रामलाल चंद्राकर

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रामलाल चन्द्राकर (3 जनवरी 1920 - 27 जून 2009) भारत के एक जुझारू स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता थे।

उनका जन्म ग्राम खौली, थाना खरोरा, जिला रायपुर में 3 जनवरी 1920 को हुआ था। बड़े भाई नरसिंग प्रसाद चन्द्राकर, दुर्गाप्रसाद सिरमौर के साथ राष्‍ट्रीय विद्यालय रायपुर में पढ़ते थे, वे कीकाभाई के दुकान पर पिकेटिंग में शामिल थे। सन् 1932 में वहाँ पुलिस द्वारा लाठी चार्ज करने पर उनका सिर फट गया तथा उन्हें गिरफ्तार कर महासमुंद के जंगल में छोड़ दिया उस वर्ष से उनकी पढ़ाई बंद हो गई।

सन् 1933 में गांधी जी रायपुर आये तो उनके दर्शनार्थ रामलाल जी ग्राम खौली से 34 कि.मी. की पदयात्रा कर शुक्ल भवन, रायपुर पहुंचे। गांधी जी को नजदीक से देखने सुनने के बाद देश भक्‍ति कि भावना जागृत हुई, प्रायमरी शिक्षा हुई थी आगे की पढ़ाई स्थगित हो गई। वे रायपुर में रहने लगे। डॉ.त्रेतानाथ तिवारी व नंदकुमार दानी के संपर्क में रहकर काम किया फिर कुरुद चले गए। वहां मिडिल 5वीं से 7वीं तक पढ़ाई की तब उन्हें मास्टरी की नौकरी मिल गई। जिसे उन्होंने नहीं किया।

मिडिल शिक्षा उपरांत श्यामशंकर मिश्र प्रधान पाठक कुरुद (निवासी गिरसुल, देवभोग) के माध्यम से महंत लक्ष्मीनारायण दास के पास रायपुर पहुंचे। सन् 1938 में स्वयंसेवक के रूप में प्रवेश किया। 1942 में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने सुचारू रूप से चलाने, प्रचार व प्रसार आदि में सन् 1944 तक सक्रिय रहे। रामलाल, मनोहर लाल श्रीवास्तव दोनों बाबूलाल शर्मा वैद्यराज सत्तीबाजार, रायपुर के मकान में रहते थे। दोनों मिलकर सैकलोस्टाइल, हिंदी टाइपराइटर को रखकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ प्रचार-प्रसार का कार्य करते थे। शहर का काम मनोहर लाल तथा जिले व जिले से बाहर के काम की जिम्मेदारी रामलाल की थी।

नन्दलाल तिवारी ग्राम दरबा, सेठ छोटे लाल ग्राम खट्टी, भगवान धर दीवान ग्राम तुमगांव, जीवन गिरजी ग्राम लभरा, जयदेव सतपथी तोषगाँव, बुधवा साव, लक्ष्मी लाल जैन व लालजी चन्द्राकर महासमुंद, लखनलाल गुप्ता आरंग, लक्ष्मीप्रसाद तिवारी बलौदाबाजार, चित्रकांत जायसवाल व चितले वकील बिलासपुर, द्वारिका नाथ तिवारी व नरसिंह प्रसाद अग्रवाल दुर्ग, जगतराम ग्राम बेलर, जुड़ावन दास वैष्णव ग्राम साहनी खार (सिहावा), भोपाल राव पवार व शिवरतन पूरी धमतरी आदि लोगों को प्रचार-प्रसार की सामग्री पहुँचाया करते थे।

2 अक्टूबर 1942 को कांग्रेस भवन में झंडा फहराने की योजना बनी जिम्मेदारी रामलाल को मिली जहाँ बंदूकधारी पुलिस का कड़ा पहरा था। वे आशाराम दुबे (मास्टर बैजनाथ स्कूल) से संपर्क कर सीढ़ी आदि की व्यवस्था कर स्कूल में रखवा दी। सुबह 4 बजे कांग्रेस भवन पहुंचे और भालू राऊत (चौकीदार) से साइड में सीढ़ी लगवाया व चढ़कर छत में पहुंचे सामने खम्भे में रस्सी बांधकर झंडा फहराकर चुपचाप उतरकर सीढ़ी हटवाकर वापस आ गए।

15 अगस्त 1947 को आजादी की खुशी का उत्सव के रूप में कांग्रेस भवन से जुलूस निकाला गया जिसमें दूधाधारी मंदिर से हाथी लाया गया। हाथी पर भारत माता के फोटो के साथ रामलाल चन्द्राकर को बिठाकर जुलूस पूरे शहर भर घुमाया गया था।

आजादी के बाद छत्तीसगढ़ खेतिहर संघ के अध्यक्ष रहे। आपातकाल में 18 जुलाई 1975 से 21 मार्च 1977 तक मीसा में बंद रहे। मार्केटिंग सोसायटी, आरंग के दो बार अध्यक्ष रहे। सन् 1977 से 1980 तक मंदिरहसौद विधानसभा के प्रथम विधायक बने। वीरेन्द्र कुमार सकलेचा म.प्र. मंत्रिमंडल में सहकारिता राज्यमंत्री रहे।

छत्तीसगढ़ प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संघ के वे मृत्युपर्यन्त कोषाध्यक्ष रहे।

27 जून 2009 को आजादी के जुझारू सेनानी का निधन हो गया।[१]

सन्दर्भ