मात्सुओ बाशो

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

मात्सुओ बाशो (१६४४-१६९४) एक महान जापानी कवि थे जो हाइकु काव्य विधा के जनक माने जाते हैं। हाइकु कविता की लोकप्रियता और समृद्धि में उनका विशेष योगदान है।[१]

जीवन

बाशो एक जैन संत थे। बाशो ने हाइकु को काव्य विधा के रूप में स्थापित किया। बाशो का बचपन का नाम ‘जिन शिचरो’ था। इनके शिष्य ने केले का पौधा भेंट में दिया तो उसे रोप दिया। वहीं अपनी कुटिया भी बना ली। ‘बाशो-आन’ (केला) के नाम पर अपना नाम भी बाशो कर लिया। बाशो हाइकु को दरबारी या अन्य शब्द क्रीड़ा से बाहर लेकर आए और काव्य की वह गरिमा प्रदान की कि विश्व भर की भाषाओं में इन छन्दों को प्राथमिकता दी जाने लगी। यह घुमक्कड़ और प्रकृति प्रेमी वीतरागी सन्त कहलाए। इन्हें प्रकृति और मनुष्य की एकरूपता में भरोसा था। जेन दर्शन में जो क्षण की महत्ता है, वह इनके काव्य का प्राण बनी। यात्रा के दौरान इनके लगभग दो हजार शिष्य बनें, जिनमें से ३०० पर्याप्त लोकप्रिय हुए। इनका मानना था कि सार्थक पाँच हाइकु लिखने वाला सच्चा कवि और दस लिखने वाला महाकवि कहलाने का हकदार है। इनका मानना था कि इस संसार का प्रत्येक विषय हाइकु के योग्य है। एकाकीपन, सहज अभिव्यक्ति और अन्तर्दृष्टि बाशो की तीन अन्त: सलिलाएँ हैं।

मात्सुओ बाशो

मात्सुओ बाशो जन्म एक समुराए घराने में १२ अक्टूबर, १६४४ को उनो के इगा प्रदेश में हुआ। उनके द्वारा रचा साहित्य यह दर्शाता है कि उन्होंने अपनी तमाम आयु प्रकृति की गोद में बिताई। चालीस वर्ष की आयु में वे एक भिक्षु की तरह जगह-जगह घूमने लगे। बौद्ध मत को मानने वाले (जिन्हें जेन कहा जाता था) और प्रकृति को चाहने वाले हजारों लोग उनके शिष्य बन गए। उनमें से एक शिष्य ने उनके लिए एक झोंपड़ी बना दी और उसके सामने एक केले का पेड़ लगा दिया। केले को जापानी भाषा में ‘बाशो‘ कहते हैं। उनकी झोंपड़ी को ‘बाशो-एन’ कहा जाता था। इसके पश्चात वह मात्सुओ बाशो बने। वे कम शब्दों में बड़ी बात कह देते थे। जापान में बहुत से स्मारकों पर बाशो के हाइकु लिखे गए हैं। किसी बीमारी की वजह से बाशो की मृत्यु २८ नवम्बर १६९४ को हो गई। बाशो हाइकु के प्रमुख चार कवियों- (बाशो, बुसोन, इस्सा, शिकि) में से एक हैं। हाइकु के इतिहास में सत्रहवीं शताब्दी के मध्य से अठारहवीं शताब्दी मध्य तक का एक शताब्दी का काल बाशो-युग के नाम से अभिहित किया जाता है।[२]

बाशो की एक प्रसिद्ध कविता है-[३]

फुरु इके या
काबाज़ु तोबिकोमु
मिज़ु नो ओतो


ताल पुराना
कूदा दादुर
पानी की आवाज़

प्रमुख कृतियाँ

उनकी यात्रा डायरी 'ओकु-नो-होसोमिचि' जापानी साहित्य की अमूल्य निधि मानी जाती है।

सन्दर्भ

साँचा:sister

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. जापानी कविताएँ, अनुवाद- सत्यभूषण वर्मा, सीमान्त पब्लिकेशंस इंडिया, 65/1 हिन्दुस्थान पार्क, कलकत्ता-700029, 1977, पृष्ठ-109
  3. जापानी कविताएँ, अनुवाद- सत्यभूषण वर्मा, सीमान्त पब्लिकेशंस इंडिया, 65/1 हिन्दुस्थान पार्क, कलकत्ता-700029, 1977, पृष्ठ-22

बाहरी कड़ियाँ