पाकिस्तानी संविधान का आठवाँ संशोधन

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पाकिस्तानी संविधान का आठवॉं संशोधन जिसे आधिकारिक तौर पर संविधान (आठवें संशोधन) अधिनियम, 1985 के नाम से जाना जाता है और उसे 1985 में लागू होगा किया गया। इस संशोधन की रो से पाकिस्तान संसदीय शासन आंशिक राष्ट्रपति शासन में बदल गया और राष्ट्रपति पाकिस्तान कई अतिरिक्त विकल्प और संवैधानिक शक्ति मिलती आ गई। इस विकल्प है कि संविधान पाकिस्तान के उप भाग 2 (ख) के अनुच्छेद 58 में शामिल हुए जिससे पाकिस्तान के राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेंबली को भंग कर सकते थे, जबकि सेनेट को भंग करने का कोई अधिकार नहीं था। इस संशोधन के तहत अगर पाकिस्तान के राष्ट्रपति की राय में देश में ऐसी स्थिति उपजी है जिसके तहत सरकार और राज्य व्यवस्था संविधान पाकिस्तान के तहत न चलाए जा सकते हैं और नए चुनावों का आयोजन अपरिहार्य हो तो वह पाकिस्तान की नेशनल असेंबली को भंग सकते हैं। संविधान पाकिस्तान के अनुच्छेद 58 में किए गए इस संशोधन की रो से पाकिस्तान के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल को भी समाप्त कर सकते थे।

अनुच्छेद 58- 2 (ख)

आठवें संशोधन, जिसके तहत संविधान में दूसरी कई संशोधन भी किए गए ही चयनित बात यह थी कि संविधान के अनुच्छेद 58 में दिए आभल बिंदुओं का भी बढ़ी,
'2। 'संविधान के अनुच्छेद 49 में घटक 2 में उल्लिखित शर्तों से अलग कुछ ऐसे अवसर आ जाएं तो राष्ट्रपति पाकिस्तान, पाकिस्तान की नेशनल असेंबली को भंग कर सकते हैं, जैसे कि,
'अ।' 'प्रधानमंत्री के खिलाफ सदन में अविश्वास प्रस्ताव सफल होने और सदन का कोई दूसरा सदस्य इस स्थिति में न हो कि वह संविधान पाकिस्तान के तहत सदन का विश्वास ले सके, या
'ख।' देश में कुछ ऐसे हालात जन्म ले जब संविधान पाकिस्तान के तहत सरकार और राज्य व्यवस्था और मामलों चलाना संभव नहीं रहे और इसका समाधान पाकिस्तान के चयनित निर्वाचन कॉलेज के पास भी न हो तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति अपनी राय में विधानसभा भंग कर सकते हैं।
संविधान पाकिस्तान के अनुच्छेद पु 2 बी जिसके तहत पाकिस्तान के राष्ट्रपति को विधानसभा भंग करने का अधिकार था, इसका इस्तेमाल 1990 के दशक में तीन बार किया गया। इस विकल्प का उपयोग होने वाला पहला मौका प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो सरकार के खिलाफ राष्ट्रपति गुलाम इसहाक खान ने 6 अगस्त 1990, अन्य अवसर पर प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ सरकार के खिलाफ राष्ट्रपति गुलाम इसहाक खान ने 1993 जबकि तीसरी बार बे प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सरकार के खिलाफ राष्ट्रपति फारूक अहमद लेग़ारी नवंबर 1996 को निलंबित किया। इन विकल्पों के प्रयोग की दूसरी बार नवाज शरीफ को पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने बहाल कर दिया था लेकिन फिर संस्थाओं के बीच शुरू कज़ए परिणामस्वरूप राष्ट्रपति गुलाम इसहाक खान और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इस्तीफा देना पड़ा था। इस लेख का जहां भी इस्तेमाल हुआ पाकिस्तान के राष्ट्रपति की ओर से इसके उपयोग के कारणों को स्पष्ट बयान किया गया और ज्यादातर सरकारी प्रशासन के भ्रष्टाचार को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस आरोप के बाद सरकारी संस्थाओं जनता में अपनी प्रतिष्ठा और लोकप्रियता खो बैठे। यही वजह थी कि हर बार सत्तारूढ़ पार्टी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और संसद में संख्यात्मक श्रेष्ठता किसी भी दल के हिस्से में नहीं आई।
1997 में संविधान पाकिस्तान में तेरहवें संशोधन जिसकी रो राष्ट्रपति पाकिस्तान से वह विकल्प वापस ले लिए गए जिससे वह विधानसभा को भंग कर सकते थे ऐसे राष्ट्रपति शिविर जाहिर रबर स्टंप बनकर रह गया। पाकिस्तान में लागू लोकतंत्र में कोई भी ऐसा ज़रिए नहीं है कि चयन हो जाने के बाद जनता के कृीिे सांसदों जवाबदेह जा सके। संस्थागत जवाबदेही पहले ही नगण्य था कि संविधान में किए गए तेरहवें और चौदहवें संशोधन के कृीिे सरकारी जवाबदेही सारी राहें भी अवरुद्ध कर दी गईं। प्रधानमंत्री पाकिस्तान को इतना मजबूत कर दिया गया कि किसी सूरत भी प्रधानमंत्री या उनके प्रशासन और कैबिनेट जवाबदेह दौरान सरकार संभव नहीं रहा।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति विकल्प सत्रहवीं संपादित कृीिे आंशिक रूप से बहाल किया गया। गो राष्ट्रपति पाकिस्तान नेशनल असेंबली भंग करने का अधिकार मिल गया मगर राष्ट्रपति के इस कदम को पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय की पुष्टि के अधीन कर दिया गया।

आठवें संशोधन: एक सुलह

आमतौर आठवें संशोधन उसके अनुच्छेद पु दो बी के तहत ही याद किया जाता है, जो रो से राष्ट्रपति को विधानसभा भंग करने का विकल्प प्राप्त हुए। लेकिन, आठवें संशोधन दरअसल गैर दलीय आधार पर चयनित संसद और तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक के बीच एक समझौता या सौदा था। 1985 के चुनाव से पहले लगभग छह साल तक जनरल जिया संविधान पाकिस्तान में कई संशोधन कर चुके थे जो कि संवैधानिक संशोधन आदेश के कृीिे किए गए थे, उनमें सबसे प्रसिद्ध संविधान पाकिस्तान 1973 (राष्ट्रपति आदेश सं 14, वर्ष 1985) था। इस राष्ट्रपति आदेश के तहत ही दरअसल राष्ट्रपति विधानसभाओं को भंग करने का अधिकार प्राप्त हुआ।
इस बारे जो अस्पष्टता पाया जाता है कि चयनित विधानसभा ने ऐसी विवादास्पद संशोधन को पारित कैसे किया? इस बारे जानना जरूरी है कि वास्तव में इस समय राष्ट्रपति जिया ने छह वर्षों में राष्ट्रपति कार्यालय को जितने भी विकल्प राष्ट्रपति आदेश नामों के कृीिे पारित किए थे उनमें से ज्यादातर के बदले ही सदन से यह संशोधन पारित करवाया था। इस संबंध में संवैधानिक विशेषज्ञों दरअसल आठवें संशोधन को एक सुलह सौदों की नज़र से देखते हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ