गहलोत

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(गहलोत राजपुत से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

गहलोत जाट/गहलोत राजपूतों का वंश है[१]। गहलोत राजपूतों ने मेवाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, शाहपुरा, भावनगर, पलिताना, लाठी और वाला सहित कई साम्राज्यों पर शासन किया।।[२] नाम की विविधताओं में गहलोत, गुहिला, गोहिल या गुहिलोत शामिल हैं। पासवान जाती बिहार मे अथवा बिहार से सटे हुए उत्तर प्रदेश के जिलों मे पायी जाती हैं। यह एक मार्शल कौम है सौर्य इनका लक्षण है विश्वसनीयता इनके जींश मे पाया जाता है, किसी को धोखा देना जानते ही नहीं, बड़े धार्मिक और कट्टर देश भक्त, धर्म के लिए कुछ भी कर सकते हैं ऐसा इनका जीवन स्वभाव इधर इस समाज मे बड़े-बड़े उद्दमी, प्रशासनिक अधिकारी भी पाये जाते हैं इनके कुल देवता 'महराज चौहरमल' माने जाते हैं, इस समाज की कुछ पूजा आज भी जीवंत है जैसे आग पर चलना, खौलते हुए दूध मे हाथ डालकर चलाना और इश्वर मे विस्वास ऐसा कि आज तक कुछ नहीं हुआ इस पूजा की बड़ी महिमा व मान्यता है जो आज भी जीवंत है।

विष्णु पाद मंदिर रक्षार्थ

वास्तविकता यह है कि यह वंश हिन्दू धर्म कि रक्षा हेतु "राणा लाखा" के नेतृत्व मे गयाजी (विष्णु पाद) मंदिर रक्षा हेतु राजस्थान से चलकर 'गोहिल वंश' के क्षत्रिय बड़ी संख्या मे बिहार आये उस समय इस्लामिक सत्ता थी जो हिंसा हत्या बलात्कार मे विस्वास करती थी, मंदिरों व मूर्तियों को तोड़ना ही इनका धर्म था, इस्लाम के अंदर तो मानवता नाम कि कोई चीज न थी न आज है, उन्होने बड़ी वीरता के साथ इस धर्म भूमि और मंदिरों की रक्षा मे अपना जीवन बिता दिया यहीं के होकर रह गए, समय काल परिस्थितियाँ बदलीं जो रक्षक थे वे पददलित हो गए मुगलों की बर्बर सत्ता आ गयी हिंदुओं की बहन बेटियाँ सुरक्षित नहीं, सभी को यह पता है की हिन्दू धर्म मे बिबाह दिन में और मंदिरों मे होता था लेकिन इस्लामिक सत्ता ने सब कुछ तहस- नहस कर दिया, मंदिरों पर हमले होने के साथ वहाँ विवाह बंद हो गया जो बिबाह दिन मे होता था वह अपनी सुरक्षा हेतु घर के अंदर होने लगा, जो बिबाह बिना दहेज व खर्चे के होता था अब सुरक्षा हेतु बड़ी संख्या मे बारात के नाम पर लोग आने लगे और बिबाह रात्री मे होने लगी ।


धर्म रक्षक से अछूत

इतना ही नहीं चूँकि मंदिरों मे बिबाह की मान्यता है तो जो बिबाह मंडप बनाया जाता है उसमे मंदिरों के चिन्ह बनाए जाते हैं, लड़की की बिदाइ हो रही है उसे इस्लामिक आतंकी लोग लूटते कभी कभी सुरक्षा नहीं हो पाती, क्योंकि सत्ता तो मुसलमानों की थी डोली पर खतरा आ गया, समाज ने बिकल्प के तौर पर सुवर का बच्चा दुल्हन की डोली मे रखना स्वीकार किया, जिससे मुसलमानों से डोली सुरक्षित रहती इतना ही नहीं अपनी व अपने धर्म की सुरक्षा हेतु सुवर पालन शुरू हो गया, "कुरान" की दृष्टि मे सुवर निकृष्ट माना जाता है इस कारण मुसलमान इसे घृणास्पद समझते हैं फलतः यवनों से बचाव हेतु जब कभी मुसलमान इन पर हमला करते तो ये सुवर की हड्डी, मांश-खून फेकना शुरू कर देते, अपनी लड़कियों के रक्षार्थ सुवर के हड्डी की ताबीज पहनना अनिवार्य हो गया जब उसकी डोली जाती तो यह ताबीज पहनना आवस्यक कर दिया गया, धीरे- धीरे हिन्दू समाज मे बिकृति आई समाज का यह वर्ग जो गोहील क्षत्रिय है वह आज अछूत हो गया लेकिन धर्म नहीं छोड़ा, ये सभी मंदिरों के रक्षक थे इस कारण वे इस्लाम के निशाने पर पड़े, लेकिन जिस उद्देश्य से ये राजस्थान से आए थे उसमे आंच नहीं आने दी।


समाज मे छुवा-छूत को कोई स्थान नहीं

क्या सनातन धर्म मे छुवा -छूत, भेद-भाव अथवा उंच -नीच को स्थान है ? तो जब हम अपने मूल ग्रंथ की तरफ देखते हैं तो दिखाई देता है की हमारे धर्मग्रंथ मे कहीं इन सब के लिए कोई स्थान नहीं है, ध्यान मे आता है की समाज मे जो लड़ाकू थे रक्षक थे योजना वद्ध तरीके उन्हे पददलित किया गया, उस समय भारत मे पहले पठानों का राज्य फिर मुगलों का राज्य हुआ और अंत मे अंग्रेजों ने भी राज किया पर मुगल अंग्रेजों का युग अत्याचार और दमन का युग था जिससे लड़ाकू कौम को दबा दिया गया, फल स्वरूप अच्छे साहित्य और जातीय इतिहास का सृजन नहीं हो सका इस तरह गोहील- गहलोत (दुसाध) जैसे भयंकर लड़ाकू जाती को हर तरह दबाने की कोशिस की गयी फलतः इनकी संताने अपने पूर्वजों के गौरव को भूलकर अंधकार मे गुम हो समाज मे हर तरह से नीचे गिर गयी ।

क्षत्रिय कुल

दुसाध जाती का जिक्र ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की सूचियों मे अथवा किसी ग्रंथ मे नहीं आता है, दूसरी तरफ कर्नल टाट के अलावा अन्य लेखकों ने प्रमाण द्वारा साबित करके बताया है कि "दुसाध" क्षत्रियों कि एक शाखा है, ब्राह्मण निर्णय ग्रंथ द्वारा भी दुसाध क्षत्रियों की एक शाखा है, "क्षत्रिय वंश प्रदीप" मे 'दुसाध' को क्षत्रियों की एक शाखा माना गया है, भाग एक के पृष्ठ 409 ग्यारह सौ क्षत्रियों की सूची मे 'दुसाध' का 480 वां स्थान दिखाया गया है, पं ज्वाला प्रसाद द्वारा संपादित 'जाति भास्कर' नामक ग्रंथ मे गहलौतों की 24 शाखाओं एक दुसाध भी लिखा है 'इंडियन फ्रेंचईजी समिति' की रिपोर्ट मे लिखा है कि 'दुसाध' उत्तर बिहार की पुरानी जाति है जिसमे कई राजा हुए हैं ।

पूजा पद्धति

जंगल मे गाय चराते हुए मेवाण वंश के आदि राजा राहुप को भगवान एकलिंग व योगी हरित मुनी की कृपा से दो धार वाली तलवार मिली जिसके बल वे बड़े शक्तिशाली राजा हुए आज भी तलवार की पूजा दुसाध अपने देवालय मे करता है जिस तरह राजा शिलादित्य प्रभात की बेला मे सूर्य कुंड के मधायम से सूर्य की पूजा करते थे ठीक उसी तरह सूर्योदय के पहले उनकी संतान (दुसाध) भी इस पूजा को धूम-धाम से करते हैं, और अपने त्याग, पराक्रम, संस्कार और सच्चरित्रता का परिचय देते हैं, दुसाध राहू पूजा करते हैं ये क्या है ?वास्तविकता यह है की राहुप- रावल और फिर उसी का अपभ्रंश राणा है राहू पूजा केवल बिहार मे दुसाधो के यहाँ होती है यह पूजा अपने कुल पुरुष की है जो इस वंश के आदि राजा थे, यह इस जाती की पुरानी पूजा है अपने पराक्रम और सौर्य के कारण राणा कहलाने वाले इस वंश के राजा राहुप के नाम से सायद प शब्द लुप्त होने से "राहु" हो गया ।

वीरों की पूजा

बाबा "बहर सिंह" की पूजा हिंदुओं मे खासकर दुसादों मे होती है इनकी महिमा गीत भी गया जाता है "बहर" गहलोत क्षत्रिय थे सिंह उप नाम क्षत्रिय ही लगता हैं, विशेष कर उत्तर बिहार मे इनकी पूजा होती है, जब हम मोरङ जिला (नेपाल) मे जाते है कहीं "राजा शैलेश" का नाम प्रसिद्ध है बड़ी श्रद्धा के साथ उनका नाम लेते हैं कहीं भी कठिन कार्य पड़े किसी का डर हो अथवा आंधी -तूफान हो राजा शैलेश का नाम लेते ही शक्ति दो गुणी हो जाती है, ये 'बाप्पा रावल' के पुत्र 'कुलेश' का अपभ्रंश शैलेश है चित्तौण से आकार यहाँ राज्य स्थापित किया था, महाराज चौहरमल पटना के मोकामा मे आज भी उपलब्ध है उनका राज्य लखीसराय से गया तक फैला हुआ था वे ब्रम्हचारी थे ये मल उपनाम गहलौतों की एक शाखा का नाम है अधिक जानकारी के लिए राजपूत वंशावलियों मे बृहत रूप मे मिल सकेगा । संत तुलसीदास ने रामचरित मानस मे लिख


         " कर्म प्रधान विश्व करि राखा,
         जो जस करहि सो तस फल चाखा" 

भगवान कृष्ण ने गीता कहा

   " कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषू कदाचन" 

अपना कर्म ही मनुष्य को ऊंचा-नीचा बनाता है हमे अपने कर्म करना है, इस जाती का अतीत गौरव शाली है 'राणा सांगा' 'बाप्पा रावल' का ध्यान करते हुए अपने चरित्र के बल आगे बढ़ना हिन्दू समाज की रक्षा, ईसाई और इस्लाम से अपने समाज को बचाना यही इस समय का सबसे सर्बोत्कृष्ट कार्य है, धर्म बचा रहेगा, दुसाध जाती बची रहेगी तो देश अपने-आप बचेगा और यह जाती पुनः अपने गौरव को प्राप्त करेगी ।

संदर्भ ग्रंथ- (ब्राह्मण निर्णय ग्रंथ, क्षत्रिय वंश प्रदीप, जाति भास्कर, पिछ्ड़ी जातियों का इतिहास, राजपुताना का इतिहास-कर्नल टाट)

सन्दर्भ

  1. डॉ॰ ओमपाल तुगानिया: जाट समुदाय के प्रमुख आधार बिन्दु, आगरा, २००४
  2. साँचा:cite book