सरगुजा जिला

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
सरगुजा ज़िला

ᱥᱟᱨᱜᱩᱡᱟ ᱴᱚᱴᱷᱟ
Surguja district

मानचित्र जिसमें सरगुजा ज़िला ᱥᱟᱨᱜᱩᱡᱟ ᱴᱚᱴᱷᱟ Surguja district हाइलाइटेड है
सूचना
राजधानी : अम्बिकापुर
क्षेत्रफल : 5,732 किमी²
जनसंख्या(2011):
 • घनत्व :
23,61,329
 410/किमी²
उपविभागों के नाम: तहसील
उपविभागों की संख्या: 19
मुख्य भाषा(एँ): हिन्दी, छत्तीसगढ़ी


अम्बिकापुर रेलवे स्टेशन

सरगुजा भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ का एक जिला है। जिले का मुख्यालय अम्बिकापुर है। भारत देश के छत्तीसगढ राज्य के उत्तर-पूर्व भाग में आदिवासी बहुल जिला सरगुजा स्थित है। इस जिले के उत्तर में उत्तरप्रदेश राज्य की सीमा है, जबकी पूर्व में झारखंड राज्य है। जिले के दक्षिणी क्षेत्र में छत्तीसगढ का रायगढ, कोरबा एवं जशपुर जिला है, जबकी इसके पश्चिम में कोरिया जिला है।[१][२] सरगुजा जिला होने के साथ-साथ, एक मण्डल मुख्यालय भी है जिसके कारण इसके मुख्यालय अम्बिकापुर में डिवीज़नल कमिश्नर का कार्यालय भी स्थित है। अप्रैल 2008 में, छत्तीसगढ़ की तत्कालीन राज्य सरकार ने राजस्व प्रभाग प्रणाली में बदलाव करते हुए इसमें 4 राजस्व प्रभागों - सर्गुजा, बिलासपुर, रायपुर और बस्तर का गठन किया। राज्य सरकार ने 2013 में एक नए राजस्व प्रभाग दुर्ग का गठन किया। फिलहाल सरगुजा मण्डल में सर्गुजा, कोरिया, बलरामपुर, सूरजपुर और जशपुर नाम के 5 जिले शामिल हैं।

ऐतिहासिक रूप से सर्गुजा जिले का गठन 1951 में चांग भाखर, कोरिया और सर्गुजा नामक तीन सामंती राज्यों को मिलाकर किया गया था। चूंकि तत्कालीन सामंती राज्य-सर्गुजा तीनों सामंती राज्यों में सबसे बड़ा था, इसलिए नए गठित जिले का नाम सर्गुजा दिया गया। सर्गुजा जिला कई पहाड़ियों और पठार वाला क्षेत्र है जो इस जिले को एक विहंगम दृश्य प्रदान करते हैं। इस जिले की दो प्रमुख भौगोलिक विशेषताएँ मैनपाट (पठार) और जमीरपट हैं।

छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में स्थित सरगुजा जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य में पहला स्थान रखता है। सरगुजा जिले का कुल क्षेत्रफल 15,731.75 वर्ग कि.मी. है जो छत्तीसगढ़ राज्य के कुल क्षेत्रफल का 11.6% है। सरगुजा जिले का मुख्यालय अम्बिकापुर है जो इस जिले का सबसे बड़ा शहर या कस्बा भी है। अम्बिकापुर की कुल आबादी 4,31,834 है ( 2011 की जनगणना की अनुसार)। जबकि गोविंदपुर इस जिले का सबसे छोटा कस्बा है जिसकी आबादी 4392 व्यक्तियों की है (2011)।

जनगणना 2011 के अनुसार सरगुजा जिले की कुल साक्षरता दर 60 प्रतिशत है। इसमें पुरुष साक्षरता दर में पिछले एक दशक में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और महिला साक्षरता दर में पिछले दशक के दौरान 8.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

स्थिति

इस जिले का अक्षांशिय विस्तार 230 37' 25" से 240 6' 17" उत्तरी अक्षांश और देशांतरिय विस्तार 810 37' 25" से 840 4' 40" पूर्व देशांतर तक है। यह जिला भौतिक संरचना के रूप से विंध्याचल-बघेलखंड और छोटा नागपुर का अभिन्न अंग है। इस जिले की समुद्र सतह से उंचाई लगभग 609 मीटर है।

Sthapna == इस जिले की स्थापना 1 जनवरी 1948 को हुआ था जो 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश राज्य के निर्माण के तहत मध्यप्रदेश में शामिल कर दिया गया। उसके बाद 25 मई 1998 को इस जिले का प्रथम प्रशासनिक विभाजन करके कोरिया जिला बनाया गया। जिसके बाद वर्तमान सरगुजा जिला का क्षेत्रफल 16359 वर्ग किलोमीटर है। 1 नवम्बर 2000 जब छत्तीसगढ राज्य मध्यप्रदेश से अलग हुआ तब सरगुजा जिले को छत्तीसगढ राज्य में शामिल कर दिया गया। वर्तमान में सरगुजा जिला पुनः दो और भागो में विभक्त हो गया है जिसमे नये जिले के रूप में जिला सुरजपुर और जिला बलरामपुर का निर्माण हुआ है।

नामकरण

सरगुजा के इतिहास से हमे यह पता चलता है कि सरगुजा कईं नामों से जाना जाता रहा है। एक ओर जहां रामायण युग में इसे दंडकारण्य कहते थे, वहीं दूसरी ओर दसवीं शताब्दी में इसे डांडोर के नाम से जाना जाता था। यह कहना कठिन है कि इस अंचल का नाम सरगुजा कब और क्यों पडा? वास्तव में सरगुजा किसी एक स्थान विशेष का नाम नहीं है, बल्कि जिले के समूचे भू-भाग को ही सरगुजा कहा जाता है।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार पूर्व काल में सरगुजा को नीचे दिये गये नाम से जाना जाता था:

  • सुरगुजा - सुर + गजा - अर्थात देवताओं एवं हाथियों वाली धरती।
  • स्वर्गजा - स्वर्ग + जा - स्वर्ग के समान भू-प्रदेश
  • सुरगुंजा - सुर + गुंजा - आदिवासियों के लोकगीतों का मधुर गुंजन।

वर्तमान में इस जिले को सरगुजा नाम से ही जाना जाता है। जिसका अंग्रेजी भाषा में उच्चारण आज भी SURGUJA ही हो रहा है।

जलवायु

जलवायु वह भौगोलिक अवस्था है जो समस्त स्थानिय दशाओं को प्रभावित करती है। सरगुजा जिला भारत के मध्य भाग में स्थित है जिसके कारण यहां कि जलवायु उष्ण-मानसुनी है। सरगुजा जिले में जलवायु मुख्यत: तीन ऋतु अवस्थाओं का होता है जो निम्नांकित है।

ग्रीष्म ऋतु

यह ऋतु मार्च से जुन माह तक होती है चुंकि कर्क रेखा जिला के मध्य में प्रतापपुर से होकर गुजरती है इस लिये गर्मीयों में सुर्य की किरणें यहां सीधे पड्ती है इस लिये यहां का तापमान गर्मीयों में उच्च रहता है। इस ऋतु में जिले के पठारी इलाकों में गर्मीयां शीतल एवम सुहावनी होती है। इस दौरान सरगुजा जिले के मैनपाट जिसे छ्त्तीशगढ के शिमला के नाम से भी जाना जाता है, का तापमान अपेक्षाकृत कम होता है जिससे वहां का मौसम भी सुहावना होता है

वर्षाऋतु

यह ऋतु जुलाई से अक्टुबर तक होती है जिले में जुलाई व अगस्त में सर्वाधिक वर्षा होती है। जिले के दक्षीणी क्षेत्र में वर्षा सर्वाधिक होती है। यहां की वर्षा मानसुनी प्रवृति की होती है

शीतऋतु

इस ऋतु की शुरुवात नवम्बर में होती है और फरवरी माह तक रहती है जनवरी यहां का सबसे ठंड का महिना होता है जिले के पहाडी इलाकों जैसे मैनपाट, सामरीपाट में तापमान 5 0 से कम चला जता है। कभी कभी इन इलाकों में पाला भी पड़ता है।

जिला प्रशासन

सरगुजा जिले में सबसे बड़ा प्रशासनिक अधिकारी जिलाधिकारी होता है। इस पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी होते हैं। सरगुजा जिले में कलेक्टर या जिलाधिकारी राज्य सरकार और लोगों के बीच की कड़ी के रूप में कार्य करता है। कलेक्टर जिले की सभी महत्वपूर्ण समितियों से भी जुड़ा होता है। उदाहरण के लिए जिला सलाहकार समिति की अध्यक्षता भी जिलाधिकारी के द्वारा होती है। जिले में कलेक्ट्रेट के संगठनात्मक गठन या सेट-अप को मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है, (i) भू-राजस्व, भूमि-अभिलेख सहित भूमि और अन्य संबद्ध मामले। (ii) कानून और व्यवस्था एवं (iii) विकास।

जिले का पुलिस अधीक्षक पुलिस विभाग का प्रमुख होता है और हमेशा भारतीय पुलिस सेवा का सदस्य होता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा की ही तरह भारतीय पुलिस सेवा भी एक अखिल भारतीय सेवा है।

सरगुजा जिले में:

  • 19 तहसील हैं
  • 7 ब्लाक
  • 296 पटवारी हलका
  • 977 ग्राम पंचायत
  • 1772 राजस्व ग्राम
  • 27 पुलिस रिजर्व सेंटर
  • 27 राजस्व सर्कल
  • 3 पुलिस जिला
  • 7 विकासखण्ड
  • 8 विधानसभा क्षेत्र
  • 2 अभयारण्य

दर्शनीय स्थल

यहां अनेक जल प्रपात हैं:-

चेन्द्रा ग्राम

अम्बिकापुर- रायगढ राजमार्ग़ पर 15 किमी की दूरी पर चेन्द्रा ग्राम स्थित है। इस ग्राम से उत्तर दिशा में तीन कि॰मी॰ की दूरी पर यह जल प्रपात स्थित हैं। इस जलप्रपात के पास ही वन विभाग का एक नर्सरी हैं, जहां विभिन्न प्रकार के पेड-पौधों को रोपित किया गया है। इस जल प्रपात में वर्ष भर पर्यटक प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लेने आते हैं। यहां पर एक तितली पार्क भी विकसित किया जा रहा है।

रकसगण्डा जल प्रपात

ओडगी विकासखंड (सूरजपुर जिला) में बिहारपुर के निकट एवम् बलरामपुर जिला में( वाद्रफनगर विकासखंड) के बलंगी नामक स्थान के समीप स्थित रेहंद (रेणुका नदी) नदी पर्वत श्रृखला की उंचाई से गिरकर रकसगण्डा जल प्रपात का निर्माण करती है जिससे वहां एक संकरे कुंड का निर्माण होता हैं यह कुंड अत्यंत गहरा है एवम् अत्यंत दुर्लभ है यह जलप्रपात बलरामपुर एवम् सूरजपुर जिले को अलग करती है।

भेडिया पत्थर जल प्रपात

कुसमी चान्दो मार्ग पर तीस किमी की दूरी पर ईदरी ग्राम है। ईदरी ग्राम से तीन किमी जंगल के बीच भेडिया पत्थर नामक जलप्रपात है।

बेनगंगा जल प्रपात

कुसमी-सामरी मार्ग पर सामरीपाट के जमीरा ग्राम के पूर्व-दक्षिण कोण पर पर्वतीय शृंखला के बीच बेनगंगा नदी का उदगम स्थान है। यहाँ साल वृक्षो के समूह में एक शिवलिंग भी स्थापित है।

सेदम जल प्रपात

अम्बिकापुर- रायगढ़ मार्ग पर अम्बिकापुर से लगभग 37 कि.मी की दूरी पर सेदम नाम का गांव है। इसके दक्षिण दिशा में लगभग 2 कि॰मी॰ की दूरी पर पहाड़ियों के बीच एक सुन्दर झरना प्रवाहित होता है। यह जलप्रपात दलधोवा जलप्रपात के नाम से प्रसिद्ध है।

मैनपाट

मैनपाट अम्बिकापुर से 40 किलोमीटर दूरी पर अवस्थित है। इसे छत्तीसगढ का शिमला कहा जाता है। मैंनपाट विन्ध पर्वत माला पर स्थित है जिसकी समुद्र सतह से ऊंचाई 3781 फीट है। इसकी लम्बाई 28 किलोमीटर और चौड़ाई 10 से 13 किलोमीटर है।

काराबेल

काराबेल अम्बिकापुर से महज 51 कि.मी. की दूरी पर है। सामान्यतः काराबेल को मैनपाट का रायगढ़ रोड पर दाहिने ओर मुख्यद्वार के रूप में जाना जाता है। मैनपाट की ओर अम्बिकापुर से दरिमा-नावानगर रोड से होकर कमलेश्वरपुर (मैनपाट)भी निकटतम दूरी से जाया जा सकता है। यहां से मैनपाट 45 कि.मी. की दुरी पर है।

ठिनठिनी पत्थर

अम्बिकापुर नगर से 12 किलोमीटर की दूरी पर दरिमा हवाई अड्डा है। दरिमा हवाई अड्डा के पास बड़े - बड़े पत्थरों का समूह है। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि सरगुजा में पत्थर को पखना कहा जाता है। इन पत्थरों को किसी ठोस चीज से ठोकने पर ठिन-ठिन की आवाजें आती हैं; इसलिए इन पत्थरों को यहां के जनमानस ने ठिनठिनी पखना नाम दिया है।

कैलाश गुफा

अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किलोमीटर पर स्थित सामरबार नामक स्थान है, जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है।

तातापानी

अम्बिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर अम्बिकापुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर राजमार्ग से दो फलांग पश्चिम दिशा में एक गर्म जल स्रोत है। इस स्थान से आठ से दस गर्म जल के कुण्ड है।क्योंकि सरगुजा में गर्म वस्तु को ताता कहा है, इसलिए गर्म जल (पानी) के कारण इस स्थान का नाम तातापानी पड़ा है।

सारासौर

अम्बिकापुर - बनारस रोड पर 40 किलोमीटर पर भैंसामुडा स्थान हैं। भैंसामुडा से भैयाथान रोड पर 15 किलोमीटर की दूरी पर महान नदी के तट पर सारासौर नामक स्थान हैं।

बांक जल कुंड

अम्बिकापुर से भैयाथान से अस्सी कि.मी की दूरी पर ओडगी विकासखंड है, यहां से 15 किलोमीटर की दुरी पर पहाडियों की तलहटी में बांक ग्राम बसा है। इसी ग्राम के पास रिहन्द नदी वन विभाग के विश्राम गृह के पास अर्द्ध चन्द्राकार बहती हुई एक विशाल जल कुंड का निर्माण करती है। इसे ही बांक जल कुंड कहा जाता है। यह जल कुंड अत्यंत गहरा है, जिसमें मछलियां पाई जाती है। यहां वर्ष भर पर्यटक मछलियों का शिकार करने एवं घुमनें आते हैं।

पुरातात्विक स्थल

रामगढ़

साँचा:main सरगुजा जिला के मुख्यालय अंबिकापुर के दक्षिण में लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर रामगिरी या रामगढ़ नाम का प्रसिद्ध पुरातात्विक अवशेष स्थित है। यह सरगुजा के एतिहासिक स्थलो में सबसे प्राचीन है। यह अम्बिकापुर- बिलासपुर मार्ग में स्थित है। इसे रामगिरि भी कहा जाता है। रामगढ़ मैं कई प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलते हैं। यहां पर सीता बेंगरा एंव विश्व का सबसे प्राचीनतम नाट्य शाला हैं। वनवास के समय श्री राम जी भी अपने भाई और पत्नी के साथ यहां कुछ समय बिताये थे, जिनके निशान आज भी यहां देखने को मिलते हैं। भारतीय साहित्य की अनुपम कृति कालीदास द्वारा रचित “मेघदूतम” की रचना भी इसी स्थान पर हुई है। इसका उल्लेख स्वयं महाकवि कालिदास ने मेघदूतम में किया है।

लक्ष्मणगढ

अम्बिकापुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्मणगढ स्थित है। यह स्थान अम्बिकापुर - बिलासपुर मार्ग पर महेशपुर से 03 किलोमीटर की दूरी पर है।

कंदरी प्राचीन मंदिर

अम्बिकापुर- कुसमी- सामरी मार्ग पर 140 किलोमीटर की दूरी पर कंदरी ग्राम स्थित है। यहां पुरातात्विक महत्व का एक विशाल प्राचीन मंदिर है। अनेक पर्वो पर यहां मेले का आयोजन होता रहता है।

अर्जुनगढ

अर्जुंनगढ स्थान शंकरगढ विकासखंड के जोकापाट के बीहड जंगल में स्थित है। यहां प्राचीन कीले का भग्नावेष दिखाई पड्ता है। एक स्थान पर प्राचीन लंबी ईंटो का घेराव है।

सीता लेखनी

सुरजपुर तहसील के ग्राम महुली के पास एक पहाडी पर शैल चित्रों के साथ ही साथ अस्पष्ट शंख लिपि की भी जानकारी मिली है। ग्रामीण जनता इस प्राचीनतम लिपि को "सीता लेखनी" कहती है।

डिपाडीह

डिपाडीह कनहर, सूर्या तथा गलफुला नदियों के संगम के किनारे बसा हुआ है। यह चारों ओर पहाडियों से घिरा मनोरम स्थान है। यहां चार पांच किलोमीटर के क्षेत्रफल में कई मन्दिरों के टिले है।

महेशपुर

महेश्पुर, उदयपुर से उत्तरी दिशा में 08 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उदयपुर से केदमा मार्ग पर जाना पड्ता है। इसके दर्शनीय स्थल प्राचीन शिव मंदिर (दसवीं शताब्दी), छेरिका देउर के विष्णु मंदिर (10वीं शताब्दी), तीर्थकर वृषभ नाथ प्रतीमा (8वीं शताब्दी), सिंहासन पर विराजमन तपस्वी, भगवान विष्णु-लक्ष्मी मूर्ति, नरसिंह अवतार, हिरण्यकश्यप को चीरना, मुंड टीला (प्रहलाद को गोद में लिए), स्कंधमाता, गंगा-जमुना की मूर्तिया, दर्पण देखती नायिका और 18 वाक्यो का शिलालेख हैं।

सतमहला

अम्बिकापुर के दक्षिण में लखनपुर से लगभग दस कि॰मी॰ की दूरी पर कलचा ग्राम स्थित है, यहीं पर सतमहला नामक स्थान है। यहां सात स्थानों पर भग्नावशेष है।

धार्मिक स्थल

महामाया मन्दिर

सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर के पूर्वी पहाडी पर प्राचिन महामाया देवी का मंदिर स्थित है। इन्ही महामाया या अम्बिका देवी के नाम पर जिला मुख्यालय का नामकरण अम्बिकापुर हुआ। एक मान्यता के अनुसार अम्बिकापुर स्थित महामाया मन्दिर में महामाया देवी का धड स्थित है। महामया मन्दिर स‍गुजा का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है।

तकिया, सरगुजा

अम्बिकापुर नगर के उतर-पूर्व छोर पर तकिया ग्राम स्थित है इसी ग्राम में बाबा मुराद शाह, बाबा मुहम्मद शाह और उन्ही के पैर की ओर एक छोटी मजार उनके तोते की है। हर वर्ष मई-जून महीने में यहां उर्स का आयोजन होता है, जिसमे देश भर के जानेमाने कव्वाल बुलाये जाते हैं। यहां पर सभी धर्म के एवं सम्प्रदाय के लोग एक जुट होते हैं मजार पर चादर चढाते हैं।

कुदरगढ

कुदरगढ सरगुजा जिले के भैयाथान के निकट एक पहाडी के शिखर पर स्थित है। यहां पर भगवती देवी का एक प्रसिद्ध मंदिर है, इस मंदिर के निकट तालाबों और एक किले का खंडहर है

पारदेश्वर शिव मंदिर, सरगुजा

पारदेश्वर शिव मंदिर प्रतापपुर विकास खण्ड् से डेढ किलोमीटर दक्षिण की ओर बनखेता में मिशन स्कूल के निकट नदी किनारे स्थापित है। इस शिव मंदिर में लगभग 21 किलो शुद्ध पारे की एक मात्र अनोखी "पारद शिवलिंग" स्थापित है।

शिवपुर, सरगुजा

अम्बिकापुर से प्रतापपुर की दूरी 45 किलोमीटर है। प्रतापपुर से 04 किलोमीटर दूरी पर शिवपुर ग्राम के पास एक पहाडी की तलहटी में अत्यंत मनोरम प्राकृतिक वातावरण में एक प्राचीन शिव मंदिर है।

बिलद्वार गुफा, सरगुजा

यह गुफा शिवपुर के निकट अम्बिकापुर से 30 min की दूरी पर है। इसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां हैं। इसमें महान नामक एक नदी का पानी निकलता रहता है, वहीं इस नदी का उद्गम भी है। इस गुफा का दूसरा छोर महामाया मंदिर के निकट निकलता है।

देवगढ, सरगुजा

अम्बिकापुर से लखंनपुर 28 किलोमीटर की दूरी पर है एवं लखंनपुर से 10 किलोमीटर की दूरी पर देवगढ स्थित है। देवगढ प्राचीन काल में ऋषि यमदग्नि की साधना स्थलि रही है।

अभयारण्य

सेमरसोत अभयारण्य

1978 में स्थापित सेमरसोत अभयारण्य सरगुजा जिलें के पूर्वी वनमंडल में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 430.361 वर्ग कि. मी. है। जिला मुख्यालय अम्बिकापुर से 58 कि॰मी॰ की दूरी पर यह बलरामपुर, राजपुर, प्रतापपुर विकास खंडों में विस्तृत है। अभयारण्य में सेंदुर, सेमरसोत, चेतना, तथा सासू नदियों का जल प्रवाहित होता है। अभयारण्य के अधिकांश क्षेत्र में सेमर सोत नदी बहती है इस लिए इसका नाम सेमरसोत पडा। इसका विस्तार पूर्व से पश्चिम 115 कि॰मी॰ और उत्तर से दक्षिण में 20 कि॰मी॰ है। यहां पर शेर, तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वार्किगडियर, चौसिंहा, चिंकरा, कोटरी जंगली कुत्ता, जंगली सुअर, भालू, मोर, बंदर, भेडियां आदि पाये जाते हैं।

तमोर पिंगला अभयारण्य

1978 में स्थापित अम्बिकापुर-वाराणसी राजमार्ग के 72 कि. मी. पर तमोर पिंगला अभयारण्य है जहां पर डांडकरवां बस स्टाप है। 22 कि॰मी॰ पश्चिम में रमकोला अभयारण्य परिक्षेत्र का मुख्यालय है। यह अभ्यारंय 608.52 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्रफल पर बनाया गया है जो वाड्रफनगर क्षेत्र उत्तरी सरगुजा वनमंडल में स्थित है। इसकी स्थापना 1978 में की गई। इसमें मुख्यत: शेर तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वर्किडियर, चिंकारा, गौर, जंगली सुअर, भालू, सोनकुत्ता, बंदर, खरगोश, गिंलहरी, सियार, नेवला, लोमडी, तीतर, बटेर, चमगादड, आदि मिलते हैं।

प्रसिद्ध व्यक्ति

स्व0 राजमोहनी देवी (समाज सुधारक)

इनका जन्म सरगुजा जिलें के प्रतापपुर विकासखण्ड के शारदापुर ग्राम में सन 1914 को हुआ था। इनका जीवन संघर्षमय था। इनका वास्तविक नाम रजमन बाई था। महात्मा गांधी से प्रेरित होकर इन्होनें सरगुजा जिलें एवं दुसरे राज्यों जैसे बिहार तथा उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती ग्रामों में समाज सुधार के लिये अपना संदेश लोगो तक पहुंचाया। उनका संदेश था- " जीव हिंसा मत करों, शराब पीना छोड दो, मांस भक्षण मत करों, सन्मार्ग पर चलों, इसी में जीवन का सार है।" इन्हें सन 1986 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय समाज सेवा पुरुस्कार तथा 1989 में राष्ट्रपति द्वारा "पद्म श्री" पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था। 6 जनवरी 1994 को राजमोहनी देवी ने दुनिया को अलविदा कहा।

श्रीमती सोनाबाई रजवार (सिद्धहस्थ शिल्पी)

सरगुजा जिलें के मुख्यालय अम्बिकापुर से लगभग 28 किमी की दुरी पर अम्बिकापुर-बिलासपुर मार्ग पर लखनपुर स्थित है। इसके पास ग्राम पुहपुटरा में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सिद्धहस्थ शिल्पी श्रीमती सोनाबाई रजवार का निवास है। मिट्टी शिल्प के लिये इन्हें राष्ट्रपति पुरुस्कार, म0 प्र0 शासन का तुलसी सम्मान एवं शिल्प गुरु अवार्ड से सम्मानित किया गया है। इनके द्वारा बनाई गई मिट्टी की अनेक कलाकृतियों का प्रदर्शन देश एवं विदेशों में आयोजित कई प्रदर्शनियों में किया जा चुका है।

श्री राम कुमार वर्मा जी (सुप्रसिद्ध साहित्यकार व्यंग्यकार और हास्य कवि)

सरगुजा (surguja) जिले के अंबिकापुर (Ambikapur) नामक शहर के निवासी साहित्य रत्न श्री राम कुमार वर्मा जी ने 19 अप्रैल 1998 को सर्वोत्तम रचना के तहत दूरदर्शन भोपाल द्वारा प्रथम पुरस्कार स्वरूप गोल्ड मेडल व प्रमाण पत्र, महामहिम राष्ट्रपति महोदय श्री के आर नारायणन जी, महामहिम राष्ट्रपति महोदय डाक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम जी, माननीय प्रधानमंत्री महोदय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी, माननीय प्रधानमंत्री महोदय श्री मनमोहन सिंह जी सहित भारत वर्ष के चारो दिशाओं के महामहिम राज्यपाल महोदय और मुख्यमंत्रीजी से लिखित में शुभकामना और प्रशंसा पत्र प्राप्त कर जिले का मान बढ़ाया है। आपने सरगुजा के साहित्य को विश्व पटल पर अंकित करने में महत्त्वपुर्ण योगदान दिया है। आपको देश विदेश की नामी और प्रतिष्ठित संस्थाओ ने सम्मानित करते हुए विभिन्न अलंकरण और सम्मानोपाधि से सम्मानित किया है।

श्री श्रवण शर्मा (चित्रकार)

सरगुजा जिलें के मुख्यालय अम्बिकापुर के निवासी चित्रकार श्री श्रवण शर्मा ने अपनी मनमोहक चित्रकारी से इस जिलें को गौरवांवित किया हैं। इनके द्वारा सरगुजा जिलें के प्राकृतिक सौन्दर्य, ग्रामीणों का जीवन इत्यादि विषयों पर कई चित्र बनाया गया है। अब तक इनके द्वारा हजारों पेंटिग्स एवं रेखाचित्रों का सृजन किया जा चुका है। "अकाल और रोटी" चित्र के लिये इन्हें भारत सरकार से सम्मानित भी किया जा चुका है।

सरगुजा जिले को गौरवांवित करने वाले और भी कई व्यक्ति हैं जिन्होनें अपनी प्रतिभा से कुछ ऐसा कार्य किया जिससे इस जिले का नाम रोशन हुआ।

कैसे पहुंचें

प्रकृति ने सरगुजा जिलें को विभिन्न प्रकार के वनों, सरोवरों, नदियों, पहाड इत्यादि से इस प्रकार परिपूर्ण किया है कि आप इस पावन धरती पर जरुर आना चाहेंगे। इसी धरती पर जहां एक ओर महाकवि कालीदास नें अपने सुप्रसिध महाकाव्य 'मेघदुत' की रचना की थी, वहीं दुसरी ओर भगवान राम, सीता माता और भाई लक्ष्मण सहित यहां वनवास के कुछ दिन काटे थे। सरगुजा जिला सडक एवं रेल मार्ग से सीधे जुडा हुआ है।

सडक मार्ग

छत्तीसगढ राज्य में :

  • रायपुर से अम्बिकापुर (जिला मुख्यालय) - 358 किमी
  • बिलासपुर से अम्बिकापुर- 230 किमी
  • रायगढ से अम्बिकापुर- 210 किमी
  • मध्यप्रदेश राज्य में: अनुपपुर से अम्बिकापुर - 205 किमी
  • उत्तरप्रदेश राज्य में: वाराणसी से अम्बिकापुर - 350 किमी
  • झारखंड राज्य में: रांची से अम्बिकापुर - 368 किमी
  • उडीसा राज्य में: झारसुगुडा से अम्बिकापुर- 415 किमी
रेल मार्ग

सरगुजा जिला मुख्यालय अम्बिकापुर 03 जून 2006 से रेल मार्ग से जुड गया है। अम्बिकापुर शहर के मुख्य मार्ग देवीगंज रोड पर स्थित गांधी चौक से रेल्वे स्टेशन की दुरी लगभग 5 किमी है। यहां से टैम्पो, टैक्सी इत्यादी से अम्बिकापुर शहर आया जा सकता है। आप निम्न ट्रेंन रुट का प्रयोग अम्बिकापुर आने के लिये कर सकते है:

  • नई दिल्ली से अनुपपुर >> अनुपपुर से अम्बिकापुर
  • मुंबई से बिलासपुर >> बिलासपुर से अम्बिकापुर
  • चेन्नई से बिलासपुर >> बिलासपुर से अम्बिकापुर
  • कोलकाता से रायगढ >> रायगढ से अम्बिकापुर

बिलासपुर से अम्बिकापुर आने के लिये बस और ट्रेंन दोनो का प्रयोग किया जा सकता है। बस अम्बिकापुर तक सीधे आती है जबकी ट्रेंन अनुपपुर (मध्यप्रदेश) होतें हुये अम्बिकापुर तक आती है। रायगढ से अम्बिकापुर आने के लिये बस की सुविधा ही उपलब्ध है।

  • वायु मार्ग:

अम्बिकापुर सीधे आने के लिये वायु मार्ग उपलब्ध नहीं है, आप रायपुर तक देश के निम्न स्थानों से वायु मार्ग से आ सकते है, उसके बाद रायपुर से अम्बिकापुर आने के लिये बस का प्रयोग करना होगा:

  • नई दिल्ली से रायपुर
  • मुंबई से रायपुर
  • चेन्नई से रायपुर
  • कोलकाता से रायपुर
  • नागपुर से रायपुर
  • रांची से रायपुर

बाहरी कड़ियाँ

ड़ा.संजय अलंग-छत्तीसगढ़ की रियासतें और जमीन्दारियाँ (वैभव प्रकाशन, रायपुर1, ISBN 81-89244-96-5) ड़ा.संजय अलंग-छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ/Tribes और जातियाँ/Castes (मानसी पब्लीकेशन, दिल्ली6, ISBN 978-81-89559-32-8)

सन्दर्भ

  1. "Inde du Nord - Madhya Pradesh et Chhattisgarh स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
  2. "Pratiyogita Darpan स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।," July 2007