नाड़ी
चिकित्सा विज्ञान में हृदय की धड़कन के कारण धमनियों में होने वाली हलचल को नाड़ी या नब्ज़ (Pulse) कहते हैं। नाड़ी की धड़कन को शरीर के कई स्थानों पर अनुभव किया जा सकता है। किसी धमनी को उसके पास की हड्डी पर दबाकर नाड़ी की धड़कन को महसूस किया जा सकता है। गर्दन पर, कलाइयों पर, घुटने के पीछे, कोहनी के भीतरी भाग पर तथा ऐसे ही कई स्थानों पर नाड़ी-दर्शन किया जा सकता है।
नाड़ी-दर्शन और भारतीय चिकित्सा
भारतीय चिकित्सा पद्धति में नाड़ी-दर्शन का बहुत महत्व है। चरक संहिता की परम्परा के प्रवर्त्तक महर्षि भारद्वाज ने तो स्पष्ट कहा हैः-
- दर्शनस्पर्शनप्रश्नैः परीक्षेताथ रोगिणम्।
- रोगांश्च साध्यान्निश्चत्य ततो भैषज्यमाचरेत्।।
- दर्शनान्नेत्रजिह्वादेः स्पर्शनान्नाड़िकादितः
- प्रश्नाहूतादिवचनैः रोगाणां कारणादिभिः।। (नाड़ीज्ञान तरंगिणी)
यहाँ "दर्शनस्पर्शनप्रश्नैः परीक्षेताथ रोगिणम्" का अर्थ है, "दर्शन, स्पर्शन और प्रश्नों से रोगियों का परीक्षण करना चाहिए"।
इसी तरह महात्मा रावण, कणाद, भूधर एवं बसवराज आदि का यह कथन है कि दीपक के सामने जैसे सब पदार्थ स्पष्ट दिखाई देते हैं, इसी प्रकार स्त्री, पुरुष, बाल-वृद्ध मूक उन्मत्तादि किसी भी अवस्था में क्यों न हो, नाड़ी इसके व्यस्त-समस्त-द्वन्द्वादि दोषों का पूरा ज्ञान करा देती है।
चरक संहिता के कर्ता महर्षि अग्निवेश के सहाध्यायी महर्षि भेड़ ने भी कहा हैः-
- रोगाक्रान्तशरीस्य स्थानान्यष्टौ परीक्षयेत्।
- नाड़ीं जिह्वां मलं मूत्रं त्वचं दन्तनखस्वरात्॥ (भेलसंहिता)
- रोग से आक्रान्त शरीर के आठ स्थानों का परीक्षण करना चाहिये- नाड़ी, जीभ, मल, मूत्र, त्वचा, दाँत, नाखून, और स्वर (आवाज)।
यहाँ स्वर-परीक्षा का तात्पर्य सभी प्रकार के यथा-नासा वाणी, फुस्फुस, हृदय, अन्त्र आदि में स्वतः उत्पन्न की गयी ध्वनियों से है। स्वर नासिका से निकली वायु को भी कहते हैं।
इन्हें भी देखें
- नाड़ी परीक्षा (pulse diagnosis)
- नाड़ी (योग)
बाहरी कड़ियाँ
- नाड़ी दर्शन (गूगल पुस्तक; लेखक - ताराशंकर वैद्य)
- नाड़ी तथा रक्तदाबसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- नाड़ी के अध्ययन से सभी रोगों का इलाज संभव