चन्द्र भानु गुप्ता

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

चन्द्र भानु गुप्त (14 जुलाई 1902 – 11 March 1980[2]) ) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा राजनेता थे। वे 7 दिसम्बर 1960 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद दो बार और मुख्यमंत्री रहे।

व्यक्तिगत जीवन

वह अलीगढ़ जिले के एक छोटे गाँव से थे। १७ वर्ष की उम्र में ही स्वतन्त्रता संग्राम में उतर पड़े।

श्री चन्द्र भानु गुप्त 

पूर्व मुख्यमंत्री , उत्तर प्रदेश

जन्म अलीगढ़, 14 जुलाई, 1902।
शिक्षा एम0ए0, एलएल0बी0, लखनऊ विश्वविद्यालय।
कार्यक्षेत्र राजनीति, न्याय एवं समाज सेवा।
न्याय एक सफल एवं योग्य वकील रहे।
राजनीति ·         वर्ष 1937 में विधान सभा की स्थापनाकाल से विधान सभा सदस्य निर्वाचित हुए।

·         पुनः वर्ष 1946, 1952, 1961, 1962, 1967 एवं 1969 में उत्तर प्रदेश विधान सभा सदस्य निर्वाचित।

·         वर्ष 1946 में मुख्य मंत्री के सभा सचिव।

·         वर्ष 1947-54 तक खाद्य एवं रसद मंत्री।

·         वर्ष 1954-57 तक नियोजन, जनस्वास्थ्य, चिकित्सा, उद्योग, खाद्य एवं रसद मंत्री।

·         वर्ष 1957 में मोतीलाल मेमोरियल सोसाइटी अध्यक्ष।

·         वर्ष 1960 में प्रान्तीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष।

·         पहली बार 7 दिसम्बर, 1960 से 14 मार्च, 1962, दूसरी बार 14 मार्च, 1962 से 1 अक्टूबर, 1963, तीसरी बार 14 मार्च,1967 से 04 अप्रैल, 1967 तथा चौथी बार 25 फरवरी, 1969 से 17 फरवरी, 1970 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

·         दिसम्बर, 1960 से मार्च, 1961 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य।

·         वर्ष 1967 में नेता विरोधी दल।

·         वर्ष 1926 से प्रान्तीय कांग्रेस समिति और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य।

·         राष्ट्रीय आन्दोलन में अनेक बार जेल-यात्रायें की।

·         वर्ष 1946-58 तक प्रान्तीय कांग्रेस समिति के कोषाध्यक्ष।

·         वर्ष 1947-59 तक लखनऊ विश्वविद्यालय कोषाध्यक्ष।

निधन दिनांक 11 मार्च, 1980 को लखनऊ में देहावसान हो गया।

राजनीतिक जीवन

चंद्रभानु गुप्ता के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1926 में हुई. उनको उत्तर प्रदेश कांग्रेस और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का सदस्य बनाया गया. चंद्रभानु ने राजनीति में आते ही बहुत कम समय में कांग्रेस में अपनी पहचान बना ली थी. तुरंत यूपी कांग्रेस के ट्रेजरार, उपाध्यक्ष और अध्यक्ष भी बने. 1937 के चुनाव में वो उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए. फिर स्वतन्त्रता के बाद 1946 में बनी पहली प्रदेश सरकार में वो गोविंदबल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के रूप में सम्मिलित हुए. फिर 1948 से 1959 तक उन्होंने कई विभागों के मंत्री के रूप में काम किया. 1960 में उनको यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया. उस वक्त ये रानीखेत साउथ से विधायक थे. संपूर्णानंद के मुख्यमंत्री रहते हुए पॉलिटिक्स बहुत जटिल हो गई थी. कई धड़े बन गये थे कांग्रेस में. ऐसे में संपूर्णानंद को राजस्थान का राज्यपाल बना दिया गया और चंद्रभानु को यूपी का मुख्यमंत्री. इस बीच गुप्ता का कद यूपी की राजनीति में बहुत ज्यादा बढ़ गया था. मुख्यमंत्री बनना हर तरह के विपक्ष पर भारी जीत थी. इससे केंद्र के नेताओं में खलबली मच गई. ये वो दौर था जब केंद्र में नेहरू की सत्ता को कांग्रेस के लोग ही चुनौती देने लगे थे.चंद्रभानु नेहरू के सोशलिज्म से पूरी तरह प्रभावित नहीं थे. तो नेहरू इनको पसंद नहीं करते थे. पर यूपी कांग्रेस में चंद्रभानु का इतना रौला था कि विधायक पहले चंद्रभानु के सामने नतमस्तक होते थे, बाद में नेहरू के सामने साष्टांग. नेहरू डिंट लाइक दिस. 1963 में के कामराज ने नेहरू को सलाह दी कि कुछ लोगों को छोड़कर सारे कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को रिजाइन कर देना चाहिए. जिससे कि स्टेट सरकारों को फिर से ऑर्गेनाइज किया जा सके. कहा गया कि कुछ दिन के लिए पद छोड़ दीजिए. पार्टी के लिए काम करना है. पर चंद्रभानु की नजर में ये था कि ये सारा गेम इसलिए हो रहा है कि नेहरू जिसको पसंद नहीं करते, वो चला जाए. उन्होंने मना कर दिया. पर इनको समझा लिया गया कि ये कुछ दिनों की बात है. फिर से आपको बना दिया जायेगा मुख्यमंत्री. पर नहीं हुआ ऐसा. कामराज प्लान के तहत चंद्रभानु को आदर्शों की दुहाई पर पद छोड़ना पड़ा. जनतंत्र पर तानाशाही का बड़ा ही डेमोक्रेटिक वार था ये. चुने हुए नेता को नापसंदगी की वजह से पद से हटना पड़ा. चंद्रभानु तीन बार उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे थे. 1960 से 1963 तक तो रहे ही. पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी राजनीति में उनका प्रभाव बना रहा. किस्मत की बात. 1967 के चुनाव में जीतने के बाद फिर से मुख्यमंत्री बने. लेकिन इस बार सिर्फ 19 दिनों के लिए. फिर से वही किस्मत. किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस को तोड़कर अपनी पार्टी बना ली. चंद्रभानु की सरकार गई. चरण सिंह मुख्यमंत्री बन गये. पर वो सरकार चला नहीं पाए. वो सरकार भी गिरी. और चंद्रभानु गुप्ता को आनन-फानन में फिर मुख्यमंत्री बनाया गया 1969 में. करीब एक साल तक इस पद पर बने रहे. तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने कांग्रेस को हमेशा के लिए बदल दिया. 1969 में कांग्रेस पार्टी टूट गई. ये यूपी का अंदरूनी मसला नहीं था. अबकी टूट केंद्र के लेवल पर हुई थी. इंदिरा गांधी और कामराज के नेतृत्व वाले सिंडिकेट ग्रुप में. सबको लगा था कि इंदिरा हाथों की कठपुतली रहेंगी. पर इंदिरा सबसे बड़ी पॉलिटिशियन निकलीं. दोनों धड़ों में तकरार हुई राष्ट्रपति को लेकर. मोरारजी देसाई इंदिरा के प्रबल विरोधी निकले. चंद्रभानु गुप्ता मोरार जी कैंप में चले गये. पर ये कैंप हार गया. इंदिरा के सपोर्ट से वी वी गिरि राष्ट्रपति बन गये. यहीं पर सिंडिकेट के अधिकांश नेताओं के करियर पर ब्रेक लग गया. चंद्रभानु का करियर खत्म हो गया. पर वक्त की बात है. मोरारजी भी प्रधानमंत्री बने. चंद्रभानु को मंत्रिमंडल में पद ऑफर किया. पर चंद्रभानु की हेल्थ बहुत खराब हो गई थी. मंत्री पद लेना मुनासिब नहीं था. उन्होंने मना कर दिया. 11 मार्च 1980 को मौत हो गई.

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:asbox