शनिवार वाड़ा

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शनिवार वाड़ा
Shaniwarwada gate.JPG
शनिवार वाड़ा का प्रवेशद्वार
स्थानपुणे ,महाराष्ट्र ,भारत
निर्माण१७४६
वस्तुशास्त्रीसाँचा:if empty
वास्तुशैलीमराठी
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शनिवार वाड़ा (अंग्रेजी :Shaniwarwada) (Śanivāravāḍā) भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले में स्थित एक दुर्ग है जिनका [१]निर्माण १८वीं सदी में १७४६ में किया था। यह मराठा पेशवाओं की गद्दी थी। जब मराठाओं ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से नियंत्रण खो दिया तो तीसरा आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ था, तब मराठों ने इसका निर्माण करवाया था। [२] दुर्ग खुद को काफी हद तक एक अस्पष्टीकृत आग से १८३८ में नष्ट हो गया था, लेकिन जीवित संरचनाएं अब एक पर्यटक स्थल के रूप में स्थित है।

मराठा साम्राज्य में पेशवा बाजीराव जो कि छत्रपति शाहु के प्रधान (पेशवा) थे। इन्होंने ने ही शनिवार वाड़ा का निर्माण करवाया था। शनिवार वाड़ा का मराठी में मतलब शनिवार (शनिवार/Saturday) तथा वाड़ा का मतलब टीक होता है। शनिवार वाडा की नींव का काम १० जनवरी १७३० को शुरू हुआ। २२ जनवारी १७३२ को शनिवार वाड़ा की नींव करके वास्तु शांति की गई। १७३२ के बाद भी बाड़े में हमेशा नया बांधकाम, बदल होते गए। बुरुज के दरवाजे का काम होते-होते १७६० ये वर्ष आया। १८०८, १८१२, १८१३ इन वर्षों में छोटी बड़ी आग लगने की दुर्घटना हुई तो १७ नवंबर १८१७ को बाडे पर ब्रिटिशों के निशान लगे। इसके बाद यहाँ कुछ समय तक पुणे के पहले कलेक्‍टर हेन्‍री डंडास रॉबर्टसन रहते थे। बाडे में तुरुंग, पंगुगृह, पुलिस का निवासस्थान थे। १८२८ में बाड़े में बड़ी आग लगी और आग में अंदाजे सर्व इमारतॆ जल गई। आगे लगभग ९० साल बाद बाडे की दुरवस्था खत्म होने का योग आया। १९१९ में बाडा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया और बाडे का उत्खनन करने का काम शुरू किया गया। उस समय बाडे में कोर्ट के लिए उपयोग में लाई जाने वाली इमारत १९२३ के पहले उत्खनन के लिए गिरा दी गई। शनिवार बाडे संबंधी अनेक घटना, दुर्घटना है। बाडेतील पेशवे के कार्यालय में अनेक वीर और मातब्बर राजकारण के दाव पेच रंगते थे। पेशवे का दरबार यही पर था। पेशवे के घर के लडके लडकियों का विवाह इसी बाडे में होता था। शनिवारबाडे के आगे के प्रांगण में सैनिको की सभा होने लगी। आचार्य अत्रे ने संयुक्त महाराष्ट्र का आंदोलन इसी प्रांगण सेे लढा़। बाडे के प्रांगण में मारुती का सभामंडप था। हे मंदिर लॉइड्ज पूल (हल्लीचा नवा पूल किंवा शिवाजी पूल) बांधने वाले केंजले ने बांधा. मंदिर में १९ मार्च १९२४ को मारुती की मूर्ती बिहार गई।

निर्माण

सन्दर्भ

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  2. साँचा:cite web