सारस तारामंडल
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सारस या ग्रस (अंग्रेज़ी: Grus) तारामंडल खगोलीय गोले के दक्षिणी भाग में दिखने वाला एक तारामंडल है। इसकी परिभाषा सन् १६०३ में जर्मन खगोलशास्त्री योहन बायर ने की थी, जिन्होनें तारों को नाम देने की बायर नामांकन प्रणाली भी इजाद की थी। इसमें कुछ मुख्य तारों को लकीरों से जोड़कर एक काल्पनिक सारस की आकृति बनाई जा सकती है, जिसके पीछे इस तारामंडल का नाम रखा गया ("ग्रस" या "ग्रुस") लातिनी भाषा में "सारस" के लिए शब्द है।[१]
तारे
सारस तारामंडल में ७ मुख्य तारे हैं, हालांकि वैसे इसमें २८ तारों को बायर नाम दिए जा चुके हैं। इनमें से ४ के इर्द-गिर्द ग़ैर-सौरीय ग्रह परिक्रमा करते हुए पाए गए हैं। इस तारामंडल के मुख्य तारे और अन्य वास्तुएँ इस प्रकार हैं -
- अल्फ़ा ग्रुईस (α Gruis) - यह B श्रेणी का उपदानव तारा पृथ्वी से आकाश में दिखने वाला ३२वाँ सब से रोशन तारा है और सारस तारामंडल का सब से रोशन तारा है।[१]
- गामा ग्रुईस (γ Gruis) - यह भी एक द्वितारा है जिसके दोनों तारे बिना दूरबीन के पृथ्वी से देखे जा सकते हैं।
- मू ग्रुईस (μ Gruis) - यह भी एक द्वितारा है जिसके दोनों तारे बिना दूरबीन के पृथ्वी से देखे जा सकते हैं।
- सारस चतुष्क (Grus Quartet) - यह चार सर्पिल (स्पाइरल) आकाशगंगाओं का एक गुट है जो एक-दूसरे से गुरुत्वाकर्षण के बंधन से बंधी हुई हैं।[२]