वैदिक स्वराघात

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(वैदिक आघात से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:asbox परम्परागत रूप से वैदिक स्वराघात के तीन विभाग किये जाते हैं- उदात्त, अनुदात्त और स्वरित।

परिचय

वेदों में मन्त्रों की 20 हजार ऋचाएँ हैं। इन सभी को विभिन्न छन्दों में विभक्त किया गया है। कौन किस प्रकार गाया जायेगा, इसका ऋषिगणों द्वारा उसी समय निर्धारण हो गया है, जब इनका सृजन हुआ है। इन्हें लयबद्ध गाया जाना चाहिए। मोटा विभाजन तो उदात्त, अनुदात्त स्वरित के क्रम में हुआ है। मन्त्रों के नीचे, ऊपर आड़ी टेड़ी लकीरें जो लगाई जाती हैं, उनमें उच्चारण के संकेत हैं। लेकिन जब इन्हें स्वर समेत गाना हो तो उनके सरगम, सामवेद में दिए गये हैं। वहाँ अंकों के चिह्न हैं। वैदिक सरगम का संकेत 1, 2, 3, 4 आदि अंकों में अक्षरों के ऊपर दिया जाता है।

एक छन्द को अनेक ध्वनियों में गाया जा सकता है। इन ध्वनि भिन्नताओं में सरगम के अतिरिक्त आड़ी-टेड़ी लकीरों में संकेत ध्वनि बना देते हैं। इस प्रकार वेद मन्त्रों में जो ऋचा सामगान के रूप में गायी जाती है, तब उनके ऊपर अंक संकेत लगा देते हैं। सामगान की यही परम्परा है। कुछ दिन पूर्ण सामगान की अनेकों शाखाएँ थी, पर अब वे लुप्त हो गई। जो बची हैं मात्र वे ही उपलब्ध हैं।

नीचे तैत्तिरीय संहिता का प्रारम्भिक भाग वैदिक स्वरचिह्नों सहित दिया जारहा है-

प्रथमं काण्डम्
अथ प्रथमकाण्डे प्रथमः प्रपाठकः 1
इ॒षे त्वो॒र्जे त्वा॑ वा॒यवः॑ स्थोपा॒यवः॑ स्थ दे॒वो वः॑ सवि॒ता प्रार्प॑यतु॒
श्रेष्ठ॑तमाय॒ कर्म॑ण॒ आ प्या॑यध्वमघ्निया देवभा॒गमूर्ज॑स्वतीः॒ पय॑स्वतीः
प्रजाव॑तीरनमी॒वा अ॑य॒क्ष्मा मा वः॑ स्ते॒न ई॑शत॒ माघशँ॑सो रु॒द्रस्य॑ हे॒तिः
परि॑ वो वृणक्तु ध्रु॒वा अ॒स्मिन्गोप॑तौ स्यात ब॒ह्वीर्यज॑मानस्य प॒शून्पा॑हि ॥१॥

य॒ज्ञस्य॑ घो॒षद॑सि॒प्रत्यु॑ष्टँ॒रक्षः॒ प्रत्यु॑ष्टा॒ अरा॑तयः॒ प्रेयम॑गाद्धि॒षणा॑ ब॒र्हिरच्छ॒
मनु॑ना कृ॒ता स्व॒धया॒ वित॑ष्टा॒त आ व॑हन्ति क॒वयः॑ पु॒रस्ता॑द्दे॒वेभ्यो॒
जुष्ट॑मि॒ह ब॒र्हिरा॒सदे दे॒वानां॑ परिपू॒तम॑सि व॒र्षवृ॑द्धमसि॒ देव॑बर्हि॒र्मा
त्वा॒न्वंमा ति॒र्यक्पर्व॑ ते राध्यासमाच्छे॒त्ता ते॒ मा रि॑षं॒ देव॑बर्हिः श॒तव॑ल्शं॒
वि रो॑ह सहस्र॑वल्शा॒ वि व॒यँरु॑हेम पृथि॒व्याः स॒म्पृचः॑ पाहि
सुस॒म्भृता॑ त्वा॒ संभ॑रा॒म्यदि॑त्यै॒ रास्ना॑सीन्द्रा॒ण्यै स॒न्नह॑नं पू॒षा ते॑ ग्र॒न्थिं
ग्॑रथ्नातु॒ स ते॒ मास्था॒दिन्द्र॑स्य त्वा बा॒हुभ्या॒मुद्य॑च्छे॒ बृह॒स्पते॑र्मूर्ध्ना
ह॑राम्यु॒र्व॑न्तरि॑क्ष॒मन्वि॑हि देवं ग॒मम॑सि ॥२॥

वैदिक स्वरांकन

ऋग्वेद संहिता के देवनागरी संस्करणों में -

  • उदात्त पर कोई चिह्न नहीं लगाया जाता।
  • स्वरित को अक्षर के ऊपर ◌॑ (यूनिकोड: U+0951) लगाया जाता है,
  • अनुदात्त के लिये ◌॒ ( यूनिकोड: U+0952) का प्रयोग किया जाता है।

विस्तारित देवनागरी यूनिकोड

वैदिक चिह्नों को यूनिकोड में स्थान देते हुए देवनागरी के यूनिकोड का विस्तार किया गया है। देखिये, विस्तारित देवनागरी यूनिकोड

वैदिक चिह्नों से युक्त देवनागरी फॉण्ट

यूनिकोड

अयूनिकोड

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ