ब्रह्मा

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(प्रजापति से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
ब्रह्मा
साँचा:larger
MET DP156142.jpg
भगवान ब्रह्मा पुष्कर में हवन करते हुए।
अन्य नाम चतुरानन , श्वेताम्बर , ब्रह्मेश , रचियेता आदि
देवनागरी ब्रह्मा
संस्कृत लिप्यंतरण Brahmā
संबंध हिन्दू देवता
निवासस्थान ब्रह्मलोक
मंत्र ॐ ब्रह्मणे नमः ।।
अस्त्र देवेया धनुष, ब्रह्मास्त्र
जीवनसाथी साँचा:if empty
संतान साँचा:if empty
सवारी हंस (हन्स का नाम है हन्सकुमार)

स्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

हिन्दू धर्म
श्रेणी

Om
इतिहास · देवता
सम्प्रदाय · पूजा ·
आस्थादर्शन
पुनर्जन्म · मोक्ष
कर्म · माया
दर्शन · धर्म
वेदान्त ·योग
शाकाहार शाकम्भरी  · आयुर्वेद
युग · संस्कार
भक्ति साँचा:tl
ग्रन्थशास्त्र
वेदसंहिता · वेदांग
ब्राह्मणग्रन्थ · आरण्यक
उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता
रामायण · महाभारत
सूत्र · पुराण
शिक्षापत्री · वचनामृत
सम्बन्धित
विश्व में हिन्दू धर्म
गुरु · मन्दिर देवस्थान
यज्ञ · मन्त्र
हिन्दू पौराणिक कथाएँ  · हिन्दू पर्व
विग्रह
प्रवेशद्वार: हिन्दू धर्म

HinduSwastika.svg

हिन्दू मापन प्रणाली

ब्रह्मा सनातन धर्म के अनुसार सृजन के देव हैं।[१] हिन्दू दर्शनशास्त्रों में ३ प्रमुख देव बताये गये है जिसमें ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु पालक और महेश विलय करने वाले देवता हैं।[२] व्यासलिखित पुराणों में ब्रह्मा का वर्णन किया गया है कि उनके पाँच मुख थे, [३]लेकिन पांचवा मुख भगवान शंकर ने क्रोध में आकर काट दिया, ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न सतरूपा (गायत्री देवी)[४] को उन्हीं के द्वारा कुदृष्टि से देखने के कारण भगवान शंकर ने उनका शीश क्रोध में आकर काट दिया था।[३] इसके बाद से उनके चार मुख ही है जो चार दिशाओं में देखते हैं।[५] ब्रह्मा जी के पिता का नाम ब्रह्म (ज्योति निरंजन) है जिनको परमात्मा ने पांच वेद दिए थे उन पांचों वेदों में पांचवा वेद सूक्ष्म वेद था समुद्र मंथन के दौरान ब्रह्म ने अपने पुत्र ब्रह्मा को चार वेद दिए तथा पांचवे वेद को नष्ट कर दिया लेकिन कबीर सागर के अनुसार पांचवा वेद सूक्ष्म वेद है। [६]पवित्र देवी पुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों के जन्म तथा मृत्यु के विषय में वर्णन किया गया है यह अजर अमर नहीं है।[६] हिन्दू विश्वास के अनुसार हर वेद ब्रह्मा के एक मुँह से निकला था।[५][७] सरस्वती ब्रह्मा जी की पत्नी हैं। ब्रह्मा के छः पुत्र थे- सनकादिक ऋषि,नारददक्ष[८] बहुत से पुराणों में ब्रह्मा की रचनात्मक गतिविधि उनसे बड़े किसी देव (ब्रह्म) की मौजूदगी और शक्ति (देवी दुर्गा) पर निर्भर करती है।[९]

ये हिन्दू दर्शनशास्त्र की परम सत्य की आध्यात्मिक संकल्पना ब्रह्मन् से अलग हैं।[१०][११] ब्रह्मन् लिंगहीन हैं परन्तु ब्रह्मा पुलिंग हैं।[१०][११] प्राचीन ग्रंथों में इनका सम्मान किया जाता है पर इनकी पूजा बहुत कम होती है।[१२][१३] भारत और थाईलैण्ड में इन पर समर्पित मंदिर हैं। राजस्थान के पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर[१४] [१५][१६] और बैंकॉक का इरावन मंदिर (अंग्रेज़ी: Erawan Shrine)[१७][१८] इसके उदाहरण हैं।

MET DP156142.jpg

व्युत्पत्ति

कर्नाटक के सोमनाथपुरा में १२ वीं शताब्दी के चेनाकेस्वा मंदिर में ब्रह्मा की मूर्ति।

ब्रह्मा की उत्पत्ति के विषय पर वर्णन किया गया है। ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु की नाभि से निकले कमल में स्वयंभू हुई थी। इसने चारों ओर देखा जिनकी वजह से उनके चार मुख हो गये। [१९] भारतीय दर्शनशास्त्रों में निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापी माने जाने वाली चेतन शक्ति के लिए ब्रह्म शब्द प्रयोग किया गया है। [२०][२१]इन्हें परब्रह्म या परम् तत्व भी कहा गया है। पूजा-पाठ करने वालों के लिए ब्राह्मण शब्द प्रयोग किया गया हैं।

हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा ने अपने मन से १० पुत्रों को जन्म दिया जिन्हें मानसपुत्र कहा जाता है। भागवत पुरान के अनुसार ये मानसपुत्र ये हैं- अत्रि, अंगरिस, पुलस्त्य, मरीचि, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष, और नारद हैं। इन ऋषियों को प्रजापति भी कहते हैं।

इतिहास

वैदिक साहित्य

विष्णु और शिव के साथ ब्रह्मा के सबसे पुराने उल्लेखों में से एक पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में लिखित मैत्रायणी उपनिषद् के पांचवे पाठ में है। ब्रह्मा का उल्लेख पहले कुत्सायना स्तोत्र कहलाए जाने वाले छंद ५.१ में है। फिर छंद ५.२ इसकी व्याख्या करता है।[२२][२३]

सर्वेश्वरवादी कुत्सायना स्तोत्र कहता है[२२] कि हमारी आत्मा ब्रह्मन् है और यह परम सत्य या ईश्वर सभी प्राणियों के भीतर मौजूद है। यह आत्मा का ब्रह्मा और उनकी अन्य अभिव्यक्तियों के साथ इस प्रकार समीकरण करता है: तुम ही ब्रह्मा हो, तुम ही विष्णु हो, तुम ही रूद्र (शिव) हो, तुम ही अग्नि, वरुण, वायु, इंद्र हो, तुम सब हो।[२२][२४]

छंद ५.२ में विष्णु और शिव की तुलना गुण की संकल्पना से की गई है। यह कहता है कि ग्रन्थ में वर्णित गुण, मानस और जन्मजात प्रवृत्तियां सभी प्राणियों में होती हैं।[२४][२५] मैत्री उपनिषद का यह अध्याय दावा करता है कि ब्रह्माण्ड अंधकार (तमस) से उभरा है। जो पहले आवेग (रजस) के रूप में उभरा था पर बाद में पवित्रता और अच्छाई (सत्त्व) में बदल गया।[२२][२४] फिर यह ब्रह्मा की तुलना रजस से इस प्रकार करता है:[२६]

फिर उसका वो भाग जो तमस है, हे पवित्र ज्ञान के विद्यार्थियों (ब्रह्मचारी), रूद्र है।
उसका वो भाग जो रजस है, हे पवित्र ज्ञान के विद्यार्थियों, ब्रह्मा है।
उसका वो भाग जो सत्त्व है, हे पवित्र ज्ञान के विद्यार्थियों, विष्णु है।
वास्तव में वो एक था, वो तीन बन गया, आठ, ग्यारह, बारह और असंख्य बन गया।
यह सबके भीतर आ गया, वो सबका अधिपति बन गया।
यही आत्मा है, भीतर और बाहर, हाँ भीतर और बाहर।

—मैत्री उपनिषद ५.२[२२][२४]

हालांकि मैत्री उपनिषद ब्रह्मा की तुलना हिन्दू धर्म के गुण सिद्धांत के एक तत्व से करता है, पर यह उन्हें त्रिमूर्ति का भाग नहीं बताता है। त्रिमूर्ति का उल्लेख बाद के पुराणिक साहित्य में मिलता है।[२७]

पौराणिक साहित्य

भागवत पुराण में कई बार कहा गया है कि ब्रह्मा वह है जो "कारणों के सागर" से उभरता है।.[२८] यह पुराण कहता है कि जिस क्षण समय और ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ था, उसी क्षण ब्रह्मा हरि (विष्णु, जिनकी प्रशंसा भागवत पुराण का मुख्य उद्देश्य है) की नाभि से निकले एक कमल के पुष्प से उभरे थे। यह पुराण कहता है कि ब्रह्मा निद्रा में हैं, गलती करते हैं और वे ब्रह्माण्ड की रचना के समय अस्थायी रूप से अक्षम थे।[२८] जब वे अपनी भ्रान्ति और निद्रा से अवगत हुए तो उन्होंने एक तपस्वी की तरह तपस्या की, हरि को अपने हृदय में अपना लिया, फिर उन्हें ब्रह्माण्ड के आरंभ और अंत का ज्ञान हो गया, और फिर उनकी रचनात्मक शक्तियां पुनर्जीवित हो गईं। भागवत पुराण कहता है कि इसके बाद उन्होंने प्रकृति और पुरुष: को जोड़ कर चकाचौंध कर देने वाली प्राणियों की विविधता बनाई।[२८]

भागवत पुराण माया के सृजन को भी ब्रह्मा का काम बताता है। इसका सृजन उन्होंने केवल सृजन करने की खातिर किया। माया से सब कुछ अच्छाई और बुराई, पदार्थ और आध्यात्म, आरंभ और अंत से रंग गया।[२९]

पुराण समय बनाने वाले देवता के रूप में ब्रह्मा का वर्णन करते हैं। वे मानव समय की ब्रह्मा के समय के साथ तुलना करते हैं। वे कहते हैं कि महाकल्प (जो कि एक बहुत बड़ी ब्रह्मांडीय अवधि है) ब्रह्मा के एक दिन और एक रात के बराबर है।[३०]

ब्रह्मा के बारे में विभिन्न पुराणों की कथाएँ विविध और विसंगत हैं। उदाहरण के लिए स्कन्द पुराण में पार्वती को "ब्रह्माण्ड की जननी" कहा गया है। यह ब्रह्मा, देवताओं और तीनों लोकों को बनाने का श्रेय भी पार्वती को देता है। यह कहता है कि पार्वती ने तीनों गुणों (सत्त्व, रजस और तपस) को पदार्थ (प्रकृति) में जोड़ कर ब्रह्माण्ड की रचना की।[३१]

पौराणिक और तांत्रिक साहित्य ब्रह्मा के रजस गुण वाले देव के वैदिक विचार को आगे बढ़ाता है। यह कहता है कि उनकी पत्नी सरस्वती में सत्त्व (संतुलन, सामंजस्य, अच्‍छाई, पवित्रता, समग्रता, रचनात्मकता, सकारात्मकता, शांतिपूर्णता, नेकता गुण) है। इस प्रकार वे ब्रह्मा के रजस (उत्साह, सक्रियता, न अच्छाई न बुराई पर कभी-कभी दोनों में से कोई एक, कर्मप्रधानता, व्यक्तिवाद, प्रेरित, गतिशीलता गुण) को अनुपूरण करती हैं।[३२][३३][३४]

ब्रह्मा के अवतार

विष्णुपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में ब्रह्मा के सात अवतारों का वर्णन है

  1. महर्षि वाल्मीकि
  2. महर्षि कश्यप
  3. महर्षि बछेस
  4. चंद्रदेव
  5. बृहस्पति
  6. कालिदास
  7. महर्षि खट

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  5. Bruce Sullivan (1999), Seer of the Fifth Veda: Kr̥ṣṇa Dvaipāyana Vyāsa in the Mahābhārata, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120816763, pages 85-86
  6. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  7. Barbara Holdrege (2012), Veda and Torah: Transcending the Textuality of Scripture, State University of New York Press, ISBN 978-1438406954, pages 88-89
  8. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  9. साँचा:cite book
  10. James Lochtefeld, Brahman, The Illustrated Encyclopedia of Hinduism, Vol. 1: A–M, Rosen Publishing. ISBN 978-0823931798, page 122
  11. PT Raju (2006), Idealistic Thought of India, Routledge, ISBN 978-1406732627, page 426 and Conclusion chapter part XII
  12. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  13. Brian Morris (2005), Religion and Anthropology: A Critical Introduction, Cambridge University Press, ISBN 978-0521852418, page 123
  14. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  15. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  16. SS Charkravarti (2001), Hinduism, a Way of Life, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120808997, page 15
  17. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  18. Ellen London (2008), Thailand Condensed: 2,000 Years of History & Culture, Marshall Cavendish, ISBN 978-9812615206, page 74
  19. हेमाद्री संकल्प, खंड-१
  20. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  21. http://www.shriprannathgyanpeeth.org/personality_of_lord_hi.htmसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
  22. साँचा:citation
  23. Maitri Upanishad - Sanskrit Text with English Translationसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] EB Cowell (Translator), Cambridge University, Bibliotheca Indica, page 255-256
  24. Max Muller, The Upanishads, Part 2, Maitrayana-Brahmana Upanishad स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Oxford University Press, pages 303-304
  25. Jan Gonda (1968), The Hindu Trinity, Anthropos, Vol. 63, pages 215-219
  26. Paul Deussen, Sixty Upanishads of the Veda, Volume 1, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120814684, pages 344-346
  27. GM Bailey (1979), Trifunctional Elements in the Mythology of the Hindu Trimūrti स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Numen, Vol. 26, Fasc. 2, pages 152-163
  28. Richard Anderson (1967), Hindu Myths in Mallarmé: Un Coup de Dés स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Comparative Literature, Vol. 19, No. 1, pages 28-35
  29. Richard Anderson (1967), Hindu Myths in Mallarmé: Un Coup de Dés स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Comparative Literature, Vol. 19, No. 1, page 31-33
  30. साँचा:cite book
  31. Nicholas Gier (1997), The Yogi and the Goddess, International Journal of Hindu Studies, Vol. 1, No. 2, pages 279-280
  32. H Woodward (1989), The Lakṣmaṇa Temple, Khajuraho and Its Meanings, Ars Orientalis, Vol. 19, pages 30-34
  33. Alban Widgery (1930), The principles of Hindu Ethics, International Journal of Ethics, Vol. 40, No. 2, pages 234-237
  34. Joseph Alter (2004), Yoga in modern India, Princeton University Press, page 55


इन्हें भी देखें