लाभांश नीति

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लाभांश नीति (Dividend policy) से आशय लाभांश वितरित करने के सिद्धान्तों व योजनाओं से होता है। लाभांश नीति का अर्थ संचालकों के उस निर्णय से है जिसके द्वारा वे यह तय करते हैं कि लाभ का कितना भाग लाभांश के रूप में वितरित किया जाय और कितना प्रतिधारित किया जाय।

एक व्यावसायिक संस्था का उद्देश्य लाभ कमाना है। यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय है कि अर्जित लाभ का प्रयोग किस प्रकार किया जाय। मुख्य प्रश्न यह उठता है कि लाभ का पूर्ण उपभोग स्वामियों द्वारा किया जाए या उसे व्यवसाय में ही प्रतिधारित करके पुनर्विनियोग किया जाये। एकल व्यापारी की दशा में इस प्रकार के निर्णय लेने में कोई भी समस्या खड़ी नहीं होती है। इसी प्रकार साझेदारी संस्था की दशा में साझेदारी संलेख में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि लाभ को साझेदारी/स्वामियों में किस प्रकार वितरित किया जाएगा। हाँ, कम्पनी संगठन स्वरूप की दशा में यह निर्णय कुछ जटिल अवश्य प्रतीत होता है। कम्पनी अधिनियम मे स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि एक कम्पनी को अपने लाभ का कितना प्रतिशत अंशधारियों के बीच में वितरित करना एवं कितने प्रतिशत प्रतिधारित करना है जिससे कम्पनी अपनी भविष्य की योजना निर्धारित कर सके।

कम्पनी एक 'कृत्रिम व्यक्ति' है और व्यवसाय के अंशधारी अधिक फैले हुए होते हैं। लाभ के प्रयोग सम्बन्धी निर्णय का भार कुछ व्यक्तियों के समूह पर ही होता है जिन्हें संचालक मण्डल कहते हैं। अन्य संगठन स्वरूपों की भॉंति कम्पनी के शुद्ध लाभ के बंटवारे की समस्या भी या तो लाभ को व्यवसाय में ही प्रतिधारित करने की या अंशधारियों को लाभांश के रूप में बांटने की होती है। अंशधारियों में विभाज्य लाभ के वितरण सम्बन्धी निर्णय महत्वपूर्ण होता है। इस सम्बन्ध में लिए गये निर्णय का मतलब अंशधारियों को अधिक आय, कम आय अथवा कुछ आय नहीं हो सकता है। विद्यमान अंशधारियों के रूख को प्रभावित करने के साथ-साथ लाभांश देने के निर्णय का प्रभाव भावी अंशधारियों, स्कन्ध विनिमय व वित्तीय संस्थाओं के रूख व व्यवहार (Mood and behaviour) पर भी पड़ सकता है, क्योंकि लाभांश का सम्बन्ध कम्पनी के मूल्य से होता है जो कम्पनी के अंशों के बाजार मूल्य को प्रभावित करता है।

लाभांश के रूप में लाभ का वितरण विवाद का विषय बन सकता है क्योंकि विभिन्न पक्षों जैसे संचालक, कर्मचारी, अंशधारी, ऋणपत्रधारी, ऋण प्रदान करने वाली संस्था आदि का हित टकराव का होता है। जहाँ कोई पक्ष नियमित आय (लाभांश) के पक्ष में होता है, तो कोई पूंजी वृद्धि या पूंजीगत लाभ में रूचि रखता है इस प्रकार लाभांश नीति का निर्माण करना एक जटिल निर्णय है। अनेक बातों का सावधानीपूर्वक मनन करना पड़ता है परन्तु यह बात तय है कि कोई तदर्थ कदम उठाने के बजाय लाभांश के सम्बन्ध में एक यथोचित दीर्घकालीन नीति का पालन करना चाहिए।

वित्तीय प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य संस्था के बाजार मूल्य का अधिकीकरण होता है। संस्था के सम अंशों का बाजार मूल्य इस नीति से प्रभावित होता है कि शुद्ध लाभ अथवा आधिक्य को लाभांश भुगतान(Payout) और पुनर्विनियोजन (Plough back) के बीच किस प्रकार आवंटित किया जाता है। प्रबन्धकों के सामने यह विकल्प नहीं होता है कि लाभांश बांटे या न बांटे। हाँ, यह प्रश्न अवश्य होता है कि कितना लाभांश बांटे? इसका उत्तर लाभांश नीति से मिलता है। लाभांश नीति का अर्थ लाभांश वितरित करने के सिद्धान्तों व योजना से होता है। वेस्टन एवं ब्राइगम ने लिखा है,

लाभांश नीति अर्जनों का अंशधारियों को भुगतान एवं प्रतिधारित अर्जनों में विभाजन निश्चित करती है।

अंशधारियों में लाभांश के रूप में अर्जन के वितरण के सम्बन्ध में प्रबन्ध द्वारा निर्मित नीति को ही लाभांश नीति कहते हैं। केवल एक विशेष सत्र में देय लाभांश से ही इसका सम्बन्ध नहीं होता है बल्कि कई वर्षों तक अपनाए जाने वाले कदमों से भी यह सम्बन्ध रखता है।

लाभांश नीति निर्माण करने से पूर्व निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ढूंढने होंगे -

  • 1. क्या संचालन के प्रारम्भिक वर्षों से ही लाभांश का भुगतान किया जाय?
  • 2. क्या निश्चित प्रतिशत प्रत्येक वर्ष लाभांश दिया जाए, चाहे लाभ की मात्रा कुछ भी क्यों न हो?
  • 3. क्या लाभ का एक निश्चित प्रतिशत लाभांश के रूप में दिया जाए जिसका आशय प्रति अंश परिवर्तनशील लाभांश होगा?
  • 4. क्या लाभांश नकद दिया जाए?
  • 5. क्या लाभांश बोनस अंशों के रूप में दिया जाय?
  • 6. क्या लाभांश की सम्पूर्ण राशि प्रारम्भिक वर्षों में पुनर्विनियोजित की जाए?

लाभांश का अर्थ

लाभ का वह भाग, जिसे विभाज्य लाभ कहते हैं, जो कम्पनी के सदस्यों को प्राप्त होता है, लाभांश कहलाता है। विभाज्य लाभ से आशय कम्पनी के उन लाभों से है जो वैधानिक तौर पर कम्पनी के अंशधारियों के बीच बांटे जा सकते हैं। कम्पनी (लाभांश पर अस्थाई प्रतिबन्ध) अधिनियम, 1974 संशोधित 1975 के अनुसार विभाज्य लाभ का अभिप्राय कम्पनी के शुद्ध लाभ का 1/3 भाग या कम्पनी के सम अंशों के अंकित मूल्य पर भुगतान योग्य 12 प्रतिशत लाभांश की राशि व पूर्वाधिकार अंशों पर देय लाभांश की राशि (मे से जो भी कम हो) से होता है। इस आशय के लिए शुद्ध लाभ वह लाभ होता है, जो कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 394 के प्रावधानों के अनुसार हो और उसमें से आयकर की राशि घटा दी गयी हो तथा कम्पनी अधिनियम की धारा 205 के अनुसार ह्रास घटा दिया गया हो।

लाभांश वस्तुतः कुल अर्जित आय में से समस्त व्ययों को घटाने के बाद व विशेष प्रकार के कोषों व करों के लिए प्रावधान करने के बाद बचे आधिक्य का ही एक भाग होता है। इस आधिक्य पर सम अंशधारियों का ही अधिकार होता है। हाँ पूर्वाधिकार अंशों की दशा में उन्हें इस आधिक्य पर सम अंशधारियों की तुलना में प्राथमिकता प्राप्त होती है। यद्यपि सम अंशधारियों का इस आधिक्य पर पूरा अधिकार होता है फिर भी कानूनी तौर पर अंशधारी इसके पूर्ण वितरण के लिए या तत्काल वितरण के लिए कम्पनी को बाध्य नहीं कर सकते हैं।

लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले तत्व

लाभांश नीति को निर्धारित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं :-

लाभ का स्तर

लाभांश का वितरण कम्पनी के वर्तमान व गत वर्ष के लाभों में से ही किया जा सकता है इसलिए लाभांश नीति को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख तत्व कम्पनी का लाभ होता है। कम्पनी का लाभ, लाभांश की उच्चतम सीमा निर्धारित करने में सहायक होता है। इसी प्रकार स्थायी रूप से लाभ अर्जित करने वाली कम्पनियाँ उन कम्पनियों की अपेक्षा जिनके लाभ में उच्चावचन होता रहता है लाभ का अधिक भाग लाभांश के रूप में वितरित करती हैं।

नकदी की स्थिति

यदि कम्पनी के पास लाभांश की घोषणा के समय पर्याप्त नकद उपलब्ध हो तो नकद लाभांश का भुगतान उचित रहेगा। उधार शर्तों पर विक्रय करने वाली सस्थाओं में तरलता स्थिति कमजोर होने पर नकद लाभांश न देकर बोनस अंशों का निगर्मन किया जाता है इसलिए कम्पनी की तरलता स्थिति भी लाभांश निर्णय को प्रभावित करती है।

पिछली लाभांश दरें

विगत वर्ष की तुलना में अचानक लाभांश दर एकदम बढ़ा दी जाए तो बाजार में सट्टे की प्रवृत्ति पनपेगी। यथासम्भव लाभांश दर स्थिर रखने का प्रयास कम्पनी प्रबन्ध द्वारा किया जाता है। इसलिए लाभांश घोषित करते समय संचालकों को विगत वर्षों की लाभांश दरों को आधार बनाना चाहिये।

अंशधारियों की अपेक्षाएॅं

अंशधारी जब अंश क्रय करते हैं तो वे लाभांश के बारे में कुछ अपेक्षाएं बना लेते हैं, उनका आदर संचालकों को करना चाहिए। वैधानिक दृष्टि से भी संचालक कम्पनी की आय को विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाने के लिए स्वतंत्र होते हैं पर अंशधारियों के विचारों व आशाओं को वे भुला नहीं सकते, वरना भविष्य में अतिरिक्त पूंजी एकत्र करने में भारी कठिनाई आ सकती है।

स्थापित कम्पनी

पुरानी कम्पनियां उदार लाभांश नीति अपना सकती हैं जबकि नव स्थापित कम्पनियों को अपनी आय का अधिकांश भाग विकास कार्यों में लगाना आवश्यक होता है। अतः वे अंशधारियों को कम दर से लाभांश देकर शेष आय का प्रतिधारण कर लिया करती है।

उच्चावचन

उच्चावचनों अर्थात तेजी-मन्दी के साथ-साथ लाभांश नीति भी परिवर्तित हो जाती है। मन्दी के समय लाभ की मात्रा घट जाती है फलतः लाभांश दर में कमी करने के लिए कम्पनी बाध्य हो जाती है। अगर कम्पनी ने लाभांश समानीकरण कोष पर्याप्त मात्रा में रखा हो तो येन-केन प्रकारेण लाभांश की उचित दर बनाए रखने में सफल हो जाती हैं। तेजी के समय तो लाभ बढ़ने से कम्पनी जगत में लाभांश दर बढ़ाने की होड़ सी लग जाती है।

सरकारी नीति

सरकार की नीतियों में समय समय पर परिवर्तन होते रहते हैं जिससे कम्पनी के लाभों में कमी व वृद्धि होना अवश्यम्भावी हो जाता है। सरकार की औद्योगिक श्रम एवं प्रशुल्क नीतियों का लाभांश नीति पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए उदारीकरण के वर्तमान दौर में कम्पनी क्षेत्र के नियंत्रण व शुल्कों में कमी हो रही है। फलतः लाभ व लाभांश पर धनात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

कर नीति

कभी-कभी सरकार पूंजी निर्माण की गति तीव्र करने के उद्देश्य से लाभों को अधिकांश भाग को पुनर्विनियोजित करने वाली कम्पनियों को आय कर में सुविधाएं देती है। इसी प्रकार अधिक लाभांश वितरित करने वाली संस्थाओं पर अतिरिक्त कर लगाकर लाभों के पुनर्विनियोग को प्रोत्साहित किया जाता है। इसलिए लाभांश नीति पर कर नीति का प्रभाव पड़ता है।

सार्वजनिक मत

किसी भी लोकतांत्रिक देश में जनमत तथा सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं का व्यापक प्रभाव लाभांश नीति पर पड़ता है। अधिक लाभांश देने वाली कम्पनियाँ की जनता द्वारा आलोचना की जाती है। श्रमिक अपने वेतन और बोनस वृद्धि की और उपभोक्ता वस्तु मूल्य में कमी की मांग करने लगते हैं जिससे कम्पनी को कठोर लाभांश नीति अपनानी पड़ती है।

अन्य तत्व

लाभांश नीति को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य तत्व अग्रलिखित हैं-

  • (क) व्यवसाय की प्रकृति-लाभांश नीति पर व्यवसाय की संरचना का असर होता है।
  • (ख) स्वामित्व संरचना-पूंजी संरचना में अंशपूंजी की मात्रा का लाभांश पर प्रभाव पड़ता है।
  • (ग) अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता-बाजार से पूंजी पुनः एकत्र करना पिछली लाभांश नीति की अहम भूमिका होती है।
  • (घ) पूंजी बाजार में पहुँच, एवं
  • (ङ) प्रबन्धकीय दृष्टिकोण, आदि।