मोहिनी अवतार
मोहिनी | |
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विश्व मोहित करने वाली श्री विष्णु के अवतार देवी मोहिनी | |
संबंध | विष्णु का अवतार, अमृत के वितरक |
अस्त्र | मोहकता, सुदर्शन चक्र |
जीवनसाथी | साँचा:if empty |
संतान | साँचा:if empty |
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मोहिनी हिन्दू भगवान विष्णु का एकमात्र स्त्री अवतार है। इसमें उन्हें ऐसे स्त्री रूप में दिखाया गया है जो सभी को मोहित कर ले। उसके प्रेम में वशीभूत होकर कोई भी सब भूल जाता है, इस अवतार का उल्लेख महाभारत में भी आता है। समुद्र मंथन के समय जब देवताओं व असुरों को सागर से अमृत मिल चुका था, तब देवताओं को यह डर था कि असुर कहीं अमृत पीकर अमर न हो जायें। तब वे भगवान विष्णु के पास गये व प्रार्थना की कि ऐसा होने से रोकें। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर अमृत देवताओं को पिलाया व असुरों को मोहित कर अमर होने से रोका।
कई स्थानों पर मोहिनी अवतार का भगवान शम्भू से विवाह का प्रसंग भी आता है। भगवान शंकर और देवी मोहिनी के एक पुत्र भी हुए थे उनका नाम अय्यपा था।
मोहिनी अवतार में भगवान श्री विष्णु जी नर से नारी बनकर सारे संसार की, असुरों से रक्षा की थीं।अगर भगवान विष्णु जी मोहिनी रूप में नहीं आते तो मानव जाति इस दुनिया से लुप्त हो गये होते।
मोहिनी अवतार और भस्मासुर
भस्मासुर पौराणिक कथाओं में ऐसा दैत्य था जिसने भगवान शिव से वरदान माँगा था कि वो जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। कथा के अनुसार भस्मासुर ने इस शक्ति का गलत प्रयोग शुरू किया और स्वयं शिव जी को भस्म करने चला। शिव जी ने विष्णु जी से सहायता माँगी। विष्णु जी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया, भस्मासुर को आकर्षित किया और नृत्य के लिए प्रेरित किया। नृत्य करते समय भस्मासुर विष्णु जी की ही तरह नृत्य करने लगा और उचित मौका देखकर विष्णु जी ने अपने सिर पर हाथ रखा, जिसकी नकल शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने भी की। भस्मासुर अपने ही वरदान से भस्म हो गया।
समुद्र मंथन और मोहिनी अवतार
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समुद्र मन्थन के दौरान अंतिम रत्न अमृत कलश लेकर भगवान विष्णु धनवंतरी रूप में प्रकट हुए। असुर भगवान धन्वंतरि से अमृत कलश लेकर भाग गए तो धन्वंतरि एक सुन्दर नारी के रूप मेंप्रकट हुए जो बहुत सुन्दर थी उस नारी का नाम मोहिनी रखा गया। मोहिनी ने असुरों से अमृत लिया और देवताओं के पास गईं। उन्होंने असुरों को अपनी ओर मोहित कर लिया और देवताओं को अमृत पिलाने लगीं। मोहिनी रूपी विष्णु की चाल स्वरभानु नाम का दानव समझ गया और वह देवता का भेस लेकर अमृत पीने चला गया। मोहिनी को जब ये बात पता चली तो उन्होंने स्वरभानु का सिर सुदर्शन चक्र से काट दिया किंतु तब तक उसके गले से अमृत की घूंट नीचे चली गई और वह अमर हो गया और राहु के नाम से उसका सिर और केतु के नाम से उसका धड़ प्रसिद्ध हुआ।
सन्दर्भ
- धार्मिक ग्रन्थों का संदर्भ
- अग्नि पुराण ३.१२ (अमृत वितरण हेतु विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण, रुद्र की मोहिनी पर आसक्ति व वीर्यपात आदि)
- गणेश पुराण २.३९.२० (भस्मासुर द्वारा शिव को मारने की चेष्टा पर विष्णु का मोहिनी रूप में प्रकट होना),
- गरुड़ पुराण १.२१.४(वामदेव शिव की १३ कलाओं में से एक),
- गर्ग संहिता १०.१७.२०(राजा नारीपाल की पत्नी, नारीपाल का वृत्तान्त),
- १०.१७.४६(रानी सुरूपा को पूर्व जन्म का स्मरण : मोहिनी अप्सरा द्वारा तप से सुरूपा रूप में जन्म),
- नारद पुराण १.६६.१२७(निरंजन की शक्ति मोहिनी का उल्लेख),
- १.९१.८०(वामदेव शिव की १२वीं कला),
- २.७(राजा रुक्मांगद को धर्मपथ से विचलित करने के लिए ब्रह्मा द्वारा मोहिनी की उत्पत्ति),
- २.२३(मोहिनी द्वारा रुक्मांगद राजा से एकादशी व्रत न करने का दुराग्रह),
- २.३२+ (मोहिनी द्वारा रुक्मांगद से पुत्र धर्मांगद के मस्तक की मांग),
- २.३५+ (देवताओं द्वारा मोहिनी को वरदान की चेष्टा, रुक्मांगद - पुरोहित के शाप से मोहिनी का भस्म होना, यम लोक में यातनाएं, दशमी के अन्त भाग में स्थान की प्राप्ति, पुन: शरीर प्राप्ति),
- २.८२(वसु ब्राह्मण के उपदेश से मोहिनी द्वारा तीर्थ यात्रा का उद्योग, दशमी तिथि के अन्त भाग में स्थित होना),
- पद्म पुराण २.३४.३९(सखियों द्वारा सुनीथा को पुरुष विमोहिनी विद्या का उपदेश),
- २.११८(विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण कर विहुण्ड के विमोहन का वृत्तान्त),
- ४.१०(समुद्र मन्थन से अमृत उत्पन्न होने पर विष्णु का मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों का विमोहन और देवों को अमृत प्रदान),
- ६.४९(वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य : धनपाल वैश्य के दुष्ट पुत्र धृष्टबुद्धि की मुक्ति),
- ६.२२०(मोहिनी वेश्या की प्रयाग जल से मुक्ति, जन्मान्तर में हेमांगी रानी बनना),
- ब्रह्मवैवर्त्त पुराण ४.३१+ (मोहिनी का रम्भा से संवाद, काम स्तोत्र, ब्रह्मा से संवाद, ब्रह्मा को शाप),
- ब्रह्माण्ड पुराण २.३.४.१०(अमृत वितरणार्थ विष्णु द्वारा धारित मोहिनी रूप पर शिव की आसक्ति),
- ३.४.१०.२७(मोहिनी अवतार द्वारा देवों को अमृतपान कराने का वर्णन, मोहिनी दर्शन से शिव का वीर्यपात),
- ३.४.१९.६५(कामदेव की ५ बाण शक्तियों में से एक),
- ३.४.१९.७४ (गीतिचक्र रथेन्द्र के पंचम पर्व पर स्थित १६ शक्तियों में से एक),
- भविष्य पुराण ३.२.१८(गौरीदत्त व धनवती - पुत्री, शूली आरोपित चोर से विवाह, प्रहेलिका का अर्थ बताने वाले पण्डित से गर्भ धारण आदि),
- भागवत पुराण १.३.१७(विष्णु के २१ अवतारों में १३वें मोहिनी अवतार का उल्लेख),
- ८.८+ (मोहिनी द्वारा अमृत वितरण का आख्यान),
- ८.१२(मोहिनी की क्रीडा का वर्णन, मोहिनी द्वारा शिव का मोहन),
- मत्स्य पुराण २५१.७(मोहिनी अवतार द्वारा असुरों के मोहन व देवों को अमृत प्रदान का कथन),
- वायु पुराण २५.४८(मधु - कैटभ से पीडित होने पर ब्रह्मा के समक्ष मोहिनी माया के प्रकट होने का कथन, ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया के नामकरण, मधु - कैटभ द्वारा मोहिनी से पुत्रत्व वर की प्राप्ति),
- २५.५० (महाव्याहृति : ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया को महाव्याहृति नाम प्रदान),
- शिव पुराण ३.२०(मोहिनी के रूप से शिव के वीर्य की च्युति, हनुमान का जन्म),
- स्कन्द पुराण १.१.१२(मोहिनी रूपी विष्णु द्वारा दैत्यों की अमृतपान से वंचना),
- लक्ष्मीनारायण १.९२(मोहिनी रूप धारी विष्णु द्वारा अमृत के वितरण की कथा),
- १.१६२.४२(मधु - कैटभ वध हेतु विष्णु द्वारा महामाया की सहायता से मोहिनी रूप धारण),
- १.१८४.५८(शिव को समाधि से बाहर लाने के लिए कृष्ण द्वारा मोहिनी रूप धारण, मोहिनी के दर्शन से ब्रह्मा, काम आदि के वीर्य का पतन, कामदेव की सहायता से मोहिनी द्वारा शिव को मोहित करना आदि),
- १.१९९.१६(शिव द्वारा दानवों को मोहित करनेv वाली मोहिनी के रूप के दर्शन की इच्छा, मोहिनी के दर्शन से वीर्यपात आदि का वृत्तान्त),
- १.२८६.१५(ब्रह्मा द्वारा राजा रुक्मांगद के व्रत को भंग करनेv के लिए मोहिनी का सृजन तथा रुक्मांगद के प्रति प्रेषण),
- १.२८७-२९२(रुक्मांगद - मोहिनी आख्यान),
- १.५१५.३(ब्रह्मा की मानसी कन्या मोहिनी द्वारा ब्रह्मा के सेवन का हठ, ब्रह्मा द्वारा उपेक्षा पर ब्रह्मा तथा ऋषियों को अपूज्यत्व तथा षण्ढत्व का शाप, षण्ढत्व नाश हेतु मोहिनी की अर्चना का कथन),
- २.५७.७८(निद्रा देवी का अपर नाम),
- २.२४६.९०(अज्ञानमूलक वृक्ष के रूपक में मोहिनी के रसतृष्णा होने का उल्लेख),
- ३.१६.८५(व्याघ्रानल असुर के वध हेतु लक्ष्मी द्वारा मोहिनी रूप धारण करना, व्याघ्रानल असुर का मोहिनी को देख जडीभूत होना आदि),
- ३.१७०.१९(विष्णु के ३३वें धाम के रूप में मोहिनी का उल्लेख),
- कथासरित्सागर ८.३.११८(याज्ञवल्क्य ऋषि द्वारा सूर्यप्रभ को मोहिनी विद्या प्रदान करना)
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शंकर ने दौड़कर क्रीड़ा करती हुई मोहिनी को ज़बरदस्ती पकड़ लिया। महादेव शिव शंकर की तत्कालीन दयनीय अवस्था का चित्र देखना हो तो श्रीमद्भागवत, स्कन्द 8, अध्याय 12, देखने का कष्ट करें जिसमें लिखा है-
- आत्मानं मोचयित्वाङग सुरर्षभभजान्तरात्।
- प्रादवत्सापृथु श्रोणी माया देवविनिम्र्मता।। 30।।
- तस्यासौ पदवीं रूद्रो विष्णोरद्भुत कम्मर्णः।
- प्रत्यपदत्तकामेन वैदिणेव निनिर्जितः।। 31।।
- तस्यानुधावती रेतश्चल्कन्दार्माघरेतसः।
- शुष्मिणो यूथपस्येव वासितामनु धावतः।। 32।।
अर्थात् : हे महाराजा ! तदन्तर देवों में श्रेष्ठ शंकर के दोनों बाहुओं के बीच से अपने को छुड़ाकर वह नारायणनिर्मिता विपुक्ष नितंबिनी माया (मोहिनी) भागचली॥
- 30: अपने वैरी कामदेव से मानो परास्त होकरमहादेव जी भी विचित्र चरित्र वाले विष्णु का मायामय मोहिनी रूप के पीछे-पीछे दौड़ने लगे॥
- 31: पीछा करते-करते ऋतुमती हथिनी के अनुगामी हाथी की तरह अमोघवीर्य महादेव का वीर्य स्खलित होने लगा॥
- 32।।