फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की

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फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की
Vasily Perov - Портрет Ф.М.Достоевского - Google Art Project.jpg
वसिली पेरोव द्वारा निर्मित दोस्तोयेव्स्की का चित्र, 1872
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मृत्युसाँचा:br separated entries
मृत्यु स्थान/समाधिसाँचा:br separated entries
राष्ट्रीयतारूसी
शिक्षामिलिट्री इंजीनियरिंग टेक्निकल विश्वविद्यालय, सेंट पीटर्सबर्ग
अवधि/काल१८४६–१८८१
विधाउपन्यास, लघुकथा, पत्रकारिता
विषयमानस शास्त्र, दर्शनशास्त्र ,रिलिजन
साहित्यिक आन्दोलनयथार्थवाद
उल्लेखनीय कार्यsअपराध और दंड
बौड़म
करामाज़ोव ब्रदर्स
जीवनसाथीसाँचा:plainlist
सन्तानसोन्या (1868)
ल्यूबोव (1869–1926)
फ्योदोर (1871–1922)
अलेक्सी (1875–1878)

हस्ताक्षर

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फ़्योदर दस्ताएवस्की ( रूसी: Фёдор Миха́йлович Достое́вский 30 अक्तूबर [11 नवम्बर] 1821, मसक्वा [मास्को], रूसी साम्राज्य — 28 जनवरी [9 फ़रवरी] 1881, सांक्त पितेरबूर्ग [सेण्ट पीटर्सबर्ग], रूसी साम्राज्य) — रूसी भाषा के एक महान् साहित्यकार,विचारक, दार्शनिक और निबन्धकार थे, जिन्होंने अनेक उपन्यास और कहानियाँ लिखीं पर जिन्हें अपने जीवनकाल में लेखक के रूप में कोई महत्व नहीं दिया गया। मृत्यु होने के बाद दस्ताएवस्की को रूसी यथार्थवाद का प्रवर्तक माना गया और रूस के महान लेखकों में उनका नाम शामिल किया गया। मॉस्को में जन्मे फ़्योदर दस्ताएवस्की को रूसी विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता मिख़अईल पित्रअशेव्स्की के राज्यविरोधी गुप्त दल का सदस्य होने के कारण 20 अन्य लोगों के साथ गिरफ़्तार कर लिया गया और उन्हें मृत्युदण्ड की सज़ा दी गई। लेकिन इस सज़ा पर अमल होने से पहले ही अंतिम समय में उनकी सज़ा को चार वर्ष के सश्रम कारावास में बदल दिया गया। दस्ताएवस्की ने गिरफ़्तार होने से पहले ही लिखना शुरू कर दिया था। साइबेरिया में कारावास की सज़ा बिताने के बाद उन्होंने फिर से लिखना शुरू कर दिया। 'अपराध और दंड ', 'बौड़म ', ’नर-पिशाच’, ’करमअजोफ़ बन्धु’, ’ग़रीब लोग’ और ’जुआरी’ जैसे विख्यात उपन्यासों के रचनाकार दस्ताएवस्की को मनोवैज्ञानिक विषयों का महान लेखक माना जाता है। रूसी और पश्चिम के कई लेखकों को इन्होंने प्रभावित किया - जिनमें एंटन चेखव [अन्तोन चेख़फ़] भी शामिल हैं। 2002 में नार्वे पुस्तक क्लब ने विश्व साहित्य की सौ प्रमुख किताबों में दस्ताएवस्की की पाँच किताबों को शामिल किया है।

जीवन-परिचय

फ़्योदर दस्ताएवस्की के पिता मिख़अईल दस्ताएवस्की ज़ार की सेना में डॉक्टर थे। अप्रैल 1818 में उन्हें मसक्वा [मास्को] के सैन्य अस्पताल में नियुक्त कर दिया गया, जहाँ उनका परिचय मसक्वा के एक स्थानीय बड़े व्यापारी फ़्योदर निचाएफ़ की बेटी मरीया निचाएवा से हुआ। बाद में यह परिचय प्रेम में बदल गया और 14 जनवरी 1820 को दोनों का विवाह हो गया। उसी वर्ष 13 अक्तूबर को दस्ताएवस्की परिवार में पहले पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम पिता के नाम पर मिख़अईल रखा गया। 30 अक्तूबर 1821 के दिन दस्ताएवस्की परिवार में दूसरे पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम नाना के नाम पर फ़्योदर रखा गया। अपना परिचय देते हुए फ़्योदर दस्ताएवस्की ने एक जगह लिखा है — मेरा जन्म मसक्वा में एक रूसी धर्मपरायण परिवार में हुआ था। जब से मैंने होश सम्भाला है, तभी से मैं अपने परिवार से गहरा प्यार करता रहा हूँ। दस्ताएवस्की के परिवार में पिता ही गृहप्रमुख माने जाते थे। घर में उन्हीं का राज चलता था। दोपहर में ठीक बारह बजे पूरा परिवार दिन का खाना खाने के लिए इकट्ठा होता था और शाम को सोने के लिए बिस्तर पर जाने से पहले सभी बच्चे ईश्वर की प्रार्थना किया करते थे। 1822 में दो लड़कों के बाद एक पुत्री ने जन्म लिया, जिसका नाम वर्वारा रखा गया। फिर 1825 में दस्ताएवस्की परिवार में तीसरे पुत्र अन्द्रेय ने जन्म लिया। दस्ताएवस्की परिवार अस्पताल के ही एक हिस्से में बने दो कमरों के एक छोटे से मकान में रहता था, जिसमें बच्चों के लिए बिना खिड़की वाली एक अन्धेरी सी कोठरी थी। हर रविवार को पूरा परिवार अस्पताल के अहाते में ही बने गिरजे में होने वाली प्रार्थना में शामिल होता था।

प्रारम्भिक शिक्षा

दस्ताएवस्की परिवार पढ़ा-लिखा परिवार माना जाता था। बचपन से ही फ़्योदर दस्ताएवस्की का परिचय पूश्किन, झुकोवस्की, करमज़ीन और दिरझाविन जैसे लेखकों की रचनाओं से हो गया था। फ़्योदर के पिता इतिहासकार निकलाय करमज़ीन द्वारा लिखे गए ’रूस के विस्तृत इतिहास’ पर फ़िदा थे और बच्चों को इस इतिहास को पढ़कर सुनाया करते थे। फ़्योदर दस्ताएवस्की ने लिखा है — मैं जब सिर्फ़ दस साल का था, करमज़ीन का इतिहास मुझे मुँहज़बानी याद था। चार वर्ष की उम्र में ही फ़्योदर को अक्षर ज्ञान हो गया था और उन्होंने रूसी भाषा पढ़ना शुरू कर दिया था। 1828 में ज़ार ने दस्ताएवस्की परिवार को कुलीन वर्ग में शामिल कर लिया। इसके बाद दस्ताएवस्की परिवार को जागीर ख़रीदने व कृषिदास रखने का अधिकार मिल गया। फ़्योदर के पिता ने अपनी बचत और कुछ धन उधार लेकर 30 हज़ार रूबल में 1931 में मसक्वा से 150 किलोमीटर दूर तूला प्रदेश में ’दरअवोय’ नाम का एक गाँव ख़रीद लिया, जिसमें कृषिदासों के नौ परिवार रहते थे और जागीर के मालिकों के लिए तीन कमरों का एक छोटा-सा कच्चा-पक्का मकान बना हुआ था। लेकिन मार्च-अप्रैल 1832 में गाँव में आग लग गई और मालिक के मकान के साथ-साथ कृषिदासों के झोंपड़े भी राख हो गए। दस्ताएवस्की ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि कुल 9 हज़ार रूबल का नुक़सान हुआ था। फ़्योदर के पिता ने ऋण लेकर फिर से सारे झोंपड़े और मकान बनवा लिया। इस तरह गर्मियों में दस्ताएवस्की परिवार आराम करने के लिए अपने गाँव पहुँच गया और बच्चों ने अपने जीवन में पहली बार रूस का कोई गाँव देखा। कृषिदासों की स्त्रियाँ दस्ताएवस्की परिवार के बच्चों को बेहद प्यार करती थीं और फ़्योदर इतना सीधा था कि उसपर तो वे जान छिड़कती थीं। बाद में बचपन में अपने मन पर पड़े इन प्रभावों का ज़िक्र दस्ताएवस्की ने ’नर-पिशाच’ और ’ग़रीब लोग’ उपन्यासों में किया है।

गाँव से वापिस आने के बाद दोनों बड़े पुत्रों मिख़अईल और फ़्योदर का दाख़िला स्कूल में करा दिया गया। लेकिन जब बच्चों के पिता को यह मालूम हुआ कि स्कूल में बच्चों को शारीरिक दण्ड दिया जाता है तो उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लिया और घर पर ही बच्चों की शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध कर दिया। फ़्योदर के बड़े भाई मिख़अईल ने बाद में अपने पिता मिख़अईल के स्वभाव का ज़िक्र करते हुए अपने संस्मरणों में लिखा है — हमारे पिता बेहद दयालु थे, लेकिन इसके साथ-साथ वे बड़े बेसब्र, कठोर और गर्म स्वभाव के थे। दस्ताएवस्की ने लिखा है कि 1834-35 में दस्ताएवस्की परिवार के पास क़रीब सौ कृषिदास और 7000 एकड़ ज़मीन थी। उसी दौरान दस्ताएवस्की को किताबें पढ़ने की लत लग गई। 1934 में दस्ताएवस्की ने वॉल्टर स्कॉट के सभी उपन्यास पढ़ डाले। इन रचनाओं का दस्तोएवस्की के किशोर मन पर भारी प्रभाव पड़ा और उनकी कल्पनाओं ने पर फैलाने शुरू कर दिए। उन्हीं दिनों निकलाय बिलेविच नाम के एक अध्यापक फ़्योदर को रूसी पढ़ाने के लिए आने लगे। बिलेविच कभी निकलाय गोगल नामक प्रसिद्ध रूसी लेखक के सहपाठी रह चुके थे और ख़ुद भी कविता लिखा करते थे। उन्होंने अँग्रेज़ी के कवि शिलेर की कविताओं का रूसी में अनुवाद किया था। 1835 में दस्ताएवस्की ’बिबलिअचेका द्ल्या च्तेन्या’ (पाठक-पुस्तकालय) नामक एक साहित्यिक पत्रिका के वार्षिक सदस्य बन गए और यह पत्रिका घर पर मंगाने लगे। इस पत्रिका में ही उन्होंने अलिक्सान्दर पूश्किन की कहानी ’हुक़्म की बेग़म’ पहली बार पढ़ी। पत्रिका के माध्यम से ही उनका परिचय ओनेरो दे बालज़ाक, विक्टर ह्यूगो, जार्ज सान्द और एज़ेन स्क्रीबा जैसे विश्व-प्रसिद्ध लेखकों से हुआ, जिनकी रचनाओं का किशोर फ़्योदर पर गहरा प्रभाव पड़ा और फ़्योदर ने मन ही मन यह तय कर लिया कि बड़ा होकर वह भी लेखक बनेगा।

अप्रैल, 1835 में फ़्योदर की माँ मरीया दोनों छोटे बच्चों को लेकर अपने गाँव की जागीर में आराम करने के लिए चली गई, जहाँ 29 अप्रैल को वे बुरी तरह से बीमार हो गईं। इसके बाद उनकी हालत ख़राब होती चली गई। रोग बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की। 1836-37 की सर्दियों में वे पूरी तरह से बिस्तर से चिपक गई थीं। उनमें इतनी ताक़त ही नहीं रह गई थी कि वे दो क़दम भी चल सकें। 27 फ़रवरी 1837 को साढ़े 36 वर्ष की उम्र में उनका देहान्त हो गया और पहली मार्च को उन्हें दफ़्ना दिया गया।

कैशौर्य काल

दस्ताएवस्की जब 16 साल के हुए तो उनके पिता मिख़अईल उन्हें लेकर सांक्त पितेरबूर्ग [सेण्ट पीटर्सबर्ग] पहुँचे और उन्होंने इंजीनियरिंग कालेज में दस्ताएवस्की का दाख़िला करा दिया। दस्ताएवस्की हालाँकि लेखक बनना चाहते थे, पर पिता के दबाव में इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए मजबूर हो गए। अपने संस्मरणों में दस्ताएवस्की ने लिखा है कि मसक्वा से पितिरबूर्ग का पूरा रास्ता दोनों भाइयों ने विभिन्न कवियों की कविता पर बातचीत करते हुए गुज़ार दिया था। दस्ताएवस्की का दिमाग उस समय वियना के बारे में एक उपन्यास की रूपरेखा बनाने में उलझा हुआ था।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई दस्ताएवस्की के लिए बेहद मुश्किल और ऊबाऊ सिद्ध हुई। अपनी इस पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने होमर, कारनेली, रासिन, बालज़ाक, ह्यूगो, ग्योटे, हॉफ़मैन, शिलर, शेक्सपियर और बायरन की रचनावलियों को कई-कई बार पढ़ डाला। रूसी लेखकों में से पूश्किन, लेरमन्तफ़, दिर्झाविन, गोगल की रचनाओं को उन्होंने इस बुरी तरह से चाट डाला था कि वे सभी उन्हें मुँह-ज़ुबानी याद हो गई थीं। दस्ताएवस्की इतने ज़्यादा पढ़ाकू थे कि निक्रासफ़, पनाएफ़, ग्रिगोरिविच और प्लिशेइफ़ जैसे लेखक उनके ज्ञान और जानकारी के सामने पानी भरते नज़र आते हैं।

सितम्बर 1838 में दस्ताएवस्की ने अपने इंजीनियरिंग क्लब में एक साहित्यिक क्लब की नींव रख दी। अन्द्रेय बिकेतफ़, दिमीत्रि ग्रिगअरोविच, इवान बिरिझेत्स्की और निकलाय वितकोव्स्की जैसे भावी लेखक इस क्लब के सदस्य थे।

प्रकाशित पुस्तकें

  1. गरीब लोग (दरिद्रनारायण) -1845 (हिन्दी अनुवाद प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
  2. प्रतिरूप (The Double) -1846 (प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से)
  3. रजत रातें (श्वेत रातें) -1848 (प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से)
  4. नेतोच्का नेज़्नानोवा -1849
  5. सपना दादा का (चाचा का सपना) -1859 (प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से प्रकाशित 'गरीब लोग' में संकलित))
  6. स्तेपान्चिको गाँव तथा उसके वासी -1859
  7. अपमानित और अवमानित (Humiliated and insulted) 1861
  8. बेजान घर (मुर्दाघर की टिप्पणियाँ) -1861-62 (प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से)
  9. यादें गर्मियों की (ग्रीष्मकालीन इंप्रेशंस पर शीतकालीन टिप्पणियाँ -1863 (प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से)
  10. एक भूमिगत आदमी की कहानी (भूमिगत जीवन से टिप्पणियाँ -1864 (प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से)
  11. अपराध और दण्ड -1866 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली तथा प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
  12. बौड़म (The Idiot) -1868 (रादुगा प्रकाशन, माॅस्को से)
  13. शाश्वत पति (The eternal Husband) -1870 (प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से)
  14. भूत (Demons) -1871-72
  15. किशोर -1875
  16. करामाज़ोव ब्रदर्स -1879-80 (प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से)

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ