नॉर्मन बोरलॉग
नॉर्मन बोरलॉग | |
---|---|
नॉर्मन बोरलॉग जून 2003 में आयोजित कृषि विज्ञान और तकनीक प्रदर्शनी और मंत्रिमंडलीय सम्मेलन में वक्ता के रूप में। | |
जन्म |
25 मार्च 1914 क्रेस्को, आइवा |
मृत्यु |
12 सितंबर 2009 (उम्र 95) डलास, टेक्सास |
नागरिकता | संयुक्त राज्य अमेरिका |
राष्ट्रीयता | यूएसए |
शिक्षा | मिनीसोटा विश्वविद्यालय |
प्रसिद्धि | हरित क्रांति में अपनी भूमिका को लेकर, रोगमुक्त उच्च उत्पादकता वाले गेहूं की किस्मों के विकास में भूमिका और विश्व खाद्य पुरस्कार के संस्थापक के रूप में। |
उल्लेखनीय सम्मान | नोबल शांति पुरस्कार, स्वतंत्रता का राष्ट्रपति पुरस्कार, कांग्रेसनल गोल्ड मेडल, विज्ञान का राष्ट्रीय पुरस्कार, पद्म विभूषण और रोटरी इंटरनेशनल पुरस्कार |
स्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग (25 मार्च 1914 - 12 सितम्बर 2009) नोबेल पुरस्कार विजेता एक अमेरिकी कृषिविज्ञानी थे, जिन्हें हरित क्रांति का पिता माना जाता है। बोरलॉग उन पांच लोगों में से एक हैं, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार, स्वतंत्रता का राष्ट्रपति पदक और कांग्रेस के गोल्ड मेडल प्रदान किया गया था। इसके अलावा उन्हें भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान किया गया था। बोरलॉग की खोजों से दुनिया के करोड़ों लोगों की जीवन बची है।
उनके नवीन प्रयोगों ने अनाज की समस्या से जूझ रहे भारत सहित अनेक विकासशील देशों में हरित क्रांति का प्रवर्तन करने में महत्वपूर्ण योगदान किया।
इन्होंने 1970 के दशक में मेक्सिको में बीमारियों से लड़ सकने वाली गेहूं की एक नई किस्म विकसित की थी। इसके पीछे उनकी यह समझ थी कि अगर पौधे की लंबाई कम कर दी जाए, तो इससे बची हुइ ऊर्जा उसके बीजों यानी दानों में लगेगी, जिससे दाना ज्यादा बढ़ेगा, लिहाजा कुल फसल उत्पादन बढ़ेगा। बोरलॉग ने छोटा दानव (सेमी ड्वार्फ) कहलाने वाले इस किस्म के बीज (गेहूं) और उर्वरक विभिन्न देशों को भेजा, जिनसे यहां की खेती का पूरा नक्शा ही बदल गया। उनके कीटनाशक व रासायनिक खादों के अत्यधिक इस्तेमाल और जमीन से ज्यादा पानी सोखने वाली फसलों वाले प्रयोग की पर्यावरणवादियों ने कड़ी आलोचना की। वे दुनिया को भुखमरी से निजात दिलाने के लिए जीन संवर्धित फसल के पक्ष में भी रहे। उनका मत था कि भूख से मरने की बजाय जीएम अनाज खाकर मर जाना कहीं ज्यादा अच्छा है। पर्यावरणवादियों के ऐतराज का भी जवाब उन्होंने यह कहकर दिया कि अगर कम जमीन से ज्यादा उपज ली जाती है, तो इससे प्रकृति का संरक्षण ही होता है।
बाहरी कड़ियाँ
- नारमन बोरलाग को याद करते हुए (हिंदी चिट्ठा, 'अर्थात')
- खेतीबाड़ी की योजनाओं में किसानों की सीधी भागीदारी चाहते थे बोरलॉग