मणिपुरी साहित्य

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

मणिपुरी भाषा (मेइतेइ) का साहित्य समृद्ध है और मणिपुरी साहित्य का लिखित अस्तित्व अष्टम शताब्दी से ही प्राप्त होता है। १९७३ से आज तक ३९ मणिपुरी साहित्यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। मणिपुरी साहित्य में वैष्णव भक्ति तथा मणिपुर की कला / संस्कृति झलकती है। कहानी, उपन्यास, काव्य, प्रवास वर्णन, नाटक आदि सभी विधाओं में मणिपुरी साहित्य ने अपनी पहचान बनाई है। मखोनमनी मोंड्साबा, जोड़ छी सनसम, क्षेत्री वीर, एम्नव किशोर सिंह आदि मणिपुरी के प्रसिद्ध लेखक हैं।

मणिपुरी साहित्य की यात्रा १९२५ में फाल्गुनी सिंह द्वारा मैतै तथा बिष्णुप्रिया मणिपुरी भाषा की द्बिभाषिक सामयिकी ”जागरन” के प्रकाशन के रूप में आरम्भ हुआ। इसी समय और भी कई द्बिभाषिक पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं। इनमें "मेखली"(१९३३), "मणिपुरी" (१९३८), क्षत्रियज्योति (१९४४) इत्यदि अन्यतम हैं।

प्रकाशित ग्रन्थावली

  • भानुबिल कृषकप्रजा आन्दोलन बारोह बिष्णुप्रिया मनिपुरी समाज (गवेषना) - अध्यापक रनजित सिंह
  • निङसिङ निरले (जीवनचरित) - अध्यापक रनजित सिंह
  • रसमानजुरी (एला) - राधाकान्त सिंह
  • ज्बीर मेरिक (कविता) - राधाकान्त सिंह
  • थाम्पाल (कविता) - अध्यापक रनजित सिंह
  • नियति (कविता) - अध्यापक रनजित सिंह
  • चिकारी बागेय (कविता) - अध्यापक रनजित सिंह
  • तौर निंसिङे (कविता) - सुखमय सिंह
  • छेयाठइगिर यादु (कविता)- शुभाशिस समीर
  • सेनातम्बीर आमुनिगत्त सेम्पाकहान पड़िल अदिन (कविता)- शुभाशिस समीर
  • कनाक केथक (शौर कविता) - अध्यापक रनजित सिंह
  • बाहानार परान (शौर कविता) - अध्यापक रनजित सिंह
  • कुमपागा (यारि) - अंजन सिंह
  • नुया करे चिनुरि मेयेक (कविता) - शुभाशिस समीर

बांग्लादेश से प्रकाशित ग्रन्थावली

बांलादेश में प्रकाशित मणिपुरी ग्रन्थों की तालिका
ग्रन्थ का नाम लेखक/सम्पादक प्रकाशकाल
(१) बसन्त कुन्निपालगी लैराङ् (काब्य) ए के शेराम १९८२
(२) बांलादेशकी मणिपुरी (कविता संकलन) सम्पा: ए के शेराम १९९०
(३) मङ मपै मरक्ता (काव्य) शेराम निरञ्जन १९९५
(४) ओयाखलगी नाचोम (काव्य) हामोम प्रमोद १९९५
(५) मणिपुरी शक्ताक खुदम सम्पा: ए के शेराम १९९९
(६) लैनम याओद्रिबी लैरां (काव्य) सनातोन हामोम २०००
(७) इचेल इराओखोल सम्पा: शेराम निरञ्जन २०००
(८) एक बसन्तेर भालबासा (अनुबाद कविता संकलन) सम्पा: मुतुम अपु २००१
(९) नोङ्गौबी (गल्प) ए के शेराम २००१
(१०) थओयाइगी नुंशिरै (काव्य) सनातन हामोम २००३
(११) मचु नाइबा मङ (निबन्ध) खोइरोम इन्द्रजित् २००३
(१२) अतोप्पगी पिरां (काव्य) शेराम निरञ्जन २००४
(१३) लैरांगी लैरों (काब्य) मुतुम अपु २००४
(१४) इन्नफि (काव्य) खोइरोम इन्द्रजित् २००५
(१५) मोंफम थम्मोयगी नुंशिब (काब्य) माइस्नाम राजेश २००५
(१६) नातै चाद्रबा पृथिबी (काव्य) शेराम निरञ्जन २००५
(१७) मङ मरक्ता (काव्य) सनातन हामोम २००६
(१८) मङलानगी आतियादा नुमित् थोकपा ए के शेराम २००७
(१९) ओयाखलगी मङाल (काब्य) इमोदम रबिन २००७
(२०) फरंजाइ ओयाखल (प्रबन्ध) शेराम निरञ्जन २००७

पत्रपत्रिकाएँ

  • खङचेल - सम्पादक श्री कृष्णकुमार सिंह
  • इमार ठार - सम्पादक श्री राजकान्त सिंह
  • सत्यम - सम्पादक रनजित सिंह
  • मिङाल - सम्पादक नन्देश्बर सिंह
  • जागरन - सम्पादक धीरेन्द्रकुमार सिंह
  • मणिपुरीर साहित्य - सम्पादक श्री सुकुमार सिंह बिमल
  • पौरि - सम्पादक उत्तम सिंह
  • इथाक - सम्पादक संग्राम सिंह
  • कुमेइ - सम्पादक अनजन सिंह
  • गाओरापा - सम्पादक सुमन सिंह
  • पौरि पत्रिका - सम्पादक सुशील कुमार सिंह
  • मणिपुरी थियेटारर पत्रिका - सम्पादक शुभाशिस समीर

मणिपुरी का लोक-साहित्य

लोक साहित्य की दृष्टि से मणिपुरी लोक साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। मणिपुर में लोक साहित्य की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। मणिपुरी लोक साहित्य में प्राप्त पहेलियों का क्षेत्र व्यापक है। इन पहेलियों में मणिपुरी लोक जीवन से संबद्ध साधारण से साधारण एवं असाधारण से असाधारण वस्तु को अपना वर्ण्य विषय बनाया गया है।

प्राचीन काल में किस प्रकार लोक साहित्य का उद्भव एवं विकास हुआ और किस तरह वह भिन्न–भिन्न शताब्दियों से होकर आज की अपनी स्थिति को बनाये हुए है, यह विषय नितान्त विचारणीय एवं मननीय है। लोक साहित्य मुख्य रूप से मौखिक होता है। लोक साहित्य की विभिन्न विधायें यथा– लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, लोकनाटय, जनश्रुतियाँ, लोकोक्तियाँ, कहावतें, पहेलियाँ एवं मुहावरे आदि परम्परागत रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती रहती हैं। इन विधाओं का मणिपुर में प्रयोग कब से आरम्भ हुआ यह बता पाना नितान्त असम्भव है। उपलब्ध सामग्री के आधार पर अनुमान है कि जब से मणिपुरी समाज का सृजन हुआ, तब से ही या उससे पहले से भी उक्त सभी विधायें प्रचलित रही होंगी। चूँकि ये सभी विधायें मौखिक एवं श्रुति परम्परा पर आधारित रही हैं, इसलिए इनके उद्भव के सम्बन्ध में कुछ भी बता पाना सम्भव नहीं है, किन्तु मणिपुरी संस्कृति, लोक दर्शन एक ऐसा विशिष्ट दर्शन है, जो आततायियों के कई आक्रमण झेलकर भी अपनी अस्मिता अपना पहचान एवं अपना सांस्कृतिक मूल्य सुरक्षित रख पाया है। मणिपुर के विरात सांस्कृतिक उत्सव धार्मिक को समझने के लिए मणिपुरी लोक साहित्य के अंतर्निहित भावों का दर्शन अत्यन्त महत्वपूर्ण है।[१]

गीति-साहित्य

मणिपुरी का काव्य-भंडार गीति-बहुल है । ईसवी सन के आरंभिक वर्षों से ही जिन काव्यात्मक कृतियों का अस्तित्व माना जाता है, वे सारे गीति ही हैं । परवर्ती काल की भी सत साहित्य एवं लोक-साहित्य की कृतियाँ वे चाहे मुक्तक हों या गाथात्मक, गीतिमूलक ही हैं ।

प्राचीन गीतिकार

प्राचीन काल की सारी गीति रचनाएँ अनाम हैं । भारतीय साहित्य की सामान्य प्रवृत्ति के अनुसार रचनाकारों का आत्म-गोपन एक आदर्श ही था। सत्य एवं अनुभूति का सम्प्रेषण ही रचनाकार का उददेश्य होता था न कि आत्म-प्रचार। अतएव इस काल के रचनाकार अपने भावों में ही जीवित हैं, न कि नाम में । ऐसी स्थिति में प्राचीन-गोतिकार कौन-कौन थे, कहना कल्पनातीत है।

मध्यकालीन गीतिकार

प्राचीन काल की रचनाओं की तरह मध्यकाल की रचनाएँ भी अनामांकित ही हैं। इस काल की उपलब्ध सारी पुस्तकें रचनाकार के नामों से रहित हैं। ऐसी स्थिति में नृत्य-गीतों का अनामांकित होना तो और भी स्वाभाविक है । संस्कृत की गीति रचनाएँ भी अनामांकित ही हुआ करती थीं, किन्तु महाकवि जयदेव ने अपने विश्व प्रसिद्ध 'गीतगोविन्द' में नामांकित पदों की रचना कर एक नई रचना प्रणाली प्रचलित की । परवर्ती काल के भाषा-पदकारों ने इस प्रणाली का अनुसरण किया और विद्यापति की नामांकित 'भिणिता शैली' पद रचना का एक आदर्श ही हो गयी । उत्तर भारत का सम्पूर्ण पद-साहित्य भणिता युक्त है। इस शैली का व्यापक प्रभाव दक्षिण के मराठी तथा पश्चिम के गुजराती पद-साहित्य तक अवलोकनीय है ।

मणिपुर में राजर्षि भाग्यचन्द्र से भणिता युक्त पद रचने की प्रथा आरम्भ हुई । इनके बाद से यहाँ के पदकारों की क्रमबद्ध सूची उपलब्ध होती है । ये सारे पदकार ब्रजबुलि के ही पदकार थे । "मणिपुरगी निंधौ शिंगी रचना" नामक पद संग्रह के आधार पर निम्नलिखित राजन्य पदकार उपलब्ध हैं।

1. राजर्षि भाग्यचन्द्र, 2. लावण्य चन्द्र सिंह, 3. मधुचन्द्र सिंह, 4. चौरजीत सिंह, 5. मारजीत सिंह, 6. ययुसिंह, 7. गम्भीर सिंह, 8. नर सिंह, 9. देवेन्द्र सिंह, 10. चन्द्रकीर्ति सिंड, 11. सुरचन्द्र सिंह, 12. कुलचन्द्र सिंह, । 3. चूड़ाचाँद सिंह, 14. बोधचन्द्र सिंह

आधुनिक गीतिकार

मणिपुरी साहित्य में आधुनिक काल का आरम्भ 1819 से माना जाता है। गीति रचनाओं की दृष्टि से सम्पूर्ण १९वीं शताब्दी मणिपुर में ब्रजबुली/ब्रजावली पद-साहित्य की रचना का काल है।

अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में राजर्षि भाग्यचन्द्र ने ब्रजावली पदों की रचना कर मणिपुर में जिस पद-रचना शैली का सूत्रपात किया उसे उनके वंशधरों ने बीसवीं शताब्दी के मध्य तक जीवित रखा ।

बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण (सन् 1919 ई0) में सर्वप्रथम चूड़ाचाँद महाराज ने श्री गोविन्द जी के चरणों में अर्पित मणिपुरी पद के द्वारा मणिपुरी में पद-रचना का सूत्रपात किया । उन्होंने मणिपुरी में और भी कुछ रचनाएँ की इसका विवरण उपलब्ध नहीं होता।

आधुनिक मणिपुरी गीति के प्रथम उद्भावक धौम्याचार्य उपाख्य धौम्य शर्मा या धौम्य ठाकुर हैं। उन्होंने सर्व प्रथम होली के गीतों की रचना मणिपुरी में की। धौम्याचार्य द्वारा प्रवर्तित इस गीति-आन्दोलन का संवर्द्धन करनेवालों में निम्न व्यक्ति प्रमुख हैं -- ओझा कोन्जेंबम अतोयाइ सिंह, सनख्या सूर्यवरण राजकुमार, मोंजम तिलक सिंह, शगोलशेम कालिदमन सिंह, खाड़ेम्बम गुलापी सिंह आदि ।

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ