व्यचेस्लाव ग्लेबोविच कुप्रियानोव

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विचिस्लाव ग्लेबाविच कुप्रियानाफ

कवि, कथाकार और साहित्यिक अनुवादक विचिस्लाव कुप्रियानफ़ का जन्म १९३९ में नवासिबीर्स्क नगर में हुआ। १९५८ से १९६० तक वे लेनिनग्राद के उच्च नौसेना कॉलेज में हथियार इंजीनियरिंग की शिक्षा लेते रहे। फिर १९६७ में उन्होंने मास्को विदेशी भाषा संस्थान के अनुवाद संकाय से एम.ए. किया। लंबे समय तक वे खुदोझेस्तविन्नया लितरातूरा' (ललित साहित्य) प्रकाशन गृह के लिए अनुवाद और संपादन का कार्य करते रहे। फिर सोवियत लेखक संघ में कार्यरत रहे। इसके अलावा राष्ट्रीय किशोर पुस्तकालय द्वारा आयोजित 'लाल परचम' साहित्य-सभा के संयोजक रहे।


विचिस्लाव कुप्रियानफ ने छात्र जीवन से ही अनुवाद करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले उन्होंने रेनर मारिया रिल्के की कविताओं का मूल जर्मन से रूसी भाषा में अनुवाद किया। इसके अलावा सीधे जर्मन, अंग्रेज़ी, फ्रांसिसी और स्पानी भाषाओं से 'ललित साहित्य' प्रकाशन गृह के लिए उन्होंने दर्जनों कवियों की ढेरों पुस्तकों के अनुवाद किए। अरमेनियाई, लातवियाई, लिथुआनियाई तथा एस्तानियाई लेखकों की रचनाओं का भी रूसी में अनुवाद किया।


१९६१ में विचिस्लाव कुप्रियानफ़ की कविताएँ पहली बार प्रकाशित हुईं। १९७० से वे गद्य भी लिखने लगे। १९८१ में उनका पहला कविता-संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक था- 'सीधे-सीधे'। आलोचकों ने बड़े जोश-खरोश से इस किताब का स्वागत किया। जल्दी ही सभी यूरोपीय भाषाओं में इनकी कविताओं के अनुवाद छपने लगे। हिंदी की पत्रिकाओं में सबसे पहले १९८४-८५ में अनिल जनविजय ने और फिर १९९० के आसपास वरयाम सिंह ने कुप्रियानफ़ की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित कराएँ। श्रीलंका में इनकी कविताओं की एक पुस्तक तमिल भाषा में प्रकाशित हो चुकी है। अब तक तीस से ज़्यादा भाषाओं में विचिस्लाव कुप्रियानफ़ की कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। कुप्रियानफ़ को रूसी आलोचक रूस में छंद रहित नई कविता का प्रवर्तक मानते हैं।


अनेक अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेलों में बेहद चर्चित रहने वाले कुप्रियानफ़ के अन्य कविता-संग्रह हैं- २००२ में प्रकाशित 'दाइचे दागवारित्च' (पूरी बात को कहने दीजिए) और २००३ में प्रकाशित 'लूचशिए व्रेमिना' (बेहतर समय)। विचिस्लाव कुप्रियानफ़ रूस में कविता-महोत्सवों के आयोजक के रूप में भी जाने जाते हैं।

बाहरी कड़ियाँ ्

कविता कोश में विचिस्लाव कुप्रियानफ की कविता