त्रिभंग
भारतीय कला एवं नृत्य के सन्दर्भ में त्रिभंग किसी व्यक्ति की खड़ी अवस्था का एक विशेष रूप है जो परम्परागत भारतीय कलाओं एवं नृत्यों में प्रयुक्त होती है। त्रिभंग में शरीर 'सीधा' न होकर तीन (त्रि) स्थानों से मुड़ा (भंग) होता है, घुटने से एक दिशा में, कमर से दूसरी दिशा में और कन्धों के ऊपर से दूसरी दिशा में। ओड़ीसी नृत्य में, अर्धनारीश्वर प्रतिमा में त्रिभंग देखा जा सकता है। स्त्री-पुरुष के आधार पर भंग में भी अन्तर होता है।
छबिदीर्घा
भारतीय कला के इतिहास में त्रिभंगी प्रतिमाएँ कई हजार वर्षों से विशिष्टता से अंकित हुईं हैं। त्रिभंग से युक्त चित्रों और प्रतिमाओं की संख्या असंख्य हैं।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त "नृत्य करती हुई बालिक" (2300 से 1750 ईसापूर्व)
गोवर्धन पर्वत को हाथ में उठाए श्री कृष्ण (गुप्तकाल , चौथी से छठी शताब्दी)
बोधिसत्व पद्मपाणि, अजन्ता गुफाएँ, गुफा संख्या-१ (५वीं शताब्दी का अन्तिम चरण)
Tribhanga poses in a scene of people celebrating a festival, a rare example of secular Gupta art
Chinese gilt-bronze Guanyin, Tang Dynasty
Bodhisattva, Plaosan Buddhist temple, Central Java, 9th century.
Vishnu at Khajuraho
Mohini, 12th century, Western Chalukya Dynasty, showing extreme tribhanga
श्वेत अवलोकितेश्वर (नेपाल, चतुर्थ शताब्दी)