सुरेश वाडकर

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सुरेश वाडकर
सुरेश ईश्वर वाडकर
सोनू निगम की एल्बम 'क्लासिकली माइल्ड' के लॉञ्च पर वाडकर
सोनू निगम की एल्बम 'क्लासिकली माइल्ड' के लॉञ्च पर वाडकर
पृष्ठभूमि की जानकारी
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शैलियांफ़िल्म संगीतकार, शास्त्रीय संगीतकारी
संगीतकार
वाद्ययंत्रगायक
सक्रिय वर्ष१९७६-वर्तमान

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सुरेश वाडकर(जन्म ७ अगस्त १९५५)[१] एक भारतीय पार्श्वगायक हैं। वे मुख्यतः हिन्दी और मराठी फिल्मों में गाते हैं। इसके अलावा, उन्होंने, कई भोजपुरी, कोंकणी और ओड़िया गाने भी गाए हैं। उनका जन्म वर्ष १९५५ में कोल्हापुर में हुआ था। फिल्मों में गाने के अलावा वे शास्त्रीय संगीत में भी रुचि रखते हैं। वर्ष २०११ में उन्हें श्रेष्ठ पार्श्वगायक की श्रेणी में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया था।

जीवनी

प्रारम्भिक जीवन

सुरेश वाडकर का जन्म 7 अगस्त, 1955 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ। उन्हें बचपन से ही गायकी का शौक था। 10 साल की आयु से ही उन्होंने अपने गुरु पंडित जियालाल वसंत से विधिवत संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया था।

संगीतकारी

सुरेश ने 20 वर्ष की उम्र में एक संगीत प्रतियोगिता 'सुर श्रृंगार' में भाग लिया, जहां संगीतकार जयदेव और रवींद्र जैन बतौर निर्णायक मौजूद थे। सुरेश की आवाज से दोनों निर्णायक प्रभावित हुए, और उन्होंने उन्हें फिल्मों में पार्श्वगायन के लिए भरोसा दिलाया।

गायिका वहीदा रहमान(मध्य) और संजीवनी के साथ सुरेश वाडेकर, एक कॉन्सर्ट में

रवींद्र जैन ने राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म पहेली में उनसे पहला फिल्मी गीत 'वृष्टि पड़े टापुर टुपुर' गवाया था। इसके बाद जयदेव ने उन्हें फिल्म गमन में 'सीने में जलन' गीत गाने का मौका दिया, जिससे उन्हें लोकप्रियता प्राप्त होने लगी। इसके बाद उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए 1981 की फिल्म क्रोधी में 'चल चमेली बाग में', और प्यासा सावन में 'मेघा रे मेघा रे' नामक गीत लता मंगेशकर के साथ गाया।[२]

1982 की फ़िल्म प्रेम रोग में उन्होंने 'मेरी किस्मत में तू नहीं शायद' और 'मैं हूं प्रेम रोगी' गीत गाए। इस फिल्म में ऋषि कपूर के साथ उनकी आवाज इतनी जमी कि उन्हें ऋषि कपूर की फिल्मों के गीतों के लिए चुना जाने लगा। अगले कुछ वर्षों में सुरेश ने कई बड़े संगीत निर्देशकों के लिए गीत गाए। इनमें 'हाथों की चंद लकीरों का' (कल्याणजी आनंदजी), 'हुजूर इस कदर भी न' (आर. डी. बर्मन), 'गोरों की न कालों की' (बप्पी लाहिड़ी), 'ऐ जिंदगी गले लगा ले' (इल्लायाराजा) और 'लगी आज सावन की' (शिव-हरि) जैसे कई गीत शामिल हैं।

उन्होंने आर. डी. बर्मन और गुलजार के साथ मिलकर कुछ गैर फिल्मी गीतों के कई अलबम भी बनाए, लेकिन वे व्यावसायिक दृष्टि कामयाब नहीं हो पाई। उन्होंने लंबे अंतराल के बाद अपनी फिल्म 'माचिस' में उनसे 'छोड़ आए हम' और 'चप्पा चप्पा चरखा चले' जैसे गीत गाये। 2000 के दशक में सुरेश ने प्रमुखतः विशाल भारद्वाज के साथ काम किया, जिनमें फिल्म 'सत्या', 'ओमकारा', 'कमीने' और 'हैदर' के कुछ गीत प्रमुख हैं।

सुरेश ने हिंदी और मराठी के अलावा कुछ गीत भोजपुरी और कोंकणी भाषा में भी गाए हैं। उन्होंने वर्ष 1998 में 'शिव गुणगान', 2014 में 'मंत्र संग्रह', 2016 में 'तुलसी के राम' नामक भक्ति एल्बम भी बनाए।

निजी जीवन और परिवार

सुरेश वाडकर का विवाह वर्ष १९८८ में पद्मा के साथ हुई थी, जो स्वयं एक प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक हैं [३] उनकी दो बेटियाँ हैं, जिया और अनन्य। [४][५] उनकी पत्नी, पद्मा मूलतः केरल से हैं, और व्यावसायिक तौरपर संगीत सिखाती हैं। उन्होंने भी कुछ गाने गाए हैं।[६]

नामांकरण तथा पुरस्कार

2007 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र प्राइड अवार्ड से सम्मानित किया। वर्ष 2011 में उन्हें को मराठी फिल्म 'ई एम सिंधुताई सपकल' के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।इसके बाद मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भी उन्हें प्रतिष्ठित लता मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[७][८] [९][१०] मराठी फिल्म मी सिंधुताई सपकाळ के गाने:"हे भास्करा क्षितिजवारी या" के लिए २०११ में उन्हें श्रेष्ठ पार्श्वगायक की श्रेणी में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया था।[११]

सन्दर्भ

  1. http://timesofindia.indiatimes.com/entertainment/events/mumbai/Suresh-Wadkar-celebrates-60th-birthday-with-family-and-music-fraternity-in-Mumbai/articleshow/48402732.cmss
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  11. साँचा:cite web

बाहरी कड़ियाँ