बाजीराव प्रथम

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(पेशवा बाजीराव प्रथम से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:infoboxसाँचा:main other

पेशवा बाजीराव प्रथम (श्रीमन्त पेशवा बाजीराव बल्लाळ भट्ट) (1700 - 1740) महान सेनानायक थे। वे 1720 से 1740 तक मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा (प्रधानमन्त्री) रहे। इनका जन्म चितपावन कुल के ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनको 'बाजीराव बल्लाळ' तथा 'थोरले बाजीराव' के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें लोग अपराजित हिन्दू सेनानी सम्राट भी कहते थे। इन्होंने अपने कुशल नेतृत्व एवं रणकौशल के बल पर मराठा साम्राज्य का विस्तार (विशेषतः उत्तर भारत में) किया। इसके कारण ही उनकी मृत्यु के 20 वर्ष बाद उनके पुत्र के शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच सका। बाजीराव प्रथम को सभी 9 महान पेशवाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

इनके पिता पेेशवा बालाजी विश्वनाथ भी छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा थे। बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तीरन्दाजी, तलवार भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का शौक था। 13-14 वर्ष की खेलने की आयु में बाजीराव अपने पिताजी के साथ घूमते थे।[१] उनके साथ घूमते हुए वह दरबारी चालों व रीतिरिवाजों को आत्मसात करते रहते थे। यह क्रम 19-20 वर्ष की आयु तक चलता रहा। जब बाजीराव के पिता का अचानक निधन हो गया तो मात्र बीस वर्ष की आयु के बाजीराव को शाहूजी महाराज ने पेशवा बना दिया।

जब महाराज शाहू ने 1720 में बालाजी विश्वनाथ के मृत्यूपरान्त उसके 19 वर्षीय ज्येष्ठपुत्र बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया तो पेशवा पद वंशपरम्परागत बन गया। अल्पवयस्क होते हुए भी बाजीराव ने असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। पेशवा बनने के बाद अगले बीस वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को बढ़ाते रहे। उनका व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली था; तथा उनमें जन्मजात नेतृत्वशक्ति थी। अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से, तथा प्रतिभासम्पन्न अनुज श्रीमान चिमाजी साहिब अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया।[२] इसके लिए उन्हें अपने दुश्मनों से लगातार लड़ाईयाँ करना पड़ी। अपनी वीरता, अपनी नेतृत्व क्षमता व युद्ध-कौशल योजना द्वारा यह महान वीर हर लड़ाई को जीतता गया। शिवाजी महाराज की तरह वह बहुत ही कुशल घुड़सवार थे। घोड़े पर बैठे-बैठे भाला चलाना, बनेठी घुमाना, बन्दूक चलाना उनके बाएँ हाथ का खेल था। घोड़े पर बैठकर श्रीमन्तबाजीराव के भाले की फेंक इतनी जबरदस्त होती थी कि सामने वाला घुड़सवार अपने घोड़े सहित घायल हो जाता था।

इस समय भारत की जनता मुगलों के साथ-साथ अंग्रेजों व पुर्तगालियों के अत्याचारों से त्रस्त हो चुकी थी। ये भारत के देवस्थान तोड़ते, जबरन पन्थ परिवर्तन करते, महिलाओं व बच्चों को मारते व भयंकर शोषण करते थे।[१] ऐसे में श्रीमन्तबाजीराव पेशवा ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक ऐसी विजय पताका फहराई कि चारों ओर उनके नाम का डंका बजने लगा। लोग उन्हें शिवाजी का अवतार मानने लगे। श्रीमन्तबाजीराव पेशवा में शिवाजी महाराज जैसी ही वीरता व पराक्रम था तो एक अपवाद छोड़कर लगभग वैसा ही उच्च चरित्र भी था।

शकरखेडला में श्रीमन्त पेशवा ने मुबारिज़खाँ को परास्त किया। (1724)। मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया (1724-26)। पालखेड़ में महाराष्ट्र के परम शत्रु निजामउलमुल्क को पराजित कर (1728) उससे चौथ तथा सरदेशमुखी वसूली। फिर मालवा और बुन्देलखण्ड पर आक्रमण कर मुगल सेनानायक गिरधरबहादुर तथा दयाबहादुर पर विजय प्राप्त की (1728)। तदनन्तर मुहम्मद खाँ बंगश को परास्त किया (1729)। दभोई में त्रिम्बकराव को नतमस्तक कर (1731) उसने आन्तरिक विरोध का दमन किया। सीदी, आंग्रिया तथा पुर्तगालियों एवं अंग्रेजो को भी बुरी तरह विजित किया। दिल्ली का अभियान (1737) उनकी सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था। उसी वर्ष भोपाल में श्रीमन्तबाजीराव पेशवा ने फिर से निजाम को पराजय दी। अन्तत: 1739 में उन्होनें नासिरजंग पर विजय प्राप्त की। बाजीराव प्रथम को एक महान घुड़सवार सेनापति के रूप में जाना जाता है और इतिहास के उन महान योद्धाओं में बाजीराव का नाम आता है जिन्होंने कभी भी अपने जीवन में युद्ध नहीं हारा और बाजीराव प्रथम ने अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा और यह उनकी महानता को दर्शाता है। अमेरिकी इतिहासकार बर्नार्ड माण्टोगोमेरी के अनुसार बाजीराव पेशवा भारत के इतिहास का सबसे महानतम सेनापति था और पालखेड़ युद्ध में जिस तरीके से उन्होंने निजाम की सेनाओं को पराजित किया उस वक्त सिर्फ बाजीराव प्रथम ही कर सकते थे उसके अलावा भारत या भारतीय उपमहाद्वीप में यह सब करने की क्षमता किसी और से नहीं थी। बाजीराव प्रथम और उनके भाई चिमाजी अप्पा ने बेसिन के लोगों को पुर्तगालियों के अत्याचार से भी बचाया जो जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहे थे और यूरोपीय सभ्यता को भारत में लाने की कोशिश कर रहे थे जिसके चलते 1739 में अन्तिम दिनों में अपने भाई चिमाजी अप्पा को भेजकर उन्हें पुर्तगालियों को निस्तनाभूत कर दिया और वसई की सन्धि करवा दी। बाजीराव प्रथम को 1720 ईसवी में छत्रपति शाहू में मराठा साम्राज्य का पेशवा नियुक्त किया जिसके बाद कई सारे बड़े मन्त्री उनसे नाराज हो गए जिसके कारण उन्होंने युवा सरदारों को अपने साथ में लाना शुरू कर दिया जिनमें मल्हारराव होलकर, राणोजीराव शिन्दे आज भी शामिल थे इन सब ने मिलकर सम्पूर्ण भारत पर अपना प्रभाव जमाने को कर दिया बाजीराव प्रथम प्रथम सबसे बड़ी जीत 1728 में पालखेड की लड़ाई में हुई जिसमें उन्होंने निजाम की सेनाओं को पूर्णतया दलदली नदी के किनारे ला खड़ा किया अब निजाम के पास आत्मसमर्पण के अलावा कुछ नहीं बचा था। और 6 मार्च 1728 को उन्होंने मुंगी शेवगाव की सन्धि की। जिसमे निजाम हैदराबाद के साथ जिसके तहत उन्होंने ढक्कन में सरदेशमुखी और चोथ को लेने का अधिकार दे दिया। और शाहु को मराठा साम्राज्य का वास्तविक छत्रपति घोषित कर दिया और सम्भाजी द्वितीय को कोल्हापुर का छत्रपति। उसके बाद बाजीराव ने कई और लड़ाई लड़ी परन्तु 1737 में बाजीराव ने दिल्ली पर चढ़ाई करी और वह सआदत अली खान की सेना जो कि करीब एक लाख की सेना थी उसको लोग अपनी चाल को चलते उस को चकमा देकर दिल्ली की ओर निकल गए और उन्होंने चिमाजी अप्पा को करीब 10,000 की सेना को लेकर निजाम को रोकने के लिए छोड़ दी थी अभी दिल्ली में लाल किले के सामने पहुँचे जहाँ मोहम्मद शाह जो कि मुगल सम्राट से उनको देखकर इतना घबरा गए कहीं जाकर छुप गए। वहाँ लूट कर बाजीराव वापस पुणे की ओर वापस लौटे जहाँ पर मोहम्मद शाह रंगीला ने साआदत अली खान और हैदराबाद के निजाम को लिखा कि आप बाजीराव को पुणे से पहले ही रोक ले जिसकी बाजीराव सामना भोपाल के निकट निजाम से हुआ जिसमें बाजीराव की सेना ने दोनों की सेनाओं को हरा कर दोराहा भोपाल की सन्धि की मालवा का सम्पूर्ण क्षेत्र मराठो को प्राप्त हो गया इससे मराठों का प्रभाव सम्पूर्ण भारत में स्थापित बाजीराव ने 1730 मे शनिवार वाड़ा पुणे में उसका निर्माण करवाया और पुणे देशों की राजधानी नियुक्ति की।बाजीराव ने हिन्दुस्तान शाही का वादा किया और सभी हिन्दुओं को एक कर विदेशी शक्तियों के खिलाफ लड़ने का बीड़ा उठाया उन्होंने 1739 में अपने भाई की चिमाजी की सेनाओं पुर्तगालियों को बेसिन पराजित कर वसई की सन्धि कर ली जिसके तहत पुर्तगालियों के अभद्र पूर्ण व्यवहार से भारतीय जनता को बाजीराव प्रथम ने बचा लिया बाजीराव प्रथम बहुत ही महान और काबिल हिन्दू योद्धा थे सम्पूर्ण भारत में बाजीराव प्रथम का खौफ फैला हुआ था यहाँ तक कि जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय भी उनके लिए काफी तारीफ करते हैं। 1731 में उन्होंने महाराजा छत्रसाल की बेटी से विवाह किया और बुन्देलखण्ड का एक तिहाई हिस्सा मराठा साम्राज्य में मिला लिया उन्होंने मोहम्मद खान बंग्स की सेना को पराजित कर महाराजा छत्रसाल को जय उसे बचा लिया और वापस उनका बुन्देलखण्ड राज्य को लौटा दिया इसे प्रसन्न होकर उन्होंने अपनी पुत्री मस्तानी का विवाह बाजीराव से कर दिया।।

अपने यशोसूर्य के मध्यकाल में ही 28 अप्रैल 1740 को अचानक रोग के कारण उनकी असामयिक मृत्यु हुई। मस्तानी नामक मुसलमान स्त्री से उनके सम्बन्ध के प्रति विरोधप्रदर्शन के कारण श्रीमन्त साहेब के अंतिम दिन क्लेशमय बीते। उनके निरन्तर अभियानों के परिणामस्वरूप निस्सन्देह महाराष्ट्रीय शासन को अत्यधिक भार करना पड़ा। मराठा साम्राज्य सीमातीत विस्तृत होने के कारण असंगठित रह गया, मराठा संघ में व्यक्तिगत महत्वाकाँक्षाएँ प्रस्फुटित हुईं, तथा मराठा सेनाएँ विजित प्रदेशों में असन्तुष्टिकारक प्रमाणित हुई; तथापि श्रीमन्तबाजीराव पेशवा की लौह लेखनी ने निश्चय ही महाराष्ट्रीय इतिहास का गौरवपूर्ण परिच्छेद रचा।[२] इतिहास तथा राजनीति के एक विद्वान् सर रिचर्ड टेंपिल ने बाजीराव की महत्ता का यथार्थ अनुमान एक वाक्य समूह में किया है, जिससे उसका असीम उत्साह फूट-फूट कर निकल रहा है। वह लिखता है - सवार के रूप में बाजीराव को कोई भी मात नहीं दे सकता था। युद्ध में वह सदैव अग्रगामी रहता था। यदि कार्य दुस्साध्य होता तो वह सदैव अग्नि-वर्षा का सामना करने को उत्सुक रहता। वह कभी थकता न था। उसे अपने सिपाहियों के साथ दुःख-सुख उठाने में बड़ा आनन्द आता था। विरोधी मुसलमानों और राजनीतिक क्षितिज पर नवोदित यूरोपीय सत्ताओं के विरुद्ध राष्ट्रीय उद्योगों में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा उसे हिन्दुओं के विश्वास और श्रद्धा में सदैव मिलती रही। वह उस समय तक जीवित रहा जब तक अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक सम्पूर्ण भारतीय महाद्वीप पर मराठों का भय व्याप्त न हो गया। उसकी मृत्यु डेरे में हुई, जिसमें वह अपने सिपाहियों के साथ आजीवन रहा। युद्धकर्ता पेशवा के रूप में तथा हिन्दू शक्ति के अवतार के रूप में मराठे उसका स्मरण करते हैं।[३] जब भी इतिहास में महान योद्धाओं की बात होगी तो निस्सन्देह महान् पेशवा श्रीमन्तबाजीराव के नाम से लोग ओत-प्रोत होंगे

पेशवा श्रीमन्तबाजीराव का बिरला मन्दिर, दिल्ली में एक स्तम्भ पर शैल चित्र


इन्हें भी देखें

साँचा:start box साँचा:succession box साँचा:end box

सन्दर्भ

  1. अपराजेय सेनानी बाजीराव (प्रथम) स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।। वेबदुनिया
  2. हिन्दी विश्वकोश, भाग-7, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण 1966, पृष्ठ 339.
  3. ओरिएंटल एक्सपीरियंस, पृष्ठ 390; मराठों का नवीन इतिहास भाग-2, गोविंद सखाराम सरदेसाई, शिवलाल अग्रवाल एंड कंपनी, आगरा; तृतीय संशोधित संस्करण 1972, पृष्ठ-190 से उद्धृत।