पांडुरंग शास्त्री आठवले

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पांडुरंग शास्त्री आठवले
चित्र:Pandurang Shastri Athavale, (1920-2003).jpg
पांडुरंग शास्त्री आठवले
जन्म 19 October 1920
रोहा, महाराष्ट्र, भारत
मृत्यु साँचा:death date and age
मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत
अन्य नाम दादाजी[१]
व्यवसाय दार्शनिक, प्रवचनकार
जीवनसाथी निर्मला ताई
बच्चे जयश्री तलवालकर (दत्तक)
माता-पिता वैजनाथ शास्त्री

पांडुरंग शास्त्री आठवले (19 अक्टूबर 1920 - 25 अक्टूबर 2003), भारत के दार्शनिक, आध्यात्मिक गुरू तथा समाज सुधारक थे। उनको प्राय: दादाजी के नाम से जाना जाता है जिसका मराठी में अर्थ 'बड़े भाई साहब' होता है। उन्होने सन् १९५४ में स्वाध्याय आन्दोलन चलाया और स्वाध्याय परिवार की स्थापना की। स्वाध्याय आन्दोलन श्रीमद्भागवद्गीता पर आधारित आत्म-ज्ञान का अन्दोलन है जो भारत के एक लाख से अधिक गावों में फैला हुआ है और इसके कोई लाखो सदस्य हैं। दादाजी गीता एवं उपनिषदों पर अपने प्रवचन के लिये प्रसिद्ध थे।

उन्हें सन् १९९७ में धर्म के क्षेत्र में उन्नति के लिये टेम्पल्टन पुरस्कार (Templton Prize) से सम्मानित किया गया। सन् १९९९ में उन्हें सामुदायिक नेतृत्व के लिये मैगससे पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उसी वर्ष भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया।


पांडुरंग शास्त्री आठवलेके जन्मदिन को ‘मनुष्य गौरव दिन’ के रूप में मनाया जाता है। पांडुरंग शास्त्री ने पारंपरिक शिक्षा के साथ ही सरस्वती संस्कृत विद्यालय में संस्कृत व्याकरण के साथ न्याय, वेदांत, साहित्य और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया। उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसाइटी मुंबई द्वारा मानद सदस्य की उपाधि से सम्मानित किया गया। इस पुस्तकालय में, उन्होंने उपन्यास खंड को छोड़कर सभी विषयों के प्रमुख लेखकों की प्रसिद्ध पुस्तकों का अध्ययन किया। वेदों, उपनिषदों, स्मृति, पुराणों पर चिंतन करते हुए। श्रीमद्भगवद्गीता पाठशाला (माधवबाग मुंबई) में, पांडुरंगशास्त्री ने अखंड वैदिक धर्म, जीवन जीने का तरीका, पूजा का तरीका और पवित्र मंच से सोचने का तरीका दिया।जय योगेश्वर

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ