चांडाल

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

चांडाल भारत में व्यक्तियों का एक ऐसा वर्ग है, जिसे सामान्यत: जाति से बाहर तथा अछूत माना जाता है। यह एक प्राचीन और सबसे अधिक शोषित जाति है। इसे श्मशान पाल, डोम, अंतवासी, थाप, श्मशान कर्मी, अंत्यज, चांडालनी, पुक्कश, गवाशन, चूडा, दीवाकीर्ति, मातंग, श्वपच आदि नामों से भी पुकारा जाता है।[१] भगवान गौतमबुद्ध ने सुत्तनिपात में चांडाल का जिक्र किया है।

खत्तिये ब्राह्मणे वेस्से, सुद्दे चण्डालपुक्कु से।

न कि ंचि परिवज्जेति, सब्बमेवाभिमद्दति॥

मृतुराज क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य,शूद्र और चंडाल - किसी को कोभी नहीं छोड़ता, सबको कुचल डालता है।

अभ्युदय

"सुत्तनिपात" में "भगवान बुद्ध" ने चांडाल वर्ण व्यवस्था की सबसे निचली पाँचवा वर्ण बताया है,

"खत्तिये ब्राह्मणे वेस्से, सुद्दे चण्डालपुक्कु से।" "न कि ंचि परिवज्जेति, सब्बमेवाभिमद्दति।।"

"मृतुराज क्षत्रिय , ब्राह्मण, वैश्य,शूद्र और चंडाल - किसी को कोभी नही छोड़ता, सबको कुचल डालता है।"

प्राचीन विधि संहिता "मनु स्मृति" के अनुसार, इस वर्ग का उदय एक ब्राह्मण महिला और एक शूद्र पुरुष के मिलाप से हुआ था। कुछ विद्वानों का मत है कि नामशूद्र की उत्पत्ति बिहार की राजमहल पहाड़ियों में निवास करने वाली एक आदिम जनजाति से हुई है।[२]

साहित्य में चांडाल का प्रयोग

चांडाल शब्द का उपयोग प्रेमचंद ने अपनी कहानी नैराश्य में इस प्रकार किया है, ""चांडाल कहीं का! उसके कारण मेरे सैंकड़ों रुपये पर पानी फिर गया।" हिन्दी समाज की लोकोक्तियों तथा कहाबतों में "चांडाल चौकड़ी" का प्रयोग काफी होता है।

सन्दर्भ

  1. रफ्तार ऑनलाइन शब्दकोश में चांडाल का अभिप्राय
  2. भारत ज्ञानकोश, खंड-2, प्रकाशक- पॉपुलर प्रकाशन मुंबई, पृष्ठ संख्या-150, आई एस बी एन 81-7154-993-4