मेला (2000 फ़िल्म)
मेला | |
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चित्र:मेला1.jpg मेला का पोस्टर | |
निर्देशक | धर्मेश दर्शन |
निर्माता | वीनस रिकॉर्ड्स & टेप्स |
लेखक |
धर्मेश दर्शन नीरज वोरा |
पटकथा |
रोबिन भट्ट संजीव दुग्गल नीरज वोरा |
अभिनेता |
आमिर ख़ान, फैसल ख़ान, ट्विंकल खन्ना, जॉनी लीवर, अयूब ख़ान, ऐश्वर्या राय, असरानी |
संगीतकार |
अनु मलिक राजेश रोशन |
प्रदर्शन साँचा:nowrap | 7 जनवरी, 2000 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
मेला 2000 में जारी हुई हिन्दी भाषा की एक्शन मसाला फ़िल्म है। इसका निर्देशन धर्मेश दर्शन द्वारा किया गया और मुख्य भूमिकाओं में आमिर ख़ान उनके भाई फैसल ख़ान और ट्विंकल खन्ना हैं।[१]
संक्षेप
एक युवा महिला, रूपा (ट्विंकल खन्ना) का एकमात्र सैनिक भाई (अयूब ख़ान), विवाह की व्यवस्था करने के लिए चंदनपुर गांव लौटता है। रूपा की शादी की खुशी में त्योहार की व्यवस्था की जाती है, हालांकि चंदनपुर की खुशी अल्पकालिक रही, क्योंकि गांव पर डाकुओं के एक समूह ने हमला किया। डाकुओं के नेता, गुज्जर (टीनू वर्मा) ने एक राजनेता की हत्या की और उसकी नजर रूपा की सुंदरता पर पड़ी है। हालांकि, जैसे ही गुज्जर भयभीत रूपा को ले जाने का प्रयास करता है, उसका भाई उसके बचाव के लिए आता है। लेकिन वो मारा जाता है, ये गाँव और विशेष रूप से रूपा के लिए बहुत दहशत भरा होता है। इसके अलावा, उसके सबसे अच्छा दोस्त गोपाल (ओम कपूर) उसकी मां (तन्वी आज़मी) के सामने मारा जाता है। उन्होंने अपने बेटे को रूपा (उसकी छोटी उम्र के कारण) को बचाने से रोकने की कोशिश की थी जिस कारण गुजर ने उसे मार दिया। रूपा, इस तथ्य से गुस्से में कि उसके भाई और गोपाल अब नहीं रहे, वो प्रतिशोध की प्रतिज्ञा लेती है।
गुज्जर ने रूपा को धमकी दी कि वह केवल उसकी रखैल होगी और कभी भी उसे ना भाई और ना ही प्रेमी मिलेगा। गुस्से में, रूपा ने झरने में कूदकर आत्महत्या करने का प्रयास किया क्योंकि उसे रखैल होने की बजाए खुद को मारना बेहतर लगा। रूपा जीवित रहती है और वह रंगमंच अभिनेता किशन (आमिर ख़ान) के कपड़े चुराती है। किशन अपने सबसे अच्छे दोस्त, ट्रक चालक, शंकर (फैसल ख़ान) के साथ काम करता है। जब किशन पहली बार रूपा से मिलता है, तो उसकी सुंदरता पर फिदा हो जाता है और उसके साथ प्यार में हो जाता है। किशन ने रूपा को अपने नृत्य शो की नायिका बनाने का फैसला किया, हालांकि, शंकर ने उसे चेतावनी दी कि रूपा उन्हें परेशानी में लाएगी। और कोई विकल्प ना होने के कारण, रूपा उनके साथ यात्रा करती है। वह भागने की कोशिश करती है, लेकिन कोई गिरोह द्वारा उसका पीछा किया जाता है और नशे में धुत एक उससे बलात्कार करने की कोशिश करता है। हालांकि, रूपा को शंकर और किशन द्वारा बचाया जाता है। रूपा किशन से प्यार का ढोंग करती है, जो उससे शादी करना चाहता है और दोनों पुरुष चंदनपुर लौटने में उसकी मदद करने के लिए सहमत होते हैं। जब किशन रूपा से शादी करने जा रहा होता है, वो अपने विश्वासघात पर दोषी महसूस करती है और वह उन्हें अपनी कहानी बताती है।
शंकर उसका भाई बन जाता है, जबकि किशन, टूटे दिल से, घृणा में उन्हें छोड़ देता है। रूपा और शंकर चंदनपुर लौटते हैं, जहां शंकर गाँव को संगठित करता है। वह गुज्जर के लिए जाल स्थापित करने का प्रयास करते हैं, जिसे रूपा के जिंदा होने के बारे में पता चला है और गाँव वालों से उसके ठिकाने का पता लगाने के लिए आतंकित कर रहा है। जब तक किशन एक निलंबित पुलिस पक्कड़ सिंह (जॉनी लीवर) के साथ वापस नहीं आ जाता तब तक जाल उलटा पड़ जाता है। जाल को एक और मेले के साथ फिर से स्थापित किया जाता है और खलनायक योजना के मुताबिक हमला करते हैं। रूपा का अपहरण कर लिया जाता है और किशन और शंकर पीछा करते हैं। उन्हें पकड़ लिया जाता है और गुज्जर के छिपे हुए स्थान पर ले जाया जाता है जहां उन्हें उससे और उसके आदमियों से लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। आखिरकार चंदनपुर के ग्रामीणों के आगमन के साथ, अच्छाई प्रबल होती है और डाकू का खूनी अंत होता है। रूपा अपने भाई शंकर और प्रेमी किशन के साथ एकजुट होती है। अंत में किशन और रूपा शादी कर लेते हैं। ट्रक चलाते समय शंकर चंपाकली (ऐश्वर्या राय) से मिलता है और किशन और रूपा देख रहे होते हैं।
मुख्य कलाकार
- आमिर ख़ान - किशन प्यारे
- फैसल ख़ान - शंकर शाणे
- ट्विंकल खन्ना - रूपा सिंह
- जॉनी लीवर - इंस्पेक्टर पकड़ सिंह
- अयूब ख़ान - राम सिंह, रूपा का भाई, विशेष भूमिका
- ऐश्वर्या राय - चंपाकली, विशेष भूमिका
- असरानी - बनवारी बनिया
- टीनू वर्मा - गुज्जर सिंह
- नवनीत निशान - बुलबुल, डाकिया
- टीकू तलसानिया - मुरारी, सरपंच
- अर्चना पूरन सिंह - विद्यावती, गाँव की लडकी
- तन्वी आज़मी - गोपाल की माँ
- परमीत सेठी - विशेष भूमिका में
- कुलभूषण खरबंदा - मंत्री, विशेष भूमिका
- विजू खोटे - पाटिल राव सिंह
- हरीश पटेल - सेठ चंदूलाल पोपटलाल
- मास्टर ओमकार - गोपाल
संगीत
रोचक तथ्य
- कयामत से कयामत तक (1988) व जो जीता वही सिकन्दर (1992) के बाद खान बंधु, आमिर व फ़ैसल, सह-अभिनीत यह तीसरी फ़िल्म है।
- ऐश्वर्या राय को इस फ़िल्म के अंतिम भाग मे पर्दे पर दिखाया गया है।