वैदीश्वरन् कोयिल

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(वैठीश्वरन कोवली, तंजौर से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
वैदीश्वरन् कोयिल
वैदीश्वरन् कोविल (पुल्लिरुकुवेलुर)
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धतासाँचा:br separated entries
देवतावैद्यनाथ स्वामी[१]

तय्यल नयगि[१] सेल्वमुतुकुमारस्वामी[१]

धनवनरि सिद्धर जीवसमाधि[१]
विविधसाँचा:ubl
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिसाँचा:if empty
ज़िलामयिलादुतुरै
राज्यतमिलनाडु
देशसाँचा:flag/core
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 408 पर: Malformed coordinates value।
भौगोलिक निर्देशांकसाँचा:coord
वास्तु विवरण
प्रकारद्रविड वास्तुकला
निर्मातासाँचा:if empty
ध्वंससाँचा:ifempty
मंदिर संख्या1
साँचा:designation/divbox
साँचा:designation/divbox

साँचा:template otherस्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main other

वैदीश्वरन् कोयिल भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित शिव का प्रसिद्ध मन्दिर है।[२] शिव को वैद्यनाथ या वैदीश्वरन के रूप में पूजा जाता है। 'वैद्यनाथ' का शाब्दिक अर्थ है 'महान वैद्य' या 'चिकित्सकों के स्वामी' । वैदीश्वरन् का अर्थ है 'वैद्य ईश्वर' । ऐसी मान्यता है कि शिव की अराधना करने से वे रोगों से मुक्ति प्रदान करते हैं और वैदीश्वरन् ने 4,480 रोगों की चिकित्सा को संभव किया।

इस मन्दिर के मुख्य देव श्री वैद्यनाथन हैं जो पश्चिममुखी हैं। यह मन्दिर नौ नवग्रह मन्दिरों में से एक है तथा मंगल ग्रह (अङ्गारक) से सम्बन्धित है। इस मंदिर का गुणगान अनेक सन्त कवियों ने अपनी रचनाओं में किया है। इसके स्तम्भों और मंडपों की सुन्दरता से आकर्षित होकर अनेक श्रद्धालु यहां आते हैं। कहा जाता है कि मंगल, कार्तिकेय और जटायु ने यहाँ भगवान शिव की स्तुति की थी। इस मंदिर को 'अगरकस्थानम्' भी माना जाता है।

इतिहास

यह मंदिर इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि रामायण के अनुसार जटायु ने दुष्ट रावण से माता सीता को बचाने के लिए युद्ध किया था और इस लड़ाई में उसके दोनों पंख कटकर यहीं मंदिर की जगह पर गिरे थे।

सीता की खोज में जब प्रभु श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ यहाँ पहुँचे, तो जटायु अपने जीवन की अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे। जटायु ने राम को सम्पूर्ण वृत्तान्त बताया और उनसे प्रार्थना की कि वे स्वयं उसका दाह संस्कार करें।

जिस स्थान पर श्रीराम ने जटायु का दाह संस्कार किया, उसे जटायु कुंडम के नाम से जाना जाता है। यह भव्य स्थान मंदिर के अंदर स्थित है तथा किसी भी धर्म के लोग हो, इस कुंडम से विभूति (प्रसाद) लेते हैं।

श्रीराम ने रावण को युद्ध में पराजित किया एवं सीता तथा अन्य साथियों के साथ लौटकर उन्होंने इस भव्य स्थान पर भगवान शिव से प्रार्थना की। देवी शक्ति से भगवान मुरुगा ने वेल शस्त्र प्राप्त किया था एवं इसी शस्त्र से पदमासुरन नामक असुर का वध किया था।

संत विश्वामित्र, वशिष्ठ, तिरुवानाकुरसर, तिरुगनंसबंदर, अरुनागीरीनाथर ने इस स्थान पर भगवान से पूजा-अर्चना की थी। यह भव्य स्थान विशिष्ट है, क्योंकि कुष्ठ रोग से पीड़ित अंगरकन (तमिल भाषा में मंगल ग्रह का नाम) ने भगवान से प्रार्थना की तथा अपनी बीमारी का इलाज किया। अतः यह स्थान नवग्रह क्षेत्रम में से एक है। जिन लोगों की जन्मकुंडली में चेव्वा दोष है, वे यहाँ आते हैं और अंगकरण की पूजा करते हैं।

भगवान शिव अपनी शक्ति थय्यालनायकी अम्माई, जो अपने साथ थाईलम, संजीवी तथा विल्वा पेड़ की जड़ों की रेत, जिसके मिश्रण से 4,480 बीमारियों का इलाज हो सकता है, के साथ इस क्षेत्र में आए तथा रोग से पीड़ित भक्तों को मुक्त किया और वैईथीयनाथ स्वामी के नाम से जाने गए।

ये तमिल नादु के नवग्रह मन्दिर मे मगल ग्रह का मन्दिर हे

मान्यता

लाखों लोग इस भव्य मंदिर में दर्शन करने प्रतिवर्ष आते हैं और अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए यहाँ प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि भक्तों की मनोकामनाएँ यहाँ पर पूर्ण होती हैं। प्रथाओं के अनुसार एक विशेष प्रकार से दवा बनाई जाती है। यह प्रथा अभी भी यहाँ पर प्रचलित है।

‘शुक्ल पक्ष के दिन भक्तों को अंगसंथना तीर्थम (पवित्र जलधर) में स्नान करना चाहिए। उसी जलाशय से रेत को जटायु कुंडम के विभूति प्रसाद के साथ मिश्रित किया जाता है एवं सिद्धामीर्थम तीर्थम के कुंभ से आप पवित्र जल ले सकते हैं।

यह स्थान प्रसिद्ध है नादी ज्योत‍िधाम के लिए - जहाँ पर किसी भी व्यक्ति के वर्तमान, भूत, एवं भविष्यकाल का पता लगा सकते हैं। नगर में हर तरफ आप नादी ज्योतिधाम के केंद्र देख सकते हैं। भगवान मुरुगा के समक्ष उस मिश्रण को पीसते हैं एवं इस क्रिया के दौरान पंजाकारा झाबा की प्रथा का पालन करते हैं। प‍िसे हुए मिश्रण की छोटी-छोटी गोली बनाई जाती है। शक्ति समाधि के समक्ष उस दवा की पूजा-अर्चना की जाती है तथा सिद्धामिरथा जलाशय से पवित्र जल के साथ इस दवा का सेवन होता है। एक तमिल भाषा के अनुसार पाँच जन्मों तक कोई भी बीमारी आपको पीड़ित नहीं करेगी।

मंदिर में गुरुकुल के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भगवान शिव 'वैद्यन्धर' के रूप में माने जाते हैं। चेव्व दोषम के लिए एक इलाज है। भगवान कामधेनु एवं करपगा विरुकशम के समान भगवान गणपति की भी पूजा होती है।

विवाह से संबंधित समस्याएँ, जायदाद से संबंधित विषय, छेवा थिसाई इन समस्याओं के लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध क्षेत्र है। भगवान मुरुगा भक्तों को पुत्र भाग्यम का आशीर्वाद देते हैं।

इस क्षेत्रम में सभी नवग्रह एक कड़ी में खड़े हैं। यह स्थान उपयु्क्त है ग्रह दोषम को हटाने के लिए। जनश्रुति के अनुसार बिल्व, चंदन तथा विभूति पदार्थों की मिश्रित दवा से भगवान सभी भक्तों का इलाज करते हैं। क्षेत्रम का पेड़ चार युगों के लिए भिन्न हैं। सतयुग में कदम्बा के रूप में था। त्रेता युग में बिल्वा रूप में, द्वापर युग में वाकुला के रूप में एवं कलियुग में नीम के रूप में।

वैदीश्वरन् मन्दिर का विहंगम दृश्य

भव्य मंदिर में स्थित पवित्र कुंभ को सिद्धामीर्था कुंभ कहते हैं। कीरत युग में कामधेनु इस क्षेत्रम के निकट आए थे एवं लींगा पर अत्यधिक मात्रा में दूध गिरने के वजह से वह कुंभ में बह गया एवं यह कुंभ पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है। प्रेतबाधा से पीड़ित व्यक्ति अगर इस कुंभ में स्नान करें तो उस आत्मा से वे मुक्त हो जाएँगे।

भगवान वैईथीय्नाथस्वामी के नाम से प्रसिद्ध इस नगर को वैईथीसवरन कोइल के नाम से जाना जाता है। यह स्थान प्रसिद्ध है नादी ज्योत‍िधाम के लिए, जहाँ पर किसी भी व्यक्ति के वर्तमान, भूत एवं भविष्यकाल का पता लगा सकते हैं। नगर में हर तरफ आप नादी ज्योतिधाम के केंद्र देख सकते हैं।

वैद्यनाथ अष्टकं

श्री रामसौमित्रि जटायुवेद षडाननादित्य कुजार्चिताय ।
श्रीनीलकंठाय दयामयाय श्री वैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ 1 ॥
गंगाप्रवाहेंदु जटाधराय त्रिलोचनाय स्मर कालहंत्रे ।
समस्त देवैरभिपूजिताय श्री वैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ 2 ॥
भक्तःप्रियाय त्रिपुरांतकाय पिनाकिने दुष्टहराय नित्यम् ।
प्रत्यक्षलीलाय मनुष्यलोके श्री वैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ 3 ॥
प्रभूतवातादि समस्तरोग प्रनाशकर्त्रे मुनिवंदिताय ।
प्रभाकरेंद्वग्निविलोचनाय श्री वैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ 4 ॥
वाक्श्रोत्र नेत्रांघ्रि विहीनजंतोः वाक्श्रोत्रनेत्रांघ्रिसुखप्रदाय ।
कुष्ठादिसर्वोन्नतरोगहंत्रे श्री वैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ 5 ॥
वेदांतवेद्याय जगन्मयाय योगीश्वरध्येयपदांबुजाय ।
त्रिमूर्तिरूपाय सहस्रनाम्ने श्री वैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ 6 ॥
स्वतीर्थ मृद्भस्म भृतांगभाजां पिशाच दुःखार्ति भयापहाय ।
आत्मस्वरूपाय शरीरभाजां श्री वैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ 7 ॥
श्री नीलकंठाय वृषध्वजाय स्रक्गंध भस्माद्यभि शोभिताय ।
सुपुत्रदारादि सुभाग्यदाय श्री वैद्यनाथाय नमः शिवाय ॥ 8 ॥

कैसे पहुँचें

रेल के माध्यम से चेन्नई के थानजावर राह से वैथीसवरन रेलवे स्टेशन पर पहुँच सकते हैं।

सड़क मार्ग

वैथीसवरन कोइल चिदम्बरन के पास स्थित है, जो कि चेन्नई से 235 किमी है। चिदम्बरन से 26 किमी की दूरी पर भगवान शिव के क्षेत्रम के लिए प्रसिद्ध है। बस सेवा के माध्यम से आप वैथीसवरन कोइल 35 से 40 मिनट में पहुँच सकते हैं।

वायु मार्ग

चेन्नई हवाई अड्‍डा सबसे निकट है। चेन्नई से आप यहाँ तक सड़क मार्ग या रेलमार्ग से पहुँच सकते हैं।

सन्दर्भ

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Seth नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; tourist नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ