहीं सुलतानपुर में विसर्जन इसके पांच दिन बाद यानी 'पूर्णिमा' को होता है। इस सबसे अलग यहां की खास बात है गंगा-जमुनी तहजीब। दूसरे इलाकों में जहाँ तनाव की खबरें सुनाई देती हैं, वहीं यहां सभी धर्मों के लोग इस ऐतिहासिक उत्सव को मिल जुल कर मनाते हैं। शायद यही वजह है कि पिछले 6 दशकों से चली आ रही इस अनोखी परम्परा ने इसे खास और ऐतिहासिक बना दिया है। कोलकाता शहर के बाद अगर दुर्गापूजा देखनी हो तो शहर सुलतानपुर आइये। मंदिरों का रूप लिये जगह-जगह बन रहे पंडाल और पंडालों में स्थापित हो रहीं अलग अलग रूपों की प्रतिमायें बरबस आप को अपनी ओर खींच लेंगी। शहर की कोई गली कोई कोना बाकी नहीं जहां इस 'ऐतिहासिक उत्सव' के लिये तैयारियां न चल रही हों।

साल 1959 में नगर के 'ठठेरी बाजार' मुहल्ले में 'भिखारी लाल सोनी' द्वारा पहली बार 'आदि दुर्गा (बड़ी दुर्गा)' प्रतिमा की स्थापना से इसकी शुरुआत हुई। वर्ष 1972 में प्रतिमाओं की संख्या में बढो़त्तरी हुई और तब से धीरे-धीरे प्रतिमाओं की संख्या बढती गई। आज शहर में तकरीबन डेढ़ सौ प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। साल दर साल बढ़ रही समारोह की भव्यता को देखते हुए जिम्मेदारों ने इसे विधिवत आयोजित करने की आवश्यकता महसूस की लिहाजा 'सर्वदेवी पूजा समिति' के नाम से संगठन बना कर इसका आयोजन किया जाने लगा बाद में कुछ विवादों के चलते केन्द्रीय संगठन का नाम बदलकर 'केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति' कर दिया गया। इस ऐतिहासिक समारोह को भव्यतम बनाने के लिये महीनों पहले से तैयारियां की जाती हैं।

बाहर प्रदेशों के कारीगरों को बुलाकर उनसे विशालकाय और मंदिरनुमा पंडाल बनवाये जाते हैं, उनमें जबरदस्त सजावट की जाती है। बांस की खपच्ची और रंगीन कपड़ों से तैयार पंडाल देखकर असली और नकली का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। जिला प्रशासन की देखरेख में एक पखवारे तक चलने वाली दुर्गापूजा की तैयारियां अब अंतिम दौर में हैं।

देश के दूसरे हिस्सों में दशमी को विसर्जन हो जाता है जबकि यहां उसी दिन से यह महोत्सव परवान चढ़ता है। 'रावण दहन' के बाद जो मेले की शुरुआत होती है तो फिर विसर्जन के बाद ही समाप्त होता है। पांच दिनों तक चलने वाले समारोह के बाद पूर्णिमा को विसर्जन शुरू होता है। नगर की 'ठठेरी बाजार' में बड़ी दुर्गा प्रतिमा के पीछे एक एक करके नगर की सारी प्रतिमायें लगती हैं। फिर परम्परागत रूप से जिलाधिकारी विसर्जन के लिये हरी झंडी दिखाकर पहली प्रतिमा को रवाना करते हैं। यह प्रतिमायें नगर के विभिन्न मार्गों से होती हुई 'सीताकुंड घाट' पर 'आदिगंगा' गोमती नदी के तट पर बने विसर्जन स्थल तक पहुंचती हैं। तकरीबन डेढ़ सौ से ज्यादा मूर्तियों के विसर्जन में करीब 36 घंटे का वक्त लगता है और यही विसर्जन शोभा यात्रा यहां का आकर्षण है। इस समारोह में दूर दराज से लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं नगर की पूजा समितियां उनके खाने पीने का पूरा प्रबंध करती हैं। जगह-जगह भंडारे चलते हैं। केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के लोग हर पल नजर बनाये रखते हैं। यातायात को सुगम बनाने और शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिये जिला प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है। महीनों पहले से ही जिला प्रशासन भी तैयारियों का जायजा लेना शुरू कर देता है। शोभा यात्रा रूट और विसर्जन स्थल पर पूरी नजर रखी जाती है।

छह दशकों से चला आ रहा यह समारोह केवल हिन्दुओं का पर्व न होकर सुलतानपुर का 'महापर्व' बन चुका है। प्रशासन भी यहां की गंगा-जमुनी तहजीब को देखकर पूरी तरह आश्वस्त रहता है। यहां रहने वाले किसी भी मजहब के लोग जिस तरह इस महापर्व में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं वह एक मिसाल है।

शिक्षण संस्थान

  • सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, ज्ञानकुंज विवेकानन्द नगर (शास्त्री नगर), सुलतानपुर।
  • कमला नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (KNIT), सुलतानपुर।
  • धर्मा देवी बद्री प्रसाद स्मारक महाविद्यालय कुड़वार, सुलतानपुर।
  • कमला नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (NIIT or KNIIT), सुलतानपुर।
  • कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान (KNIPSS), सुलतानपुर।
  • कमला नेहरू ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूसन्स, फरीदीपुर (सुलतानपुर)
  • संत तुलसीदास महाविद्यालय, कादीपुर, सुलतानपुर
  • कमला प्रसाद सिंह महाविद्यालय, रामगढ़, सुलतानपुर
  • राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (Government ITI) - पयागीपुर, सुलतानपुर।
  • राजकीय पॉलीटेक्निक संस्थान (Govt. Polytechnic) - केनौरा, सुलतानपुर।
  • गनपत सहाय परास्नातक महाविद्यालय, पयागीपुर, सुलतानपुर।[१]
  • राणा प्रताप परास्नातक महाविद्यालय, सुलतानपुर।[२]
  • G-Mind Institute, तिकोनिया पार्क, सुलतानपुर।
  • कम्प्यूटर वर्ल्ड (Disha Academy), सुलतानपुर।
  • ऐप्टेक कम्प्यूटर एजूकेशन (APTECH), पी.डब्ल्यू.डी. रोड निकट सिविल लाइन, सुलतानपुर।
  • प्रज्ञा एकेडमी नर्सरी स्कूल, कुड़वार-सुलतानपुर।
  • केंद्रीय विद्यालय, अमहट, सुलतानपुर।
  • कमला नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड एजूकेशन (KNICE), सुलतानपुर।
  • मधुसूदन विद्यालय इंटरमीडिएट कॉलेज, सुलतानपुर।
  • स्टेला मॉरिस कान्वेंट स्कूल, लाल डिग्गी रोड, सिविल लाइंस, सुलतानपुर।
  • सेंट ज़ेवियर्स सीनियर सेकन्डरी स्कूल, सुलतानपुर।
  • रामकली बालिका इंटर कॉलेज, जी.एन. रोड, सुलतानपुर।
  • नवयुग स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रतनपुर, बारी सहिजन, सुलतानपुर।
  • बाबा बालकदास इण्टर कॉलेज, रतनपुर, बारी सहिजन, सुलतानपुर।
  • महात्मा गांधी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सैदखानपुर-पटना चौराहा, कूरेभार, सुलतानपुर।
  • संजय गांधी पी.जी. कॉलेज, चौकिया, सुलतानपुर।
  • सुभाष इन्टरमीडिएट कॉलेज, कन्धईपुर, सुलतानपुर।
  • संकट मोचन एजुकेशनल इंस्टीट्यूट, करिया बझना, सुलतानपुर।
  • हरिबक्स सिंह चिल्ड्रेन एकेडमी, लौहर पश्चिम, सुलतानपुर।
  • ज्वाला प्रसाद सिंह महाविद्यालय, महादेव नगर, नानेमऊ, सुलतानपुर ।
  • जनता इंटर कालेज,बेलहरी, सुलतानपुर
  • हनुमंत इंटर कालेज, बिजेथुआ, सुलतानपुर
  • नेशनल इन्टर कालेज,कादीपुर, सुलतानपुर
  • रानी महेन्द्र कुमारी इन्टर कालेज, दियरा,सुलतानपुर
  • राजकीय इन्टर कालेज, सुलतानपुर
  • हनुमंत इंटर कालेज, धम्मौर, सुलतानपुर
  • श्री सुभाष इन्टरमीडिएट कॉलेज, पीलिया, सुलतानपुर
  • ज्वाला प्रसाद सिंह महिला महाविद्यालय, महादेव नगर, नानेमऊ, सुल्तानपुर
  • आचार्य चानक्य पी.जी.कालेज सेमरी
  • प0 राम केदार राम किशोर त्रिपाथी पी.जी.कालेज रवनिया
  • श्रीं सुख पाल इंटरमीडिएट कालेज तिरहुत सुल्तानपुर
  • नेताजी सुभाष सरस्वती शिशु विद्या मंदिर,चंदा , प्रतापुरकमैचा, सुल्तानपुर

प्रमुख व्यक्तित्व

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ