ग्रैंड ट्रंक रोड
ग्रैंड ट्रंक रोड |
उत्तरपथ |
سڑک اعظم |
मार्ग की जानकारी |
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विस्तार: २५०० किलोमीटर |
अस्तित्व: पुरातनता-वर्तमान |
साम्राज्य |
मौर्य राजवंश |
शेर शाह सूरी ·मुग़ल साम्राज्य |
ब्रिटिश राज |
देश |
साँचा:flagicon बांगलादेश |
साँचा:flagicon भारत · |
साँचा:flagicon पाकिस्तान |
साँचा:flagicon अफ़ग़ानिस्तान |
मार्ग |
पूर्वी छोर: चटगाँव |
नारायणगंज ·हावड़ा ·बर्धमान ·पानागड़ ·दुर्गापुर ·आसनसोल |
धनबाद ·औरंगाबाद ·डेहरी आन सोन ·सासाराम |
मोहानिया ·मुग़लसराय ·वाराणसी ·इलाहाबाद ·कानपुर · |
कलियाणपुर ·कन्नौज ·एटा ·अलीगढ़ ·ग़ाज़ियाबाद |
दिल्ली ·पानीपत ·करनाल ·कुरुक्षेत्र ·अम्बाला · |
लुधियाना ·जलंधर ·अमृतसर · अटारी |
;वाघा ·लाहौर ·गुजरांवाला ·गुजरात ·झेलम |
रावलपिंडी ·अटक ·नॉशेरा ·पेशावर ·ख़ैबर दर्रा ·जलालाबाद |
पश्चिमी छोर: काबुल |
[[Image:GTRoad Ambala.jpg|thumb|right|300px| [[ब्रिटिश शासक लॉर्ड ऑकलैंड 1839 मैं कोलकाता से दिल्ली तक ग्रैंड रोड ट्रक का पुनर्निर्माण करवाया था में के दौरान अंबाला छावनी से एक दृश्य।]]
ग्रैंड ट्रंक रोड, दक्षिण एशिया के सबसे पुराने एवं सबसे लम्बे मार्गों में से एक है। दो सदियों से अधिक काल के लिए इस मार्ग ने भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी एवं पश्चिमी भागों को जोड़ा है। यह हावड़ा के पश्चिम में स्थित बांगलादेश के चटगाँव से प्रारंभ होता है और लाहौर (पाकिस्तान) से होते हुए अफ़ग़ानिस्तान में काबुल तक जाता है[१]। पुराने समय में इसे, उत्तरपथ[२],शाह राह-ए-आजम,सड़क-ए-आजम[३] और बादशाही सड़क के नामों से भी जाना जाता था।
यह मार्ग, मौर्य साम्राज्य के दौरान अस्तित्व में था और इसका फैलाव गंगा के मुँह से होकर साम्राज्य के उत्तर-पश्चिमी सीमा तक हुआ करता था[४]। आधुनिक सड़क की पूर्ववर्ती का पुनःनिर्माण शेर शाह सूरी द्वारा किया गया था[५]। सड़क का काफी हिस्सा १८३३-१८६० के बीच ब्रिटिशों द्वारा उन्नत बनाया गया था[६]।
This Road was constructed by Emperor Samrat Ashok in public interest & facilitated with Dharmshalas to stay public in night during the journey. Later on Shershah Suri another Emperor had maintained it with a facility of Sarai to accomodate people in night during the journey.
In English period it was called G. T. Road.
Govt of India now trying to well maintained all the Roads to connect the cities for development aspects.
इतिहास
सदियों के लिए, ग्रांड ट्रंक रोड का, एक प्रमुख व्यापार मार्ग के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इतिहास में विभिन्न अवधियों के दौरान इस मार्ग को अलग-अलग नामों से बुलाया जाता था। चार मुख्य साम्राज्यों ने इसका विस्तार एवं व्यापार के लिए उपयोग किया:
- मौर्य साम्राज्य (३ सदी ई॰पू॰)
- शेर शाह सूरी (१६ सदी)
- मुग़ल साम्राज्य (१६ सदी)
- ब्रिटिश साम्राज्य (१८३३-१८६०)
उत्तरपथ
यह नाम इसे मौर्य साम्राज्य के वक्त दिया गया था। उत्तरपथ, संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका साहित्यिक अर्थ है- 'उत्तर दिशा की ओर जाने वाला मार्ग'। यह मार्ग गंगा नदी के किनारे की बगल से होते हुए, गंगा के मैदान के पार, पंजाब के रास्ते से तक्षशिला को जाता था।[७] इस रास्ते का पूर्वी छोर तमलुक में था जो गंगा नदी के मुहाने पर स्थित एक शहर है। भारत के पूर्वी तट पर समुद्री बंदरगाहों के साथ समुद्री संपर्कों में वृद्धि की वजह से मौर्य साम्राज्य के काल में इस मार्ग का महत्व बढा और इसका व्यापार के लिए उपयोग होने लगा। बाद में, उत्तरपथ शब्द का प्रयोग पूरे उत्तर मार्ग के प्रदेश को दर्शाने के लिए किया जाने लगा।
हाल में हुआ संशोधन यह दर्शाता है कि, मौर्य साम्राज्य के कालावधि में, भारत और पश्चिमी एशिया के कई भागों और हेलेनिस्टिक दुनिया के बीच थलचर व्यापार, उत्तर-पश्चिम के शहरों मुख्यतः तक्षशिला के माध्यम से होता था। तक्षशिला, मौर्य साम्राज्य के मुख्य शहरों से, सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुडा हुआ था। मौर्य राजाओं ने पाटलिपुत्र (पटना) को ज़ोडने के लिए तक्षशिला से एक राजमार्ग का निर्माण किया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने यूनानी राजनयिक मेगस्थनीज की आज्ञा से इस राजमार्ग के रखरखाव के लिए अपने सैनिकों को विविध जगहों पर तैनात किया था। आठ चरणों में निर्मित यह राजमार्ग, पेशावर, तक्षशिला, हस्तिनापुर,कन्नौज, प्रयाग, पाटलिपुत्र और ताम्रलिप्त के शहरों को ज़ोडने का काम करता था।[८]
सड़क-ए-आजम
१६ वीं सदी में, इस मार्ग का ज्यादातर भाग शेर शाह सूरी द्वारा नए सिरे से पुनर्निर्मित किया गया था।[९] सड़क-ए-आजम, शब्द का साहित्यिक अर्थ है- 'प्रधान सड़क'। अफगान सम्राट, शेर शाह सूरी ने संक्षिप्त अवधि के लिए ज्यादातर उत्तरी भारत पर शासन किया था।[१०] उसके मुख्य दो उद्देश्य थे-
- प्रशासनिक और सैन्य कारणों के लिए अपने विशाल साम्राज्य के सुदूर प्रांतों को एक साथ जोड़ना
- सासाराम, अपने गृहनगर के साथ, आगरा, अपनी राजधानी को जोड़ना[९]
पर कम समय में ही शेर शाह सूरी का देहांत हो गया और सड़क-ए-आजम उनके नाम पर समर्पित कर दी गई। आगे जाकर मुगल सम्राटों ने यह मार्ग पश्चिम में ख़ैबर दर्रे को पार कर काबुल तक और पूर्व में बंगाल के चटगाँव बंदरगाह तक बढ़ाया।
ग्रैंड ट्रंक रोड
१७ वीं सदी में इस मार्ग का ब्रिटिश शासकों ने पुनर्निर्माण किया और इसका नाम बदलकर ग्रैंड ट्रंक रोड कर दिया।[११] अभी यह मार्ग ज्यादतर उत्तर भारत को जोडता है। ब्रिटिश इस मार्ग को लाँग रोड (long road) भी कहते थे।
कोस मीनार
शेर शाह सूरी के जमाने में सड़कों को नियमित अंतराल पर चिन्हित किया जाता था और पेड़ सड़क के किनारे पर लगाए जाते थे[१२]। यात्रियों के लिए विविध जगहों पर कुओं का पानी उपलब्ध कराया गया था। इस सड़क के किनारे हर कोस पर मीनारें बनवाई गई थीं। अधिकतर इन्हें १५५६-१७०७ के बीच बनाया गया था। कई मीनारें आज भी सुरक्षित हैं तथा इन्हें दिल्ली-अंबाला राजमार्ग[१३] पर देखा जा सकता है। पुरातत्व विभाग के अनुसार भारत के हरियाणा राज्य में कुल ४९ कोस मीनारे है जिनमें फरीदाबाद में १७, सोनीपत में ७, पानीपत में ५, करनाल में १०, कुरुक्षेत्र और अम्बाला में ९ एवं रोहतक में १ मीनार हैं। आजकल इन्हें सुरक्षित स्मारक घोषित किया गया है तथा पुरातत्व विभाग इनकी देखरेख करता है।
उत्तर प्रदेश में स्थित एक कोस मीनार
दिल्ली चिड़ियाघर स्थित कोस मीनार
हरियाणा के तरावड़ी (जिला करनाल) स्थित कोस मीनार
सदियों के लिए, ग्रैंड ट्रंक रोड एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग रहा है। इस मार्ग का उपयोग व्यापार एवं डाक संचार के लिए किया जाता था। दूसरी तरफ, इस सड़क ने सैनिकों और विदेशी आक्रमणकारियों के तीव्र आंदोलन में मदद की, अफगान और फारसी आक्रमणकारियों[१४] के भारत के आंतरिक क्षेत्रों में, लूटपाट छापे में तेजी लाई और बंगाल से उत्तर भारत के मैदान में ब्रिटिश सैनिकों की आवाजाही में मदद की।
वर्तमान प्रारूप
वर्तमान में इस मार्ग को विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों में बाँटा गया है। आज, ग्रांड ट्रंक रोड (जीटी रोड) की लंबाई २५०० किलोमीटर है। यह मार्ग बांगलादेश से शुरु होकर अफ़ग़ानिस्तान में समाप्त होता है।
कई बड़े शहरों में बाईपास आदि बनने के कारण कई स्थानों पर यह अपने मूल स्थान से हट भी गई है। उदाहरण के लिए वर्तमान में दिल्ली के राष्ट्रीय चिड़ियाघर में स्थित कोसमीनार इस बात का प्रमाण है कि किसी समय में यह सड़क उस स्थान से निकलती थी। वहीं हरियाणा के सोनीपत में भी कोस मीनार देखे जा सकते हैं किंतु अब यह सड़क सोनीपत से कुछ किलोमीटर पूर्व में स्थित मुरथल व बहालगढ़ से होकर गुज़रती है।[१५]
बांगलादेश
इस मार्ग का आरंभ चटगाँव शहर से होता हैं और नारायणगंज जिले से होते हुए भारत में प्रवेश करता है।[१५]
भारत
भारत में यह मार्ग हावड़ा, बर्धमान, पानागड़, दुर्गापुर, आसनसोल, धनबाद, औरंगाबाद, डेहरी आन सोन, सासाराम, मोहानिया, मुग़लसराय, वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, कलियाणपुर, कन्नौज, एटा, अलीगढ़, ग़ाज़ियाबाद, दिल्ली, पानीपत, करनाल, अम्बाला, लुधियाना, जलंधर और अमृतसर से जाता है। भारत में इस मार्ग को काफी जगहों पर राष्ट्रीय राजमार्गों में बदला गया है।[१५]
राष्ट्रीय राजमार्ग २
हावड़ा से कानपुर तक के खण्ड को राष्ट्रीय राजमार्ग २ नामित किया गया है।[१५]
राष्ट्रीय राजमार्ग ९१
साँचा:main कानपुर से गाज़ियाबाद तक के खण्ड को राष्ट्रीय राजमार्ग ९१ नामित किया गया है।[१५]
गाज़ियाबाद – अलीगढ़ - एटा - कन्नौज - कानपुर
राष्ट्रीय राजमार्ग १
दिल्ली से हरियाणा और पंजाब राज्यों से अमृतसर होते हुए अटारी तक के खण्ड को राष्ट्रीय राजमार्ग १ नामित किया गया है। यहाँ से यह सड़क पाकिस्तान के वाघा में प्रवेश करती है।[१५]
पकिस्तान
पाकिस्तान की सीमा से यह मार्ग लाहौर, गुजरांवाला, गुजरात, झेलम, रावलपिंडी, अटक, नॉशेरा और पेशावर से जाता है।[१५]
दीर्घिका
लाहौर में ग्रैंड ट्रंक रोड
पाकिस्तान के अटक में स्थित जी टी रोइ पर एक सड़क व रेल पुल
भारत पाकिस्तान सीमा पार करने की ईंतज़ार में अटारी में राष्ट्रीय राजमार्ग १ पर खड़े ट्रक
बिहार में ग्रैंड ट्रंक रोड
झारखंड में ग्रैंड ट्रंक रोड
हुगली में जी टी रोड पर स्थित एक मंदिर
हावड़ा में जी टी रोड
साहित्य
- ब्रिटीश लेखक, रुडयार्ड किपलिंग ने अपने पुस्तक किम में ग्रैंड ट्रंक रोड का उल्लेख किया है। वे यह कहते है की[१६]-
साँचा:quote इसका हिंदी में अर्थ- साँचा:quote
- फारूक, अब्दुल खैर मुहम्मद (१९७७), मुगल भारत में सड़क और संचार
- वेलर, एंथोनी (१९९७),कलकत्ता से खैबर: ग्रांड ट्रंक रोड पर दिन और रात,यहाँ देखें।
सन्दर्भ
बाहरी कडियाँ
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण
- एन.पी.र:ग्रैंड ट्रंक रोड
- बांगलापीडिया
- गूगल मॅप पर ग्रैंड ट्रंक रोड
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ David Arnold (historian); Science, technology, and medicine in colonial India (New Cambr hist India v.III.5) Cambridge University Press, 2000, 234 pages p.106 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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- ↑ अ आ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ वाराणसी वैभव या काशी वैभव स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, अभिगमन तिथि: २५ जनवरी २०१५
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ A description of the road by Kipling, found both in his letters and in the novel "Kim" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।. He writes: "Look! Brahmins and chumars, bankers and tinkers, barbers and bunnias, pilgrims -and potters - all the world going and coming. It is to me as a river from which I am withdrawn like a log after a flood. And truly the Grand Trunk Road is a wonderful spectacle. It runs straight, bearing without crowding India's traffic for fifteen hundred miles - such a river of life as nowhere else exists in the world."