भूगोल शब्दावली
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
- अजैव: कोई भी अजीवित वस्तु; सामान्यतः इसका तात्पर्य प्राणी के पर्यावरण के भौतिक और रासायनिक घटकों से होता है।
- अपसौर/सूर्योच्च: पृथ्वी के परिक्रमा पथ का वह बिंदु जो सूर्य से सर्वाधिक दूर ( 152.5मिलियन कि-मी-) होता है। अपसौर 3 अथवा 4 जुलाई को घटित होता है।
- अधिकेंद्र/एपिसेंटर: पृथ्वी की सतह पर वह स्थल-बिंदु जो भूकंप के उद्गम केंद्र से सब से कम दूरी पर स्थित होता है और इसी स्थल-बिंदु पर भूकंपी तरंगों की ऊर्जा का विमोचन होता है।
- अवरोही पवन: पर्वतीय ढाल से नीचे की ओर बहने वाली पवन।
- आवास: पारिस्थितिकी के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द जिससे किसी पौधे या प्राणि के रहने के स्थान/क्षेत्र का बोध होता है।
- एल निनो: इक्वेडोर एवं पेरू तट के साथ-साथ सामुद्रिक सतह पर कभी-कभी गर्म पानी का प्रवाह। पिछले कुछ समय से संसार के विभिन्न भागों के पूर्वानुमान के लिए इस परिघटना का प्रयोग किया जा रहा है। यह सामान्यतः क्रिसमस के आसपास घटित होता है। तथा कुछ सप्ताहों से कुछ महीनों तक बना रहता है।
- ओजोन: त्रि-आणुविक ऑक्सीजन जो पृथ्वी के वायुमंडल में एक गैस के रूप में पाई जाती है। ओजोन का अधिकतम संकेंद्रण पृथ्वी के पृष्ठ से 10-15किलोमीटर की ऊँचाई पर स्ट्रेटोस्फियर (समताप मंडल) में पाई जाती है जहाँ पर यह सूर्य की परा-बैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है। समताप मंडलीय ओजोन नैसर्गिक रूप से पैदा होती है तथा पृथ्वी पर सूर्य के पराबैंगनी विकिरण के दुष्प्रभाव से जीवन की रक्षा करती है।
- ओजोन छिद्र: समताप मंडलीय ओजोन संकेन्द्रण में तीव्रता से मौसमी गिरावट। यह अंटार्कटिक में वसंत ऋतु में घटित होती है। इसकी जानकारी 1970 में मिली थी उस के बाद यह वायुमंडल में जटिल रसायनिक अभिक्रिया, जिसमें (CFC) क्लोरोफ्लोरोकार्बन भी सम्मिलित हैं, के फलस्वरूप बार-बार प्रकट होता है।
- अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र: विषुवत् वृत्त या उसके पास निम्न वायु दाब तथा आरोही वायु का क्षेत्र। ऊपर उठने वाली वायु धाराएं वैश्विक वायु अभिसरण तथा ताप जनित संवहन द्वारा बनती हैं।
- केल्सीभवन: एक शुष्क पर्यावरणीय मृदा निर्माणकारी प्रक्रिया जिससे धरातल की मृदा परतों में चूना एकत्रित हो जाता है।
- क्लोरोफ्लोरोकाबर्न (सी एफ सी): कृत्रिम रूप से उत्पन्न गैस जो पृथ्वी के वायुमंडल में सान्द्रित हो गई है। यह बहुत ही प्रबल ग्रीनहाउस गैस है जो एरोसाल फुहारों, प्रशीतकों, धूम से बनती है।
- कोरिऑलिस बल: पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न एक आभासी बल जो उत्तरी गोलार्द्ध में गतिमान चीजों को अपनी दाहिने ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध मे अपने बाईं ओर विक्षेपित कर देता है। विषुवत् वृत्त पर यह बल शून्य होता है। इस बल से मध्यअंक्षाशीय चक्रवातों, हरीकेन तथा प्रतिचक्रवातों जैसे मौसमी परिघटनाओं के प्रवाह की दिशा निर्धारित होती हैै।
- कपासी मेघ: अपेक्षाकृत समतल आधार वाले वृहत् मेघ। ये 300 से 2000 मीटर की ऊँचाई तक पाए जाते है।
- कपासी वर्षी मेघ: एक पूर्णतः विकसित ऊर्घ्वाधर मेघ जिसका शीर्ष प्रायः निहाई की आकृति का होता है। इन मेघों का विस्तार पृथ्वी के धरातल पर कुछ सौ मीटर से लेकर 12000 मी॰ तक हो सकता है।
- ग्रीन हाउस प्रभाव: दैर्घ्याधर तरंगों के रूप में अंतरिक्ष में प्रेषित ऊर्जा को वायुमंडल द्वारा अवशोषित करके पृथ्वी के धरातल को ढक लेना।
- ग्रीन हाउस गैसें: ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए जिम्मेदार गैंसे है। इन गैसों में कार्बन-डाइआक्साइड (CO2 ), मिथेन, नाइट्रस आक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सी-एफ-सी-) तथा क्षोभ मंडलीय ओजोन सम्मिलित हैं।
- गुप्त ऊष्मा: किसी पदार्थ को एक अवस्था से दूसरी उच्चतर अवस्था (जैसे ठोस से द्रव , या द्रव से गैस) में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा। यही ऊर्जा पदार्थ से उस समय उत्पन्न होती है जब स्थिति उलट जाती है जैसे (गैस --> द्रव या द्रव --> ठोस)।
- जैव-विविधता: विभिन्न प्रजातियों की विविधता (प्रजातीय विविधता), प्रत्येक प्रजाति में आनुवांशिक विभिन्नता (आनुवांशिक विविधता) और पारितंत्रें की विविधता।
- ज्वालामुखी कुंड: विस्फोटक प्रकार का ज्वालामुखी जिससे विशाल वृत्ताकार गर्त बन जाता है। इनमें कई गर्तों का व्यास 40 कि-मी- जितना बड़ा हो सकता है ये ज्वालामुखी तब बनते हैं जब ग्रेनाइट प्रकार का मैग्मा पृथ्वी की सतह की ओर तीव्रता से उठाता है।
- जलयोजन (हाइड्रेशन): रासायनिक अपक्षयण का एक रूप जो किसी खनिज के परमाणु एवं अणुओं के साथ पानी के (H+ तथा OH-) आयनों की दृढ़ संलग्नता का द्योतक है।
- जल अपघटन (हाड्रोलिसिस) : रासायनिक अपक्षयण की वह प्रक्रिया जिस में खनिज आयनों एवं जल आयनों (H+ तथा OH-) की प्रतिक्रिया सम्मिलित होती है। और इससे नए यौगिकों के निर्माण से चट्टानी पृष्ठ का अपघटन होता है।
- ताप प्रवणस्तर: किसी जल संहति में वह सीमा जहाँ तापक्रम में अधिकतम ऊर्घ्वाधर परिवर्तन होता है। यह सीमा सतह के पास पाए जाने वाले पानी की कोष्ण परत तथा गंभीर शीतल पानी की परत के बीच का संक्रमण क्षेत्र है।
- थल समीर: स्थल और जल के मध्य अंतरापृष्ठ पर पाया जाने वाला स्थानीय ताप परिसंचरण तंत्र। इस तंत्र में पृष्ठीय पवनें रात के समय स्थल से सागर की ओर चलती हैं।
- दुर्बलतामंडल: पृथ्वी के मेंटल का वह खंड जो लचीले लक्षणों का प्रदर्शन करता है। दुर्बलतामंडल स्थल मंडल के नीचे 100 से 200 कि-मी- के बीच अवस्थित होता है।
- ध्रुवीय ज्योति: ध्रुवीय प्रदेशों के अपर ऊपरी वायुमंडल (असनमंडल) में बहुरंगी प्रकाश जो मघ्य एवं उच्च अक्षांशों में स्थित स्थानों से दृष्टिगोचर होता है, इसकी उत्पति सौर पवनों की ऑक्सीजन और नाइट्रोजन से परस्पर क्रिया फलस्वरूप होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में ध्रुवीय ज्योति को 'उत्तर ध्रुवीय ज्योति' और दक्षिणी गोलार्द्ध में इसे 'दक्षिणी ध्रुवीय ज्योति' कहा जाता है।
- पक्षाभस्तरी मेघ: बहुत ऊँचाई पर चादर की तरह के बादल ये भी हिम कणों से बनते हैं। इन बादलों की पतली परत पूरे आकाश पर छाई हुई दिखती है। ये भी 5000 से 18000 मीटर की ऊँचाई तक पाए जाते हैं।
- पारिस्थितिक तंत्र/पारितंत्र: किसी क्षेत्र का जैव एवं अजैव तत्वों से बना तंत्र। ये दोनों समुदाय अंतःसंबंधित होते हैं और इनमें अंतः क्रिया होती है।
- पुरा चुंबकत्त्व (पैलियोमैगनटिज्म): चट्टानों की रचना काल में उन में विद्यमान चुंबकीय प्रवृत्ति।
- प्लेट विवर्तनिकी: वह सिद्धांत जिस की मान्यता है कि भूपृष्ठ कुछ महासागरीय एवं महाद्वीपीय प्लेटों से बना है। इन प्लेटों में पृथ्वी के दुर्बलतामंडल के ऊपर धीरे-धीरे खिसकने की योग्यता होती है।
- प्रकाश संश्लेषण: यह एक रसायनिक प्रक्रिया है जिसमें पौधे तथा कुछ बैक्टीरिया सूर्य से ऊर्जा प्राप्त कर के उसे धारण कर लेते हैं।
- बायोम: पृथ्वी पर प्राणियों और पौधों का सबसे बड़ा जमाव। बायोम का वितरण मुख्यतः जलवायु से नियंत्रित होता है।
- बिग बैंग: ब्रहमांड की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांत। इस सिद्धांत के अनुसार 1500 करोड़ वर्ष पूर्व ब्रह्मांड के समस्त पदार्थ एवं ऊर्जा एक अणु से भी लघु क्षेत्र में सांद्रित थे। इस अवस्था में पदार्थ, ऊर्जा, स्थान (स्पेस) और समय अस्तित्व में नहीं थे। तब अचानक एक धमाके के साथ ब्रह्मांड अविश्वसनीय गति से विस्तृत होने लगा और पदार्थ, ऊर्जा, स्थान और समय अस्तित्व में आए। ज्यों ही ब्रहमांड का विस्तार हुआ पदार्थ गैसीय बादलों में व तत्पश्चात् तारों व ग्रहों में संलीन होने लगा। कुछ विद्वानों का विश्वास है कि यह विस्तार परिमित है और एक दिन रुद्ध हो जाएगा। समय के इस मोड़ पर जब तक बिग क्रंच घटित नहीं होता ब्रह्मांड का विध्वंस होना आरंभ हो जाएगा।
- बैथोलिथ/महास्कंध: अधोतल में स्थित आंतरिक [[आग्नेय शैल|आग्नेय शैलों की विशाल संहति, जिसकी उत्पत्ति मैटल मैग्मा से हुई है।
- भाटा: उच्च ज्वार के पश्चात् समुद्र के पानी की सतह में गिरवट या प्रतिसरण।
- भूकंप: भूकंप पृथ्वी के भीतर की यकायक गति या हिलने को कहते हैं। यह गति धीरे-धीरे संचित ऊर्जा के भूकंपी तंरगों के रूप में तीव्र मोचन के कारण उत्पन्न होती है।
- भूकंप उद्गम केंद्र (अथवा अधिकेंद्र/एपिसेन्टर): भूकंप में प्रतिबल मोचन बिंदु।
- भू-चुंबकत्व: चट्टानों की रचना की अवधि के दौरान चुंबकीय रूप से ग्रहण शील खनिजों का पृथ्वी के चुबंकीय क्षेत्र से संरेखित होने का गुणधर्म।
- भूमंडलीय ऊष्मन: ग्रीन हाउस गैसों के कारण पृथ्वी के औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि।
- भूविक्षेपी पवन: ऊपरी वायुमंडल मे समदाब रेखाओं के समानांतर चलने वाली क्षैतिज पवन जो दाब प्रवणता बल एवं कोरियालिस बल के बीच संतुलन से उत्पन्न होती है।
- महाद्वीपीय पर्पटी: भू-पर्पटी का ग्रेनाइटी भाग जिस से महाद्वीप बने हैं। महाद्वीपीय पर्पटी की मोटाई 20 से 75 किलोमीटर के बीच पाई जाती है।
- रुद्धोष्म ह्रास दर: ऊपर उठती अथवा नीचे आती वायु संहति के तापमान के परिवर्तन की दर। यदि कोई अन्य अरुद्धोष्म प्रक्रियाएँ (जैसे तन्त्र में उष्मा का प्रवेश अथवा निकास) घटित नहीं होतीं (जैसे संघनन, वाष्पीकरण और विकिरण) तो विस्तार वायु के इस खंड का 0.98° सेल्सियस प्रति 100 मीटर की दर से शीतलन करती है। जब कोई वायु का खंड वायुमंडल में नीचे उतरता है तो इससे विपरीत घटित होता है, नीचे उतरती वायु का खंड संपीडित हो जाता है। संपीडन के कारण वायु के खंड का तापमान 0.98° सेल्सियस प्रति 100 मीटर बढ़ जाता है।
- रेगिस्तानी कुट्टिम: वायु द्वारा बारीक कणों के अपरदन के बाद भूमि पर छूटे हुए मोटे कणों की पतली चादर।
- ला निना: यह एल निनो की विपरीत स्थिति होती है। इस के अंतर्गत उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागरीय व्यापारिक पवने सबल हो जाती है जिस के कारण मध्यवर्ती एवं पूर्वी प्रशांत महासागर मे ठंडे जल का असामान्य संचयन हो जाता है।
- लघु ज्वार भाटा: हर 14-15 दिन में आने वाला ज्वार जो चंद्रमा के पहले चौथाई या आखिरी चौथाई काल में होता है। इस समय चंद्रमा तथा सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल एक दूसरे की लंबवत स्थिति में होते है। अतः ज्वार की ऊँचाई या भाटे की नीचाई सामान्य से कम होती है।
- वर्षण: भू-पृष्ठ पर मेघों से वर्षा की बूंदों, हिम एंव ओले के रूप में गिरना। वर्षा, हिमपात, करकापात तथा मेघों का फटना आदि वर्षण के विभिन्न रूप हैं।
- वर्षास्तरी मेघ: वर्षा अथवा हिमपात के रूप में लगातार वर्षण करने वाले एवं कम ऊँचाई वाले काले या भूरे मेघ। ये प्रायः भूपृष्ठ से 3000 मीटर की ऊँचाई तक पाये जाते हैं।
- वायु संहति: वायु का वह पिंड जिसमें उद्भव क्षेत्र से ग्रहण किए गए तापमान एवं आर्द्रता के लक्षण सैकड़ों से हजारों किलोमीटर की क्षैतिज दूरियों में अपेक्षाकृत स्थिर रहते हैं। वायुसंहतियाँ उद्भव क्षेत्र में अनेक दिनों तक स्थिर रहने के बाद अपने जलवायविक लक्षणों का विकास करती हैं।
- वायुमंडलीय दाब: धरातल पर वायुमंडल का भार। समुद्र तल पर औसत वायुमंडलीय 1013.25 मिलीबार होता है। दाब को एक उपकरण द्वारा मापा जाता है जिसे वायुदाब मापी अथवा बैरोमीटर कहा जाता है।
- शीताग्र: वायुमंडल में एक सक्रमण क्षेत्र जहाँ आगे बढ़ती हुई एक शीत वायु संहति गर्म वायु संहति को विस्थापित कर देती है।
- सूर्यातप: सूर्य की लघु तरंगों के रूप में विकीर्ण ऊर्जा।
- सौर पवन: सूर्य द्वारा अंतरिक्ष मे प्रेषित आयन युक्त गैस संहति यह ध्रुवीय ज्योति (प्रकाश पुंज) के बनने में सहायक होती है।
- प्रतिध्रुवस्थ स्थित ( Amtipodal Situation): ग्लोब पर किसी भी स्थान के ठीक विपरीत स्थान को उसका प्रतिध्रुवस्थ बिन्दु कहा जाता है। लोथियन ग्रीन ने अपने टेट्राहेड्रल पृथ्वी की संकल्पना में स्थल के विपरीत जल तथा जल के विपरीत स्थल की स्थिति को प्रतिध्रुवस्थ स्थिति के रूप में प्रस्तुत किया है।
- समकालिक रेखा (Isochrones): चट्टानों में स्थित प्राचीन चुम्बकत्व के आधार पर उनके मानचित्रण में समान तिथियो की चट्टानों को रेखांकित करने के लिये जो रेखायें भौमिकीय मानचित्र पर खींची जाती हैं उन्हें समकालिक रेखा कहते है। ये रेखायें एक निश्चित कालावधि के दौरान बनी चट्टानों को उनके चुम्बकीय गुणों के आधार पर अलग-अलग दर्शाती हैं।
- केन्द्रीय भूसन्नति (Eugeosyncline): सागरीय किनारों पर स्थित ऐसी भूसन्नति कहते है जिसमें ज्वालामुखीय पदार्थ तथा क्लास्टिक अवसादों का मोटा निक्षेप पाया जाता है।
- स्थल गोलार्द्ध (Land Hemisphere): स्थलीय भागो के आधिक्य के कारण उत्तरी को स्थल गोलार्द्ध कहते है।
- पुराचुम्बकत्व (Palaeomagnetism): पृथ्वी के विभिन्न भूगर्भिक कालो में निर्मित शैलो में संरक्षित चुम्बकीय गुणों(अवशेषो) को पुराचुम्ब्कत्व कहते है।
- प्लेट (Plate): पृथ्वी की ऊपरी परत के वे टुकड़े जो एस्थेनोस्फीयर की अर्ध-पिघलित परत पर तैर रहे हैं प्लेट कहलाते हैं। ये टुकड़े पृथ्वी की भूपर्पटी और ऊपरी मैंटल के उस हिस्से से बने हैं जो एस्थेनोस्फीयर के ऊपर पाया जाता है। सामान्यतया प्लेटों कि मोटाई 100 किलोमीटर मानी जाती है जो स्थानिक रूप से अलग-अलग भी हो सकती है।
- सागर-नितल प्रसरण (Sea-floor Spreading): मध्य महासागरीय कतको के सहारे किसी भी महासागरीय तली के दोनों तरफ फैलने को सागर नितल का प्रसरण कहते है। यह क्रियाअपसारी (divergent) या रचनात्मक (constructive) प्लेटो के मध्य महासागरीय कटको के अपसरण (विपरीत दिशाओ में गमन) के कारण होता है। इस क्रिया द्वारा महासागरो कि तालियो (floors या bottom) में निरंतर विस्तार होता है।
- गोला (sphere): एक गोला वह ज्यामितीय आकृति है जिसका आयतन उसके धरातलीय क्षेत्रफल कि अपेक्षा सर्वाधिक है।
- चतुष्फलक(tetrahedron): एक चतुष्फलक चार फलकों वाली ज्यामितीय आकृति है। इसकी विशेषता यह है कि अन्य ज्यामितीय आकृतियों की तुलना में यह न्यूनतम आयतन में अधिकतम धरातलीय क्षेत्रफल रखने वाली आकृति है।
- दुर्बलता मण्डल(Asthenosphere): स्थालमंडल के नीचे 85 किमी से कई सौ किलोमीटर कि गहराई तक वाले भाग कि अपेक्षा काम दृढ होती है परन्तु इतनी दृढ(rigid) अवश्य होती है कि उनसे होकर अनुप्रस्थ भूकम्पीय तरंगे अग्रसर हो सके को दुर्बलतामंडल कहते है।
- अंतरतम (core): पृथ्वी कि धरातलीय सतह से 2900 किमी से प्रारंभ होकर पृथ्वी के केंद्र(6371 किमी) तक के आंतरिक भाग को पृथ्वी का क्रोड या अंतरतम कहते है।
- भूपर्पटी अथवा क्रस्ट(crust): पृथ्वी कि धरातलीय सतह से नीचे 30किमी (अधिकतम 100 किमी) की गहराई वाले भाग को क्रस्ट कहा जाता है। इसका औसत घनत्व 2.8 से 3.0 होता है।
- भूप्रवार अथवा मैन्टिल(mantle): पृथ्वी कि क्रस्ट के नीचे से 2900 किमी की मोटाई वाला पृथ्वी का आंतरिक भाग मैन्टिल कहा जाता है।
- निफे(nife): पृथ्वी कि सबसे निचली आंतरिक परत का स्वेस ने इसकी खानिजीय रचना के अधार पर निफे (निकल+ फेरियम) नामकरण किया। इस परत में लोहे की उपस्थिति से पता चलता है कि पृथ्वी के क्रोड में चुम्बकीय शक्ति हैं।
- सियाल(sial): एडवर्ड स्वेस ने पृथ्वी कि क्रस्ट (उपरी परत) का नामकरण सिलिका (silica-si) तथा अलुमिनियम (Aluminium-al) की प्रधानता के कारण सियाल (si+al) किया है।
- सिमा(sima): एडवर्ड स्वेस ने सियाल के नीचे स्थित पृथ्वी कि दूसरी परत का नामकरण सिलिका और मैग्निशियम कि प्रधानता के आधार पर सीमा (si+ma) किया था।
- प्रशान्त महासागर का ज्वालावृत्त(Pacific ring of fire): प्रशान्त महासगर के चारो ओर महाद्वीपीय किनारों, द्वीपीय चापों (island arcs) एवं सागरीय द्वीपों के सहारे सक्रिय जवालामुखियों की एक रैखिक श्रृंखला जो प्रशान्त महासागर के किनारों के सहारे एक वृत्त का निर्माण करती है, जहाँ भूकम्प और ज्वालामुखी की घटनायें बहुलता से दर्ज़ की जाती हैं प्रशान्त महासागर का ज्वालावृत्त कहलाती है।
- भूकंप अभिकेन्द्र अथवा भूकम्प अधिकेन्द्र (Epicentre): भूकंप मूल के ठीक ऊपर धरातलीय सतह पर स्थित उस केंद्र को भूकम्प अधिकेन्द्र कहते है जहाँ भूकम्पीय लहरें सबसे पहले पहुँचती हैं।
- भूकंप मूल(Focus): धरातलीय सतह के नीचे जिस भाग में भूकंप उत्पन्न होता है, अर्थात भूकम्प लाने वाली ऊर्जा जिस स्थान पर निःसृत होती है, उस स्थान को भूकंप की उत्पत्ति का केंद्र या भूकंप मूल (Focus) कहते है।
- पतालीय भूकंप(Plutonic earthquake): धरातलीय सतह से अत्यधिक गहराई पर उत्पन्न होने वाले भूकम्पों को प्लूटानिक भूकंप या पातालीय भूकम्प भी कहते है। यह नामकरण यूनानी मिथकों के अनुरूप पाताल के के देवता 'प्लूटो' के नाम पर किया गया है। इस तरह के भूकम्प सामान्यतः 700 किलोमीटर से अधिक गहराई में उत्पन्न होते हैं।
- वलित पर्वत(folded mountain): अभिसारी क्षैतिज संचलन के कारण उत्पन्न पार्श्ववर्ती संपीडन (lateral compression) होने से अवसादी चट्टानों के वलित होने से अपनति (anticlines) एवं अभिनति (synclines) से युक्त पर्वत को वलित पर्वत कहते है।
- पर्वत कटक(Moutanin ridge): कम चौड़ी एवं ऊची पहाड़ियो के क्रम (सिलसिले) को पर्वत कटक कहते है जो आकर में लम्बे तथा सकरे होते है।
- क्षेपण(Subduction): जब दो अभिसारी प्लेट्स (Converging plate) एक दूसरे से टकराती हैं तो अपेक्षाकृत भारी प्लेट का अग्रभाग मुड़कर हलकी प्लेट के नीचे चला जाता है और अंततः एस्थेनोस्फीयर के अन्दर जा कर पिघलना शुरू हो जाता है। इसे प्लेट क्षेपण कहते है।
- चुम्बकीय नति (अंग्रेजी:Magnetic inclination): पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुवों के बीच के कोणीय अन्तर को चुम्बकीय नति कहा जाता है, यह समय के साथ परिवर्तनशील होती है। सामान्यतया स्थलाकृति मानचित्रों पर इसका उल्लेख इस सूचना के साथ किया जाता है कि यह प्रतिवर्ष किस गति से बदल रही है।
सन्दर्भ
हम कुछ नहीं जानते है