दलीप सिंह (महाराजा)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(महाराजा दिलीप सिंह से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:infobox महाराजा दलीप सिंह (6 सितम्बर 1838, लाहौर -- 22 अक्टूबर, 1893, पेरिस) महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र तथा सिख साम्राज्य के अन्तिम शासक थे। इन्हें 1843 ई. में पाँच वर्ष की आयु में अपनी माँ रानी ज़िन्दाँ के संरक्षण में राजसिंहासन पर बैठाया गया।

परिचय

रणजीत सिंह के मरते ही पंजाब की दुर्दशा शुरू हो गई। दलीप सिंह पंजाब का अंतिम सिक्ख शासक था जो सन् १८४३ में महाराजा बना। राज्य का काम उसकी माँ रानी जिंदाँ देखती थीं। इस समय अराजकता फैली होने के कारण खालसा सेना सर्वशक्तिमान् हो गई। सेना की शक्ति से भयभीत होकर दरबार के स्वार्थी सिक्खों ने खालसा को १८४५ के प्रथम सिक्ख-अंग्रेज-युद्ध में भिड़ा दिया जिसमें सिक्खों की हार हुई और उसे सतलुज नदी के बायीं ओर का सारा क्षेत्र एवं जलंधर दोआब अंग्रेज़ों को समर्पित करके डेढ़ करोड़ रुपया हर्जाना देकर १८४६ में लाहौर की संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा। रानी ज़िन्दाँ से नाबालिग राजा की संरक्षकता छीन ली गई और उसके सारे अधिकार सिक्खों की परिषद में निहित कर दिये गये।

परिषद ने दलीप सिंह की सरकार को 1848 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार के विरुद्ध दूसरे युद्ध में फँसा दिया। इस बार भी अंग्रेज़ों के हाथों सिक्खों की पराजय हुई और ब्रिटिश विजेताओं ने दलीपसिंह को अपदस्थ करके पंजाब को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। कोहिनूर हीरा छीनकर महारानी विक्टोरिया को भेज दिया गया। दलीप सिंह को पाँच लाख रुपया सालाना पेंशन देकर रानी ज़िंदा के साथ इंग्लैण्ड भेज दिया गया, जहाँ दलीप सिंह ने ईसाई धर्म को ग्रहण कर लिया और वह नारकाक में कुछ समय तक ज़मींदार रहा। इंग्लैंण्ड प्रवास के दौरान दलीप सिंह ने 1887 ई. में रूस की यात्रा की और वहाँ पर ज़ार को भारत पर हमला करने के लिए राज़ी करने का असफल प्रयास किया। बाद में वह भारत लौट आया और फिर से अपना पुराना सिक्ख धर्म ग्रहण करके शेष जीवन व्यतीत किया।

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:asbox