कोलेस्टेरॉल
कोलेस्ट्रॉल या पित्तसांद्रव मोम जैसा एक पदार्थ होता है,[१] जो यकृत से उत्पन्न होता है। यह सभी पशुओं और मनुष्यों के कोशिका झिल्ली समेत शरीर के हर भाग में पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल कोशिका झिल्ली का एक महत्वपूर्ण भाग है, जहां उचित मात्रा में पारगम्यता और तरलता स्थापित करने में इसकी आवश्यकता होती है। कोलेस्ट्रॉल शरीर में विटामिन डी, हार्मोन्स और पित्त का निर्माण करता है, जो शरीर के अंदर पाए जाने वाले वसा को पचाने में मदद करता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल भोजन में मांसाहारी आहार के माध्यम से भी पहुंचता है यानी अंडे, मांस, मछली और डेयरी उत्पाद इसके प्रमुख स्रोत हैं।[१] अनाज, फल और सब्जियों में कोलेस्ट्रॉल नहीं पाया जाता। शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लगभग २५ प्रतिशत उत्पादन यकृत के माध्यम से होता है।[२] कोलेस्ट्रॉल शब्द यूनानी शब्द कोले और और स्टीयरियोज (ठोस) से बना है और इसमें रासायनिक प्रत्यय ओल लगा हुआ है। १७६९ में फ्रेंकोइस पुलीटियर दी ला सैले ने गैलेस्टान में इसे ठोस रूप में पहचाना था। १८१५ में रसायनशास्त्री यूजीन चुरवेल ने इसका नाम कोलेस्ट्राइन रखा था।[१] मानव शरीर को कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता मुख्यतः कोशिकाओं के निर्माण के लिए, हारमोन के निर्माण के लिए और बाइल जूस के निर्माण के लिए जो वसा के पाचन में मदद करता है; होती है।[२] फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में नैशनल पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के प्रमुख रिसर्चर डॉ॰ गांग हू के अनुसार कोलेस्ट्रॉल अधिक होने से पार्किंसन रोग की आशंका बढ़ जाती है।[३]
प्रकार
कोलेस्ट्रॉल रक्त में घुलनशील नहीं होता है। उसका कोशिकाओं तक एवं उनसे वापस परिवहन लिपोप्रोटींस नामक वाहकों द्वारा किया जाता है। निम्न-घनत्व लिपोप्रोटीन या एलडीएल, बुरे कोलेस्ट्रॉल के नाम से जाना जाता है। उच्च-घनत्व लिपोप्रोटीन या एचडीएल, अच्छे कोलेस्ट्रॉल के नाम से जाना जाता है। ट्राइग्लीसिराइड्स एवं Lp (a) कोलेस्ट्रॉल के साथ ये दो प्रकार के लिपिड, कुल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनाते हैं, जिसे रक्त परीक्षण के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।[४]
कोलेस्ट्रॉल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।[४]
एल डी एल
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। न्यूनघनत्व लिपोप्रोटीन (लो डेनसिटी लिपोप्रोटीन्स) कोलेस्ट्रॉल को सबसे ज्यादा नुकसानदायक माना जाता है।[५] इसका उत्पादन लिवर द्वारा होता है, जो वसा को लिवर से शरीर के अन्य भागों मांसपेशियों, ऊतकों, इंद्रियों और हृदय तक पहुंचाता है। यह बहुत आवश्यक है कि एल डी एल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रहे, क्योंकि इससे यह पता चलता है कि रक्त के प्रवाह में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो गई है। ऐसे में यह रक्तनली की दीवारों पर यह जमना शुरू हो जाता है और कभी-कभी नली के छिद्र बंद हो जाते हैं। परिणामस्वरूप हार्टअटैक की संभावना बढ़ जाती है। राष्ट्रीय कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण कार्यक्रम के अनुसार शरीर में एल डी एल कोलेस्ट्रॉल का स्तर १०० मिली ग्राम/डीएल से कम होना चाहिए। एलडीएल (बुरा) कोलेस्ट्रॉल अत्यधिक होता है, तो यह धीरे-धीरे हृदय तथा मस्तिष्क को रक्त प्रवाह करने वाली धमनियों की भीतरी दीवारों में जमा होता जाता है। यदि एक थक्का (क्लॉट) जमकर संकरी हो चुकी धमनी में रुकावट डाल देता है, तो इसके परिणामस्वरूप हृदयाघात या स्ट्रोक हो सकता है।[४]
एच डी एल
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। उच्च घनत्व लिपोप्रोटीन (हाई डेनसिटी लिपोप्रोटीन्स) को अच्छा कोलेस्ट्रॉल माना जाता है।[२][४][५] इसका उत्पादन भी यकृत ही से होता है, जो कोलेस्ट्रॉल और पित्त को ऊतकों और इंद्रियों से पुनष्चक्रित करने के बाद वापस लिवर में पहुंचाता है। एच डी एल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा का अधिक होना एक अच्छा संकेत है, क्योंकि इससे हृदय के स्वस्थ होने का पता चलता है।[४] राष्ट्रीय कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण कार्यक्रम के अनुसार शरीर में एच डी एल कोलेस्ट्रॉल का स्तर ६० मिली ग्राम/डीएल से अधिक नहीं होनी चाहिए। अच्छे कोलेस्ट्रॉल भोजन में शामिल हैं मछली का तेल, सोयाबीन उत्पाद, एवं हरी पत्तेदार सब्ज़ियां। सप्ताह में पांच दिन, एवं प्रत्येक बार लगभग ३० मिनट के लिए ऐरोबिक व्यायाम (पैदल चलना, दौड़ना, सीढ़ी चढ़ना आदि) करें तो केवल दो महीनों में एचडीएल ५ प्रतिशत से बढ़ा सकते हैं। धूम्रपान कम या बंद करने भर से एचडीएल १० प्रतिशत से बढ़ सकता है। वज़न कम करना भी अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने का अन्य तरीका है। शरीर का वज़न प्रत्येक छ: पाउण्ड कम करने पर शरीर में अच्छा कोलेस्ट्रॉल १ मिली ग्राम/डेसि.लि. से बढ़ा सकते हैं।[२][४]
वी एल डी एल
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। अतिन्यून घनत्व लिपोप्रोटीन (वेरी लो डेनसिटी लिपोप्रोटीन्स) शरीर में लिवर से ऊतकों और इंद्रियों के बीच कोलेस्ट्रॉल को ले जाता है।[४] वी एल डी एल कोलेस्ट्रॉल, एल डी एल कोलेस्ट्रॉल से ज्यादा हानिकारक होता है। यह हृदय रोगों का कारण बनता है।[५]
वृद्धि के कारक
क्र. स | पदार्थ का नाम | कोलेस्ट्रांल की मात्रा |
---|---|---|
1 | विना चर्बी गोमांस | 70 मि.ग्रा. |
2 | मगज कच्चा | 2000 से अधिक मि.ग्रा. |
3 | मक्खन | 250 से 280 मि.ग्रा. |
4 | केवियर | 300 से अधिक मि.ग्रा. |
5 | मछली | 70 मि.ग्रा. |
6 | आइससक्रीम | 45 मि.ग्रा. |
7 | गुर्दा कच्चा | 375 मि.ग्रा. |
8 | मेमना कच्चा | 70 मि.ग्रा. |
9 | सुअर की चर्बी | 95 मि.ग्रा. |
10 | चेडार | 100 मि.ग्रा. |
11 | कांटेज क्रीम | 15 मि.ग्रा. |
12 | क्रीम | 120 से 140 मि.ग्रा. |
13 | जिगर कच्चा | 300-425 मि.ग्रा. |
14 | समुद्री झींगा | 200 मि.ग्रा. |
15 | मार्जरीन | 65 मि.ग्रा. |
16 | सम्पूर्ण दूध (तरल) | 11 मि.ग्रा. |
17 | दूध (सूखा) | 85 मि.ग्रा. |
18 | मलाई उतारा दूध(तरल) | 3 मि.ग्रा. |
19 | भेड का मांस | 65 मि.ग्रा. |
20 | सूअर का मांस | 70 मि.ग्रा. |
21 | झींगा | 125 मि.ग्रा. |
22 | चीज स्प्रेड | 65 मि.ग्रा. |
23 | चिकेन (कच्चा) | 60 मि.ग्रा. |
24 | क्रैब | 1125 मि.ग्रा. |
25 | अंडा(संपूर्ण) | 550 मि.ग्रा. |
26 | अंडे की जर्दी | 1500 से 2000 मि.ग्रा. |
सामान्य परिस्थितियों में यकृत कोलेस्ट्रॉल के उत्सजर्न और विलयन के बीच संतुलन बनाए रखता है, किन्तु यह संतुलन कई बार बिगड़ भी जाता है। इसके पीछे कुछ कारण हैं। यह संतुलन तब बिगड़ता है,[४][५] जब:
- अधिक मात्रा में वसा युक्त भोजन सेवन
- शरीर का वजन की अति वृद्धि
- खानपान में लापरवाही
- नियमित व्यायाम का अभाव
- आनुवांशिक कारण भी है। देखा गया है कि अगर किसी परिवार के लोगों में अधिक कोलेस्ट्रॉल की शिकायत होती है तो अगली पीढ़ी में भी इसकी मात्रा अधिक होने की आशंका रहती है।
- कई लोगों में शरीर में कोलेस्ट्रॉल उम्र के साथ भी बढ़ता देखा जाता है।
वृद्धि-लक्षण
कोलेस्ट्रॉल के बढ़ जाने का अनुभव स्वयं किया जा सकता है। ये वृद्धि तब होती समझें जब-
- पैदल चलने पर सांस फूलने लगता हो।
- उच्च रक्तचाप रहने लगा हो।
- मधुमेह रोगी, शर्करा मात्रा अधिक रहने से उनका खून गाढ़ा होता है।
- पैरों में दर्द रहने लगा हो। अन्य कोई कारण न होने से कोलेस्ट्रॉल वृद्धि हो सकता है।
परीक्षण
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। लिपिड प्रोफाइल परीक्षण, के अंतर्गत्त कुल कोलेस्ट्राल, उच्च घनत्व कोलेस्ट्रॉल (हाई डेनसिटी लिक्विड कोलेस्ट्राल), निम्न घनत्व कोलेस्ट्रॉल, अति निम्न घनत्व कोलेस्ट्रॉल और ट्राय ग्लिसेराइड की जांच होती है। ये जांच नियमित रूप से हर साल करवानी चाहिये। यदि उच्च रक्तचाप की पारिवारिक इतिहास है तो पैतालीस साल की आयु के बाद इसे जल्दी जल्दी करवा लेनी चाहिए।
कोलेस्ट्रॉल का संतुलन
शरीर में कोलेस्ट्रॉल को स्वयं देख नहीं सकते, सिर्फ अनुभव कर सकते हैं। जब इसकी मात्रा अधिक हो जाती है तो हृदयाघात और दिल से संबंधित अन्य रोगों की संभावना बढ़ जाती है। आम तौर पर पुरुषों के लिए ४५ वर्ष और महिलाओं के लिए ५५ वर्ष की आयु के बाद हृदय से जुड़े रोगों की संभावना अधिक होती है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अपने शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को संतुलित न कर सकते हों। इसके लिए अपनी जीवन शैली में थोड़ा बदलाव करना होता है। यदि वजन अधिक है तो इसमें कमी लाने का प्रयास करना चाहिये। भोजन में कम कोलेस्ट्रॉल मात्रा वाले व्यंजन चुनें। तैयार भोजन और फास्ट फूड से बचें। तली हुई चीजें, अधिक मात्रा में चॉकलेट न खाएं। भोजन में रेशायुक्त सामग्री को शामिल करें। यह कोलेस्ट्रॉल को संतुलित बनाए रखने में सहायक होते हैं।[५]
नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा में बढ़ोतरी नहीं होती। इसके अलावा, योगासन भी सहायक होते हैं। कोलेस्ट्रॉल कम करने में प्राणायाम काफी सहायक सिद्ध हुआ है। धूम्रपान से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है। कोलेस्ट्रॉल का चिकित्सकीय उपचार भी संभव है। कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा से पीड़ित व्यक्तियों हेतु कई तरह के उपचार संभव हैं, पर इस पर आरंभ से नियंत्रण करना ही इसका सबसे बढ़िया उपाय है। ऐलोपैथी में कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए स्टेटिन दवा दी जाती है। होम्योपैथी में कोलेस्ट्रॉल को हाइपरलिपिडिमिया कहते हैं। इसमें सिर्फ नियंत्रण के लिए ही कुछ दवाइयां उपलब्ध हैं, जबकि आयुर्वैदिक दवाओं में आरोग्यवर्धिनी, पुनर्नवा मंडूर, त्रिफला, चन्द्रप्रभा वटी और अर्जुन की छाल के चूर्ण का काढ़ा बहुत लाभकारी होता है।
- अन्य नियंत्रक
हाल में हुए अध्ययनों में पता लगा है कि हरी और काली चाय कोलेस्ट्रॉल के स्तर को घटाने में कारगर है। जो लोग ज्यादा चाय पीते हैं उनमें कोलेस्ट्रॉल भी कम होता है और स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएँ भी कम होती हैं। हरी और काली चाय में जो प्राकृतिक रूप से कुछ रसायनों का मिश्रण होता है, उनसे कोलेस्ट्रॉल काफ़ी कम हो जाता है। इसके लिए हरी चाय अकेले काफी नहीं है, बल्कि उसके साथ निम्न वसा आहार भी लिया जाए तो दिल के दौरे का खतरा १६-२४ प्रतिशत कम हो सकता है।[६]
प्रोफेसर रोजर कॉर्डर के अनुसार एक गिलास रेड वाइन को अपनी दैनिक जीवन शैली में शामिल करना चाहिए। इसमें प्रोसाइन्डिंस नामक रसायन होता है जो स्वास्थ्यवर्धक होता है, यह डार्क चॉकलेट में भी पाया जाता है। यह रक्तवाहिका प्रकार्यों को बेहतर करते हैं, आर्टरी-क्लॉगिंग एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम करते हैं और हार्ट के लिए हेल्दी एचडीएल कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ाते हैं।[७]
मछली का तेल भी बुरे कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में बहुत सहायक होता है।[८] फोलिक एसिड के कैप्सूल भी लाभदायक होते हैं।[८]
सन्दर्भ
- ↑ अ आ इ साँचा:cite web
- ↑ अ आ इ ई साँचा:cite webसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- ↑ कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से पार्किंसन का खतरासाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]।इकनॉमिक टाइम्स।७ जून,२००८।(हिन्दी)
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ साँचा:cite webसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- ↑ अ आ इ ई उ साँचा:cite webसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- ↑ साँचा:cite webसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ अ आ साँचा:cite web
बाहरी कड़ियाँ
- कोलेस्ट्रॉल बुरा ही नहीं अच्छा भीसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link] नियंत्रण के उपाय और कुछ तथ्य
- 9 खाद्य पदार्थ कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करने के लिए।(हिन्दी)।१६ दिसंबर,२००८। नील। नील्स कॉर्नर
- कोलेस्ट्रांलसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]।(हिन्दी)। हैल्थ एण्ड थेराप्युटिक
- कोलेस्टरोल की इतनी जानकारी सबको जरूरी है!
। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात् इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (=) है, ऐसीटिलीन में त्रिगुण बंध (º) वाले यौगिक अस्थायी हैं। ये आसानी से ऑक्सीकृत एवं हैलोजनीकृत हो सकते हैं। हाइड्रोकार्बनों के बहुत से व्युत्पन्न तैयार किए जा सकते हैं, जिनके विविध उपयोग हैं। ऐसे व्युत्पन्न क्लोराइड, ब्रोमाइड, आयोडाइड, ऐल्कोहाल, सोडियम ऐल्कॉक्साइड, ऐमिन, मरकैप्टन, नाइट्रेट, नाइट्राइट, नाइट्राइट, हाइड्रोजन फास्फेट तथा हाइड्रोजन सल्फेट हैं। असतृप्त हाइड्रोकार्बन अधिक सक्रिय होता है और अनेक अभिकारकों से संयुक्त हा सरलता से व्युत्पन्न बनाता है। ऐसे अनेक व्युत्पंन औद्योगिक दृष्टि से बड़े महत्व के सिद्ध हुए हैं। इनसे अनेक बहुमूल्य विलायक, प्लास्टिक, कृमिनाशक ओषधियाँ आदि प्राप्त हुई हैं। हाइड्रोकार्बनों के ऑक्सीकरण से ऐल्कोहॉल ईथर, कीटोन, ऐल्डीहाइड, वसा अम्ल, एस्टर आदि प्राप्त होते हैं। ऐल्कोहॉल प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक हो सकते हैं। इनके एस्टर द्रव सुगंधित होते हैं। अनेक सुगंधित द्रव्य इनसे तैयार किए जा सकते हैं। इसी प्रकार कोलेस्टेरॉल को भी विभिन्न प्रयोगों में लिया जा सकता है।
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