गोवर्धन मठ
आचार्य: जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती | |
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स्थान | पुरी |
संस्थापक | आदि शंकराचार्य |
पहलें शंकराचार्य | पद्मपादाचार्य |
वर्तमान शंकराचार्य | स्वामी निश्चलानंद सरस्वती |
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गोवर्धन मठ ओडिशा राज्य (भारत) के पुरी नगर में स्थित एक मठ है। यह जगन्नाथ मंदिर के साथ जुड़ा हुआ है और आदि शंकराचार्य द्वारा ५०७ वर्ष ईसा पूर्व शताब्दी में स्थापित चार प्रमुख मठों में एक है।साँचा:refn
यहाँ के देवता जगन्नाथ (भगवान विष्णु) और देवी विमला (भैरवी) हैं। यहाँ का महावाक्य 'प्रज्ञानं ब्रह्म' है। यहाँ गोवर्धननाथ कृष्ण और अर्धनारेश्वर शिव के श्री विग्रह आदि शंकर द्वारा स्थापित हैं। [२]
भारतीय उपमहाद्वीप के सम्पूर्ण पूर्व भाग को श्री गोवर्धन पीठ का क्षेत्र माना जाता है।[३] इसमें बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़,राजमुंदरी तक आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, सिक्किम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और प्रयाग तक उत्तर प्रदेश के भारतीय राज्य शामिल हैं। साथ ही नेपाल, बांग्लादेश और भूटान देश भी इस मठ का आध्यात्मिक क्षेत्र माना जाता है। इस मठ के अंतर्गत पुरी, इलाहाबाद, पटना और वाराणसी आदि पवित्र स्थान आते हैं।
पृष्ठभूमि
वैदिक सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने वाले आदि शंकराचार्य (ईसा से 500 से भी ज्यादा वर्ष पहले) के द्वारा स्थापित चार प्रमुख संस्थानों में एक है गोवर्धन मठ।[४] शंकर के चार प्रमुख शिष्यों पद्म-पाद, हस्ता-मलक, वर्तिका-कर और त्रोटकाचार्य को भारत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम के इन चार प्रमुख शिक्षण संस्थानों का दायित्व सौंपा गया था। [५] इन मठों के संस्थापक आदि शंकर के सम्मान में बाद के मठाधीशों में से प्रत्येक को शंकराचार्य के तौर पर ही जाना जाता जाता है।[६] इस तरह ये अद्वैत वेदान्त के रक्षक माने जाने वाले दशनामी सन्यासियों के प्रमुख भी माने जाते हैं। ज्ञान की ये प्रमुख चार गद्दियाँ पुरी (ओडिशा), श्रृंगेरी (कर्नाटक), द्वारका (गुजरात) और ज्योतिर्मठ (या जोशीमठ) में स्थित हैं।
इतिहास
मठ के पहले प्रमुख पद्मपादाचार्य बने। इस मठ के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से भी एतिहासिक रिश्ते हैं। इसे गोवार्धन मठ कहते हैं। इसके अंतर्गत शंकरानंद मठ नामक उप-स्थान भी आता है।
उस समय द्वारका मठ के प्रमुख स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ ने १९२५ में गोवर्धन मठ की गद्दी संभाली। जब वह अमेरिका में आत्म बोध साहचर्य के दौरे पर थे, तब शंकर पुरुषोत्तम तीर्थ ने उनकी ओर से आश्रम की देख रेख की। स्वामी भारती द्वारा १९६० में महासमाधि प्राप्त करने पर योगेश्वरानंद तीर्थ उनके उत्तराधिकारी बने। उन्हीने १९६१ में महासमाधिप्राप्त की। कुछ समय की अनिश्चितता के बाद १९६४ में स्वामी निरंजन देव तीर्थ, जिन्हें स्वयं स्वामी भारती के इच्छापत्र में नामित किया गया था, को द्वारका के सच्चिदानंद तीर्थ द्वारा मठाधीश बनाया गया। निरंजन देव तीर्थ हिन्दुओं को लेकर अपने राजनीतिक दर्शन व सिद्धान्त रक्षा के के लिए जाने गए। इन्दिरा गांधी के शासनकाल के दौरान गौ रक्षा के निमित्त 72 दिनों की भूख हड़ताल उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना रही। गौ रक्षा हेतु उन्होंने सदैव के लिए छत्र चँवर को त्याग दिया जो शंकराचार्य के लिए एक आवश्यक प्रतीक होते हैं। उनके उत्तराधिकारी वर्तमान शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी भी इसका विधिवत पालन कर रहे हैं। [७] १९९२ में निश्चलानंद सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर वह गद्दी से उतर गए। ऐसा करने वाले वह इतिहास के प्रथम शङ्कराचार्य थे जिन्हीने जीवित रहते ही पदत्याग किया हो।[८][९]
दरभंगा के महाराज के राजपंडित के बेटे निश्चलानंद सरस्वती का जन्म १९४३ में दरभंगा में हुआ था।[१०] उन्होंने तिब्बिया महाविद्यालय के विद्यार्थी रहते हुए संन्यास लेने का निर्णय लिया और काशी, वृन्दावन, नैमिषारन्य, श्रृंगेरी इत्यादि स्थानों पर शास्त्रों का अध्ययन किया। १९७४ में उन्होंने स्वामी करपात्री से दीक्षा ग्रहण की और निश्चलानंद नाम ग्रहण किया।
११ फेब २०१८ को स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के पट्टाभिषेक की २५वीं वर्षगाँठ पुरी में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, पूर्व नेपालधीश ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह देव और पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देव की उपस्तिथी में मनाई गयी।[११].
स्वामी अधोक्ष्यानंद नामक एक इंसान ने समय-समय पर पुरी के शंकराचार्य होने का दावा किया है। जिसको कटक हाईकोर्ट के द्वारा एक अपराधी घोषित किया गया है तथा जगन्नाथ मन्दिर परिसर व गोवर्द्धन मठ के निकट फटकने से भी प्रतिबंधित किया गया है। [१२][१३] उन्हें भारतीय मुसलमानों के अमेरिकी महासंघ और शंकरसिंह वाघेला द्वारा २००२ में आमंत्रित किये जाने से जाना जाता है।[१४][१५]
समुद्र आरती
समुद्र आरती वर्तमान शंकराचार्य द्वारा ९ वर्ष पूर्व शुरू किया गया दैनिक अनुष्ठान है। इस दैनिक प्रथा में मठ के शिष्यों द्वारा पुरी स्थित स्वर्गद्वार में समुद्र की प्रार्थना और अग्नि उपासना की जाती है। हर वर्ष की पौष पूर्णिमा को शंकराचार्य स्वयं समुद्र की प्रार्थना करते हैं।
नोट
संदर्भ
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- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- ↑ Pasricha, Prem C. (1977) The Whole Thing the Real Thing, Delhi Photo Company, p. 59-63
- ↑ Love and God, Maharishi Mahesh Yogi, Age of Enlightenment Press, 1973 p. 9
- ↑ Unknown author (2005) Indology स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। The Jyotirmaṭha Śaṅkarācārya Lineage in the 20th Century, retrieved August 4, 2012
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Unknown author (May 5, 1999) archived here (Accessed: 2012-08-30) or hereसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] The Monastic Tradition Advaita Vedanta web page, retrieved August 28, 2012
- ↑ (1994) SUNY Press, A Survey of Hinduism By Klaus K. Klostermaier
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- ↑ Orissa HC allows seer to enter Puri, The Hindu, September 06, 2000
- ↑ [Shankaracharyas multiply, so do legal tangle, The Times of India]
- ↑ Shankaracharya is Cong’s weapon for BJP’s Hindutva war, Indian Express, Aug 23, 2002