भग (हिन्दू धर्म)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
भग
साँचा:larger
संबंध आदित्य
ग्रह सूर्य
जीवनसाथी साँचा:if empty
माता-पिता अदिति
संतान साँचा:if empty

स्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।संस्कृत भग का अर्थ स्वामी या संरक्षक होता है, किंतु इसका प्रयोग "धन" अथवा "समृद्धि" दर्शाने के लिए भी किया जा सकता है। अवस्ताई भाषा और पुरानी फ़ारसी में संज्ञानात्मक शब्द बग का प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ अनिश्चित है, किंतु जिस संदर्भ में इसका प्रयोग किया जाता है, उससे इसका अर्थ "प्रभु, संरक्षक, सौभाग्य-दायक" निकल कर आता है। स्लाव भाषाओं में bog शब्द-मूल इसका एक कॉगनेट (एक ही मूल वाले शब्द) है। अर्थविज्ञान से यह अंग्रेजी के शब्द लॉर्ड ( hlaford "रोटी-दायक") के समान है। इसके पीछे विचार यह है कि यह अपने अनुयायियों के बीच धन वितरित करने वाले सरदार या नेता के कार्य का हिस्सा है। बगदाद शहर का नाम मध्य फारसी बग-दाता, "भगवान-देय" से निकला है।

ऋग्वेद में, भग मनुष्यों और देवताओं- दोनों के लिए प्रयुक्त एक विशेषण (का उदाहरण है। उदाहरण के लिए सवितृ, इंद्र और अग्नि जो धन और समृद्धि प्रदान करते हैं, के लिए यह शब्द प्रयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त, यह शब्द किसी एक विशेष देवता के लिए भी प्रयोग में जाया जा सकता है, यदि वे भी वही वस्तुएँ प्रदान करें। ऋग्वेद में, अवतरण के विषय में मुख्य रूप से ऋग्वेद ७.४१ में बात की गई है, जो भग और उनके निकटतम देवताओं की स्तुति के लिए समर्पित है, और जिसमें भग को लगभग ६० बार, अग्नि, इंद्र, मित्र-वरुण (द्वंद्व), दो अश्विनीकुमार, पूषन्, बृहस्पति, सोम और रुद्र के साथ आमंत्रित किया जाता है।

इंद्र, वरुण और मित्र जहाँ होते हैं, भग शब्द वहाँ अन्यत्र भी प्रयोग में लाया गया है (जैसे, १०.३५, ४२.३९६)। मानवीकरण कभी-कभी जानबूझकर अस्पष्ट होता है, जैसे कि ५.४६ में जहां नरों को भग में अपने भाग के लिए अनुरोध करते हुए दर्शाया गया है। ऋग्वेद में, भग को कभी-कभी सूर्य से जोड़कर देखा जाता है- १.१२३ में उषा को भग की बहन कहा जाता है, और १.१३६ में, भग के चक्षु किरणों से सुसज्जित होते हैं।

५वीं / ६ठी शताब्दी ईसा पूर्व की निरुक्त ( निर॰ १२.१३) भग को प्रभात के देवता के रूप में वर्णित करती है। ऋग्वेद में, भग को एक आदित्य के रूप में नामित किया गया है, जो अदिति (ऋगवैदिक देवताओं की माता) के सात (या आठ) दिव्य पुत्र हैं। मध्ययुगीन भागवत पुराण में, भाग पौराणिक आदित्यों के साथ पुनः प्रकट होता है, जो तब तक बारह सौर देवता हो जाते हैं।

अन्यत्र, भग धन और विवाह के देवता के रूप में देखे जाते रहे हैं- जैसे सोग़दाई (बौद्ध) लोग। संबंधित कथाओं में, शिव द्वारा निर्मित एक शक्तिशाली नायक, वीरभद्र का वर्णन है, जिसने एक बार उन्हें अंधा कर दिया था।

जातिवाचक संज्ञा भग का द्वितीय शताब्दी के रुद्रदमन प्रथम के शिलालेख में भी प्रयोग हुआ है, जहां इसे एक वित्तीय शब्दावली माना गया है। इसके अतिरिक्त इसी शिलालेख में इसका प्रयोग भगवान के रूप में भी हुआ है "भग के गुण वाला (-वान)", अर्थात स्वयं "ईश्वर, भगवान के लिए"। इसका एक और प्रयोग भाग्य शब्द ("जो भग से मिलता हो वही भाग्य है") में देखने मिलता है- यहाँ यह एक सार संज्ञा के रूप में प्रयुक्त है, और भाग्य का सूर्य के रूप में मानवीकरण भी ।

भग, पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र के पीठासीन देवता भी हैं।

संदर्भ