नास्तिवाद
नास्तिवाद (लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है [2 ], कुछ नहीं), एक दार्शनिक सिद्धांत है जो जीवन के एक या अधिक अर्थपूर्ण पहलुओं को नकारता है। आम तौर पर नास्तिवाद को सबसे अधिक अस्तित्व/मौज़ूदा नास्तिवाद के रूप में प्रस्तुत किया है जो तर्क देता है कि जीवन[१] का कोई सार्थक अर्थ, कारण या वास्तविक महत्त्व नहीं है। इसे मानने वाले नाईलिस्ट (शून्यवादी) जोर दे कर कहते हैं है कि नैतिकता स्वाभाविक रूप से मौजूद नहीं होती, तथा किसी भी प्रकार के स्थापित किये गए नैतिक मूल्य कृत्रिम रूप से बनाये गये हैं। नास्तिवाद दर्शनवाद, अध्यात्मवाद या सिद्धांतवाद के रूप में भी हो सकता है, जिसका अर्थ है कि कुछ स्वरूपों में ज्ञान संभव नहीं है या हमारे विश्वास के विपरीत है, इस प्रकार यथार्थ के कुछ पहलू अस्तित्व में नहीं होते हैं।
नास्तिवाद शब्द को कई बार आदर्शों की कमी के साथ जोड़ कर अस्तित्व की कथित निरर्थकता के कारण हुई निराशा की सामान्य मनोदशा में यह समझाने के लिए प्रयोग लिया जाता है कि कोई यह समझ कर विकास कर सकता है कि कोई आदर्श, नियम या कानून नहीं हैं।[२] दूसरे आंदोलनों के साथ भविष्यवाद और विध्वंस को टिप्पणीकारों द्वारा विभिन्न समय पर विभिन्न सन्दर्भों में "शून्यवादी (नाइलिस्टिक)" के रूप में पहचाना गया है।
नास्तिवाद एक एक विशेषता भी है जिसे, कई समय अवधियों के लिए जिम्मेदार माना गया है, उदाहरण के लिए, जीन बौड्रीलार्ड और अन्यों ने आधुनिकता के बाद के युग[३][४] को शून्यवादी (नाइलिस्टिक) युग माना है और कुछ ईसाई ब्रह्मविज्ञानियों और धार्मिक गुरुओं द्वारा एकत्रित आंकड़ों ने इस बात पर जोर दिया है कि आधुनिकता के बाद का युग[५] और इसके कई पहलू आस्तिकता को नकारने का प्रतिनिधित्व करते हैं और कहा कि इस तरह की अस्वीकृति एक प्रकार के नास्तिवाद को ही बढ़ावा देने के समान है।
इतिहास
19वीं सदी
हालांकि शब्द नास्तिवाद को पहली बार उपन्यासकार इवान टर्जनेव (1818-1883) के उपन्यास फादर्स एंड संस के द्वारा प्रसिद्धि मिली थी,[६] इसकी शुरुआत फ्रेडरिक हेनरिक जैकोबी (1743-1819) द्वारा दार्शनिक लेख के रूप में की गयी थी। जैकोबी ने इस शब्द को बुद्धिवादके लिए[७] और विशेष रूप से इम्मानुअल कांत के "आलोचनात्मक" दर्शनशास्त्र के बेतुकेपन (लैटिन भाषा में reductio ad absurdom) को ख़त्म करने के लिए प्रयुक्त किया, जिसके अनुसार सभी प्रकार के बुद्धिवाद (आलोचना के रूप में दर्शनशास्त्र) नास्तिवाद में कम हो जाते हैं और इस प्रकार इससे बचा जाना चाहिए तथा इसे किसी प्रकार की श्रद्धा तथा रहस्योद्घाटन से बदला जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, ब्रेट डब्ल्यू डेविस लिखते हैं, "नास्तिवाद के दार्शनिक विकास के विचार को शुरू करने के आमतौर पर फ्रेडरिक जैकोबी को जिम्मेदार माना जाता है, जिन्होनें एक प्रसिद्ध पात्र में फिशे के आदर्शवाद के नास्तिवाद के रूप में बदलने की आलोचना की है। जैकोबी के अनुसार, फिशे की अहं की पूर्णता ('केवल मैं' जो 'मैं-नहीं' का स्थान लेता है) एक प्रकार के मनोवाद का बढ़ावा देती है जो पूरी तरह से ईश्वर की श्रेष्ठता को नकारती है।[८] एक संबंधित अवधारणा अन्तर्निहित विश्वासवाद है।
टर्जनेव द्वारा नास्तिवाद को प्रसिद्धि दिलाने के बाद, एक नये रूसी राजनीतिक आंदोलन ने नास्तिवाद आन्दोलन के रूप में इस शब्द को अपनाया. वे संभवतः खुद को शून्यवादी (नाईलिस्ट) कहते थे चूंकि "कुछ भी नहीं" ने उनकी आँखों में एक सम्मान प्राप्त कर लिया था।[९]
कियर्केगार्ड
सोरेन कियर्केगार्ड (1813-1855) ने शुरूआती नास्तिवाद की आधारशिला रखी जिसे वह लेवलिंग (समता/बराबरी) कहता था।[१०] लेवलिंग एक प्रक्रिया थी जिसके अनुसार व्यक्तित्व को उस बिंदु तक दबाया जाता था जहाँ व्यक्तित्व की अद्वितीयता अप्रभावी हो जाती थी और उसके अस्तित्व में कुछ भी सार्थक नहीं रह जाता था।
कियर्केगार्ड, जो जीवन के दर्शन का समर्थक था, आम तौर पर लेवलिंग और इसके विनाशवादी प्रभाव के खिलाफ तर्क देता था, यद्यपि वह मानता था कि "बराबरी के युग में रहना आमतौर पर अत्यंत शिक्षाप्रद होगा [क्योंकि] लोग [बराबरी] के निर्णय का अकेले सामना करने के लिए मजबूर किये जायेंगे.[११] जॉर्ज कोटकिन कहते हैं कि उन्नीसवीं सदी में कियर्केगार्ड "विश्वास के मानकीकरण और बराबरी का, आध्यात्मिक और राजनीतिक दोनों रूपों में, विरोधी था [और उसने] सामूहिक रूप से व्यक्ति विशेष की अनुरूपता को शून्य पर लाने व प्रभावशाली राय का सम्मान करने की संस्कृति की प्रव्रत्तियों का विरोध किया।[१२] उन दिनों में पत्रिकाएँ (जैसे डैनिश कोर्सारेन) तथा भ्रष्ट ईसाई धर्म लेवलिंग के साधन थे और 19 वीं सदी के यूरोप को "परावर्तक उदासीन" युग" बनाने के जिम्मेदार थे।[१३] कियर्केगार्ड का तर्क है कि जो व्यक्ति लेवलिंग प्रक्रिया से बाहर आने में सक्षम हैं, वे इसके लिए समर्थ हैं और यह उनका "सच्चा निजी व्यक्तित्व बनने" की सही दिशा में एक कदम है।[११][१४] क्योंकि हमें लेवलिंग से अवश्य बाहर आना चाहिए, ह्यूबर्ट ड्रेफुस और जेन रुबिन तर्क देते हैं कि कियर्केगार्ड की दिलचस्पी इसमें है कि "बढ़ते हुए निराशावादी दौर में, हम कैसे इस भावना को पा सकते है कि हमारा जीवन अर्थपूर्ण है".[१५]
हालांकि यह ध्यान दिया जाना चाहिए नास्तिवाद के सन्दर्भ में कियर्केगार्ड का मतलब आधुनिक परिभाषा से इन अर्थों में अलग है कि कियर्केगार्ड के लिए लेवलिंग जीवन के आभाव अर्थों, कारण, मूल्यों[१३] को प्रदर्शित करती है जबकि आधुनिक परिभाषा के अनुसार जीवन के लिए आरम्भ से ही कोई अर्थ, कारण या महत्त्व नहीं था।
नीत्शे
नास्तिवाद को अक्सर जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे के साथ जोड़ कर देखा जाता है जिन्होंने पश्चिमी सभ्यता में बड़े स्तर पर फैले हुए नास्तिवाद का विस्तृत अध्ययन किया है। यद्यपि आमतौर पर नीत्शे के पूरे काम के बारे में अक्सर यह दिखाई देता है, कि उन्होनें इस शब्द को विभिन्न तरीकों, सकारात्मक और नकारात्मक अर्थों और अतिरिक्त अर्थों के लिए प्रयुक्त किया। एक सामान्य तरीका जिसमें वे नास्तिवाद की व्याख्या करते हैं, "हम जो चाहते हैं (या आवश्यकताएं) और दुनिया की प्रतिक्रिया के बीच विषमता के कारण उत्पन्न तनाव की अवस्था".[१६] जब हम पाते हैं कि बाहर की दुनिया का उद्देश्यपूर्ण महत्त्व या अर्थ नहीं है जो हम चाहते हैं, या लंबे समय से मानते हैं कि ऐसा होता है, हम स्वयं को मुसीबत में पाते हैं।[१७] नीत्शे का दावा है कि ईसाई धर्म में गिरावट और शारीरिक पतन होने के कारण, नास्तिवाद वास्तव में आधुनिक युग की एक विशेषता है,[१८] हालांकि उसका तात्पर्य है कि नास्तिवाद का अभी भी पूरा उदय नहीं हुआ है और इसका पूरी तरह कामयाब होना अभी बाकी है।[१९] यद्यपि नीत्शे की नोटबुक में नास्तिवाद की समस्या विशेष रूप से व्यक्त की गयी है (मरणोपरांत प्रकाशित), यह उसके द्वारा प्रकाशित किताबों में बार बार कही गयी है और उसमे बताई गयी कई समस्याओं से नजदीकी रूप से जुड़ी हुयी है।
नीत्शे ने नास्तिवाद को दुनिया खाली करने और विशेष रूप से मानव अस्तित्व के अर्थ, उद्देश्य, सुबोध सच है, या आवश्यक मूल्य के रूप में परिभाषित किया है। इस व्याख्या का मूल स्त्रोत नीत्शे के परिप्रेक्ष्वाद या उसकी इस धारणा से उपजा है कि हर किसी के पास किसी चीज़ का ज्ञान अवश्य होता है, यह सम्भावना से घिरा रहता है औरे कभी भी एक तथ्य मात्र नहीं होता.[२०] बल्कि, कई व्याख्याओं के माध्यम से हम दुनिया को समझते हैं और इसका मतलब निकालते हैं। व्याख्या के बिना हम कहीं आगे नहीं बढ़ सकते, अपितु वास्तव में यह कुछ ऐसा है जिसकी हमें आवश्यकता है। दुनिया की व्याख्या का एक तरीका नैतिकता है, एक मौलिक तरीका जिसमे लोग दुनिया का मतलब ढूंढते हैं, विशेषकर अपने विचार और क्रियाओं के सम्बन्ध में. नीत्शे मजबूत या स्वस्थ नैतिकता में अंतर को बताता है, अर्थात प्रश्न पूछे जाने वाले व्यक्ति को पता है कि उसने अपने आप को कमज़ोर नैतिकता से बनाया है, जहाँ व्याख्या बाहरी रूप से की जाती है। ताकत के बजाय, नैतिकता हमें अर्थ प्रदान करती है, चाहे बनाई गयी हो या "समाविष्ट की" गयी हो, जिससे हमे जीवन जीने में मदद मिलती है।[२१] यही कारण है कि नीत्शे "पूर्ण रूप से बेकार" या "कुछ नहीं का अर्थ है"[२२] के रूप में नास्तिवाद खतरनाक है, या यहाँ तक कि "खतरों का खतरा"[२३] है। मूल्यांकन के सहारे ही लोग निर्वाह करते हैं और जीवन में खतरों, दर्द तथा कठिनाइयों का सामना करते हैं। सभी अर्थों और मूल्यों का पूर्ण रूप से विनाश आत्महत्या या बड़े पैमाने पर हत्या के समान होगा.[२४]
नीत्शे अपने काम में महत्त्वपूर्ण विषयों में से एक, इसाई धर्म पर अपनी नोटबुक में 'यूरोपीयन नास्तिवाद ' नामक अध्याय में नास्तिवाद की समस्या के संदर्भ के विषय में विस्तार से चर्चा करता है।[२५] यहाँ वह कहता है कि ईसाई नैतिक सिद्धांत लोगों को वास्तविक मूल्य, भगवान में विश्वास (जो दुनिया में बुराई का औचित्य) बताता है) और उद्देश्यात्मक ज्ञान के लिए एक आधार प्रदान करता है। इस अर्थ में, एक ऐसी दुनिया के निर्माण में, जहां उद्देश्यात्मक ज्ञान संभव है, ईसाई धर्म नास्तिवाद के मौलिक रूप, अर्थहीनता से उपजी निराशा के लिए संहारक का काम करता है। हालांकि, यह वास्तव में ईसाई सिद्धांत की सत्यवादिता का तत्व है अर्थात खुद का विनाश : सत्य के प्रति अपने अभियान में, ईसाई धर्म अंततः खुद को एक ऐसे निर्माण के रूप में पाता है, जो खुद के विघटन की ओर जा रहा है। इसलिए नीत्शे ने कहा है कि हम ईसाइयत के पार चले गये हैं " इसलिए नहीं कि हम इससे बहुत दूर रहते हैं, बल्कि इसलिए कि हम इसके बहुत नज़दीक तहते हैं।"[२६] इस तरह, ईसाई धर्म का स्वयंभू विघटन नास्तिवाद के एक और प्रारूप का निर्माण करता है। क्योंकि ईसाईयत एक व्याख्या थी जिसने स्वयं को व्याख्या की स्थिति में रखा, नीत्शे का कहना है कि यह विघटन[२७] संशयवाद से परे सभी अर्थों के विनाश की ओर ले जाता है।[२७][२८]
स्टेनली रोज़ेन नास्तिवाद के बारे में नीत्शे की अवधारणा को उस अर्थहीनता की स्थिति से जानते हैं, जहाँ "हर चीज़ के लिए अनुमति है". उनके अनुसार, उच्च आध्यात्मिक मूल्यों के खोने के कारण, जो दुनिया या मानव मात्र विचारों के आधार की वास्तविकता के विपरीत अस्तित्व में हैं, इस विचार को जन्म देते हैं कि इसी कारण सभी मानव विचार अर्थहीन हैं। आदर्शवाद को नकारने के परिणामस्वरूप नास्तिवाद का उदय होता है, क्योंकि इसी तरह केवल उत्कृष्ट आदर्श उन पिछले मानकों तक रहेंगे जिन्हें कि शून्यवादी (नाइलिस्ट) अभी तक अंतर्निहित उलझाव के कारण मानते हैं।[२९] दुनिया का मूल्यांकन करने के स्त्रोत के रूप में ईसाईयत की अक्षमता नीत्शे की ' द गे साइंस ' में पागल व्यक्ति की प्रसिद्ध कहावत के रूप में परिलक्षित होती है।[३०] ईश्वर की मौत, विशेषतयः यह कथा कि "हमने उसे मारा", एक तरह से ईसाई सिद्धांत के स्वयं-भू विघटन के ही समान है : विज्ञान के विकास के कारण, जिसके लिए नीत्शे ने दिखाया कि मनुष्य विकास का उत्पाद है, पृथ्वी का सितारों में कोई विशेष स्थान नहीं है और इतिहास प्रगतिशील नहीं है, ईश्वर की ईसाई धारणा नैतिकता के आधार के रूप में लंबे समय तक नहीं रह सकती.
इस अर्थ को खोने की प्रतिक्रिया के एक रूप को नीत्शे 'निष्क्रिय नास्तिवाद ' कहता है, जो उसके अनुसार शोपेन्हॉयर के निराशावादी दर्शन में है। शोपेन्हॉयर का सिद्धांत, जिसे नीत्शे पश्चिमी बौद्ध धर्म भी कहता है, पीड़ा से बचने के लिए इच्छाओं और जरूरतों से अलग होने की वकालत करता है। नीत्शे इस कठोर दृष्टिकोण को "कुछ न होने की इच्छा" के रूप में देखता है जहाँ जीवन स्वयं से दूर होने लगता है, चूंकि दुनिया में किसी भी चीज़ का मूल्य दिखाई नहीं देता. दुनिया के सभी मूल्यों को मिटाना शून्यवादी (नाइलिस्ट) की विशेषता है, हालांकि इस में, शून्यवादी (नाइलिस्ट) अनुचित प्रतीत होता है।[३१]
नीत्शे का नास्तिवाद की समस्या से जटिल संबंध है। वह एक गहरे व्यक्तित्व के रूप में नास्तिवाद की समस्या को यह कहते हुए देखता है कि आधुनिक दुनिया की यह समस्या एक ऐसी समस्या है जो उसमे "सचेत हो" गयी है।[३२] इसके अलावा, वह नास्तिवाद के खतरे और इसके द्वारा प्रदान की जाने वाली संभावनाओं पर जोर देता है, जैसा कि उसके कथन में देखा गया है "मैं प्रशंसा करता हूँ, मैं आगमन का तिरस्कार नहीं करता [नास्तिवाद के]. मेरा मानना है कि यह बड़े संकटों में से एक है, एक पल, जो मानवता का गहरा आत्म प्रतिबिंब है। चाहे मनुष्य इस से उबर जाए, चाहे वह इस संकट पर नियंत्रण कर ले, यह उसकी ताकत पर निर्भर करता है!"[३३] नीत्शे के मुताबिक, नास्तिवाद को केवल तभी हराया जा सकता है जब संस्कृति का एक सच्चा आधार हो जिस पर यह फले फूले. उन्होंने ऐसा जल्दी होने की कामना की ताकि ताकि वे इसे जल्दी से हटा सकें.[१८]
उन्होंने कहा कि कम से कम ईसाईयत के विघटन के फलस्वरूप एक और प्रकार के नाइलिस्ट के उदय होने की सम्भावना है, एक ऐसा जो सभी मूल्यों और अर्थों के विनाश के बाद नहीं रुकता और नकारात्मकता के अधीन हो जाता है। इस वैकल्पिक, या दूसरे शब्दों में 'सक्रिय' नास्तिवाद कुछ नये निर्माण की जमीन को नष्ट कर देता है। इस प्रकार के नास्तिवाद को नीत्शे द्वारा "शक्ति का संकेत"[३४] कहा गया है, अपनी इच्छा से नई शुरुआत करने के लिए पुराने मूल्यों को जड़ से मिटाना और स्वयं के विश्वास और व्याख्याएं स्थापित करना, निष्क्रिय नास्तिवाद के विपरीत जो पुराने मूल्यों के विघटन के साथ स्वयं का परित्याग कर देता है। इन मूल्यों का अपनी इच्छानुसार विनाश तथा नये अर्थ बना कर नास्तिवाद की स्थिति से बाहर आना, इस सक्रिय नास्तिवाद को नीत्शे की एक और परिभाषा "मुक्त आत्मा"[३५] या दज स्पोक जरथुस्त्र व द एंटीक्राइस्ट में उबेरमेंश कहा जा सकता है, एक मजबूत व्यक्ति है जो स्वयं अपने मूल्य निर्धारित करता है और अपना जीवन ऐसे जीता है मनो यह एक कला हो.
हाइडेगर द्वारा नीत्शे की व्याख्या
कई आधुनिकतावादी विचारक जिन्होने नीत्शे द्वारा उठाई गयी नास्तिवाद की समस्या की जाँच की है, मार्टिन हाइडेगर द्वारा नीत्शे की व्याख्या से प्रभावित थे। हाल ही में ऐसा हुआ है कि नीत्शे द्वारा नास्तिवाद के शोध पर हाइडेगर का प्रभाव फीका हुआ है।[३६] 1930 के दशक के शुरू में, हाइडेगर नीत्शे के विचारों पर व्याख्यान देता था।[३७] नीत्शे के नास्तिवाद विषय में योगदान को देखते हुए, हाइडेगर द्वारा नीत्शे की प्रभावशाली व्याख्या नास्तिवाद शब्द के ऐतिहासिक विकास में महत्वपूर्ण है।
हाइडेगर का नीत्शे के विषय में शोध करने तथा शिक्षा देने का ढंग पूर्ण रूप से उसका अपना ही है। वह नीत्शे को नीत्शे के रूप में पेश करने की विशेष कोशिश नहीं करता. इसके बजाय वह नीत्शे के विचारों को स्वयं अपनी दार्शनिक प्रणाली अस्तित्व, समय और मौजूदगी में समाहित करने की कोशिश करता है।[३८] उसकी नास्तिवाद एज डिटरमाइंड बाय द हिस्ट्री ऑफ़ बीइंग (1944-46)[३९] में, हाइडेगर नीत्शे के नास्तिवाद को इस ढंग से समझने का प्रयास करता है मानो उस समय के सर्वोच्च मोल्यों के अवमूल्यन द्वारा जीत हासिल करने की कोशिश कर रहा हो. हाइडेगर के अनुसार, इस अवमूल्यन का सिद्धांत, शक्ति के लिए इच्छा है। शक्ति की इच्छा प्रत्येक शुरूआती मूल्यों के मूल्यांकन का सिद्धांत भी है।[४०] यह अवमूल्यन कैसे होता है और यह शून्यवादी (नाइलिस्टिक) क्यों है? दर्शन पर हाइडेगर की मुख्य आलोचनाओं में से एक दर्शन और विशेष रूप से कहें तो अध्यात्मवाद अस्तित्व (Seiende/पराया) और अस्तित्व (Sein/नादान) की धारणा के बीच भेद करना भूल गया है। हाइडेगर के अनुसार, पश्चिमी विचारों के इतिहास को अध्यात्मवाद के इतिहास के रूप में देखा जा सकता है। और क्योंकि अध्यात्मवाद अस्तित्व की धारणा के विषय में पूछना भूल गया है (जिसे हाइडेगर Seinsvergessenheit/अस्तित्व कहता है, यह अस्तित्व के विनाश के इतिहास के बारे में है। यही कारण है कि हाइडेगर अध्यात्मवाद को शून्यवादी (नाइलिस्टिक) कहता है।[४१] यह नीत्शे के अध्यात्मवाद की नास्तिवाद के ऊपर विजय नहीं है अपितु इसकी सटीकता है।[४२]
नीत्शे के बारे में अपनी व्याख्या में, हाइडेगर अर्नस्ट जंगर से प्रभावित रहे हैं। हाइडेगर के नीत्शे पर व्याख्यानों में जंगर के कई सन्दर्भ देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, जंगर से प्रभावित हो कर 4 नवम्बर,1945 को फ्रीबर्ग यूनिवर्सिटी के रेक्टर को लिखे गये पत्र में, हाइडेगर "ईश्वर मर चुका है" की धारणा को "शक्ति की इच्छा की सच्चाई" के रूप में व्याख्या करने की कोशिश करता है। हाइडेगर जंगर द्वारा नीत्शे के तीसरे शासन के दौरान अत्यधिक जीव विज्ञान या मानव शास्त्र पढ़ने के खिलाफ बचाव करने की भी प्रशंसा करता है।[४३]
कई महत्वपूर्ण आधुनिक विचारक हाइडेगर द्वारा नीत्शे की व्याख्या से प्रभावित थे। जिआनी वेटिमो नीत्शे और हाइडेगर के बीच यूरोपीय विचारों में परस्पर आंदोलन की ओर संकेत देते हैं। 1960 के दशक के दौरान, एक नीत्शे आधारित 'पुनर्जागरण' शुरू हुआ, जो मेज़िनो मोंटीनारी और जोर्जिओ कोली के कार्य द्वारा समाप्त हुआ। उन्होनें नीत्शे द्वारा एकत्रित कामों का नया और पूर्ण संग्रह तैयार किया, जिससे शोधार्थियों के अनुसन्धान के लिए नीत्शे तक पहुँच आसान हो गयी। वेटिमो बताते हैं कि कोली और मोंटीनारी के इस नये संस्करण के साथ, हाइडेगर द्वारा नीत्शे के सम्बन्ध में की गयी व्याख्या ने एक आलोचनात्मक प्रतिक्रिया का आकार लेना शुरू कर दिया. अन्य समकालीन फ्रेंच और इतालवी दार्शनिकों की तरह, नीत्शे को समझने के लिए वेटिमो हाइडेगर पर निर्भर नहीं रहना चाहते अथवा केवल आंशिक रूप से चाहते हैं। दूसरी तरफ, वेटिमो के अनुसार हाइडेगर के इरादे उनका अनुसरण करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रामाणिक हैं।[४४] दार्शनिक जिन्हें वेटिमो इस परस्पर विचारधारा की मिसाल के रूप में पेश करता हैं वे हैं फ्रेंच दार्शनिक डेल्यूज़, फूकॉल्ट और डेरिडॉ॰ इसी विचारधारा के इतालवी दार्शनिकों में कासिअरी, सेवेरिनो और वह खुद हैं।[४५] हैबरमास, ल्योटार्ड और रोर्टी भी ऐसे दार्शनिक हैं जो हाइडेगर द्वारा नीत्शे की व्याख्या से प्रभावित हैं।[४६]
(आधुनिकता के बाद) पोस्टमोर्डेनिज़्म
आधुनिकता के बाद और संरचनावाद के बाद का विचार उस आधार पर प्रश्न चिन्ह लगाता है जिस पर पश्चिमी सभ्यता का सत्य टिका हुआ है : पूर्ण ज्ञान और अर्थ, साहित्यिक कार्यों का 'विकेन्द्रीकरण', सकारात्मक ज्ञान का संचय, एतिहासिक विकास, तथा कुछ आदर्श और मानवतावाद व आत्मज्ञान का अभ्यास. जैक डेरिडा, जिसके विनाश को आम तौर पर सबसे अधिक शून्यवादी (नाइलिस्टिक) का दर्ज़ा दिया गया है, ने कभी भी स्वयं शून्यवादी (नाइलिस्टिक) विचारधारा का पालन नहीं किया है, जैसा कि कुछ लोग दावा करते हैं। डेरीडियन विनाशवादी यह तर्क देते हैं कि इस दृष्टिकोण से ग्रंथों को, व्यक्ति विशेष या संस्थाओं को प्रतिबंधित सच को बोलने से छूट मिलती है और इस प्रकार का विनाश अस्तित्व के अन्य तरीकों की संभावनाओं के द्वार खोलता है।[४७] उदाहरण के लिए गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक, विनाश का उपयोग नीतियों के निर्माण में करती है जो पश्चिमी शोधार्थियों को गुलामी और पश्चिमी ग्रंथों की कसौटी के बाहर के दर्शनशास्त्र की आवाज़ से रूबरू कराती है।[४८] खुद डेरिडा ने 'दूसरों के लिए जिम्मेदारी'[४९] के आधार पर अपने लिए दर्शन बनाई, इस प्रकार विनाश को केवल सत्य को अस्वीकार करने के रूप में नहीं देखा जा सकता, अपितु सच को जानने की हमारी क्षमता को अस्वीकार करने के रूप में देखा जा सकता है (इससे यह नास्तिवाद के [[ओन्टोलॉजी [सिद्धांतशास्त्र] दावे की तुलना में ज्ञान सम्बंधित शास्त्र ]]का दावा बन जाता है).
ल्योटार्ड का तर्क है कि, उनके दावों को साबित करने के लिए एक वस्तु-गत सत्य या पद्धति पर भरोसा करने की बजाय, दार्शनिक अपने सच को दुनिया की कहानी द्वारा वैध ठहराते हैं, जो सम्बंधित कहानियों की उम्र तथा प्रणाली से पृथक करने योग्य नहीं है और जिसे ल्योटार्ड द्वारा मेटा कथा कहा जाता है। इसके बाद वे आधुनिकतावादी स्थिति को मेटा कथा की तथा मेटा कथा द्वारा वैधता की प्रक्रिया, दोनों की अस्वीकृति के रूप में परिभाषित करते हैं। "मेटा-कथा के बदले हमने अपने दावों को वैध ठहराने के लिए नया भाषाई खेल बनाया है जो बदलते हुए रिश्तों और अस्थिर सत्यों पर आधारित है, इनमे से किसी के पास भी परम सत्य पर एक दुसरे को कुछ कहने का विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है". सत्य की अस्थिरता की यह अवधारणा और अर्थ नास्तिवाद की दिशा की ओर ले जाता है, हालांकि ल्योटार्ड बाद वाले से जुड़ने से रोकते हैं।
पोस्टमॉडर्न सिद्घांतकार जीन बौड्रीलार्ड ने आधुनिकतावाद से बाद के दृष्टिकोण से नास्तिवाद पर संक्षेप में सिमुलाकारा तथा सिमुलेशन में लिखा है। वह पाखंडों के रूप में असली दुनिया की व्याख्याओं के विषयों पर अटक गया जिससे की यह वास्तविक दुनिया बनी है। अर्थ का उपयोग बौड्रीलार्ड की नास्तिवाद पर चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय था:
नास्तिवाद के प्रकार
नास्तिवाद की कई परिभाषाएं हैं और इसलिए इसका प्रयोग स्वतंत्र विवाद-योग्य दार्शनिक स्थितियों का वर्णन करने के लिए किया गया।
नैतिक शून्यवाद
नैतिक शून्यवाद जिसे एथिकल शून्यवाद के रूप में भी जाना जाता है, एक नैतिकता से परे दृष्टिकोण है कि किसी उद्देश्यात्मक सच्चाई में नैतिकता नहीं बसती, इसलिए कोई भी कार्य दूसरे से बेहतर नहीं है। उदाहरण के लिए, एक नैतिक शून्यवादी (नाइलिस्ट) कहेगा कि किसी को मारना, चाहे जो भी कारण हो, स्वाभाविक रूप से सही या गलत नहीं है। कुछ शून्यवादी (नाइलिस्ट)साँचा:fix तर्क देते हैं कि सभी में कोई नैतिकता नहीं है, लेकिन अगर है, तो यह मानव द्वारा निर्मित है और इस तरह से कृत्रिम निर्माण है, जिसमे कोई विशेष अथवा सभी अर्थ विभिन्न संभव परिणामों से सम्बंधित हैं। एक उदाहरण के रूप में, यदि कोई किसी को मारता है, इस तरह का शून्यवादी (नाइलिस्ट) बहस कर सकता है कि स्वाभाविक रूप से हत्या बुरा काम नहीं है, हमारी नैतिक मान्यताओं की वजह से स्वतंत्र रूप से बुरा है, सिर्फ इसलिए कि जिस ढंग से नैतिकता का कुछ मौलिक विरोधाभास के रूप में निर्माण किया गया है, बुरे काम को अच्छे काम की अपेक्षा में नकारात्मक दर्ज़ा दिया गया है : परिणामस्वरूप, व्यक्ति की हत्या बुरा काम था क्योंकि इसने व्यक्ति को जीवित नहीं रहने दिया, जिसे कि मनमाने ढंग से सकारात्मक दर्ज़ा दिया गया था। इस तरह से नैतिक शून्यवादी (नाइलिस्ट) सोचते हैं कि सभी नैतिक दावे झूठे हैं।
अस्तित्वपरक शून्यवाद
अस्तित्वपरक शून्यवाद एक विश्वास है कि जीवन का कोई वास्तविक अर्थ या मूल्य नहीं है। इस पर केवल वैज्ञानिक विश्लेषणों द्वारा यह दिखा कर प्रतिबंध लगाया जा सकता है कि केवल भौतिक कानूनों ने ही हमारे अस्तित्व के लिए योगदान दिया है। ब्रह्मांड के सन्दर्भ में, उद्देश्य के बिना एक मानव या यहाँ तक कि पूरी मानव प्रजाति का कोई महत्त्व नहीं है और अस्तित्व की समग्रता में इसके बदलने की संभावना नहीं है। साधारण रूप से, इस संबंध में शून्यवादियों (नाइलिस्ट) का मानना है कि जीवन का एकमात्र उद्देश्य इसे जीते रहना है।
ज्ञानमीमांसापरक शून्यवाद
नास्तिवाद को एक ज्ञान से सम्बंधित शास्त्र के रूप में संशयवाद की चरम सीमा के तौर पर देखा जा सकता है जहाँ सभी तरह के ज्ञान को नकार दिया जाता है।[५०]
आध्यात्मिक शून्यवाद
आध्यात्मिक नास्तिवाद एक दार्शनिक सिद्धांत है कि ऐसा हो सकता है कि सब कुछ न हो अर्थात ऐसी संभव दुनिया है जिसमे कोई वस्तु न हो, या हो सकता है कि कम से कम कोई ठोस वस्तु न हो, ताकि यदि प्रत्येक संभव दुनिया में एक प्रकार की वस्तुएं हों, तो उनमे से कम से कम एक ऐसी होती है जिसमे केवल तत्व के रूप में वस्तुएं होती हैं।
आध्यात्मिक नास्तिवाद के एक चरम रूप को इस विश्वास के रूप में आमतौर पर परिभाषित किया जाता है कि अस्तित्व का खुद ही कोई वज़ूद नहीं है।[५१][५२] इस प्रकार के कथन की व्याख्या करने का एक ढंग है : 'अस्तित्व' को 'गैर मौजूदगी से' अलग पहचानना असंभव है क्योंकि इसमें कोई वस्तु के गुण नहीं हैं और इस तरह यह एक वास्तविकता है कि एक स्थिति दोनों के बीच के क्रम को प्रभावित कर सकती है। यदि कोई अस्तित्व को नकारने का विचार नहीं कर सकता, तो अस्तित्व की अवधारणा का कोई अर्थ नहीं है, या दूसरे शब्दों में कहें तो, किसी भी सार्थक तरीके से 'अस्तित्व' में नहीं है। यहाँ 'अर्थ' का मतलब इस तर्क के लिए किया गया है कि अस्तित्व की उच्च स्तर पर कोई वास्तविकता नहीं है जो कि निश्चित रूप से इसका आवश्यक तथा परिभाषित गुण है, अस्तित्व का स्वयं अर्थ है कुछ नहीं. यहाँ यह तर्क दिया जा सकता है कि इस विश्वास को यदि ज्ञान से सम्बंधित शास्त्र से जोड़ कर देखा जाए, तो व्यक्ति केवल नास्तिवाद के चक्रव्यूह में घिर कर रह जाएगा जिसमे कुछ भी वास्तविक या सच नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे मूल्य मौजूद नहीं हैं। यह स्थिति इस सिद्धांत, कि आत्मा ही सच्चे ज्ञान की वस्तु है, में पाई जा सकती है, तथापि, इस दृष्टिकोण में आत्मज्ञानी स्वयं की पुष्टि करता है जबकि शून्यवादी (नाइलिस्ट) स्वयं का अस्तित्व नकारता है। यह दोनों स्थितियां यथार्थवाद विरोध का रूप हैं। साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed] हालांकि, यह कहने के लिए कि अस्तित्व और सच मौजूद नहीं है, आम तौर पर अस्तित्व और सच के बारे में अभिव्यक्ति करना है।
मीरियोलॉजिकल नास्तिवाद
मीरियोलॉजिकल नास्तिवाद (रचनात्मक नास्तिवाद भी कहा जाता है) एक स्थिति है जिसके अनुसार किसी भी वस्तु का सही हिस्सों के साथ वजूद नहीं है (केवल अन्तरिक्ष की वस्तुएं ही नहीं अपितु सामयिक वस्तुओं के कोई अस्थायी हिस्से नहीं हैं) और केवल बिना किसी हिस्सों के केवल बुनियादी ढांचे होते हैं) और इस प्रकार हम जिस हिस्सों से भरी हुई दुनिया को देखते अथवा उसका अनुभव करते हैं, मनुष्य की समझ के परिणामस्वरूप है (अर्थात, यदि हम स्पष्ट देख सकते, तो हम रासायनिक वस्तुओं को अनुभव करने की आवश्यकता नहीं थी).
राजनीतिक नास्तिवाद
नास्तिवाद की एक शाखा, राजनीतिक नास्तिवाद, जो शून्यवादी (नाइलिस्ट) की अतार्किक या बिना साबित किये गये दावों को नकारने की विशेषता का पालन करती है, इस संबंध में मूल सामजिक और राजनीतिक ढांचे की आवश्यकता जैसे कि सरकार, परिवार या क़ानून और क़ानून का पालन. 19 वीं सदी के शून्यवादी (नाइलिस्ट) आंदोलन में रूस ने इसी प्रकार के सिद्धांत का समर्थन किया।
सांस्कृतिक अभिव्यक्तियां
टेलीविज़न
थॉमस हिब्स, जो बोस्टन कॉलेज के प्रोफेसर और दर्शन शास्त्री हैं, ने सुझाव दिया है कि सिनफील्ड टीवी शो में नास्तिवाद की अभिव्यक्ति है। तथ्य का आधार यह है कि यह "कुछ भी नहीं" के बारे में एक "शो" है। एपिसोड के अधिकांश हिस्से में ज़रा सी बात पर जोर दिया गया है। सिनफील्ड में प्रस्तुत दृश्य निश्चित रूप से नास्तिवाद दर्शन के समान हैं, यह विचार कि जीवन व्यर्थ है और जिससे यह बेतुकी भावना पैदा होती है, जिसके कारण शो में व्यंग्यात्मक हास्य पैदा होता है।[५३]
डाडा
डाडा शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1916 में ट्रिसटन द्ज़ारा द्वारा किया गया।[५४] एक विचारधारा, जो लगभग 1916 से 1922 तक रही, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पैदा हुई, एक घटना जिसने कलाकारों को प्रभावित किया।[५५] डाडा विचारधारा ज़्यूरिख़ स्विट्जरलैंड में शुरू हुयी - वॉल्टेअर कैफे में - जिसे "Niederdörfli" या "Niederdorf" के रूप में जाना जाता है।[५६] डाडावादियों ने दावा किया कि डाडा एक कला विचारधारा नहीं थी, बल्कि एक कला विरोधी विचारधारा थी, जिसमें कभी कभी चुराई गयी कविता की तरह पायी गयी वस्तुएं प्रयुक्त की गयी हैं। "कला विरोधी" आन्दोलन को युद्ध के पश्चात् के खालीपन से उत्पन्न हुआ माना जाता है। कला के अवमूल्यन की इस प्रवृत्ति के कारण कई लोगों ने दावा किया की डाडा अनिवार्य रूप से एक शून्यवादी (नाइलिस्टिक) आंदोलन था। यह देखते हुए कि डाडा ने अपने उत्पादों की व्याख्या के लिए अपने स्वयं के अर्थ बनाये, इसे अधिकांश अन्य समकालीन कला अभिव्यक्तियों के साथ वर्गीकृत करना मुश्किल है। इसलिए, अस्पष्टता की वजह से इसे कई बार, शून्यवादी (नाइलिस्टिक) मोडस विवेन्डी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।[५५]
संगीत
द गार्जियन में 2007 के लेख का उल्लेख किया है कि "... ... 1977 की गर्मियों में, पंक के शून्यवादी (नाइलिस्टिक) अकड़ू इंग्लैंड की सबसे रोमांचकारी चीज़ों में से एक थे।[५७] द सेक्स पिस्टल की "गॉड सेव द क्वीन", जिसमे गीत के अंत में "कोई भविष्य नहीं है" शब्द हैं, 1970 के दशक के अंत में बेरोजगार और असंतुष्ट युवाओं के लिए एक नारा बन गया।[५८]
नास्तिवाद को "स्ट्रीट कोड" के एक भाग के रूप में कई गैन्गस्टा रैप में व्यक्त किया गया है, लेकिन यह इस तरह के संगीत में कई नज़रियों या परिप्रेक्ष्यों में से एक है।[५९]
ब्लैक मेटल और डेथ मेटल संगीत अक्सर शून्यवादी (नाइलिस्टिक) विषयों पर ज़ोर देते हैं।[६०][६१] [६२]
औद्योगिक संगीत और रिवेटहेड उपसंस्कृति स्वभाव से अत्याधिक शून्यवादी (नाइलिस्टिक) हैं।
सन्दर्भ
- ↑ एलन प्रैट वर्तमान नास्तिवाद को परिभाषित करते हुए कहते हैं "एक धारणा कि जीवन का कोई वास्तविक अर्थ या मूल्य नहीं है और बेशक, ऐसा है, इसीलिए आज के दौर में इस शब्द का सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला तथा समझा गया अर्थ यही है" दर्शनशास्त्र का इंटरनेट विश्वकोश (इंटरनेट एन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ दर्शन स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।.
- ↑ बजारोव, 1860 के दशक के शुरू में लिखी गयी इवान टर्जनेव की उत्कृष्ट कृति फादर्स एंड संस के नायक को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि नास्तिवाद "केवल अभिशाप" है, दर्शनशास्त्र का विश्वकोश से लिया गया है (मैकमिलन, 1967) संस्करण 5, "नास्तिवाद", 514 ff. इस स्त्रोत में लिखा है : "एक ओर, इस शब्द की व्याख्या इस सिद्धांत को दर्शाने के लिए व्यापक रूप से प्रयुक्त की जाती है कि, नैतिक मानदण्डो या मानकों को तर्कसंगत बहस द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता है। दूसरी ओर, यह व्यापक रूप से शून्य या मानव अस्तित्व के कम महत्त्व के होने के कारण निराशा की मनोदशा को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। यह दोहरा अर्थ इस तथ्य के आधाप पर बनाया गया हो सकता है क्योंकि यह शब्द अधिकतर उन्नीसवीं शताब्दी में एक सभा के रूप में धार्मिक लोगों द्वारा नास्तिकों के लिए प्रयुक्त होता था, नास्तिक दोनों अर्थों में इन्हीं तथ्यों के आधार पर नास्तिवाद माने जाते थे। नास्तिक, [धार्मिक लोगों द्वारा आयोजित की गयी थी], नैतिक मानदंडों से बंधा हुआ नहीं था, फलस्वरूप, उसका झुकाव कठोर या स्वार्थी बनने, यहाँ तक कि अपराधी बनने की ओर भी हो जाता था। (पृष्ठ 515 पर).
- ↑ आधुनिकता के बाद का युग एक शून्यवादी (नाइलिस्टिक) युग है, इस दृष्टिकोण को जानने के लिए देखें, टॉयनबी, आर्नोल्ड (1963) ए स्टडी ऑफ़ हिस्ट्री, संस्करण VIII और IX; मिल्स, सी. राइट (1959) द सोशियोलॉजिकल इमेज़िनेशन, बेल, डैनियल (1976) द कल्चरल कोंट्राडिक्शन्स ऑफ़ कैपिटलिज्म, और बौड्रीलार्ड, जीन (1993) की बौड्रीलार्ड लाइव में "गेम विद वेस्तिगेस", ed. माइक गेन और (1994) "नास्तिवाद पर" में अस्पष्ट और पाखण्ड, ट्रांस. शीला फ़रिया ग्लासर. आधुनिकतावाद एक शून्यवादी विचारों का साधन है, इस दृष्टिकोण के उदाहरणों के लिए देखें रोज़ गिलियन (1984) डायलेक्टिक ऑफ़ नास्तिवाद कार, कैरेन एल. (1988) द बेनालाइज़ेशन ऑफ़ नास्तिवाद और पोप जॉन पॉल द्वितीय) (1995), Evangelium vitae: Il valore e l’inviolabilita delta vita umana. मिलान: पाओलीन एडिटोरियल लिबरी." सभी वुडवर्ड में उद्धृत, एश्ले : नास्तिवाद एंड द पोस्टमॉडर्न इन वेटिमोज़ नीत्शे स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, ISSN 1393-614X मिनर्वा - एन इंटरनेट जर्नल ऑफ़ दर्शन, वॉल्यूम 6, 2002, Fn 1.
- ↑ उदाहरण के लिए, साँचा:cite web
- ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;phillips
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- ↑ ड्रेफुस ह्यूबर्ट. इंटरनेट पर कियर्केगार्ड: गुमनामी बनाम वर्तमान युग में वचनबद्धता. [१] स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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- ↑ नीत्शे नास्तिवाद को आत्महत्या के रूप में परिभाषित करता है, देखें KSA 13:14 [9]
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- ↑ एफ नीत्शे, द गे साइंस: 125
- ↑ यह "कुछ न करने की इच्छा" भी एक प्रकार की इच्छा है, क्योंकि यह बिलकुल एक ऐसे निराशावादी के रूप में है जिसे शोपेन्हायर जीवन से जोड़ता है। देखें एफ. नीत्शे, ऑन द जीनिओलॉजी ऑफ़ मोरेल्स III: 7
- ↑ एफ नीत्शे, KSA 12:7 [8]
- ↑ फ्रेडरिक नीत्शे, सभी अध्याय. वोल्यूम 13.
- ↑ एफ नीत्शे, KSA 12:9 [35]
- ↑ के. कार, द बनालाइज़ेशन ऑफ़ नास्तिवाद, स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क प्रेस, पृष्ठ 43-50
- ↑ "Heideggers, Aus-einander-setzung’ mit Nietzsches hat mannigfache Resonanz gefunden. Das Verhältnis der beiden Philosophen zueinander ist dabei von unterschiedlichen Positionen aus diskutiert Worden. Inzwischen ist es nicht mehr ungewöhnlich, daß Heidegger, entgegen seinem Anspruch auf, Verwindung’ der Metaphysik und des ihr zugehörigen Nihilismus, in jenen Nihilismus zurückgestellt wird, als dessen Vollender er Nietzsche angesehen hat.” मुलर-लौटर, Heidegger und Nietzsche. नीत्शे इंटरप्रिटेशनन III, बर्लिन-न्यूयॉर्क 2000, पृष्ठ 303.
- ↑ Cf. दोनों हाइडेगर द्वारा : Vol. I, नीत्शे I (1936-39). डेविड ऍफ़. क्रेल द्वारा आर्ट के रूप में अनुवादित नीत्शे I:द विल टू आर्ट (न्यूयॉर्क : हार्पर व रो,1979)); वॉल्यूम II, (1939-46). डेविड ऍफ़. क्रेल द्वारा नीत्शे II:द एटर्नल रिक्रेन्स ऑफ़ द सेम (न्यूयॉर्क, हार्पर व रो,1984) से द एटर्नल रिक्रेन्स ऑफ़ द सेम के रूप में अनुवादित.
- ↑ “Indem Heidegger das von Nietzsche Ungesagte im Hinblick auf die Seinsfrage zur Sprache zu bringen sucht, wird das von Nietzsche Gesagte in ein diesem selber fremdes Licht gerückt.”, Müller-Lauter, Heidegger und Nietzsche, पृष्ठ 267.
- ↑ मूल जर्मन Die seinsgeschichtliche Bestimmung des Nihilismus. उसके व्याख्यानों के दूसरे भाग में पाई गयी : Vol. II, नीत्शे II (1939-46). डेविड ऍफ़. क्रेल द्वारा नीत्शे II:द एटर्नल रिक्रेन्स ऑफ़ द सेम (न्यूयॉर्क, हार्पर व रो,1984) से द एटर्नल रिक्रेन्स ऑफ़ द सेम के रूप में अनुवादित.
- ↑ “Heidegger geht davon aus, daß Nietzsche den Nihilismus als Entwertung der bisherigen obersten Werte versteht; seine Überwindung soll durch die Umwertung der Werte erfolgen. Das Prinzip der Umwertung wie auch jeder früheren Wertsetzung ist der Wille zur Macht.”, मुलर-लौटर, हाइडेगर व नीत्शे, पृष्ठ 268.
- ↑ "जो अभी तक अनसुलझा है और तत्वमीमांसा में भुला दिया गया है; और इसलिए, यह शून्यवादी (नाइलिस्टिक) है", www.iep.utm.edu/heidegge/ स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, 24 नवंबर,2009 को देखी गयी।
- ↑ मुलर-लौटर, हाइडेगर व नीत्शे, पृष्ठ 268.
- ↑ मुलर-लौटर, हाइडेगर व नीत्शे, पृष्ठ 272-275.
- ↑ मुलर-लौटर, हाइडेगर व नीत्शे, पृष्ठ 301-303.
- ↑ “Er (Vattimo) konstatiert, in vielen europäischen Philosophien eine Hin- und Herbewegung zwischen Heidegger und Nietzsche” Dabei denkt er, wie seine späteren Ausführungen zeigen, z.B. an Deleuze, Foucault und Derrida auf französischer Seite, an Cacciari, Severino und an sich selbst auf italienischer Seite.”, मुलर-लौटर, {1}हाइडेगर व नीत्शे,{/1} पृष्ठ 302.
- ↑ मुलर-लौटर, हाइडेगर व नीत्शे, पृष्ठ 303-304.
- ↑ बोर्गिन्हो, जोस स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। 1999, नास्तिवाद और पुष्टि. 05-12-07 को लिया गया।
- ↑ स्पिवाक, चक्रवर्ती गायत्री, 1988; क्या किसी के अधीन काम करने वाले बात कर सकते हैं? नेल्सन में कैरी और ग्रोसबर्ग, लॉरेंस (eds); 1988; मार्क्सवाद और संस्कृति की व्याख्या; मैकमिलन एजुकेशन, बेसिंगस्टोक.
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- ↑ एलन प्रैट नास्तिवाद को परिभाषित करते हुए कहते हैं " एक विश्वास कि सभी मूल्य निराधार हैं और कुछ भी जाना अथवा संप्रेषित नहीं किया जा सकता" इंटरनेट एन्साइक्लोपीडिया ऑफ़ दर्शन स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी नास्तिवाद के एक प्रकार को "चरम संदेहवाद जो यह बनाए रखने का प्रयास कर रहा है कि किसी भी चीज़ का एक वास्तविक अस्तित्व नहीं है" के रूप में परिभाषित करती है ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ आंसर्स डिक्शनरी नास्तिवाद के एक प्रकार को शब्दकोश जवाब "संदेहवाद का चरम प्रकार जो सभी अस्तित्वों को नकारता है" के रूप में परिभाषित करती है आंसर्स स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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