गोपबंधु दास
गोपबन्धु दास | |
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मृत्यु | साँचा:br separated entries |
मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
व्यवसाय | कवि, दार्शनिक, सामाजिक कार्यकर्ता |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उच्च शिक्षा | पुरी जिला स्कूल, रावेन्शा कॉलेज, कोलकाता विश्वविद्यालय |
अवधि/काल | २०वीं शताब्दी |
उल्लेखनीय कार्यs | बन्दीर आत्मकथा, धर्मपद |
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गोपबंधु दास (१८७७-१९२८) ओड़िशा के एक सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रतता संग्राम सेनानी एवं साहित्यकार थे। उन्हें उत्कळ मणि के नाम से जाना जाता है। ओड़िशा में राष्ट्रीयता एवं स्वाधीनता संग्राम की बात चलाने पर लोग गोपबंधु दास का नाम सर्वप्रथम लेते हैं। ओड़िशा वासी उनको "दरिद्रर सखा" (दरिद्र के सखा) रूप से स्मरण करते हैं। ओड़िशा के पुण्यक्षेत्र पुरी में जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार के उत्तरी पार्श्व में चौक के सामने उनकी एक संगमर्मर की मूर्ति स्थापित है। उत्कल के विभिन्न अंचलों को संघटित कर पूर्णांग ओड़िशा बनाने के लिये उन्हांने प्राणपण से चेष्टा की। उत्कल के विशिष्ट दैनिक पत्र "समाज" के ये संस्थापक थे।
जीवनी
गोपबंधु दास का जन्म सन् 1877 ई. में पुरी जिले के सत्यवादी थाना के अंतर्गत "सुआंडो" नामक एक क्षुद्र पल्ली (गाँव) में हुआ था। जून, सन् 1928 ई. में केवल 53 वर्ष की अवस्था में उनका देहांत हुआ। यद्यपि जीविका अर्जन के लिये उन्होंने वकालत की, तथापि शिक्षक के जीवन को वे सदा आदर्श जीवन मानते थे। कुछ दिनों तक उन्होंने शिक्षण कार्य किया भी था। अंग्रेजी शासन में पराधीन रहकर भी उन्होंने स्वाधीन शिक्षापद्धति अपनाई थी। बंगाल के शांतिनिकेतन की तरह उड़ीसा के सत्यवादी नामक स्थान में खुले आकाश के नीचे एक वनविद्यालय खोला था और वहाँ बकुलवन में छात्रों को स्वाधीन ढंग से शिक्षा दिया करते थे। उन्हीं की प्रेरणा से उड़ीसा के विशिष्ट जननेता और कवि स्वर्गीय गोदावरीश मिश्र और उत्कल विधानसभा के वाचस्पति (प्रमुख) पंडित नीलकंठ दास ने इस वनविद्यालय में शिक्षक रूप से कार्य किया था। सत्यवादी वन विद्यालय के पाँच प्रतिष्ठापक गोपबंधु, नीलकंठ, गोदावरीश, आचार्य हरिहर व कृपासिन्धु दास आधुनिक ओड़िशा के “पंच सखा” कहलाते हैं ।
साहित्यिक कृतियाँ
बचपन से ही गोपबन्धु में कवित्व का लक्षण स्पष्ट भाव से देखा गया था। स्कूल में पढ़ते समय ही ये सुन्दर कविताएँ लिखा करते थे। सरल और मर्मस्पर्शी भाषा में कविता लिखने की शैली उनसे ही आम्रभ हुई। ओड़िया साहित्य में वे एक नए युग के स्रष्टा हुए, उसी युग का नाम "सत्यवादी युग" है। सरलता और राष्ट्रीयता इस युग की विशेषताएँ हैं। "अवकाश चिंता", "बंदीर आत्मकथा" और "धर्मपद" प्रभृति पुस्तकों में से प्रत्येक ग्रंथ एक एक उज्वल मणि है। "बंदीर आत्मकथा" जिस भाषा और शैली में लिखी गई है, ओड़िया भाषी उसे पढ़ते ही राष्ट्रीयता के भाव से अनुप्राणित हो उठते हैं। "धर्मपद" पुस्तक में "कोणार्क" मंदिर के निर्माण पर लिखे गए वर्णन को पढ़कर ओड़िया लोग विशेष गौरव का अनुभव करते हैं। यद्यपि ये सब छोटी छोटी पुस्तकें हैं, तथापि इनका प्रभाव अनेक बृहत् काव्यों से भी अधिक है।
बाहरी कड़ियाँ
- पुण्यतिथि पर याद किये गए गोपबंधु दाससाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- Gopabandhu in Orissa Review * September - October - 2006 e-magazine published by Govt. of Orissa
- Online version of 'The Samaja' Originally Founded by Utkalamani Gopabandhu Das in the year 1919