सिलिका

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बालू या रेत

सिलिका या सिलिकॉन डाईऑक्साइड (Silica, SiO2), खनिज सिलिकन और ऑक्सीजन के योग से बना है। यह निम्नलिखित खनिजों के रूप में मिलता है:

१. क्रिस्टलीय: जैसे क्वार्ट्ज

२. गुप्त क्रिस्टलीय: जैसे चाल्सीडानी, ऐगेट और फ्लिंट

३. अक्रिस्टली : जैसे ओपल।

गुणधर्म

क्वार्ट्ज षड्भुजीय प्रणाली का क्रिस्टल बनता है। साधारणत: यह रंगहीन होता है पर अपद्रव्यों के विद्यमान होने पर यह भिन्न-भिन्न रंगों में मिलता है। इसकी चमक काँचाभ तथा टूट शंखाभ होती है। यह काँच को खुरच सकता है, इसकी कठोरता ७ है। इसका आपेक्षिक घनत्व २.६५ है।

सिलिका वर्ग के अन्य खनिजों के गुण भी क्वार्ट्ज से मिलते-जुलते हैं। पर नीचे दिए हुए गुणों की सहायता से इन खनिजों को सरलता से पहचाना जा सकता है। चाल्सीडानी को छूने पर मोम का सा अनुभव होता है, ऐगेट में भिन्न-भिन्न रंगों की धारियाँ पड़ी रहती हैं, फ्लिट खनिज को तोड़ने पर बहुत पैने किनारे उपलब्ध होते हैं। ओपल की कठोरता अपेक्षाकृत कम होती है - ५.५ से ६.५ तक, तथा आपेक्षिक घनत्व भी १.९ से २.३ तक होता है। ओपल के गुणों की यह भिन्नता इस खनिज के योग में विद्यमान जल के कारण है। इस खनिज में जल की मात्रा अधिक से अधिक १० प्रतिशत तक हो सकती है।

उपयोग

सिलिका का उपयोग भिन्न-भिन्न रूपों में होता है। बालू में विद्यमान छोटे-छोटे कण काँच तथा धात्विक उद्योगों, विशेषत: भट्ठियों के निर्माण में काम आते हैं। सिरेमिक सामानों के निर्माण में सिलिका काम आता है। तापरोधी ईंटें इससे बनती हैं। ताप परिवर्तन को यह सरलता से पूरक के रूप में सहन कर लेता है। यह खनिज, रंग तथा कागज उद्योग में काम आता है। शुद्ध, रंगहीन, क्वार्ट्ज क्रिस्टल से प्रकाशयंत्र तथा रासायनिक उपकरण बनाए जाते हैं। सिलिका से बनी बालू शिलाएँ मकान बनाने के पत्थरों के रूप में प्रयोग की जाती हैं।

प्राप्ति

इसके खनिज आग्नेय, जलज तथा रूपांतरित तीनों प्रकार की शिलाओं में मिलते हैं पर इनके आर्थिक निक्षेप पैगमेटाइट शिलाओं में, नसों तथा धारियों में और बालू में मिलते हैं।

मध्य प्रदेश के जबलपुर में शुद्ध बालू मिलता है। गया के राजगिरि पहाड़ियों, मुंगेर की खरकपुर पहाड़ियों, पटना के बिहारशरीफ, उड़ीसा के संबलपुर तथा बागरा के कुछ भाग में तापरोधी कार्यों के लिए उत्कृष्ट कोटि का स्फटिकाश्म (Quartzetes) प्राप्त होता है। राजस्थान के बूंदी, जयपुर जिले से सिलिका सैंड प्राप्त होती है

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