भेलसंहिता
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
भेलसंहिता संस्कृत में रचित आयुर्वेद का ग्रन्थ है। इसके रचयिता भेलाचार्य हैं जो अत्रेय के छः शिष्यों में से एक थे। अग्निवेश भी अत्रेय के ही शिष्य थे।
भेलसंहिता कई शताब्दियों तक अप्राप्य हो गई थी किन्तु १८८० में ताड़पत्र पर लिपिबद्ध एक प्रति प्राप्त हुई। इस प्रति की भाषा संस्कृत तथा लिपि तेलुगु है। यह तन्जावुर के राजमहल पुस्तकालय में मिली। इसकी रचना 1650 के आसपास हुई लगती है। इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हैं तथा कुछ पत्र इतने खराब हो गए हैं कि उन्हें पढ़ पाना सम्भव नहीं है।
चरकसंहिता की भांति इस ग्रन्थ में भी आठ भाग हैं। प्रत्येक अध्याय के अन्त में इत्याह भगवानात्रेय (ऐसा भगवान अत्रेय ने कहा) आता है।
संरचना
भेलसंहिता आठ भागों में विभक्त है जिन्हें 'स्थान' कहा गया है। ये आठ स्थान हैं:
- कल्पस्थानम्
- चिकित्सास्थानम्
- इन्द्रियस्थानम्
- शरीरस्थानम्
- विमानस्थानम्
- निदानस्थानम्
- सूत्रस्थानम्
- सिद्धिस्थानम्
इन्हें भी देखें
- बोवर पाण्डुलिपि -- यह आयुर्वेद की सबसे पुरानी पाण्डुलिपियों में से एक है। इसमें भेलसंहिता के कुछ अंश भी हैं।